सारण से पहली बार चुनावी मैदान में लालू प्रसाद की बेटी, दो बार के केंद्रीय मंत्री से होगा मुकाबला
विद्यासागर
राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को अपनी किडनी देकर नया जीवन देने वाली बेटी रोहिणी आचार्य अब पिता का गढ़ सारण जीत कर सियासी विरासत लौटाना चाहती हैं। लालू पहली बार सारण से ही चुनाव जीत कर संसद पहुंचे थे। रोहिणी पिता की सीट सारण से अपने सियासी जीवन की शुरूआत करने मैदान में हैं। पिछले दो बार से यह सीट भाजपा के पास है और फिलहाल राजीव प्रताप रूडी यहां से सांसद हैं। 2008 के परिसीमन के बाद से सारण सीट को छपरा के नाम से भी जाना जाता है। यहां पांचवें चरण में 20 मई को मतदान होना है। सारण लालू का गढ़ रहा है और यहां के ग्रामीण क्षेत्र में उनके समर्थकों की बड़ी संख्या है। यही कारण है कि जब रोहिणी पहली बार क्षेत्र के दौरे पर गयीं, तो भरी धूप में भी भीड़ उमड़ी। अब देखना यह है कि दर्शन को जमा हुई भीड़ वोट में तब्दील हो संसद का रास्ता तय करवायेगी या गांवों की खस्ताहाल सड़क की तरह रोहिणी का सपना ध्वस्त होगा।
सारण में हार चुके हैं लालू यादव, पत्नी और समधी
लालू प्रसाद खुद 1996 में सारण सीट राजीव प्रताप रूडी से हार चुके हैं। इसके बाद 2014 में पत्नी राबड़ी देवी और 2019 में समधी चंद्रिका राय सारण से सांसदी का चुनाव हार चुके हैं। रूडी का मुकाबला हर बार लालू के परिजनों से हुआ है। ऐसे में दो बार के केंद्रीय मंत्री को यहां से हराना रोहिणी के लिए बड़ी चुनौती होगा।
जातीय समीकरण: यादव वोट सबसे अधिक
सारण में यादवों की आबादी 25 फीसदी है, जबकि राजपूत 23 फीसदी हैं। इनके अलावा सारण में वैश्य वोटर 20 प्रतिशत, मुस्लिम 13 प्रतिशत और दलित 12 प्रतिशत हैं।
पार्टियों की सेहत
बसपा: 2019 में जीते पांच सांसदों ने छोड़ी हाथी की सवारी
प्रशांत
लोकसभा चुनाव की सरगर्मियों के बीच नेताओं का दलबदल जारी है। उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी को एक और बड़ा झटका लगा है। पार्टी सांसद मलूक नागर बसपा छोड़ कर राष्ट्रीय लोकदल में शामिल हो गये हैं। बसपा सांसद जयंत चौधरी के आवास पर पहुंचे और रालोद की सदस्यता ग्रहण की। जयंत चौधरी के एनडीए में जाने के बाद और चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न दिये जाने के बाद नागर जयंत चौधरी को मुबारकबाद देने भी गये थे। इसके बाद से ही कयास लगाये जा रहे थे कि वह रालोद में शामिल हो सकते हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने 10 सीटें जीती थीं। बीते कुछ वक्त में मलूक नागर बसपा के पांचवें सांसद हैं, जिन्होंने पार्टी का साथ छोड़ दिया है।
2019 में बसपा से कौन से उम्मीदवार जीते
543 सदस्यीय लोकसभा में सबसे ज्यादा 80 सीटें उत्तरप्रदेश से आती हैं। पिछली बार मायावती की पार्टी ने यूपी में सपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में बसपा के 10 उम्मीदवार जीत कर लोकसभा पहुंचे थे। गाजीपुर सीट से अफजाल अंसारी, लालगंज से संगीता आजाद, नगीना (एससी) से गिरीश चंद्र, अमरोहा से दानिश अली, बिजनौर से मलूक नागर, अंबेडकरनगर से रीतेश पांडे, घोसी से अतुल राय, सहारनपुर से हाजी फजलुर्रहमान, श्रावस्ती से राम शिरोमणि वर्मा और जौनपुर से श्याम सिंह यादव इनमें शामिल थे।
2019 चुनाव के बाद में कितने लोगों ने पाला बदला लिया
अब तक पार्टी के पांच सांसद दूसरे दलों मेें शामिल हो चुके हैं। आजमगढ़ जिले की लालगंज सीट से सांसद संगीता आजाद, अंबेडकर नगर सीट से सांसद रितेश पांडेय भाजपा में शामिल हो चुके हैं। रितेश पांडेय को भाजपा ने इस बार अंबेडकर नगर सीट से उम्मीदवार भी बना दिया है। अमरोहा सांसद दानिश अली कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। कांग्रेस ने दानिश को यहां से अपना उम्मीदवार बनाया है। इससे पहले बसपा ने पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते दानिश को पार्टी से निकाल दिया था। मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी बसपा का साथ छोड़ कर फिर से समाजवादी पार्टी में शामिल हो गये हैं। इसके बाद उन्हें गाजीपुर संसदीय सीट से सपा ने अपना प्रत्याशी भी घोषित कर दिया। पार्टी छोड़ने वालों में सबसे ताजा नाम मलूक नागर का है। बिजनौर सांसद मलूक नागर बसपा छोड़ कर राष्ट्रीय लोक दल में शामिल हो गये हैं। हालांकि, रालोद पहले ही बिजनौर लोकसभा सीट पर विधायक चंदन चौहान को अपना उम्मीदवार घोषित कर चुकी है। वहीं, बसपा ने यहां चौधरी विजेंद्र सिंह को प्रत्याशी घोषित करके जाट वोट बैंक को साधने की कोशिश की है।
श्रावस्ती सांसद को पार्टी से निकाला
बसपा ने श्रावस्ती सांसद राम शिरोमणि वर्मा को पार्टी से निष्कासित कर दिया है। अनुशासनहीनता का आरोप लगाते हुए यह कार्रवाई की गयी। पिछले कुछ समय से उनके दलबदल करने को लेकर अटकलें थीं। हालांकि, सांसद ने इसे मनगढ़ंत बताया था। इस बीच, बसपा ने अनुशासनहीनता और पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में सांसद को पार्टी से बाहर कर दिया।
इन सांसदों के काटे टिकट
सहारनपुर संसदीय सीट से सांसद हाजी फजलुर्रहमान भी इस बार बसपा के उम्मीदवार नहीं हैं। पार्टी ने यहां से माजिद अली को अपना प्रत्याशी घोषित किया है। खबरें थीं कि बसपा हाइकमान के साथ उनके रिश्ते कुछ ठीक नहीं चल रहे हैं। फजलुर्रहमान चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन पार्टी ने लोकसभा क्षेत्र प्रभारी माजिद पर दांव खेला। माजिद अली सियासत में पुराने हैं लेकिन लोकसभा चुनाव में पहली बार मैदान में हैं। वह बसपा की टिकट पर 2017 में विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं। वर्तमान में वार्ड 32 से जिला पंचायत सदस्य हैं। उनकी पत्नी तस्मीम बानो 2016 में जिला पंचायत अध्यक्ष निर्वाचित हुई थीं। जौनपुर से सांसद श्याम सिंह यादव को भी बसपा ने इस बार टिकट नहीं दिया है। उनके कांग्रेस में शामिल होने की भी अटकलें थीं जब उन्होंने कांग्रेस नेता राहुल गांधी से मुलाकात की थी। इससे पहले 2022 में श्याम सिंह कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा में गये थे और वहां राहुल से मुलाकात की थी। घोसी से सांसद अतुल राय का टिकट भी इस बार कट गया है। मौजूदा बसपा सांसद अतुल राय ने अपना अधिकांश कार्यकाल संसद के बजाय जेल में बिताया है। बसपा ने घोसी में अतुल की जगह बालकृष्ण चौहान को अपना उम्मीदवार बनाया है। पूर्व सांसद बालकृष्ण हाल ही में कांग्रेस छोड़ कर बसपा में आये थे।
मायावती के करीबी सांसद को मिला टिकट
गिरीश चंद्र बसपा के इकलौते सांसद हैं, जो 2019 के बाद 2024 में भी पार्टी के टिकट पर उम्मीदवार हैं। गिरीश चंद्र वर्तमान में नगीना लोकसभा सीट से सांसद हैं। हालांकि, अबकी बार उन्हें बुलंदशहर से लड़ाया गया है। पार्टी ने नगीना से सांसद गिरीश चंद्र की जगह सुरेंद्र पाल सिंह को मैदान में उतारा है। उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में मिली हार के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती ने गिरीश चंद्र जाटव को लोकसभा में पार्टी का नेता बनाया था। इससे पहले यह जिम्मेदारी रितेश पांडेय के पास थी, जो अब भाजपा के साथ आ चुके हैं।
चुनावी किस्से
जब ताऊ देवीलाल के लिए हाजिर हो गये थे विमान
राजवीर
चौधरी देवीलाल 1989 के लोकसभा चुनाव के समय न सिर्फ विपक्ष की एकता की धुरी बन चुके थे, बल्कि कांग्रेस के खिलाफ स्टार प्रचारक की भूमिका में आ चुके थे। यही वजह थी कि देश की कई हस्तियों ने चुनाव प्रचार के लिए उन्हें विमान और हेलीकॉप्टर देने की पेशकश की थी। हरियाणा के हर क्षेत्र में उनकी डिमांड इतनी ज्यादा बढ़ गयी थी कि जनता पार्टी ने उनके लिए खास वाहन ‘रथम’ तैयार करवाया था, जिसमें वातानुकूलित कमरा बनाया गया था। हालांकि इस चुनाव में देवीलाल ने कांग्रेस के कद्दावर नेता बलराम जाखड़ के खिलाफ ताल ठोकने के बावजूद अपने लिए सुरक्षित सीट के रूप में रोहतक को चुना और जनता पार्टी प्रत्याशी के रूप में पर्चा दाखिल किया था। 1989 के लोकसभा चुनाव को देश की राजनीति का टर्निंग प्वाइंट माना जा सकता है। उस चुनाव में देश की राजनीति में किसान नेता के रूप में चौधरी देवीलाल का प्रादुर्भाव हुआ और विपक्ष के सभी नेता उन्हें सम्मानपूर्वक ‘ताऊ’ कह कर बुलाने लगे थे। एक तरह से केंद्रीय राजनीति में भी हरियाणा के किसानों और जाटों की राजनीति करने वाले नेता की बड़ी भूमिका तय हो रही थी। चौधरी देवीलाल विपक्षी एकता से बने जनता दल के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष थे। इस लिहाज से प्रचार के लिए दौरा करने वालों में उनका पहला नंबर हो गया था। ऐसे लोकप्रिय नेता की डिमांड को पूरा करने के लिए उनके कई शुभचिंतकों ने अपने व्यक्तिगत छोटे विमान देने की पेशकश की थी। लेकिन, चौधरी साहब को पसंद आयी थी पंजाब विधानसभा के तत्कालीन अध्यक्ष रवि इंदर सिंह की पेशकश। उन्होंने अपना चार सीट वाला सेसला विमान दिया था, जिस पर सवार होकर ताऊ ने धुआंधार प्रचार शुरू कर दिया था। 1989 के चुनाव में हरियाणा में मतदान 22 नवंबर को हुआ था।
इंदिरा के खास ब्रह्मचारी ने भी की ताऊ से पेशकश
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और कांग्रेस नेता संजय गांधी के बेहद करीबी माने जाने वाले योगाचार्य धीरेंद्र ब्रह्मचारी भी देश की सियासत में किसान नेता के रूप में उभरे चौधरी देवीलाल के कायल हो गये थे। उनकी ओर से भी प्रचार के लिए ताऊ को अपना व्यक्तिगत विमान देने की पेशकश की गयी थी। उस समय ब्रह्मचारी का आॅफिस गुड़गांव में हुआ करता था।
ग्रामीणों में चर्चा का केंद्र बना था ताऊ का ‘रथम’
हरियाणा के हर क्षेत्र में मतदाताओं तक पहुंचने के लिए चौधरी देवीलाल ने खास वाहन ‘रथम’ तैयार करवाया था। इसमें उनके लिए खास वातानुकूलित कमरा, मीटिंग हॉल, रसोई घर और टॉयलेट की सुविधा थी। इसे गुड़गांव स्थित हरियाणा सड़क परिवहन इंजीनियरिंग वर्कशॉप में बनवाने की बात सामने आयी थी। इसमें खास लिफ्ट पर एक कुर्सी सजायी गयी थी, जिसका बटन दबाते ही ताऊ वाहन की छत से ऊपर आ जाते थे और वहीं से समर्थकों को संबोधित करते थे। चूंकि उस समय देवीलाल मुख्यमंत्री थे, इसलिए इस वाहन में उनका स्टाफ और सुरक्षाकर्मी समेत 20-22 लोग बैठ सकते थे।
चेतावनी
भारत में चुनाव को प्रभावित कर सकता है चीन
राजीव
चालबाज चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा। अब वह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) के जरिये इस साल भारत और अमेरिका समेत दुनिया भर के 60 देशों में होने वाले चुनाव को बाधित करने की फिराक में है। प्रौद्योगिकी दिग्गज माइक्रोसॉफ्ट ने चेतावनी दी है कि अपने भू-राजनीतिक हित साधने के लिए जनता की राय को प्रभावित करने के मकसद से चीन इस तरह के हथकंडे अपनाने पर तुला है और हैकर्स का सहारा ले रहा है। इस बीच केंद्र सरकार ने खतरे को देखते हुए सभी डिजिटल कंपनियों को ऐसे प्लेटफार्मों को ठीक करने के लिए कहा है। चुनाव आयोग झूठी और गलत सूचनाओं को लेकर पहले ही दिशा-निर्देश और प्रोटोकॉल जारी कर चुका है। भारत में 543 लोकसभा सीटों के लिए सात चरणों में मतदान 19 अप्रैल से 4 जून के बीच होगा। माइक्रोसॉफ्ट की थ्रेट इंटेलिजेंस टीम के अनुसार इस साल दुनियाभर में खासकर भारत, दक्षिण कोरिया और संयुक्त राज्य अमेरिका में मुख्य रूप से चुनाव होने हैं। इन चुनावों में चीन अपने हितों को ध्यान में रखते हुए एआइ का उपयोग कर ऐसी सामग्री का निर्माण और प्रसार करेगा, जो कि उसे लाभ पहुंचाये। वह मतदाताओं का पार्टी विशेष की तरफ झुकाव बदलने के साथ-साथ उन्हें भटकाने की हरसंभव कोशिश करेगा। वह इंटरनेट मीडिया पर ऐसा कंटेंट प्रसारित करेगा, जिससे चुनावों के दौरान जनता की राय चीनी हित की तरफ झुक सके। माइक्रोसॉफ्ट ने कहा कि जनवरी में ताइवान के चुनाव के दौरान भी चीन समर्थित हैकर्स समूह स्टार्म 1376 (स्पैमौफ्लेज) विशेष रूप से सक्रिय था।
एआइ का कर सकता है इस्तेमाल
इस समूह ने कुछ उम्मीदवारों को बदनाम करने और मतदाताओं की धारणाओं को प्रभावित करने के उद्देश्य से एआइ का इस्तेमाल कर डीपफेक वीडियो और मीम्स तैयार किये और इंटरनेट मीडिया पर प्रसारित किये। विशेषज्ञों के अनुसार एआइ जनित डीपफेक और नकली सामग्री के माध्यम से फैली गलत सूचना आगामी चुनावों के लिए सबसे बड़ा खतरा है।
उधर आइटी मंत्रालय ने कहा है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म को पूरी जवाबदेही लेनी होगी और वह यह कह कर बच नहीं सकते कि ये एआइ मॉडल अंडर-टेस्टिंग चरण में हैं। बता दें कि पिछले महीने के अंत में माइक्रोसॉफ्ट के सह संस्थापक बिल गेट्स के साथ बातचीत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हमारे जैसे लोकतांत्रिक देश में डीपफेक के बारे में चिंता व्यक्त की थी। चीन का हमेशा मकसद रहा है कि भारत जैसे लोकतंत्र को कमजोर किया जाये और उसके समाज के अंदर मतभेद पैदा किया जाये। वह चाहता है कि भारत उसके विरुद्ध एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में न खड़ा हो। वह नहीं चाहता कि भारत में एक मजबूत और स्थायी सरकार बने। माइक्रोसॉफ्ट ने जो चेतावनी दी है, हमें उसे गंभीरता से लेना होगा।
अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञों के अनुसार चीन हमेशा तकनीक को पॉलिटिकल इंफ्लूएंस में इस्तेमाल करता है। लोकतंत्र में बाहरी ताकतों के हस्तक्षेप की संभावना रहती है। चीन को पता है कि उसके पास तकनीकी ताकत है और वह कैसे एआइ और साइबर के जरिये दूसरे देशों के चुनाव पर असर डाल सकता है। हमें चीन की इस हरकत से सरप्राइज नहीं होना चाहिए। ऐसा करना उसकी नीति रही है। हमें इससे निपटने के लिए आवश्यक कदम उठाने होंगे।
चुनाव में डीपफेक से निपटने की तैयारी, यू-ट्यूब ने हटाये 2.25 मिलियन वीडियो
लोकसभा चुनाव के मद्देनजर एक बड़ी चुनौती डीपफेक और मिस इंफॉर्मेशन से निपटने की है। बीते दिनों सरकार की एक के बाद एक एडवाइजरी के बाद सोशल मीडिया कंपनियों ने इसे लेकर कमर कस ली है। यूट्यूब की ओर से बताया गया कि पिछले साल अक्टूबर से लेकर दिसंबर तक प्लेटफॉर्म से 2.25 मिलियन विडियो हटायी गयी हैं। ये वो कंटेंट था, जो कि प्लेटफॉर्म के कम्युनिटी गाइडलाइंस का उल्लंघन कर रहा था। यानी ये भड़काने, नफरत, हेट स्पीच या हिंसा से जुड़े कंटेंट की कैटिगरी में आता है। प्लेटफॉर्म का कहना है कि संवेदनशील कैटेगरी के कंटेंट के लिए एक नये टूल का सहारा लिया जा रहा है, जिसके जरिये यूजर्स को इस बारे में जानकारी मिल सकेगी कि कोई कंटेट एआइ जेनरेटेड विडियो है या नहीं। हेल्थ, न्यूज, इलेक्शन या फिर फाइनेंस से जुड़े विडियो पर ये लेबल प्रमुखता से दिखाई देगा।
आइटी मंत्रालय ने जारी की गाइडलाइंस
बता दें कि मार्च में ही आइटी मंत्रालय की ओर से एक एडवाइजरी जारी की गयी थी, जिसके मुताबिक सोशल मीडिया कंपनी से कहा गया था कि वो एआइ की मदद से बने विडियो को लेकर ये जानकारी दें कि इन्हें बनाने में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद ली गयी है। इसके अलावा प्लेटफॉर्म मतदाताओं को चुनाव और उसकी प्रक्रिया के बारे में और जानकारी देने की दिशा में भी काम कर रहा है, यानी कि वोटिंग से जुड़े विडियो सर्च करने पर ‘हाउ टू वोट’ या ‘हाउ टू रजिस्टर टू वोट’ जैसे टॉपिक सामने दिखेंगे। इसके साथ-साथ इंफॉर्मेशन पैनल के जरिये उन टॉपिक्स के बारे में जानकारी दी जायेगी, जिनको लेकर फेक इंफॉर्मेशन की संभावना ज्यादा होती है। प्लेटफॉर्म का दावा है कि मिसइंफॉर्मेशन और फेक न्यूज से निपटने के लिए गाइडलाइंस विडियो, कमेंट्स, लिंक्स, लाइव स्ट्रीम और थंबनेल तक पर लागू है।
सरकार की सख्ती का दिखा असर
पिछले दिसंबर में पीआइबी की फैक्ट चेक यूनिट ने ऐसे नौ चैनल्स को उजागर किया था, जो फेक न्यूज फैला रहे थे। डीपफेक किस तरह चुनाव को प्रभावित कर सकता है, इसका अहसास ना सिर्फ सरकार, बल्कि सोशल मीडिया कंपनियों को भी है, इसलिए बीते दिनों सरकार ने यूजर्स को जागरूक बनाने की जिम्मेदारी से जुड़ी कई एडवाइजरी भी सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म के लिए जारी की है। यूट्यूब का कहना है कि संवेदनशील और चुनाव को प्रभावित करने वाले कंटेंटे खासकर एआइ पर उसकी नजर है, लेकिन सवाल ये भी है कि चुनावी प्रचार के दौरान लाइव स्ट्रीम के वक्त भी क्या ये बंदोबस्त काम करेंगे?
कैसे-कैसे प्रत्याशी
पद्मश्री से सम्मानित दामोदरन प्रचार के लिए बेच रहे सब्जियां
अक्षय
लोकसभा चुनाव शुरू होने में कुछ ही दिन बचे हैं। ऐसे में पार्टियों के नेता, उम्मीदवार से लेकर कार्यकर्ता तक सब अपनी चुनावी अभियान में ताकत झोंक रहे हैं। प्रचार अभियान के चलते राजनीतिक दल सुर्खियां बंटोर रहे हैं। वहीं पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित हो चुके एस दामोदरन भी काफी चर्चा में हैं। उनके सुर्खियों में होने की वजह उनके प्रचार करने का तरीका है।
तिरुचिरापल्ली लोकसभा क्षेत्र में एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे दामोदरन सब्जी विक्रेताओं के साथ बातचीत करके, फूल माला बनाकर और सब्जियां बेचकर प्रचार कर रहे हैं। 62 वर्षीय नेता का चुनावी चिह्न गैस स्टोव है। उन्होंने गांधी मार्केट में आए लोगों और सब्जी बेचने वालों से बात करके वोट मांगा।
उन्होंने कहा, मैं तिरुचिरापल्ली लोकसभा क्षेत्र से एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में खड़ा हुआ हूं। मैं धरती का बेटा हूं। मैं त्रिची शहर से जुड़ा हुआ हूं। मैंने 40 साल से ज्यादा समय तक सैनिटेशन सेंटर में एसोसिएट सर्विस स्वयंसेवक के रूप में काम किया है। मैंने 21 साल की उम्र से काम करना शुरू कर दिया था। अब मैं 62 साल का हो गया हूं। सैनिटेशन सेंटर में काम करने के लिए मुझे तत्कालीन राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद से पद्म श्री पुरस्कार मिला। उन्होंने कहा, मैंने 21 साल की उम्र पर ही सामाजिक काम करना शुरू कर दिया था। तब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। मैंने नौ प्रधानमंत्रियों के कार्यकाल के दौरान सेवा की थी। इस दौरान मैंने शहर और ग्रामीण इलाकों में कई स्वच्छता से जुड़े काम किए। मैंने केंद्र प्रायोजित सभी ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रमों के तहत काम किया और हर गांव को आदर्श गांव बनाया। अपने चुनावी अभियान के बारे में दामोदरन ने कहा, मैंने आज से अपना प्रचार अभियान शुरू किया है। इसलिए मैं गांधी मार्केट गया था। ये मेरे संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आता है। मैं जहां भी जाता हूं मेरा शानदार स्वागत हो रहा है। सत्ता में आने पर तिरुचिरापल्ली में महत्वपूर्ण परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के बारे में पूछे जाने पर दामोदरन ने कहा, हमें त्रिची को एक स्वच्छ और हरित शहर बनाने के लिए काम करने की जरूरत है। लोग शहर के लिए रिंग रोड की मांग कर रहे हैं क्योंकि यह केंद्र में स्थित है और कई बसें और परिवहन वाहन त्रिची को पार कर रहे हैं। हम त्रिची शहर में महत्वपूर्ण क्षेत्रों में फ्लाईओवर पर भी काम कर रहे हैं।
चुनावी दांव-पेंच
युवाओं को लुभाने के लिए दिग्गजों के कैसे-कैसे दांव
शंकर
लोकसभा चुनाव को लेकर बीजेपी, कांग्रेस समेत अन्य राजनीतिक दल प्रचार में जुटे हुए हैं। बीजेपी की तरफ पीएम मोदी तो कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी प्रमुखता से मोर्चा संभाल रहे हैं। इस बार आम चुनाव में 96.8 करोड़ लोग वोट डालेंगे। वोटर लिस्ट के अनुसार कुल मतदाताओं में 49.7 करोड़ पुरुष मतदाता और 47.1 करोड़ महिला मतदाता शामिल हैं। यह देश की आबादी का 66.8% है। खास बात है कि इसमें 21.6 करोड़ वोटर 18-29 वर्ष की आयु वर्ग के हैं। ये युवा मतदाता देश के मतदाताओं का 22% से अधिक हैं। ऐसे में सभी दलों की नजरें युवाओं पर टिकी हुई हैं। राहुल गांधी ने हाल ही में कांग्रेस के घोषणा पत्र को लेकर युवाओं से बातचीत की। दूसरी तरफ पीएम मोदी ने भी देश के टॉप गेमिंग क्रिएटर्स के साथ मुलाकात की। पीएम मोदी ने इस मुलाकात के जरिये यह संदेश देने की कोशिश की कि वे युवाओं से कनेक्ट करने में कितने सहज हैं। अब सवाल उठता है कि आखिर इस बार के आम चुनाव में युवा किस दल को तरजीह देते हैं।
राहुल का यूथ कनेक्ट का प्वाइंट
पिछले दिनों कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी ने युवाओं से पार्टी के घोषणापत्र के लेकर सुझाव मांगे थे। इस पर उनके पास बड़ी संख्या में इमेल के जरिये सुझाव भी मिले। पार्टी के घोषणापत्र में उन बातों को शामिल भी किया गया। इस मुद्दे पर राहुल ने युवाओं के सवालों के जवाब दिए। कांग्रेस की तरफ से इसका एक वीडियो जारी किया गया। वीडियो में राहुल युवाओं के संदर्भ में अग्निवीर योजना का जिक्र किया। कांग्रेस ने सत्ता में आने पर अग्निवीर योजना को हटाने का वादा किया है। राहुल ने वीडियो में युवाओं के लिए अप्रेंटिसशिप कानून का जिक्र किया। इसके तहत हर ग्रेजुएट और डिप्लोमा होल्डर युवा को साल में एक लाख रुपये अप्रेंटिसशिप के दौरान मिलेंगे। कांग्रेस नेता ने जॉब विद ग्रोथ की बात कही। पार्टी ने युवाओं को लुभाने के लिए युवा न्याय का वादा किया है। इसमें केंद्र सरकार में विभिन्न पदों पर 30 लाख रिक्त पदों को भरने का वादा किया है। कांग्रेस ने सरकारी परीक्षाओं और सरकारी पदों पर आवेदन के लिए शुल्क समाप्त करने का भी वादा किया है। कांग्रेस ने स्टार्टअप के लिए फंड आॅफ फंड की बात कही है। इसके तहत 5 हजार करोड़ रुपये देश के सभी जिलों में समान रूप से आवंटित किए जाएंगे। इतना ही नहीं, 21 साल से कम उम्र के प्रतिशाली और उभरते खिलाड़ियों के लिए प्रतिमाह 10 हजार रुपये की खेल स्कॉलरशिप दी जायेगी।
पीएम ने गेमर्स से किया कनेक्ट
लोकसभा चुनाव के पहले चरण की तारीख नजदीक आ रही है। पीएम मोदी देश के अलग-अलग हिस्से में लगातार रैलियां कर रहे हैं। इस बीच इन सब से समय निकालकर पीएम मोदी ने कई प्रमुख गेमिंग क्रिएटर्स से हाल ही में मुलाकात की। पीएम ने ना सिर्फ गेमिंग क्रिएटर्स के साथ खुलकर बातचीत की बल्कि उनके साथ गेम भी खेला। पीएम ने इसके जरिये यूथ को एक संदेश भी दिया। पीएम ने जिस तरह से गेमिंग क्रिएटर्स से बातचीत इसका उन लोगों पर प्रभाव साफ दिखा। गेमिंग क्रिएटर्स ने कहा कि पीएम से मुलाकात उनके जीवन का सबसे ज्यादा खुशी का क्षण था। एक गेमिंग क्रिएटर पायल धरे ने इस मुलाकात के बारे में बताया कि हम जब पीएम मोदी से मिले तो हमें लगा ही नहीं कि हमारी उम्र में इतना अंतर है। पीएम मोदी के बारे में गेमिंग क्रिएटर्स ने कहा कि उनसे मिलकर लगा ही नहीं कि पीएम से हमारी मुलाकात हुई है। हमें लगा कि हम अपने परिवार के सदस्य से मिल रहे हैं।
चुनावी जिज्ञासा
ऐसे हुई चुनाव चिह्न की शुरूआत
सुनील
चुनावों में पार्टियों और उम्मीदवारों की सबसे बड़ी पहचान होते हैं चुनाव चिह्न। इनके बनने और इन्हें बनाने वाले, दोनों की कहानी बड़ी दिलचस्प है। साल 1951-52 में जब देश पहले आम चुनाव की तैयारी कर रहा था, तब सबसे बड़ी बाधा थी उम्मीदवारों और दलों के पहचान की। उस समय भारत की साक्षरता दर थी 16% से भी कम। चुनाव आयोग के सामने संकट था कि जो वोटर पढ़े-लिखे नहीं हैं, वे अपनी पसंद के कैंडिडेट को कैसे वोट देंगे? काफी मंथन के बाद बैलेट पेपर का तरीका निकाला गया।
हर उम्मीदवार के लिए अलग बैलेट बॉक्स
हर उम्मीदवार के लिए एक अलग बैलेट बॉक्स बना, अलग रंग का। साथ ही, उम्मीदवारों को ऐसे चुनाव चिह्न अलॉट किए गए, जो रोजमर्रा के जीवन से जुड़े थे और जिन्हें आसानी से पहचाना जा सकता था। उम्मीदवारों के बैलेट बॉक्स पर उनका चुनाव चिह्न भी बनाया गया। मतदाताओं को अपना बैलेट पेपर पसंद के उम्मीदवार के बैलेट बॉक्स में डालना था, बस। और ये बैलेट पेपर छपवाए गए थे नासिक के उस इंडिया सिक्योरिटी प्रेस में, जहां इंडियन करंसी छपती थी।
हर चिह्न पर चर्चा
पहले आम चुनाव में प्रत्याशियों को जो सिंबल मिले, उसके पीछे एक शख्स की मेहनत बहुत ज्यादा थी। उनका नाम था एमएस सेठी। उनकी नियुक्ति 1950 में हुई थी, चुनाव आयोग में ड्राफ्टमैन के रूप में। उनका काम था चुनाव चिह्न के स्केच बनाना। आयोग के अधिकारियों की टीम और सेठी इसके लिए साथ बैठते। उनके बीच चर्चा होती कि किन-किन चीजों को इलेक्शन सिंबल बनाया जा सकता है। झाड़ू, हाथी, साइकल, पतंग, गिलास जैसे सैकड़ों चुनावी चिह्न इसी तरह बने। जब भी किसी सिंबल पर राय बन जाती, तो सेठी उसका स्केच ड्रॉ करते। ये स्केच भी सिंपल होते थे ताकि आम लोग इन्हें आसानी से पहचान सकें। यह भी देखा गया कि कोई दो सिंबल एक जैसे न दिखें ताकि कोई कंफ्यूजन न रह जाये।