रांची। राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने कहा कि 1990 से 2005 तक बिहार के पतन का दौर था। यह वह दौर था जब बिहार में राजनीतिक पतन, जातिवाद, हिंसा, नरसंहार चरम पर था। उस वक्त रात छोड़िये दिन में भी कोई घर में महफूज नहीं था, लेकिन किसी भी मुद्दे पर नैरेटिव तय करने वाली अंग्रेजी मीडिया ने बिहार की हालत को बयां नहीं किया। वे आॅड्रे हाउस में भाजपा नेता मृत्युंजय शर्मा की लिखी पुस्तक ब्रोकन प्रॉमिसेस का विमोचन के मौके पर बोल रहे थे।
हरिवंश ने कहा कि बिहार की बीमारी की शुरुआत आजादी के बाद से शुरू हो चुकी थी। 70-80 के दशक में वहां जाति के आधार पर सांसद, विधायक और सरकार बनने लगी। 80 के दशक में देश-दुनिया के अर्थशास्त्रियों ने बिहार को बीमारू राज्य कहना शुरू कर दिया। सत्ता में विजनलेस लोगों को लाने पर यही हाल होगा। इसलिए जनता उन्हें ही चुने, जिसके पास विजन हो।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने कहा कि बिहार से झारखंड अलग होने के पीछे राजनीतिक कारण है। संयुक्त बिहार में झारखंड खनिज और उद्योगों से भरा हुआ था। खनिजों का दोहन होता था, लेकिन विकास नहीं हो रहा था। ऐसे में अलग राज्य की मांग तेज हुई। अलग राज्य बना। कहा कि किसी भी राज्य के विकास के लिए जरूरी है कि कानून-व्यवस्था मजबूत हो। अमन-चैन होगा, तभी निवेश होगा। बिहार में 90 के दशक में बिगड़ी कानून व्यवस्था के कारण संपन्न लोग भी पलायन कर गये। पद्मश्री अशोक भगत, लेखक मृत्युंजय शर्मा, मीनाक्षी ठाकुर समेत अन्य मौजूद थे।

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