विशेष
वक्फ बिल का समर्थन कर नीतीश ने खेला माइंड गेम
बिहार में मुस्लिम वोटों की सियासत को नया मोड़ देने की कोशिश
राजद-कांग्रेस को उनके ही हथियार से मात देने की तैयारी
अंतत: तैयारी ज्यादा से ज्यादा हिंदू वोटरों को साधने की ही है

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
वक्फ विधेयक के कानून बन जाने के बाद देश के मौजूदा सियासी समीकरणों में बदलाव की लहर दिख तो रही है, लेकिन इस लहर का असर कितने दिन तक रहेगा, यह देखनेवाली बात होगी। इस साल के अंत में होनेवाले बिहार चुनाव पर वक्फ बिल का असर होना तो तय है। वैसे जानकारों का कहना है कि वक्फ संशोधन बिल,जम्मू कश्मीर की धारा 370 जैसा ही है। फिर तो आने वाले चुनावों पर इस बिल का असर भी करीब-करीब वैसा ही होना चाहिए। पूरे देश में न सही, लेकिन आने वाले बिहार चुनाव में तो वक्फ बिल का साफ असर देखने को मिल सकता है। चुनाव की तारीख आते-आते तो वक्फ बिल बतौर कानून लागू हो चुका होगा, ऐसा मानकर चलना चाहिए। अब वक्फ कानून का पहला चुनावी परीक्षण तो बिहार में ही होना है। नीतीश कुमार की पार्टी जदयू ने संसद में बिल का समर्थन कर एक ऐसा माइंड गेम खेला है, जिससे राजद और कांग्रेस के भीतर असमंजस की स्थिति है। नीतीश कुमार ने बिल में कुछ ऐसे संशोधन कराये, जिनसे उनके पास मुस्लिमों, खास कर पसमांदा (पिछड़े) मुसलमानों का बड़ा तबका कायम रह गया है। वास्तव में नीतीश कुमार ने बिल का समर्थन कर बिहार में मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण रोक दिया है, जो राजद और कांग्रेस का मजबूत हथियार साबित हो सकता था। इस सियासी चाल का क्या होगा असर और कैसे आसान होगी नीतीश कुमार की राह, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

वक्फ संशोधन बिल राज्यसभा से पास होने पर विपक्षी दलों ने इसे असंवैधानिक, जनविरोधी और राजनीति से प्रेरित बताया है। वहीं, एनडीए के नेताओं ने इसे अल्पसंख्यकों के साथ ही देश के लिए एक बेहतरीन कदम बताया है। लेकिन इन सबसे अलग एक सवाल खड़ा होता है कि आखिर इस बिल को अभी क्यों पास कराया गया है और इसका बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव पर क्या असर पड़ेगा। इसी को समझने की कोशिश है यह लेख।

वक्फ संशोधन बिल का समर्थन कर नीतीश कुमार की पार्टी जदयू ने सबको चौंका दिया है। लोग चर्चा कर रहे हैं कि आखिर खुद को सेक्युलर पार्टी कहने वाली जदयू ने यह फैसला क्यों लिया है। पिछले चुनावों के आंकड़ों पर नजर डालने पर पता चलता है कि नीतीश कुमार ने वक्फ संशोधन बिल का समर्थन कर मुस्लिम वोटरों का साथ पाने के लिए माइंड गेम खेला है। लेकिन अगर कुछ सियासी जानकारों की मानें तो उनके तर्क तो भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। केंद्र की मोदी सरकार के पास लोकसभा में अपने सिर्फ 240 सांसद ही हैं। लेकिन नीतीश कुमार एनडीए का हिस्सा हैं। इस वजह से उनके लोकसभा के 12 और राज्यसभा के 4 सांसद इस मुद्दे पर सरकार के साथ चट्टान की तरह खड़े रहे। इतना ही नहीं जेडीयू ने तो बिल पर बहस से पहले ही अपने सांसदों को व्हिप जारी करके सदन में रहने के आदेश दिया भी था। यह सभी जानते हैं कि मुस्लिम मतदाता बीजेपी को आज भी वोट नहीं देते। लेकिन बिहार की सत्ता पर काबिज जेडीयू को जरूर वोट देते हैं। ऐसे में इस बिल का समर्थन करने से मुस्लिम वोटर उनका साथ छोड़ इंडी गठबंधन को अपना वोट दे सकते हैं। लेकिन इसका एक पहलु तो यह भी हो सकता है कि बिहार में एनडीए का पूरा फोकस हिंदू वोटरों पर हो। धार्मिक से ज्यादा जातीय राजनीति पर हो। वैसे बिहार जातीय राजनीति के लिए ही जानी जाती है। वैसे कई मुस्लिम समाज के लोग वक्फ संशोधन बिल के पक्ष में हैं। जो पक्ष में हैं, हो सकता है, उनपर एनडीए की निगाह रहेगी। वैसे वक्फ संशोधन बिल सिर्फ बिहार की राजनीति को देखकर नहीं लाया गया है, इससे आने वाले दिनों में देश की राजनीति भी प्रभावित होने वाली है।

बिहार चुनावों पर असर
इतना तो तय हो गया कि आगामी बिहार विधानसभा चुनाव आम चुनावों से भिन्न होने जा रहा है। यह अलग बात है कि राजद अपने पुराने स्टैंड पर ही टिका है, पर एनडीए में खासकर जदयू को उन मुस्लिम वोटरों की जरूरत नहीं, जो अपनी कट्टर छवि के साथ राजद की नीतियों से कदम से कदम मिलाकर पसमांदा मुस्लिमों को राजनीतिक रूप से नजरअंदाज कर रहे हैं। हालांकि इस आड़ में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की धर्मनिरपेक्षता खतरे में है, पर यहां तक पहुंचने में जदयू के रणनीतिकारों ने काफी वक्त लगाया और उन्हें भरपूर मौका और राज्य की योजनाओं में जगह भी दी। जदयू आज अगर वक्फ संशोधन बिल के साथ खड़ा है, तो यह एकाएक निर्णय नहीं है। जदयू ने अपने आदर्श नीतीश कुमार के साथ धीरे-धीरे ही कदम बढ़ाया है।

बिहार का सियासी परिदृश्य
बिहार में अच्छी-खासी मुस्लिम आबादी है, 18 फीसदी। और सीमांचल इलाके में तो हार-जीत का फैसला भी करती है। मुस्लिम वोटों का बंटवारा बिहार में भाजपा छोड़ कर सभी दलों के बीच होता रहा है। जनसुराज पार्टी इस बार नयी खिलाड़ी होगी। पहले के चुनावों में राजद और कांग्रेस के अलावा नीतीश कुमार भी एक दावेदार हुआ करते थे, लेकिन भाजपा के साथ हो जाने और वक्फ बिल का समर्थन कर देने के बाद यह परिदृश्य बदल सकता है। लेकिन जदयू की तरफ से वक्फ बिल में भाजपा पर दबाव डालकर मुस्लिम समुदाय के हित में जो बदलाव कराये गये हैं, उसका भी कुछ न कुछ असर जरूर दिखेगा। अगर नीतीश कुमार और उनके साथी अपनी बात समझाने में कामयाब हुए, तो फर्क तो पड़ेगा ही। ज्यादा न सही, लेकिन पूरी तरह खिलाफ जाती हुई चीजों को संतुलित तो किया ही जा सकता है, यानी वोटों का ध्रुवीकरण तो रोका ही जा सकेगा।

2020 का चुनाव और जदयू
2020 के चुनाव में जब जदयू राज्य की पहले नंबर से तीसरे नंबर की पार्टी बनी और राजद पहले नंबर की पार्टी बनी, तो जदयू ने मुस्लिम मतों की आपाधापी से खुद को अलग कर लिया। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा है कि राजद के बराबर जदयू को मुस्लिमों का साथ नहीं मिला, तो मुस्लिम बुद्धिजीवियों, उर्दू अखबार के तमाम संपादकों से जदयू के शीर्ष नेताओं ने मिलकर कारण का पता लगाया, तो जवाब मिला कि भाजपा का साथ छोड़ेंगे, तभी मुस्लिम मत मिलेगा। यहीं से मुस्लिम मत जरूरी है का नशा टूटा। 2005 के चुनाव से लेकर 2020 के चुनाव आते-आते मुस्लिम मत जदयू के खाते से इस कदर निकलते रहे कि 2020 के विधानसभा चुनाव में जदयू से कोई मुस्लिम विधायक नहीं बना। हुआ यह कि 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में जदयू से चार मुस्लिम विधायक बने, 2010 में जदयू से सात और विधानसभा चुनाव 2015 में जदयू से पांच मुस्लिम विधायक बने। 2024 के लोकसभा चुनाव में मुस्लिम मतों की अधिकता के बाद कटिहार और पूर्णिया में जदयू को हारना पड़ा।

तो क्या निशाना पसमांदा मुस्लिमों पर है
अब सवाल यह है कि इस वक्फ संशोधन बिल के बाद क्या मुस्लिम मतों में भी विभाजन होगा। ऐसा इसलिए कि इस संशोधन की मूल वजह यह रही है कि पसमांदा मुस्लिम को कोई लाभ नहीं मिल रहा है। लेकिन प्रभावी मुस्लिम जाति के लोग इसका भरपूर फायदा उठा रहे हैं। ऐसा माना जा रहा है कि वक्फ संशोधन बिल का विरोध करने वाले मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं, जिनकी आबादी बिहार में 18 फीसदी है और 73 प्रतिशत पसमांदा मुसलमान हैं।

नीतीश कुमार की सियासी चाल
राज्यसभा में जब इस बिल पर चर्चा हो रही थी, तब जदयू के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा ने बताया कि आखिर उनके नेता नीतीश कुमार के मन में इस बिल को लेकर क्या शंकाएं थीं, जिन्हें भाजपा ने दूर कर दिया। जदयू ने यह स्पष्ट किया कि पहले से बने इस्लामिक धार्मिक स्थलों, मस्जिदों, दरगाहों और अन्य मुस्लिम धार्मिक स्थानों में हस्तक्षेप को लेकर चिंताएं थीं, जिसे केंद्र सरकार के द्वारा दूर कर दिया गया। संजय झा ने राज्यसभा में इस बिल का समर्थन करते हुए कहा कि मुस्लिम समाज के कई लोगों ने इस बिल को लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात की थी। इस दौरान उन्होंने अपनी-अपनी चिंता जाहिर की थी। उन सभी बिंदुओं को केंद्र सरकार के समक्ष रखा गया। केंद्र सरकार ने भी तमाम चिंताओं का समाधान करते हुए इस बिल को संसद में पेश किया। उन्होंने कहा कि इस बिल से मुस्लिम समाज में हाशिये पर चले गये पसमंदा समाज का भला होगा। उन्हें न्याय मिलेगा। नीतीश कुमार की यही सियासी चाल दरअसल बिहार में उन्हें लाभ की स्थिति में लाकर खड़ा करेगी। पसमांदा मुस्लिमों के अलावा प्रगतिशील मुस्लिमों का साथ मिलने से जदयू अब मुस्लिम वोटरों का ध्रुवीकरण रोकने में सफल होगा, जो राजद और कांग्रेस का सबसे मजबूत हथियार हो सकता था। अब जदयू नेता कह रहे हैं कि नीतीश कुमार ने हमेशा मुसलमानों के हक में काम किया है और उनकी सरकार ने इस समुदाय के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाएं लागू की हैं। उन्होंने जोर दिया कि इस विधेयक से मुस्लिम समाज को कोई नुकसान नहीं होगा और यह उनके हित में है। जदयू का यह भी कहना है कि पार्टी का लक्ष्य किसी भी धार्मिक समुदाय के अधिकारों का उल्लंघन किये बिना सामाजिक समरसता को बढ़ावा देना है।

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