डोनाल्ड ट्रम्प अपनी आगामी सऊदी अरब यात्रा का उपयोग अमेरिका के इतिहास में हथियारों के सबसे बड़े विक्रय सौदे की घोषणा के लिए करेंगे, जो कहीं 98 अरब डॉलर से लेकर 128 अरब डॉलर तक के हथियारों का हो सकता है। दस सालो मे इसका कुल मूल्य 350 अरब डॉलर तक पहुँच सकता है।

यह सौदा वॉशिंगटन पोस्ट के अनुसार प्रस्ताव की एक “आधारशिला” है, जिसमें गल्फ देशों को ‘उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नैटो) सैन्य गठबंधन ‘ जैसा गठबंधन बनाने के लिए प्रोत्साहित किया गया है, जिसे “अरब नैटो” के नाम से जाना जायेगा।

नैटो में अमेरिका सहित 28 देश शामिल है। ‘ट्रम्प’ शुरू से ही इस संगठन के आलोचक रहे हैं, लेकिन नैटो के महासचिव ‘जेन्स स्टोलेंबर्ग’ के साथ मुलाकात के बाद उन्होंने कहा कि गठबंधन “अब अप्रचलित नहीं” है।

व्हाइट हाउस ने कहा कि राष्ट्रपति इस गठबंधन को एक टेम्पलेट के रूप में प्रस्तावित करेंगे, जो आतंकवाद से लड़ेगा और ईरान पर निगरानी बनाये रखेगा।

सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने अमेरिका के 2016 के चुनाव के तुरंत बाद इस सौदे पर वार्ता शुरू कर दी थी, जब उन्होंने राष्ट्रपति के दामाद ‘जारेड कुशनेर’ से मिलने के लिए ट्रम्प टॉवर में  एक प्रतिनिधिमंडल भेजा था। कुशनेर, ट्रम्प की एक वरिष्ठ सलाहकार के रूप में सेवा कर रहे हैं ।

अरब नैटो का विचार नया नहीं है ।

मिस्र में एक नैटो के जैसा “प्रतिक्रिया बल” बनाने की बात 2015 में की गयी थी, जिसमें मिस्र, जॉर्डन, मोरक्को, सऊदी अरब, सूडान और कुछ अन्य खाड़ी देशों के लगभग 40,000 सैनिक शामिल थे।

“प्रतिक्रिया बल” के पास नैटो जैसी नियंत्रण संरचना होती, जिसमें सैनिकों को उनके देशों द्वारा वेतन दिया जाता और अमीर तेल अर्थव्यवस्थाओं से बना ‘खाड़ी सहयोग परिषद’, सेना के संचालन और प्रबंधन का वित्तपोषण करता।

लकिन, अंतर-क्षेत्रीय तनाव और सदियों पुराने विवाद ने कारण यह कभी स्थापित नहीं हो पाया।

ट्रम्प प्रशासन ने अभी तक इस समस्या को संबोधित नहीं किया है, लेकिन “अमेरिका प्रथम” का सिद्धांत हथियार के इस सौदे को आगे बढ़ा रहा है।

व्हाइट हाउस के अधिकारी ने कहा कि, अगर अरब नैटो सफल होता है तो अमेरिका इस क्षेत्र में सुरक्षा की जिम्मेवारी उस क्षेत्र में रहने वाले लोगो को सौंप सकता है और हथियारों की बिक्री के ज़रिये देश मे  नौकरियां पैदा कर सकता है।

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