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    Home»विशेष»क्या सीता सोरेन के प्रहार को झेल पायेंगे नलिन सोरेन
    विशेष

    क्या सीता सोरेन के प्रहार को झेल पायेंगे नलिन सोरेन

    adminBy adminApril 5, 2024Updated:April 6, 2024No Comments9 Mins Read
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    विशेष
    -सीता के पास स्वर्गीय दुर्गा सोरेन की थाती है, आंखों में आंसू, तो जुबान पर आपबीती है
    -सीता सोरेन शिबू सोरेन की विरासत की कड़ी हैं, तो नलिन सोरेन झामुमो के नेता हैं
    -सीता की रुदन, गर्जन और सहानुभूति ने झारखंड की उपराजधानी को बना दिया है हॉट सीट

    दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में लोकसभा चुनाव की गहमा-गहमी के बीच झारखंड की उप राजधानी दुमका की सियासी जंग बेहद दिलचस्प और रोमांचक मोड़ पर आ चुकी है। झारखंड के सबसे प्रभावशाली नेता और झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन की कर्मभूमि दुमका इस बार इसलिए हॉट सीट बन गयी है, क्योंकि यहां शिबू सोरेन की बहु और स्वर्गीय दुर्गा सोरेन के पत्नी सीता सोरेन मैदान में उतर चुकी हैं। यहां जंग शिबू की विरासत की कड़ी और झामुमो में होगी। एक तरफ जहां सीता सोरेन भाजपा प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरेंगी तो वहीं, उनके प्रतिद्वंद्वी नलिन सोरेन झामुमो का मोर्चा संभालेंगे। सीता सोरेन के साथ स्वर्गीय दुर्गा सोरेन की थाती, आंखों में आंसू, तो जुबान पर आपबीती तो होगी ही साथ में शिबू सोरेन की बहु का तमगा भी उनके पास होगा। क्योंकि संथाल सीता सोरेन को शिबू सोरेन की बहु के रूप में ही जनता है। सच्चाई भी यही है। वहीं, झामुमो ने अपने सबसे पुराने नेताओं में से एक और आठ बार के विधायक नलिन सोरेन को मैदान में उतारा है। नलिन सोरेन जहां गुरुजी और हेमंत सोरेन के नाम के सहारे लोकसभा तक पहुंचने की जुगत में हैं, वहीं सीता सोरेन अपनी रुदन, गर्जन और सहानुभूति की नाव पर सवार होकर यह सीट एक बार फिर भाजपा की झोली में डालने के लिए प्रयासरत हैं। सफलता किसे मिलेगी, यह तो 4 जून को ही पता चलेगा, लेकिन दुमका का आम मतदाता सहानुभूति और प्रभाव के भंवर में गोते लगाने लगा है। दुमका की जंग इसलिए भी रोचक हो गयी है, क्योंकि नलिन सोरेन जहां केंद्र की मोदी सरकार को घेरेंगे, वहीं सीता सोरेन अपने पति दुर्गा सोरेन और शिबू सोरेन परिवार की बात करेंगी। वह अपनी आपबीती भी जनता के बीच जगजाहिर कर सकती हैं। मंच सज चुका है और यहां अलग किस्म का मुकाबला होना तय है। इस मुकाबले में किसी के लिए भी बाजी मारना आसान नहीं होगा। नलिन सोरेन के प्रत्याशी बनाये जाने के बाद दुमका के जंग की तसवीर क्या है, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    झारखंड में लोकसभा चुनाव की गहमा-गहमी पूरे उफान पर है। राज्य की 14 संसदीय सीटों में से अब तक महज पांच पर मुकाबले की तस्वीर साफ हुई है और इसमें सबसे रोमांचक मुकाबला उप राजधानी दुमका में होने जा रहा है। झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन का दुर्ग माना जानेवाला दुमका इस बार ऐसे मुकाबले का गवाह बनेगा, जिसमें एक तरफ गुरुजी की कर्मभूमि और उनके प्रभाव के सहारे नलिन सोरेन होंगे, तो दूसरी तरफ सीता सोरेन, जिनके पास अपने पति दुर्गा सोरेन के नाम की पूंजी है और दुनिया के सबसे बड़े राजनीतिक दल की ताकत। वास्तव में दुमका संसदीय क्षेत्र में इस बार का चुनाव विरासत की उस लड़ाई का गवाह बनेगा, जिसमें जीत चाहे किसी की भी हो, कब्जा सोरेन परिवार का ही होगा। हालांकि झामुमो ने इस सीट को पारिवारिक प्रतिष्ठा का विषय नहीं बनने दिया है। यही वजह है कि जेल से ही पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन या उनकी पत्नी कल्पना सोरेन के दुमका से चुनाव लड़ने की अटकलों पर विराम लगाते हुए पार्टी के वरिष्ठ नेता नलिन सोरेन को मैदान में उतारा गया है।

    सीता और नलिन के बीच होगी कांटे की टक्कर
    अभी शिबू सोरेन या झामुमो के किसी नेता के खिलाफ सीता सोरेन खुलकर नहीं बोल रही हैं। वहीं झामुमो के किसी नेता की ओर से भी सीता सोरेन पर हमला नहीं किया जा रहा है। लेकिन इतना तय है कि इस बार सीता सोरेन और झामुमो के शिकारीपाड़ा से लगातार सात बार विधायक रह चुके नलिन सोरेन के बीच कड़ा मुकाबला होगा। दोनों ने एक-दूसरे के प्रति आदर भी व्यक्त किया है।

    रिश्ते में चाचा-भतीजी हैं नलिन और सीता
    जहां तक रिश्ते की बात है, तो झामुमो प्रत्याशी नलिन सोरेन भाजपा की सीता सोरेन के चाचा हैं। इस तरह वह शिबू सोरेन के सबसे निकटस्थ सहयोगी ही नहीं, समधी भी हैं। सीता सोरेन उसी शिबू सोरेन के बड़े बेटे दिवंगत दुर्गा सोरेन की पत्नी हैं, जो पिछले महीने अपनी दो बेटियों के साथ घर-परिवार छोड़ कर भाजपा में शामिल हो गयी थीं।

    क्या है दोनों की ताकत और कमजोरी
    यदि बात इन दोनों प्रत्याशियों की ताकत और कमजोरी की की जाये, तो एक बात साफ है कि सियासी मैदान में नलिन सोरेन अपने प्रतिद्वंद्वी से बहुत सीनियर हैं। वह आठ बार से विधायक हैं और उन्हें आज तक हार का मुंह नहीं देखना पड़ा है। झामुमो ही नहीं, पूरे संथाल परगना में नलिन सोरेन का अपना अलग प्रभाव है। दूसरी तरफ इस चुनाव में उनकी सबसे बड़ी कमजोरी उनकी प्रतिद्वंद्वी ही हैं। पूरे प्रचार अभियान के दौरान नलिन सोरेन कभी भी अपनी भतीजी के खिलाफ कुछ नहीं बोल सकेंगे। उनके पास केवल भाजपा और केंद्र की मोदी सरकार की आलोचना का विषय ही होगा। उधर सीता सोरेन के पास सबसे ताकतवर हथियार उनके पति दुर्गा सोरेन का नाम है। संथाल परगना में आज भी दुर्गा सोरेन की बहुत प्रतिष्ठा है। यही कारण है कि भाजपा द्वारा सीता सोरेन को उतारे जाने के बाद झामुमो खेमे में एक किस्म की बेचैनी है। सीता सोरेन जहां दुर्गा सोरेन की पत्नी के रूप में दुमका के लोगों की सहानुभूति हासिल कर रही हैं, वहीं वह शिबू सोरेन की बड़ी बहू के रूप में भी खुद को सामने ला रही हैं। उनके साथ एक मनोवैज्ञानिक लाभ यह है कि शिबू सोरेन की राजनीतिक विरासत को आगे ले जाने में वह खुद को बड़ी आसानी से फिट कर सकती हैं। दुमका संसदीय क्षेत्र के तहत आनेवाले जामा विधानसभा क्षेत्र से वह तीन बार विधायक चुनी जा चुकी हैं और उनके पीछे भाजपा की ताकत भी है। उनके पति दुर्गा सोरेन भी जामा क्षेत्र से दो बार विधायक रहे थे और उनकी गिनती झामुमो की सियासी हैसियत का विस्तार करने वाले नेताओं में होती थी। सीता सोरेन ने मुखर होकर परिवार के भीतर खुद के साथ अन्याय के आरोप लगाये हैं।

    2019 में दुमका से हार गये थे गुरुजी
    शिबू सोरेन 2019 के चुनाव में इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी सुनील सोरेन से परास्त हो गये थे, लेकिन सोरेन परिवार इसे आज भी अपनी परंपरागत सीट मानता है। शिबू सोरेन ने 1999 के चुनाव में अपनी पत्नी रूपी सोरेन को यहां बतौर झामुमो प्रत्याशी उतार दिया था, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। शिबू सोरेन के छोटे पुत्र बसंत सोरेन दुमका सदर विधानसभा क्षेत्र के विधायक हैं।

    दुमका सीट का राजनीतिक इतिहास
    दुमका की सीट झारखंड की राजनीति और बड़े नेताओं की साख से जुड़ी रही है। यह झारखंड की राजनीति का रुख बदलनेवाली सीट रही है। 80 के दशक में झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन ने झामुमो का खूंटा संथाल परगना में इसी सीट के सहारे गाड़ा था। यहां से शिबू सोरेन ने आठ बार चुनाव जीत कर इस सीट को झामुमो का अभेद्य किला बनाया था। वर्ष 1989, 1991 और 1996 के तीन चुनाव में शिबू सोरेन की लगातार जीत हुई। इस सीट पर झामुमो की जीत का पहिया लगातार घूमता रहा है। वर्ष 2002 के मध्यावधि चुनाव से 2014 तक शिबू सोरेन ने इस सीट पर लगातार चार बार जीत हासिल की। दुमका सीट से जीत-हार की राजनीति का गणित बदलता रहा है। 1998-99 में पहली बार भाजपा ने बाबूलाल मरांडी के सहारे इस सीट पर जीत का झंडा गाड़ा और शिबू सोरेन को शिकस्त देनेवाले बाबूलाल भाजपा का बड़ा चेहरा बन कर उभरे। तब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वन और पर्यावरण राज्यमंत्री बनाये गये। भाजपा के लिए यह जीत संताल परगना में पैर पसारने की जगह तैयार करनेवाली थी।

    क्या है वर्तमान स्थिति
    दुमका संसदीय सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। इस लोकसभा क्षेत्र में कुछ छह विधानसभा सीटें आती हैं। शिकारीपाड़ा (एसटी), जामताड़ा, दुमका (एसटी), नाला, सारठ और जामा (एसटी) विधानसभा क्षेत्र इसके तहत आते हैं। दुमका लोकसभा सीट पर आदिवासी मतदाता ही तुरुप का इक्का रहे हैं। 1980 में जब सोरेन पहली बार जीते थे, तो अंतर चार हजार से भी कम था, लेकिन आदिवासियों में मजबूत पकड़ की बदौलत गुरुजी की जीत का अंतर 1989 में 1.10 लाख तक पहुंच गया। 1996 में कांटे के मुकाबले में उन्होंने बाबूलाल मरांडी को करीब साढ़े पांच हजार वोटों से शिकस्त दी थी। अगले दो लोकसभा चुनाव को छोड़कर 2002 के उपचुनाव के बाद से यह सीट लगातार शिबू सोरेन के पास ही थी। 2014 में वह हार गये थे।

    दुमका का सियासी समीकरण
    पिछले चुनाव में भाजपा प्रत्याशी सुनील सोरेन ने शिबू सोरेन को हराया था। इस बार के चुनाव में शिबू सोरेन के मैदान में उतरने की संभावना कम है, लेकिन झामुमो के लिए इसे दोबारा जीतना आसान नहीं होगा। पिछड़ेपन, भ्रष्टाचार और पलायन जैसे मुद्दे भाजपा से अधिक झामुमो के सामने चुनौती बन कर खड़े हैं। दुमका में जीत-हार आदिवासी मतदाताओं पर निर्भर है, लेकिन इसके अलावा करीब 14.5 प्रतिशत मुस्लिम और इसाइ वोट बैंक भी जीत-हार में निर्णायक हो सकता है।

    क्या हैं पिछले चुनाव के आंकड़े
    जहां तक 2019 के चुनावी आंकड़ों की बात है, तो उस साल लोकसभा चुनाव में भाजपा ने छह में से चार विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त ली थी, जबकि दो अन्य विधानसभा क्षेत्रों में झामुमो को बढ़त हासिल हुई थी। भाजपा को दुमका विधानसभा क्षेत्र से 78623, जामा से 68527, नाला से 91121, सारठ से 101173, जामताड़ा से 82530 और शिकारीपाड़ा से 61774 वोट मिले थे। यानी लोकसभा चुनाव में इन छह विधानसभा क्षेत्रों से भाजपा को कुल 483748 वोट मिले थे। छह माह बाद जब विधानसभा चुनाव हुए, तो भाजपा को कुल मिला कर 399066 वोट ही मिल सके, यानी लोकसभा चुनाव के मुकाबले 84682 वोट कम मिले। इनमें दुमका से 67819, जामा से 58499, नाला से 57836, सारठ से 90895, जामताड़ा से 74088 और शिकारीपाड़ा से 49929 वोट शामिल हैं।

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