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    Home»देश»हाथियों का संरक्षण हमारे नेशनल हेरिटेज की रक्षा के राष्ट्रीय दायित्व का हिस्सा: राष्ट्रपति
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    हाथियों का संरक्षण हमारे नेशनल हेरिटेज की रक्षा के राष्ट्रीय दायित्व का हिस्सा: राष्ट्रपति

    adminBy adminApril 7, 2023No Comments7 Mins Read
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    -राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में गज उत्सव का उद्घाटन किया

    गोलाघाट (असम)। काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में शुक्रवार को दो दिवसीय गज महोत्सव 2023 का उद्घाटन करते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि भारत सरकार द्वारा प्रायोजित प्रोजेक्ट एलिफेंट के 30 वर्ष पूरा हो गये हैं। इस महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट से जुड़े इस उत्सव के आयोजन के लिए केंद्र सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्रालय तथा असम सरकार के वन विभाग के सभी कर्मचारियों और अधिकारियों की मैं सराहना करती हूं।

    उन्होंने कहा कि हाथियों की सुरक्षा, उनके नेचुरल हैबिट्स का संरक्षण तथा एलिफेंट कॉरिडोर को बाधा-रहित बनाए रखना प्रोजेक्ट एलिफेंट के प्रमुख उद्देश्य हैं। साथ ही ह्यूमन-एलिफेंट कनफ्लिक्ट से जुड़ी समस्याओं का समाधान इस प्रोजेक्ट का लक्ष्य भी है और चुनौती भी। ये सभी उद्देश्य एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।

    राष्ट्रपति ने कहा कि ह्यूमन-एलिफेंट कनफ्लिक्ट सदियों से एक मुद्दा रहा है। प्राचीन कवि त्रिपुरारि-पाल ने लिखा था कि हाथी को बंधन में डालकर मनुष्य को अपनी बुद्धिमत्ता पर गर्व नहीं करना चाहिए। यह तो हाथी का शांत और विनयशील स्वभाव है, जिसके कारण वह बंधन को स्वीकार कर रहा है। यदि क्रोध में आकर अपने विनय को छोड़ दे तो वह सब कुछ तहस-नहस कर सकता है।

    उन्होंने कहा कि यदि गहराई से विचार किया जाए तो यह स्पष्ट होता है कि जो कार्य प्रकृति तथा पशु-पक्षियों के हित में है, वह मानवता के हित में भी है और धरती-माता के हित में भी है। जो जंगल और हरे-भरे क्षेत्र एलिफेंट रिजर्व हैं, वे सभी बहुत प्रभावी कार्बन सिनक्स भी हैं। इसलिए यह कहा जा सकता है कि हाथियों के संरक्षण से सभी देशवासी लाभान्वित होंगे तथा यह क्लाइमेट चेंज की चुनौती का सामना करने में सहायक सिद्ध होगा। ऐसे प्रयासों में सरकार के साथ-साथ समाज की भागीदारी भी जरूरी है।

    उन्होंने कहा कि प्रकृति और मानवता के बीच बहुत पवित्र रिश्ता है। इस रिश्ते की पवित्रता ग्रामीण और आदिवासी समाज में अभी भी दिखाई देती है। अकादमी अवॉर्ड से पुरस्कृत डाक्यूमेंटरी फिल्म द एलिफेंट विस्पर्स में इसी पवित्र रिश्ते को समझाते हुए दिखाया गया है कि काट्टु-नायक समुदाय के लोग जब जंगल में जाते हैं तब वे अपने पैरों में कुछ नहीं पहनते हैं। सामान्य रूप से लोग अपने जूते-चप्पल उतारकर ही पवित्र स्थानों में प्रवेश करते हैं। प्रकृति का सम्मान करने की यह संस्कृति हमारे देश की पहचान रही है। भारत में प्रकृति और संस्कृति एक-दूसरे से जुड़े रहे हैं और एक दूसरे से पोषण प्राप्त करते रहे हैं।

    हमारी परंपरा में हाथी या गजराज सबसे अधिक सम्मानित रहे हैं। पूजा-अर्चना में गजानन अर्थात हाथी की मुखाकृति वाले, श्री गणेश जी का पूजन सबसे पहले किया जाता है। देवताओं के राजा इंद्र की सवारी, गजराज ऐरावत का प्रभावशाली वर्णन प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। भारत की शास्त्रीय नृत्य-विधाओं में गजलीला-गति, यानी प्रसन्न होकर आगे बढ़ते हुए हाथी की चाल की कलात्मक प्रस्तुति की जाती है। हाथी को हमारे देश में स्मृद्धि का प्रतीक भी माना गया है। हमारे देश की परंपरा के संदर्भ में यह भी सर्वथा उचित है कि इस भव्य गजराज को भारत के नेशनल हेरिटेज एनिमल का स्थान दिया गया है। हाथी की रक्षा हमारे नेशनल हेरिटेज की रक्षा करने के राष्ट्रीय उत्तरदायित्व का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

    राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि हाथी को बहुत बुद्धिमान और संवेदनशील माना जाता है। हाथी भी मनुष्यों की तरह एक सामाजिक प्राणी है। वह परिवार के साथ और समूह में रहना पसंद करता है। यदि समूह के एक हाथी पर कोई संकट आता है तो सभी हाथी इकट्ठा हो जाते हैं और उसकी सहायता करते हैं। यदि कुछ अनहोनी हो जाती है तो सभी एक साथ दुख की अभिव्यक्ति करते हैं। यह बातें मैं इसलिए कह रही हूं कि हाथी तथा अन्य जीवधारियों के लिए हम सबको उसी तरह संवेदना और सम्मान का भाव रखना चाहिए जैसे हम मानव-समाज के लिए रखते हैं। मैं तो यह भी कहना चाहूंगी कि निःस्वार्थ प्रेम का भाव पशु-पक्षियों में अधिक होता है। उनसे मानव-समाज को सीखना चाहिए।

    वन विभाग के अधिकारियों तथा इस क्षेत्र से जुड़े अन्य सभी संस्थानों का यह प्रयास होना चाहिए कि यदि कोई हाथी अपने समूह से बिछुड़ जाए और जंगल से बाहर आ जाए तो उसे हरसंभव प्रयास कर उसके परिवार और समूह से वापस मिला दें, जैसे मेले में भूले-भटके बच्चों को उनके माता-पिता से मिलाया जाता है। यदि किसी कारण उन्हें वापस उनके परिवार से न मिलाया जा सके तो उन्हें बहुत प्यार से रखना चाहिए।

    उन्होंने कहा कि मैं, जिस परिवेश में पली-बढ़ी हूं, वहां प्रकृति और पशु-पक्षियों के प्रति सम्मान का भाव मैंने देखा है। झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडीशा में रहने वाले हाथी भी मेरे जन्म-स्थान के क्षेत्र से गुजरते रहते हैं। सभी बच्चों को हाथी बहुत प्यारे लगते हैं। मुझे भी बचपन से ही हाथियों से लगाव रहा है। वे अकारण किसी भी तरह का नुकसान नहीं करते हैं। जब ह्यूमन-एलिफेंट कनफ्लिक्ट का विश्लेषण होता है तो यही पता चलता है कि हाथियों के प्राकृतिक वास या आवागमन में अवरोध पैदा किया गया है। अतः इस कनफ्लिक्ट की जिम्मेदारी मानव-समाज पर ही आती है। इसलिए मानव समाज को हमेशा संवेदनशील और सचेत रहना चाहिए तथा उनसे प्यार भरा व्यवहार करना चाहिए।

    राष्ट्रपति ने कहा कि हमारी आध्यात्मिक परंपराओं में भी, मानवता, प्रकृति और पशु-पक्षियों के एकात्म होने पर जोर दिया गया है। समस्त प्रकृति से तथा जीवन-जगत से प्रेम करने का यही भारतीय आदर्श द एलिफेंट विस्पर्स नामक फिल्म में दिखाया गया है। इस फिल्म में हाथियों के अनाथ बच्चों, रघु और अम्मू को, बेल्ली और बोम्मन वैसे ही प्यार करते हैं और उनकी देखभाल करते हैं, जैसे माता-पिता अपने बच्चों की परवरिश करते हैं। ऐसे बहुत से ग्रामीण, आदिवासी और महावत परिवारों के लोग हाथियों को प्यार करते हैं, उनकी देखभाल करते हैं। बेल्ली और बोम्मन की तरह उनकी कहानी भी सबके सामने आनी चाहिए। बेल्ली और बोम्मन जैसे प्रेम का आदर्श प्रस्तुत करने वाले अपने देशवासियों पर मुझे गर्व है और मैं उन सबके प्रति हृदय से सम्मान व्यक्त करती हूं।

    उन्होंने कहा कि असम के काजीरंगा नेशनल पार्क और मानस नेशनल पार्क केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व की अनमोल विरासत हैं। इसलिए इन दोनों विशाल तथा सुंदर उद्यानों को यूनेस्को द्वारा वर्ल्ड हेरिटेज साइड का दर्ज दिया गया है। उन्होंने कहा कि मुझे बताया गया है कि जंगली हाथियों की कुल संख्या की दृष्टि से असम का देश में दूसरा स्थान है, यहां मानव-समाज की देखरेख में रहने वाले हाथियों की संख्या भी बहुत बड़ी है। इसलिए गज-उत्सव के आयोजन के लिए असम का काजीरंगा उद्यान बहुत ही उपयुक्त स्थल है। प्रोजेक्ट एलिफेंट तथा गत-उत्सव के उद्देश्यों में सफलता के लिए सभी हितधारकों को मिलकर आगे बढ़ना होगा। स्कूल के बच्चों में प्रकृति तथा जीव-जंतुओं के प्रति जागरूकता और संवेदनशीलता का प्रसार करना बहुत महत्वपूर्ण है।

    हमारे सभी परंपरागत पर्व प्रकृति की लय के साथ जुड़े हैं। असम का रंगाली बिहू भी प्रकृति के उल्लास को व्यक्त करता है। उन्होंने सभी को रंगाली बिहू की अग्रिम बधाई दी। साथ ही गज-उत्सव एवं प्रोजेक्ट एलिफेंट की सफलता के लिए भी शुभकामनाएं व्यक्त की।

    इस मौके पर एक स्मारिका का भी विमोचन किया गया। समारोह में असम के राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया, असम के मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत बिस्व सरमा, केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव, केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे, असम सरकार के मंत्री अतुल बोरा, चंद्र मोहन पटवारी और अजंता नेउग के साथ ही बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे।

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