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भारतीय शेयर बाजार में भारी गिरावट, अर्थव्यवस्था को लगा झटका
भारत के लिए बेहद कठिन है आगे का रास्ता, सरकार का स्टैंड ही आगे की डगर तय करेगा
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
भारत में सोमवार को शेयर बाजार में भारी गिरावट देखी गयी। बांबे स्टॉक एक्सचेंज का सेंसेक्स पिछले बंद से 3000-4000 अंक नीचे रहा। वहीं, निफ्टी में भी करीब 1100 अंकों की गिरावट आयी। बाजार विशेषज्ञों ने इस गिरावट के बारे में गुरुवार को ही चेतावनी जारी कर दी थी, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दुनिया भर की कई बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से आयात होने वाले अहम उत्पादों पर आयात शुल्क लगा दिया था। हालांकि, इसका असल असर सोमवार से दिखना शुरू हुआ है। सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि जापान से लेकर चीन तक, एशिया में सभी शेयर बाजारों में भारी बिकवाली का दौर देखा गया है। सोमवार, 7 अप्रैल को शेयर मार्केट में साल की दूसरी सबसे बड़ी गिरावट आई। इसके कारण निवेशकों के करीब 19 लाख करोड़ रुपये डूब गये। हालांकि, इंडियन मार्केट में ऐसी गिरावटें में कई बार देखी गयी हैं और हर बार रिकवरी भी हुई है। जापान, हॉन्गकॉन्ग समेत अन्य एशियाई बाजारों में भी बड़ी गिरावट देखी गयी है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस गिरावट की सबसे बड़ी वजह ट्रंप का रेसिप्रोकल टैरिफ है। अनुमान लगाया जा रहा है कि 2025 के आखिर तक अमेरिका में आर्थिक मंदी आ सकती है। ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर ट्रंप के आयात शुल्क लगाने के फैसले का शेयर बाजारों पर इतना भीषण असर क्यों पड़ा है? कहां-कहां बाजार में गिरावट देखी गयी है? इसके अलावा यह असर अभी कितने दिन तक रह सकता है? इससे आम लोगों की जिंदगी पर किस तरह असर पड़ने की संभावना है? जहां तक भारतीय अर्थव्यवस्था की बात है, तो ट्रंप की टैरिफ नीति से इस पर गंभीर असर पड़ने की आशंका व्यक्त की गयी है। इसके कारण भारत पर भी मंदी का खतरा मंडराने लगा है, क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था पर अमेरिका का सीधा असर पड़ता है। ऐसे में यह स्थिति भारत के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण है और भारत के लिए आगे का रास्ता बेहद कठिन होनेवाला है। लेकिन सुकून की बात यह है कि मोदी सरकार की बहुआयामी आर्थिक नीतियों के कारण इस संकट को भारतीय बाजार झेल सकते हैं। क्या है ट्रंप की टैरिफ नीति और क्या हो सकता है भारत पर इसका असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

भारतीय शेयर बाजार में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति का असर दिखने लगा है। साप्ताहिक कारोबार के पहले दिन ही बाजार में चार हजार के करीब अंकों की गिरावट दर्ज की गयी, जो कोविड महामारी के बाद की सबसे बड़ी गिरावट है। इस गिरावट के कारण निवेशकों को करीब 20 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। बाजार की इस गिरावट को भारत पर मंदी की आहट कहा जा रहा है।
शेयर बाजार में सोमवार 7 अप्रैल को साल की दूसरी बड़ी गिरावट देखने को मिली। सेंसेक्स 2226 अंक (2.95%) गिरकर 73,137 के स्तर पर बंद हुआ। निफ्टी में 742 अंक (3.24%) की गिरावट रही, ये 22,161 के स्तर पर बंद हुआ। इससे पहले 4 जून 2024 को बाजार 5.74% गिरा था। सेंसेक्स के 30 शेयरों में से 29 में गिरावट रही। टाटा स्टील, टाटा मोटर्स और लार्सन एंड टुब्रो के शेयर में 7% तक गिरावट रही। जोमैटो का शेयर 0.17% ऊपर बंद हुआ। एनएसइ के सेक्टोरल इंडेक्स में निफ्टी मेटल सबसे ज्यादा 6.75% गिरा। रियल्टी में 5.69% गिरावट रही। ऑटो , फार्मा, सरकारी बैंक, ऑयल एंड गैस और आइटी सेक्टर 4% नीचे बंद हुए। वहीं 2 अप्रैल से अब तक कच्चे तेल (क्रूड ऑयल ) के दाम 12.11% घट चुके हैं। वहीं आज ब्रेंट क्रूड 4% टूटकर 64 डॉलर के नीचे फिसल चुका है। ये बीते 4 साल का निचला स्तर है।

बाजार में गिरावट की 3 वजह
ट्रंप का रेसिप्रोकल टैरिफ
अमेरिका ने भारत पर 26% टैरिफ लगाने का एलान किया है। भारत के अलावा चीन पर 34%, यूरोपीय यूनियन पर 20%, साउथ कोरिया पर 25%, जापान पर 24%, वियतनाम पर 46% और ताइवान पर 32% टैरिफ लगेगा।

चीन ने 34% टैरिफ लगाया
चीन ने शुक्रवार को अमेरिका पर 34% जवाबी टैरिफ लगाने का एलान किया है। नया टैरिफ 10 अप्रैल से लागू होगा। 3 अप्रैल को अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने दुनियाभर में जैसे को तैसा टैरिफ लगाया था। इसमें चीन पर 34% अतिरिक्त टैरिफ लगाया गया था। अब चीन ने उतना ही टैरिफ अमेरिका पर लगा दिया है।

कमजोर इकोनॉमिक एक्टिविटी का संकेत
टैरिफ से सामान महंगा होने पर लोग कम खरीदारी करेंगे, जिससे अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी हो सकती है। साथ ही, मांग कम होने से कच्चे तेल की कीमतें भी गिरी हैं। यह कमजोर इकोनॉमिक एक्टिविटी का संकेत है। इससे निवेशकों का भरोसा डगमगाया है।

भारत पर कितना भीषण रहा है ट्रंप के टैरिफ का असर
बीएसइ सेंसेक्स ने सुबह खुलने के बाद सीधा 39 सौ से ज्यादा अंकों का गोता लगाया। यह पिछले बंद से करीब 5.22 फीसदी की गिरावट थी। इस दौरान भारत के शेयर बाजार से निवेशकों का करीब 20 लाख करोड़ रुपया साफ हो गया। हालांकि दोपहर आते-आते सेंसेक्स थोड़ा संभला और यह गिरावट 3200 अंकों के करीब आती दिखी। आंकड़ों के लिहाज से बात करें, तो भारत में एक दिन में यह शेयर मार्केट की पांच सबसे बड़ी गिरावटों में से है।

भारत के अलावा और किन देशों में बाजार का रहा बुरा हाल
बाजार विश्लेषकों ने पहले ही एलान किया था कि सोमवार का दिन ब्लैक मंडे हो सकता है, यानी इस दिन शेयर बाजार में भारी गिरावट दर्ज की जा सकती है। हुआ भी कुछ ऐसा ही। दुनिया में सबसे पहले खुलने वाले पूर्व में स्थित देशों (एशिया) में शेयर बाजार के खुलने के साथ ही बड़ी गिरावट दर्ज की गयी। आलम यह रहा कि चीन के शंघाई से लेकर जापान के टोक्यो और आॅस्ट्रेलिया के सिडनी से लेकर दक्षिण कोरिया के शेयर बाजार तक में जबरदस्त बिकवाली का दौर देखा गया। बाजार में इस दिन को ब्लडबाथ तक कहा गया है।

ट्रंप के टैरिफ का इतना बुरा असर क्यों
एशिया के अधिकतर देश अहम उत्पादकों में रहे हैं। चीन से लेकर वियतनाम और भारत से लेकर बांग्लादेश तक की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा देश में निर्मित उत्पादों के निर्यात पर निर्भर है। एशिया के अधिकतर देशों के लिए अमेरिका एक बड़ा बाजार है। हालांकि ट्रंप की तरफ से आयात शुल्क लगाने के फैसले से इन देशों के निर्यात पर असर पड़ने की संभावना है। दरअसल अमेरिका जिन देशों से आयात करता रहा है, अब वहां के उत्पाद खरीदने के लिए अमेरिकी नागरिकों को ज्यादा कीमत चुकानी पड़ सकती है। इसकी वजह है बढ़ा हुआ आयात शुल्क, जो कि इनकी मूल कीमतों के ऊपर जुड़े हैं। ऐसे में एशिया के निर्यातक देशों पर टैरिफ का असर सबसे ज्यादा पड़ रहा है। अमेरिकी वाणिज्य मंत्रालय में अंतरराष्ट्रीय व्यापार मामले के पूर्व उप मंत्री रहे फ्रैंक लाविन के मुताबिक ट्रंप के टैरिफ का सबसे ज्यादा असर एशियाई बाजारों पर ही दिखने की संभावना है, क्योंकि यहां के बाजार अमेरिका को सबसे ज्यादा निर्यात करते हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि शेयर बाजारों पर पड़ने वाले इस नकारात्मक प्रभाव की खबरों के बावजूद डोनाल्ड ट्रंप ने रविवार देर रात कहा कि बाजारों को दवा लेने की जरूरत है।

अमेरिका में मंडराया मंदी का खतरा
दुनियाभर में शेयर बाजारों के गिरने के साथ-साथ खुद अमेरिका में मंदी के आसार जताये जाने लगे हैं। अमेरिका के सबसे बड़े बैंकों में से एक जेपी मॉर्गन ने अनुमान लगाया है कि अब देश में मंदी की आशंका 60 फीसदी तक पहुंच चुकी है। गोल्डमैन सैक्स ने भी अनुमान लगाया है कि अमेरिका में अगले 12 महीने में मंदी की आशंका अब पहले के 35% से बढ़कर 45% पर आ गयी है।

क्या भारत भी अमेरिका पर जवाबी आयात शुल्क लगा सकता है
भारत अपनी बातचीत के जरिये समझौते करने की नीति के लिए जाना जाता है। अगर भारत को कोई कार्रवाई करनी होती, तो वह पहले ही इस तरफ काम शुरू कर देता। लेकिन भारत के मामले में देखा गया है कि रूस-यूक्रेन संघर्ष के दौरान भारत ने अपना स्टैंड निष्पक्ष रखा। भारत को पता है कि जब कभी लड़ाई होती है, तो उसे झुकना भी पड़ता है या कदम पीछे भी खींचने होते हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध के मामले में भी भारत को बाद में इसका फायदा मिला और यही कारण है कि भारत की जीडीपी दर लगातार स्थिर रही है। भारत ने अमेरिका की तरफ से पारस्परिक टैरिफ लगाने के एलान से पहले कुछ नीतियां बदली हैं। ऐसे में भारत जवाबी कार्रवाई की जगह अमेरिका से बातचीत कर समझौते की कोशिश करेगा, ताकि उसके उद्योगों पर प्रभाव तो भले ही पड़े, लेकिन ज्यादा असर न हो।

भारत पर छाया मंदी का खतरा
विशेषज्ञों ने साफ कह दिया है कि ट्रंप ने टैरिफ लगाकर बैकफायर कर दिया है। इसका सबसे ज्यादा और जल्दी असर तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर ही दिख रहा है। उनका कहना है कि भारतीय बाजारों में मंदी की आशंका 60 फीसदी को भी पार कर चुकी है। ऐसी कंपनियां, जो अमेरिका को अपने उत्पाद भेजती हैं, उनके कारोबार और बाजार मूल्यांकन में तगड़ी गिरावट देखी जा रही है। इससे नौकरियों पर भी संकट आ गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना जैसी महामारी से अभी दुनिया उबर कर बाहर आयी ही थी कि ट्रंप ने टैरिफ युद्ध छेड़ कर इसे फिर पीछे धकेल दिया है। अगर अमेरिकी बाजार में मंदी आती है, तो इससे दुनिया की अर्थव्यवस्था भी अछूती नहीं रहेगी और वैश्विक मंदी का खतरा गहरा जायेगा। साल 2008 की मंदी की शुरूआत भी अमेरिका से ही हुई और जल्द ही इसने पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले लिया था। खासकर छोटी अर्थव्यवस्थाओं के लिए तो उबरना मुश्किल ही हो जायेगा। भारत उनमें से एक हो सकता है।

भारत को कितना खामियाजा भुगतना पड़ेगा
भारत का शेयर बाजार सीधे तौर पर अमेरिका से जुड़ा है। वहां की गिरावट यहां के सबसे बड़े सेक्टर यानी आइटी सेक्टर को धराशायी कर देता है। इसका असर पिछले कुछ दिनों में साफ तौर पर देखने को मिला है। गोल्डमैन सॉक्स का कहना है कि टैरिफ की वजह से भारत की विकास दर 0.40 फीसदी गिरकर 6.3 फीसदी के आसपास रह सकती है। देसी रेटिंग एजेंसी क्वांटइको रिसर्च ने भी विकास दर में 30 आधार अंक की गिरावट की आशंका जतायी है। इससे महंगाई की आशंका भी बढ़ेगी, जो फिलहाल रिजर्व बैंक के दायरे में चल रही है। पिछले दिनों ग्लोबल रेटिंग एजेंसी ने अनुमान लगाया था कि भारतीय अर्थव्यवस्था को टैरिफ से करीब 2.50 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है।

लोन होंगे सस्ते
नये वित्त वर्ष में रिजर्व बैंक की पहली मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी मीटिंग आज यानी, सोमवार 7 अप्रैल से शुरू हो रही है। इस मीटिंग में रेपो रेट में 0.25% की कटौती का अनुमान लगाया गया है। यानी, आने वाले दिनों में लोन सस्ते हो सकते हैं। रेपो रेट घटने के बाद बैंक भी हाउसिंग और ऑटो जैसे लोंस पर अपनी ब्याज दरें कम कर सकते हैं। सभी लोन सस्ते हो सकते हैं और इएमआइ भी घटेगी। ब्याज दरें कम होंगी तो हाउसिंग डिमांड बढ़ेगी। ज्यादा लोग रियल एस्टेट में निवेश कर सकेंगे।

 

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