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    Home»विशेष»उद्धव-राज मिल भी गये तो परिवार मजबूत होगा, राजनीतिक साख नहीं
    विशेष

    उद्धव-राज मिल भी गये तो परिवार मजबूत होगा, राजनीतिक साख नहीं

    shivam kumarBy shivam kumarApril 22, 2025Updated:April 23, 2025No Comments8 Mins Read
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    विशेष
    फिलहाल सियासत के मैदान में हाशिये पर हैं ठाकरे ब्रदर्स
    सत्ता के लिए अलग हुए थे, कुर्सी का आकर्षण ही ला रहा साथ
    हिंदुत्व ही जड़ थी, उसमें ही कोयला डाल दिया तो फल की उम्मीद कैसे
    आगे किस एजेंडे के साथ राजनीति करेंगे, दिलचस्प होगा देखना
    बालासाहेब की लेगेसी आज भी जिंदा है, बढ़ाना ही एक मात्र उपाय

    नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
    महाराष्ट्र की राजनीति में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के एक साथ आने के कयास लगाये जा रहे हैं। ये दोनों चचेरे भाई, जो कभी महाराष्ट्र की राजनीति के ‘स्ट्रांगमैन’ बालासाहेब ठाकरे के दोनों ओर बैठते थे, पिछले 20 साल से अलग-अलग राजनीति कर रहे हैं। उद्धव ठाकरे जहां सत्ता शीर्ष तक पहुंचने के बाद फिलहाल सियासी हाशिये पर हैं, वहीं राज ठाकरे अपनी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के साथ राजनीतिक बियाबान में भटक रहे हैं। इन दोनों भाइयों के बीच अलगाव बालासाहेब का उत्तराधिकार हासिल करने के कारण हुआ था और अब ये दोनों महाराष्ट्र की कुर्सी के आकर्षण में फिर से एक होने का संकेत दे रहे हैं। राज ठाकरे चुनावी राजनीति में पूरी तरह फेल हो चुके हैं, जबकि उद्धव ठाकरे अपनी बची-खुची शिवसेना को लेकर बहुत दूर तक चलने में सक्षम नहीं हैं। ऐसे में मराठा सम्मान और मराठी हितों को लेकर दोनों ने जो एक होने की संभावनाओं पर मुहर लगायी है, उससे तो पहली नजर में यही लगता है कि दोनों की नजर अपनी सियासी गाड़ी को एक बार फिर पटरी पर लाने पर है, लेकिन सवाल यही है कि क्या ये दोनों भाई इतनी आसानी से एक हो सकेंगे। दोनों भाइयों के बीच भले ही कई समानताएं दिख रही हैं, लकिन दोनों एक-दूसरे के एकदम विपरीत हैं। उद्धव जहां राजनीति को गंभीर बनाने की कोशिश करते दिखाई देते हैं, वहीं राज ठाकरे आक्रामक राजनीति में भरोसा करते हैं। ऐसे में यह सवाल बहुत अहम है कि क्या ये दोनों भाई एक बार फिर एक साथ आ सकते हैं और यदि आ गये, तो फिर महाराष्ट्र की राजनीति में क्या बदलाव आ सकता है। ठाकरे भाइयों की एकता की चर्चाओं के बीच इन सवालों के जवाब दे रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    मराठी पहचान और संस्कृति पर बढ़ते खतरों के बीच अलग-थलग पड़े चचेरे भाई राज और उद्धव ठाकरे ने संभावित सुलह के संकेत दिये हैं। अलग-अलग कार्यक्रमों में बोलते हुए दोनों नेताओं, जो क्रमश: महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) और शिवसेना (यूबीटी) के प्रमुख हैं, ने एक एकीकृत संदेश दिया कि महाराष्ट्र के भाषाई और सांस्कृतिक हितों को राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता पर प्राथमिकता दी जानी चाहिए। अभिनेता महेश मांजरेकर द्वारा आयोजित एक पॉडकास्ट के दौरान राज ठाकरे ने टिप्पणी की कि उनके और उनके चचेरे भाई के बीच दरार राज्य के कल्याण के लिए हानिकारक है। महाराष्ट्र की राजनीति में उसके बाद से लगातार ये चर्चा चल रही है कि राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे किसी न किसी समय एक साथ आयेंगे। बीते दिनों दोनों तरफ के नेता, कार्यकर्ता और उनके आसपास के रिश्तेदारों के बयानों से ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि दोनों नेता साथ आ सकते हैं। लेकिन सवाल ये उठ रहा है कि क्या दोनों सचमुच एक साथ आयेंगे।

    क्या कहा राज ठाकरे ने
    राज ठाकरे ने कहा, उद्धव और मेरे बीच विवाद और झगड़े मामूली हैं। महाराष्ट्र इन सबसे कहीं बड़ा है। ये मतभेद महाराष्ट्र और मराठी लोगों के अस्तित्व के लिए महंगे साबित हो रहे हैं। साथ आना मुश्किल नहीं है, यह इच्छाशक्ति का मामला है। यह सिर्फ मेरी इच्छा या स्वार्थ की बात नहीं है। हमें बड़ी तस्वीर देखने की जरूरत है। राजनीतिक दलों के सभी मराठी लोगों को एकजुट होकर एक पार्टी बनानी चाहिए।

    क्या कहा उद्धव ठाकरे ने
    उधर उद्धव ठाकरे ने भारतीय कामगार सेना की एक सभा को संबोधित करते हुए सुलह की सशर्त इच्छा व्यक्त की। उन्होंने कहा, मैं छोटे-मोटे विवादों को किनारे रखने के लिए तैयार हूं। मैं सभी मराठी लोगों से महाराष्ट्र के हित में एकजुट होने की अपील करता हूं। लेकिन एक शर्त है। जब हमने संसद में कहा था कि उद्योगों को गुजरात में स्थानांतरित किया जा रहा है, अगर हम तब एकजुट होते, तो हम महाराष्ट्र के लिए काम करने वाली सरकार बना सकते थे। हम बार-बार पक्ष नहीं बदल सकते। एक दिन उनका समर्थन, दूसरे दिन उनका विरोध और फिर समझौता। उद्धव ने कहा, जो कोई भी महाराष्ट्र के हितों के खिलाफ काम करेगा, मैं उसका स्वागत नहीं करूंगा, उसे घर नहीं बुलाऊंगा, या उसके साथ नहीं बैठूंगा। पहले यह स्पष्ट हो जाये, और फिर हम महाराष्ट्र के लिए मिल कर काम करेंगे।

    आशीर्वाद उनके साथ है
    दो दिन पहले 19 अप्रैल को उद्धव और राज ने महाराष्ट्र के ‘बड़े हितों’ के लिए मतभेदों को भुला कर साथ आने की इच्छा जतायी, तो पहली प्रतिक्रिया उनके मामा चंद्रकांत वैद्य की ओर से आयी। यह सुन कर साहेब बहुत खुश होते। मुझे यकीन है, अच्छी चीजें होंगी। मेरा आशीर्वाद उनके (उद्धव और राज) साथ है। साहेब का आशीर्वाद उनके साथ है। भगवान का आशीर्वाद उनके साथ है और सबसे महत्वपूर्ण बात मराठी मानुष का आशीर्वाद उनके साथ है।

    दोनों भाइयों के रिश्तों की कहानी
    वह 16 जुलाई 2012 का दिन था। उद्धव को बांद्रा स्थित मातोश्री बंगले में अचानक सांस लेने में तकलीफ और सीने में दर्द हुआ और उन्हें लीलावती अस्पताल ले जाना पड़ा। ठाकरे परिवार में खलबली मच गयी थी। परिवार के मुखिया शिवसेना सुप्रीमो बालासाहेब ठाकरे ने राज को पहला फोन किया, जो तटीय कोंकण क्षेत्र में थे। बालासाहेब ने अपने भतीजे राज को अपने बेटे उद्धव के बारे में बताया, दादू को अस्पताल ले जाया गया है। एक मिनट भी गंवाये बिना, राजा, जैसा कि वे परिवार में लोकप्रिय हैं, ने यू-टर्न लिया और जेट की गति से अपनी मर्सिडीज चलायी और अस्पताल पहुंच गये। शाम को राज ने अपने दादू को वापस घर पहुंचाया। मुस्कुराते हुए चचेरे भाइयों की तस्वीरें अखबारों में छपीं। तब सवाल यह था कि क्या उद्धव और राज एक साथ होंगे। वे सार्वजनिक समारोहों में बालासाहेब के दोनों ओर बैठते थे और एक समय वे अभिन्न थे। राज करिश्माई व्यक्तित्व वाले, कार्टूनिस्ट और व्यंग्यचित्रकार थे तथा बालासाहेब की तरह एक उत्कृष्ट वक्ता थे, जबकि उद्धव एक उत्कृष्ट फोटोग्राफर थे, जो शांत और संयमित स्वभाव के थे। हालांकि दोनों ने व्यक्तिगत रिश्तों को एक तरफ रख कर आगे बढ़ने का फैसला किया। चचेरे भाइयों के बीच मतभेद 2000 के दशक के प्रारंभ में शुरू हुए। फरवरी 2003 में जब बालासाहेब ने स्वास्थ्य कारणों से कार्यभार कम करने का निर्णय लिया, तब राज ने शिवसेना के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में उद्धव का नाम प्रस्तावित किया। 2005 के अंत में राज शिवसेना से अलग हो गये और 9 मार्च 2006 को महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की स्थापना की। बीच में बालासाहेब ने सुलह के प्रयास भी किये, लेकिन वे सफल नहीं हो सके। महाराष्ट्र की राजनीति में कभी किसी ने नहीं सोचा था कि उद्धव और राज कभी अलग हो जायेंगे। दरअसल, उद्धव के पिता बालासाहेब और राज के पिता श्रीकांत, जो संगीतकार थे, भाई थे, जबकि उद्धव की मां मीनाताई और राज की मां कुंदाताई बहनें हैं।

    राजनीतिक रूप से पूरी तरह अलग हैं दोनों भाई
    जब से उद्धव और राज राजनीतिक रूप से अलग हुए हैं, वे केवल कुछ पारिवारिक समारोहों में ही मिले हैं और एक-दूसरे पर निशाना साधा है, कभी-कभी बिना किसी रोक-टोक के। हालांकि, राज ने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के दौरान मेहमानों के बीच मौजूद रहने के लिए उद्धव के निमंत्रण का सम्मान किया।

    महाराष्ट्र की सियासी स्थिति
    महाराष्ट्र में राजनीतिक स्थिति 2005 की तुलना में 2025 में बदल गयी है। समंदर में बहुत पानी बह चुका है। महाराष्ट्र के लोगों के लिए ठाकरे भाइयों में एकता बहुत अच्छी खबर है, लेकिन गठबंधन या विलय जैसे मुद्दे इतने आसान नहीं हैं। अगर ऐसा होना है, तो बहुत सी चीजों पर काम करना होगा। इनमें सबसे अहम यह है कि दोनों भाइयों की नयी पीढ़ी अब राजनीति में सक्रिय है। उद्धव के बेटे और दो बार के विधायक आदित्य और पूर्व मंत्री और राज के बेटे अमित के बीच भी एकता की बातें करनी होंगी।

    महाराष्ट्र का सियासी परिदृश्य
    महाराष्ट्र में 2005-06 में चार पार्टियों के दो गठबंधन थे, शिवसेना-भाजपा का भगवा गठबंधन और कांग्रेस-एनसीपी का डेमोक्रेटिक फ्रंट। अब भी दो गठबंधन हैं, एक महायुति-एनडीए, जिसमें बीजेपी, एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और अजीत पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी शामिल है, और दूसरा, महा विकास अघाड़ी-भारत, जिसमें कांग्रेस, उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी) और शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी (एसपी) शामिल हैं।

    ठाकरे भाइयों की एकता का असर
    अगर राज और उद्धव साथ आ गये तो इसका सबसे बुरा असर शिंदे पर पड़ेगा। शिंदे ने शिवसेना को तोड़ दिया और आज उसे चुनाव आयोग से असली शिवसेना के रूप में मान्यता मिल चुकी है। लेकिन यदि उद्धव और राज ठाकरे एक साथ हो गये, तो फिर असली शिवसैनिक किधर होंगे, इस बात को लेकर एकनाथ शिंदे अभी से ही आशंकित दिख रहे हैं। लेकिन इस संभावित एकता के बारे में जानकार बताते हैं कि यह सत्ता के आकर्षण में चली जानेवाली चाल है और इसका राजनीतिक रूप से कोई असर शायद ही पड़ेगा।

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