फूलचंद तिर्की
प्राकृतिक महापर्व सरहुल आदिवासियों का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। सरहुल चैत के महीने में होता है। सरहुल में ही आदिवासियों का नया साल शुरू होता है। आदिवासी प्राकृतिक पूजक होते हैं। पेड़-पौधे, पहाड़, पर्वत, नदी-नाला, धरती-आकाश, सूरज-चांद आदि की पूजा पाठ करते हैं। सरहुल में आदिवासी प्रकृति का आभार प्रकट करने के लिए लोग सरहुल मनाते हैं। सरहुल पर्व को आदिवासी बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं। सरहुल में आदिवासी परंपरा, संस्कृति की अद्भुत झलक दिखाने को मिलती है। सरहुल के महीने में चारों ओर धरती हरी- भरी नजर आती है। जंगलों में नये-नये फल-फूल खिलने लगते हैं। पूरी धरती सुहानी हो जाती है। ऐसा लगता है मानो धरती शृंगार कर दुल्हन बन गयी है। सरहुल में आदिवासी धरती और सूर्य के विवाह के रूप में मनाते हैं। सरहुल के दिन पुरुष जंगल जाकर फल-फूल, पत्ते लाते हैं और महिलाएं घर-आंगन को सफाई करती हैं। इस दिन केकड़ा मछली पकड़ने का भी रिवाज होता है। पहान के द्वारा चैत द्वितीय को उपवास प्यास कर सरना स्थल में पूजा पाठ कर घड़े में पानी रखा जाता है और दूसरे दिन सुबह घडेÞ में पानी देखकर पहान के द्वारा मौसम की भविष्यवाणी की जाती है। तृतीया को पहान के द्वारा सरना स्थल में पूजा पाठ की जाती है। चतुर्थी को फूलखोंसी का कार्यक्रम होता है। सरहुल मनाने के लिए देश-प्रदेश से जो काम धंधा करने के लिए लोग गये होते हैं, वैसे लोग भी सरहुल में अपने-अपने घर वापस लौटते हैं। अपने परिवार, हित-कुटुम के साथ नाचते हैं, झूमते हैं, खुशियां मनाते हैं।
लेखक: केंद्रीय सरना समिति के केंद्रीय अध्यक्ष हैं।
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