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    Home»दुनिया»कुडनकुलम प्रोजेक्ट पर रुस-भारत की वार्ता का NSG से संबंध नहीं- MEA
    दुनिया

    कुडनकुलम प्रोजेक्ट पर रुस-भारत की वार्ता का NSG से संबंध नहीं- MEA

    आजाद सिपाहीBy आजाद सिपाहीMay 19, 2017No Comments3 Mins Read
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    नई दिल्लीः पिछले दो दिन से मीडिया में चल रही उन सभी खबरों के भारतीय विदेश मंत्रालय ने सिरे से नकार दिया है जिसमें कहा गया था कि न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप (एनएसजी) में भारत की सदस्यता पाने के लिए रूस की ओर से मिल रहे ठंड रुख से भारत ने कड़ा रुख अपना लिया है. मीडिया में आई रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने रूस को साफ संदेश दिया है कि अगर रूस अपने दोस्त चीन को मनाने की पहल नहीं करता है तो वह कुंडनकुलम परमाणु ऊर्जा परियोजना की 5 वीं और 6 वीं रिएक्टर यूनिटों से जुड़े समझौते को लेकर पीछे हट सकता है.

    विदेश मंत्रालय ने मीडिया की इस खबर को बेबुनियाद बताया है कि कुडनकुलम पर रूस के साथ भारत की हो रही वार्ता का संबंध भारत के परमाणु सामग्री आपूर्तिकर्ता समूह की सदस्‍यता से है।

    मीडिया के सवाल का जवाब देते हुए विदेश मंत्रालय के प्रवक्‍ता गोपाल बागले ने कहा कि बातचीत कुडनकुलम दस्‍तावेज पर हुई है और यह अनुमोदन के स्‍तर तक पहुंच गई है।

    बता दें कि एक अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के मुताबिक भारत को लग रहा है कि रूस उसको एनएसजी में सदस्यता दिलाने के लिए कोई भी कोशिश नहीं कर रहा है. इस मामले में रूस की ओर से लापरवाही भरा रुख अपनाया जा रहा है. वहीं रूस की ओर से भी इस बात की आशंका जताई जा रही है कि भारत अब इस मुद्दे को लेकर दबाव डाल रहा है और यही वजह है कि परमाणु रिएक्टर से संबंधित समझौतों में देरी कर रहा है.

    अखबार में छपी खबर के मुताबिक रूस के प्रधानमंत्री दिमित्री रोगोजिन ने पीएम मोदी के साथ कुछ दिन पहले ही मुलाकात में इन समझौतों को लेकर बात की थी लेकिन मोदी की ओर से कुछ भी साफ नहीं किया गया है. दरअसल अगले महीने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच मुलाकात होने वाली है. रूस इस मुलाकात के पहले दोनों देशों के बीच परमाणु रिएक्टरों को लेकर समझौते को पक्का करना चाहता है.

    अगर ऐसा नहीं हो पाता है तो इस मुलाकात का कोई मतलब नहीं होगा. लेकिन भारत ने इस मामले में कड़ा रुख अपना लिया है. दरअसल एनएसजी का सदस्य बनने में भारत की राह का सबसे बड़ा रोड़ा चीन है. चीन ने हर बार अपने वीटो पावर का इस्तेमाल कर भारत को सदस्यता देने से इनकार कर देता है. भारत ने इस मुद्दे पर चीन से बात भी की है लेकिन कोई उसके रुख में कोई बदलाव नहीं आया है.

    भारत चाहता है कि रूस अपने दोस्त चीन को मनाने में भारत की मदद करे. वैसे भी दलाई लामा के मुद्दे पर चीन पहले से भी भारत से चिढ़ा हुआ है. हाल ही में ओबीओआर सम्मेलन में भारत का हिस्सा न लेना भारत-चीन के संबंधों में खटास को उजागर करता है. वहीं रूस के साथ भी भारत की दोस्ती अब पहले जैसे नहीं रही है. भारत की ओर से लाख मना करने के बावजूद भी रूस की सेना ने पाकिस्तान के साथ युद्धभ्यास किया था.

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    आजाद सिपाही
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