विशेष
बुनियादी मुद्दा खूंटी से गौण, राष्ट्रीय मुद्दा हावी
कोई खफा तो कोई फना करने को तैयार
इस बार भी मुकाबला होगा टाइट फाइट का
तीसरा फ्रंट का प्रत्याशी शुकून देगा अर्जुन मुंडा को
‘आजाद सिपाही’ की टीम अपने शो भ्रमण के तहत झारखंड की 14 लोकसभा क्षेत्र का दौरा कर रही है। इसी कड़ी में ‘आजाद सिपाही’ की टीम ने खूंटी लोकसभा क्षेत्र के महत्वपूर्ण क्षेत्रों का दौरा किया। इलाके के लोगों से बातचीत के आधार पर टीम को जो फीडबैक हासिल हुआ, उससे यही लगा कि खूंटी लोकसभा क्षेत्र का चुनाव किसी भी प्रत्याशी के लिए आसान नहीं है। यहां फिर से सिचुएशन टाइट फाइट का ही बना हुआ है। कई क्षेत्रों में भाजपा प्रत्याशी अर्जुन मुंडा को लेकर कुछ नाराजगी है, तो कांग्रेस प्रत्याशी कालीचरण मुंडा के खिलाफ भी खूंटी के सुदूर क्षेत्रों में रोष है। कहीं अर्जुन मुंडा का गुणगान हो रहा है और केंद्र में मंत्री बनने के बाद उनके पास समय की कमी को भी लोग महसूस कर रहे हैं, तो कोई कालीचरण मुंडा के कसीदे पढ़ रहा है। कई लोग यह कहते हुए भी मिले कि चुनाव के बाद कालीचरण मुंडा उनकी खैर-खबर नहीं लेते। वह लोगों से मिलने में भी कोताही बरतते हैं। लेकिन सबसे अहम बात जो छन कर सामने आयी, वह यह कि खूंटी में आज की तारीख में अर्जुन मुंडा या कोई कालीचरण मुंडा नहीं। खूंटी का लोकसभा चुनाव सिर्फ मोदी बनाम एंटी मोदी होने वाला है। जनता को सिर्फ मोदी से मतलब है। चाहे पक्ष में हो या विपक्ष में। खूंटी के लोकल मुद्दे सभी गौण हैं। विकास या बुनियादी मुद्दे सब गायब हैं। सांसद लोकसभा में आये या नहीं, यह मुद्दा भी अब मायने नहीं रखता। विपक्षी प्रत्याशी सिर्फ चुनाव के वक्त मैदान में दिखाई दे रहे हैं, उससे भी यहां की जनता को कोई लेना-देना नहीं है। यहां सिर्फ मोदी या एंटी मोदी है। वैसे खूंटी लोकसभा के कई क्षेत्र अफीम की खेती के गवाह हैं, लोग भी परेशान हैं, लेकिन यह मुद्दा भी फिलहाल गौण है। कोई इसके बारे में बात नहीं करना चाहता। शायद डर इसका कारण है। पत्थलगड़ी आंदोलन का 2.0 अवतार कुटुंब परिवार, जो धीरे-धीरे अंदर ही अंदर अपना संगठन मजबूत कर रहा है, के बारे में भी बात करने से यहां के लोग डरते हैं। यह मुद्दा भी इस चुनाव में गौण है। हां पातर जाति और मुंडा जाति के मुद्दे को हवा देने की साजिश या कोशिश की जा रही है। वैसे कुर्मी जाति के लोग साइलेंट हैं। कुछ लोग कह रहे हैं कि जमशेदपुर के नेता शैलेंद्र महतो के पत्र के जवाब में प्रधानमंत्री ने उनको जो जवाब दिया है, उससे कुर्मी का गुस्सा शांत हुआ है। प्रधानमंत्री ने उन्हें पत्र में लिखा है कि वह कुर्मी को ओवीसी में शामिल करने के बारे में जानकारी ले रहे हैं। वैसे धार्मिक आधार की बात की जाये, तो हिंदुओं ने अपना मन बना लिया है। रही बात मुसलामानों की और इसाइयों की, तो उनका भी रुख साफ है। खूंटी लोकसभा चुनाव क्षेत्र में कुछ जगहों पर चंद लोकल मुद्दों के साथ धार्मिक मुद्दा भी हावी है। ग्रामीण क्षेत्रों में सरना कोड का मुद्दा, जिसे विपक्ष भुनाना चाहेगा, तेली समुदाय की नाराजगी कि आदिवासी क्यों नहीं बनाया, रौतिया समाज को आदिवासी क्यों नहीं बनाया, कुर्मी-महतो को आदिवासी क्यों नहीं बनाया। वहीं भोक्ता समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा कैसे मिल गया, ऐसे कई मुद्दे हैं, जो इस चुनाव में कुछ हद तक कहीं-कहीं मुखर होंगे। क्या है खूंटी लोकसभा क्षेत्र की जनता का मूड, मुद्दे और मन की बात बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
खूंटी लोकसभा क्षेत्र झारखंड के 14 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है। यह क्षेत्र मुख्य रूप से मुंडा जनजातियों के लिए जाना जाता है। कहा जाता है कि छोटानागपुर के राजा मदरा मुंडा के बेटे सेतिया के आठ बेटे थे। उन्होंने ही एक खुंटकटी गांव की स्थापना की, जिसे उन्होंने खुंति नाम दिया, जो बाद में खूंटी हो गया। कुछ जगहों पर इसे महाभारत की कुंती से भी जोड़ा जाता है। यह क्षेत्र बहुत मायनो में प्रसिद्ध है। भगवान बिरसा मुंडा का भी जन्म खूंटी के उलिहातू में ही हुआ था। यहां प्रसिद्ध डोंबारी बुरू भी है। यह वही जगह है, जहां बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों के खिलाफ उलगुलान किया था। इस स्थान पर हजारों की संख्या में आदिवासियों ने अपने हक की लड़ाई के लिए प्राण न्योछावर किये थे। इस क्षेत्र में प्रसिद्ध अंगराबाड़ी का शिव मंदिर भी है। महाशिवरात्रि और सावन माह में यहां पूरे देश से श्रद्धालु पहुंचते हैं। खूंटी में प्रसिद्ध झरना पंचघाघ भी है। पंचघाघ पांच झरनों का संयोजन है। यहां डीयर पार्क भी है। बिरसा मृग विहार खूंटी जिले के कालामाटी के खूबसूरत साल वन में और रांची-खूंटी रोड पर राजधानी शहर से मुश्किल से 20 किलोमीटर दूर स्थित है। यहां रानी फॉल भी है। यह झरना जिला मुख्यालय से 20 किमी दूर खूंटी-तमाड़ मार्ग पर स्थित है। यहां जीइएल चर्च भी है, जो ब्रिटिश काल में स्थापित एक पुराना चर्च है। इस चर्च में ब्रिटिश बुनियादी ढांचे और आंतरिक भाग को देखा जा सकता है। यह मुरहू प्रखंड के सर्वदा पंचायत में वन क्षेत्र से घिरा हुआ है। लेकिन अब खूंटी नशे के कारोबार के लिए भी जाना जाने लगा है। खूंटी के आसपास के इलाके अफीम की खेती का गढ़ बन चुके हैं। ऐसा नहीं है कि प्रशासन को इसकी जानकारी नहीं है। सब जानकारी है, लेकिन अभी भी खूंटी के गावों में बेधड़क इसकी खेती की जा रही है। हां, गाहे-बगाहे कुछ तस्करों को पकड़ कर पुलिस प्रशासन अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेता है।
कुटुंब परिवार की गतिविधियां
एक समय खूंटी पत्थलगड़ी के लिए पूरे देश में चर्चित हो गया था। यहीं से पत्थलगड़ी आंदोलन की शुरूआत हुई थी, जो सरकार के लिए नासूर बन गया था। पत्थलगड़ी समर्थकों ने पूरे क्षेत्र को अशांत कर दिया था। वह सरकार और इसके नियमों के खिलाफ एक अलग तंत्र बनाने में जुटे थे। यह आंदोलन समानांतर सरकार चलाने का प्रोपगेंडा था। पुलिस की दबिश से वह आंदोलन शांत तो हो गया, लेकिन उसमें शामिल लोगों ने एक अलग ही संगठन बना लिया है, जिसे कुटुंब परिवार के नाम से जाना जाता है। अभी कुटुंब परिवार के लोग और सदस्य संगठन को मजबूत करने में लगे हैं। ये लोग घरों को चिह्नित कर अपनी एक पहचान घरों के दरवाजे पर टांग देते हैं। माना जा रहा है कि अगर इस पर सरकार की नजर नहीं पड़ी, तो यह पत्थलगड़ी आंदोलन से भी बड़ा रूप लेने को तैयार है।
खूंटी का चुनावी परिदृश्य
खैर खूंटी लोकसभा के बहुत सारे मुद्दे हैं, जो इस लोकसभा चुनाव में हावी हैं। खूंटी लोकसभा चुनाव में मुख्य जंग भाजपा प्रत्याशी अर्जुन मुंडा और कांग्रेस प्रत्याशी कालीचरण मुंडा के बीच है। 2019 में खूंटी लोकसभा से अर्जुन मुंडा ने बाजी मारी थी। लेकिन यह फाइट बहुत ही टाइट थी। अर्जुन मुंडा मात्र 1445 वोटों से जीते थे। भाग्य प्रबल था, तो जीत गये। इस बार भी फाइट टाइट ही लगता है। लोगों में सांसद को लेकर कहीं गुस्सा है, तो कहीं उनके प्रति प्रेम, तो कहीं उनके काम को समझने की समझ। कुछ का कहना है कि अर्जुन मुंडा जब से सांसद और केंद्र में मंत्री बने, उनकी गाड़ी में ब्रेक नहीं है। उनकी गाड़ी सीधे एयरपोर्ट पर रुकती है। लेकिन कुछ लोगों का यह भी कहना है कि सांसद ने जरूरत के वक्त अपनी उपस्थिति दर्ज की है। वह काफी मिलनसार हैं। यहीं कुछ लोगों का तो यह भी कहना है कि लोगों को समझना चाहिए कि वह केंद्र में मंत्री हैं। उनके पास महत्वपूर्ण विभाग है। उस काम को भी तो करना है। जितना समय मिलेगा, उतना ही कर पायेंगे न। लेकिन कुछ लोगों को न तो अर्जुन मुंडा से मतलब है, न ही कालीचरण मुंडा से। मतलब है तो सिर्फ मोदी से। या तो यस है, या तो नो।
विकास का कोई काम नहीं हुआ
खूंटी निवासी और खूंटी पर विशेष पकड़ रखने वाले पत्रकार राजेंद्र प्रसाद का कहना है कि खूंटी में बहुत पहले कोयलकारो प्रोजेक्ट था, लेकिन वह फेल हो गया। उसके बाद कोई काम खूंटी में हुआ नहीं। फिलहाल जो ज्वलंत मुद्दा खूंटी टाउन का है, वह है बाइपास का। यह बड़ी समस्या के रूप में उभरा हुआ है। सांसद अर्जुन मुंडा और विधायक नीलकंठ मुंडा तक को इस समस्या को बताया गया, लेकिन फिलहाल कुछ हुआ नहीं है। अभी बस चुनाव को देखते हुए आधारशिला, शिलान्यास के रूप में रखी जा रही है। लेकिन कहां से बनेगा, जगह फाइनल नहीं हुआ है।
खूंटी में नॉलेज सिटी भी बनने वाली थी, लेकिन वह काम भी अधर में लटक गया। अगर यह कार्य हो जाता, तो तो इस क्षेत्र का कायाकल्प हो जाता। यहां तक कि ग्रामीणों ने स्वेच्छा से अपनी जमीन दी, लेकिन फिर भी इसे आगे नहीं बढ़ाया गया। उसके बाद प्रस्ताव आया कि इसकी जगह रक्षा यूनिवर्सिटी का निर्माण किया जायेगा, लेकिन वह भी नहीं बना। करोड़ों रुपये बर्बाद हो गये। अभी भी खंडहर जैसा पड़ा हुआ है। खूंटी में वैसा कोई भी उल्लेखनीय काम नहीं हुआ है, जिसे विकास के पैमाने पर रखा जाये। खूंटी में जितना एक्सीडेंट होता है, उतना कहीं नहीं होता है। कितने लोगों ने अपने परिवारों को खोया है। टांग टूटना, हाथ टूटना तो आम बात है। इस लिए बाइपास की मांग की जा रही है। उन्होंने कहा कि अर्जुन मुंडा ने खूंटी में एक बड़ा काम किया था। कोरोना काल में उन्होंने वहां आॅक्सीजन प्लांट बैठवाया, जिससे लोगों को बहुत लाभ हुआ।
राजेंद्र प्रसाद ने कहा, जहां तक कालीचरण मुंडा की बात है, उनके पिता टी मुचि राय मुंडा बिहार में मंत्री थे। उनके निधन के बाद सहानुभूति की लहर में कालीचरण मुंडा तमाड़ से दो बार विधायक बने। उनका मानना है कि कालीचरण मुंडा मिलनसार प्रवृत्ति के नहीं हैं। लेकिन जो इनके भाई हैं नीलकंठ मुंडा, जो मंत्री भी थे और अभी खूंटी से विधायक हैं, वह राजनीति के माहिर खिलाड़ी बन गये हैं। वह मिलनसार प्रवृत्ति के हैं। अर्जुन मुंडा के बारे में लोगों का मानना है कि अगर अर्जुन मुंडा नहीं रहते, तो पिछले साल खूंटी से रामनवमी के मौके पर शोभायात्रा नहीं निकलती। स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय कार्य हुआ है, यह उन्होंने स्वीकार किया।
सरना कोड मुद्दा तो है, पर केंद्र में मोदी ही
खूंटी क्षेत्र पर विशेष पकड़ रखनेवाले हमारे सहयोगी और चार दशक से पत्रकारिता करनेवाले अनिल मिश्रा का मानना है कि खूंटी लोकसभा का चुनाव नाली-गली पर आधारित नहीं है। यहां पर चुनाव विशेष रूप से मोदी के पक्षधर और मोदी के विरोधियों के बीच में है। वैसे राम मंदिर के बनने के बाद यहां हिंदुओं में एकता बढ़ी है। कालीचरण मुंडा के बारे में अनिल मिश्रा बताते हैं कि वह एक दमदार कैंडिडेट हैं। पिछले चुनाव में उन्होंने अर्जुन मुंडा को नेक टू नेक फाइट दी थी। कालीचरण मुंडा मात्र 1445 मतों से पिछड़ गये थे। कालीचरण मुंडा अपने क्षेत्र में एक्टिव हैं। लगातार दौरा करते रहे हैं। लेकिन अर्जुन मुंडा के साथ समस्या यह है कि वह केंद्र में मंत्री हैं, पूरे देश को देखना है। अपने क्षेत्र में ज्यादा समय नहीं दे पा रहे हैं। इसलिए लोगों में नाराजगी है। लेकिन फिर भी यह लोकसभा चुनाव राष्ट्रीय मुद्दे पर आधारित रहेगा। संगठन की बात की जाये, तो यहां भाजपा का संगठन तो मजबूत है ही, साथ ही झामुमो का सांगठनिक ढांचा भी बहुत प्रबल हुआ है। कांग्रेस सांगठनिक रूप से इस इलाके में कमजोर है। वह जेएमएम पर ज्यादा निर्भर है। ग्रामीण क्षेत्रों में सरना कोड का मुद्दा काफी प्रबल हुआ है। इस इलाके में यह बात उठायी जा रही है कि केंद्र में जनजातीय मामलों के मंत्री रहते हुए अर्जुन मुंडा ने सरना कोड का मुद्दा हल नहीं किया है। विपक्ष इस मुद्दे को भुनाने के पक्ष में है। दूसरी बात यहां के तेली समुदाय में नाराजगी है कि उन्हें आदिवासी का दर्जा हासिल नहीं हुआ। रौतिया समाज का कहना है कि हमें आदिवासी नहीं बनाया गया। उधर कुर्मी महतो का कहना है कि हमें आदिवासी नहीं बनाया गया। वहीं जब भोक्ता समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त हुआ, तो आदिवासियों का कहना है कि हम लोगों का हिस्सा काट के दिया जा रहा है। ऐसे कई मुद्दे हैं, जिनसे इस चुनाव में अर्जुन मुंडा को दो-चार होना पड़ेगा।
तमाड़ इलाके में पातर-मुंडा फैक्टर भी
‘आजाद सिपाही’ के सहयोगी स्वरूप भट्टाचार्य, जो तमाड़ विधानसभा के स्पेशलिस्ट माने जाते हैं, का मानना है कि उनके क्षेत्र में लोगों का यही कहना है कि सांसद का भ्रमण इस क्षेत्र में बहुत कम हुआ। एनएच के आसपास के गावों में उनकी उपस्थिति तो रही, लेकिन सुदूर गांवों में उनका जाना नहीं हो पाया। वहीं कालीचरण मुंडा तमाड़ से दो बार विधायक रहे हैं। वह इस इलाके को बखूबी जानते हैं। वैसे तमाड़ विधानसभा क्षेत्र में पातर और मुंडा का फैक्टर भी सांसें ले रहा है। चूंकि लोगों का कहना है कि अर्जुन मुंडा पातर जाति से आते हैं और कालीचरण मुंडा, मुंडा जाति से। अब यहां पातर और मुंडा के अपने-अपने तर्क हैं। उनमें एक अलग ही द्वंद्व चलता रहता है। यह मुद्दा पिछली बार भी उठा, लेकिन चुनाव के वक्त इसका असर नहीं हो पाता। वैसे जब से जेएमएम सत्ता में आया है, ग्रामीण क्षेत्रों में उसकी स्वीकार्यता बढ़ी है। उसका संगठन पहले से मजबूत हुआ है। इसी का फायदा कांग्रेस या यूं कहें इंडी गठबंधन प्रत्याशी उठाना चाहेंगे। यहां लोगों का मानना है कि जब से पुरान जाति को आदिवासी का दर्जा मिला, मुंडा जाति में नाराजगी है। उनका मानना है कि उनका हक काट कर दूसरे को क्यों। वहीं पुरान जाति के लोग खुश हैं। उनकी आबादी करीब बीस हजार के आसपास है। उनका झुकाव भाजपा के पक्ष में है। वैसे तमाड़ के बुद्धिजीवी वर्ग और हिंदू वर्ग में राष्टÑीय मुद्दा ही अहम है। इन वर्गों में मोदी की स्वीकार्यता बहुत है।
चुनाव प्रचार में अर्जुन मुंडा और कालीचरण मुडा का फोकस तमाड़ और खरसावां पर
लोकसभा चुनाव के लिए मतदान की तिथि जैसे-जैसे निकट आ रही है, वैसे-वैसे जनजातियों के लिए सुरक्षित खूंटी संसदीय क्षेत्र में राजनीतिक गतिविधियां भी तेज होती जा रही हैं। इस संसदीय सीट के लिए 13 मई को मतदान होना है। हालांकि अभी चुनाव के लिए नामांकन की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई, लेकिन भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवार ने अपना चुनाव प्रचार और जनसंपर्क अभियान तेज कर दिया है। हालांकि झारखंड पार्टी या अन्य दलों ने अपने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा नहीं की है। वैसे असंवैधानिक पत्थलगड़ी को लेकर चर्चा में अयी और पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव के बहिष्कार का आह्वान करने वाली बेलोसा बबिता कच्छप ने भी भारत आदिवासी पार्टी के प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतरने की घोषणा की है और अपने चुनावी अभियान की शुरूआत भी कर दी है, पर राजनीति के जानकार उनकी उम्मदीवारी को अधिक गंभीरता से नहीं लेते। हां, एनोस एक्का की झारखंड पार्टी ने अपना प्रत्याशी उतारा, तो उससे भाजपा के अर्जुन मुंडा के लिए शुकून की बात होगी। एनोस एक्का का प्रभाव खूंटी में है और वह कालीचरण मुंडा को ही नुकसान पहुंचायेंगे। वैसे बेलोस कच्छप को जो भी वोट मिलेगा, उसमें इसाई समुदाय और पत्थलगड़ी समर्थकों का वोट ही ज्यादा होगा, जिससे अर्जुन मुंडा को राहत पहुंचेगी। इधर भाजपा के प्रत्याशी और जनजातीय मामलों के केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा और महागठबंधन के उम्मीदवार कालीचरण मुंडा ने अपना चुनावी दौरा तेज कर दिया है। 2019 के चुनाव में भी दोनों मुंडा एक दूसरे के आमने-सामने थे। आसन्न लोकसभा चुनाव के प्रचार में भाजपा और कांग्रस दोनो के ही उम्मीदवारों ने इस बार अपना सारा फोकस तमाड़ और खरसावां विधानसभा क्षेत्र पर केंद्रित कर दिया है। ज्ञात हो कि 2019 के लोकसभा चुनाव मे भाजपा की प्रचंड लहर के बाद भी अर्जुन मुंडा 1445 मतों से जीत पाये थे। उनकी जीत में तमाड़ और खरसावां विधानसभा क्षेत्र ने ही भाजपा की इज्जत बचायी थी। जब 2019 के खूंटी लोकसभा का फैसला आया, तब तमाड़ और खरसावा को छोड़ चार विधानसभा क्षेत्रा में कांग्रेस प्रत्याशी ने अच्छी बढ़त बनायी थी। वहीं अर्जुन मुंडा को खरसावां और तमाड़ विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस प्रत्याशी की तुलना में अच्छी खासी बढ़त मिल गयी थी तमाड़ में उन्हें करीब चालीस हजार की बढ़त मिली थी, जिससे वे चुनाव जीत गये, अन्यथा छह में से चार विधानसभा क्षेत्रों सिमडेगा, कोलेबिरा, तोरपा और खूंटी में तो कांग्रेस प्रत्याशी कालीचरण मुंडा ने अच्छी खासी बढ़त हासिल कर अर्जुन मुंडा की सांस ही अटका दी थी।
नीलकंड कह रहे हैं विकास हुआ है, कालीचरण मुंडा कह रहे नहीं हुआ
लोकसभा चुनाव के दौरान इन दिनों बाजार में एक बात की जोरदार चर्चा है। एक ओर खूंटी के विधायक और राज्य के पूर्व ग्रामीण विकास मंत्री और कांग्रेस प्रत्याशी के सगे छोटे भाई नीलकंठ सिंह मुंडा चुनाव की घोषणा के पहले से ही दावा करते आ रहे हैं कि जितना विकास खूंटी विधानसभा क्षेत्र का हुआ है, उतना विकास पूरे राज्य में किसी विधानसभा क्षेत्र का नहीं हुआ है। इसके विपरीत कांग्रेस प्रत्याशी अपनी चुनावी सभाओं और इंटरव्यू में आरोप लगा रहे हैं कि पिछले दस वर्षों से खूंटी का विकास पूरी तरह ठप है। ऐसे जनता पूछ रही है कि वह किस पर भरोस करे, नीलकंठ सिंह मुंडा के दावों पर या उनके बड़े भाई कालीचरण मुंडा के आरोपों पर।
जैसे-जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आयेगी, वैसे-वैसे यहां की राजनीतिक फिजां बदलेगी। चुनाव में तंत्र का भी बहुत बड़ा महत्व है। इसमें कोई दो राय नहीं कि कांग्रेस की बनिस्बत भाजपा का तंत्र बहुत मजबूत है। खूंटी में कांग्रेस और भाजपा के कार्यकर्ताओं में कोई तुलना ही नहीं है। कांग्रेस के कार्यकर्ता यहां शिथिल हैं, तो भाजपा के कार्यकर्ता मुखर। जगह-जगह भाजपा के कार्यालय खुल चुके हैं। कार्यालयों में लोगों का जुटान भी हो रहा है। कार्यकर्ता उत्साहित हैं। उन्हें चाय-नाश्ता के साथ-साथ खाने की सुविधा मिली है। दूसरी तरफ कांग्रेस के कार्यकर्ता अभी इस इंतजार में हैं कि उनका आॅफिस उस क्षेत्र में कब खुलेगा। जाहिर है, कार्यकर्ता ही चुनाव की अहम कड़ी होते हैं। फिलहाल भाजपा ने अपने कार्यकर्ताओं को साध लिया है। बावजूद इसके खूंटी का राजनीतिक परिदृश्य अभी पूरी तरह साफ नहीं है।