रांची: स्वच्छता सर्वेक्षण 2017 ने रांची नगर निगम की पोल खोल कर रख दी है। राजधानी में रहने में गौरवान्वित होने के स्थान पर लोग अपने में शर्मिंदगी महसूस करने लगे हैं। मंत्री, मेयर समेत निगम के अधिकारी राजधानी को स्वच्छता की सूची में 25वां स्थान पर आने का दावा करनेवाले चुप बैठे हैं। मेयर सफाई एजेंसी को दोष दे रही हैं, वहीं निगम आयुक्त का कहना है कि जनसंख्या अधिक होने के कारण सर्वेक्षण में रांची पिछड़ गयी। सच्चाई, तो यह है कि रांची नगर निगम वीआइपी और आम लोगों में फर्क करता है। उसकी कार्यशैली से ही स्पष्ट है।
न्यायालय ने भी निगम पर किया कमेंट
झारखंड हाइकोर्ट ने भी कहा है कि रांची नगर निगम वीआइपी और आम लोगों में भेदभाव करता है। कोर्ट ने कहा था कि मच्छर से पूरा शहर परेशान है और निगम हाथ पर हाथ धर कर बैठा है। फॉगिंग में भी निगम पक्षपात कर रहा है। निगम पूरे शहर से टैक्स वसूलता है, लेकिन फॉगिंग को लेकर ध्यान वीआइपी क्षेत्र में अधिक रहता है। फॉगिंग में मिले केमिकल्स के असली होने पर भी कोर्ट ने संदेह जताया है। वीआइपी क्षेत्र में फॉगिंग छिड़काव में असली दवा का मिश्रण दिया जाता है, जबकि अन्य सामान्य मुहल्ले में नकली दवा का मिश्रण छिड़काव किया जाता है, जिसका असर मच्छरों पर पड़ता ही नहीं है। यह तो नाइंसाफी है। वीआइपी एरिया में फॉगिंग हो, इस पर किसी को आपत्ति नहीं है, लेकिन सामान्य मुहल्ले में भी असली दवा के मिश्रण का ही छिड़काव होना चाहिए, क्योंकि टैक्स तो सभी क्षेत्र के लोग जमा कराते हैं।
वीआइपी एरिया में सप्ताह में दो दिन फॉगिंग
वीआइपी एरिया में सप्ताह में दो दिन फॉगिंग करायी जाती है, जबकि अन्य मुहल्लों में सप्ताह में एक बार फॉगिंग हो गयी, तो उस क्षेत्र का भाग्य समझिये। सचिवालय में पांच बजे के बाद फॉगिंग करायी जाती है, जबकि यहां छह बजे के बाद कर्मचारी रहते ही नहीं हैं। जज कॉलोनी, आइएएस कॉलोनी, अशोक नगर, राजभवन, सीएम आवास क्षेत्र में प्राय: प्रत्येक दिन एक बार फॉगिंग करायी जाती है।
पिछड़ने के बाद सफाई कर्मी ही गायब हो गये
जब से रांची नगर निगम स्वच्छता की दौड़ में पिछड़ा है, उसी दिन से शहर में सफाई कार्य में लगी कंपनी के कर्मचारी भी गायब हैं। प्रत्येक दिन कचरा उठाने वाले कंपनी के सफाई कर्मी अब नहीं दिख रहे हैं। इस कारण शहर पुन: कचरे के ढेर में तब्दील हो रहा है। गली मुहल्ले में कचरे का अंबार दिखने लगा है। स्वच्छ शहरों की प्रतियोगिता में इस बार रांची नगर निगम को 117वां स्थान मिला, जबकि झारखंड के ही चास सहित गिरिडीह, हजारीबाग एवं अन्य शहरों की रैंकिंग इस प्रतियोगिता में बेहतर रही। रांची नगर निगम को इस प्रतियोगिता में पीछे ढकेलने में शहर की साफ-सफाई करने वाली कंपनी रांची एमएस डब्ल्यू का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा। कंपनी ने दो अक्तूबर को तो बड़े ही तामझाम के साथ शहर में सफाई व्यवस्था संभाली थी, लेकिन इसके बाद से ही राजधानी की दुर्गति होती चली गयी।
आबादी भी एक कारण है सर्वेक्षण में पिछड़ने का
निगम का दावा है कि शहर की आबादी करीब 12 लाख है और शहर में प्रत्येक दिन करीब दो लाख लोग बाहर से आते हैं। एजेंसी के 2500 सफाई कर्मी यहां कार्यरत हैं, जबकि निगम के अपने सफाई कर्मी भी इस कार्य से जुड़े हैं। कहा जा रहा है कि छोटे शहर में आबादी कम और बाहरी लोगों की आवाजाही कम होने के कारण सफाई भी अधिक रहती है। यही कारण है कि राजधानी को छोड़ कर अन्य छोटे शहर स्वच्छता की सूची में 100 से नीचे आ गये हैं। बड़ी आबादी वाले शहरों की तुलना करें, तो यह शहर 25वें स्थान से नीचे का स्थान रखता है।
20 वार्डों की सफाई एसेल इंफ्रा कर रही
दो अक्टूबर से एसेल इंफ्रा ने शहर की सफाई का जिम्मा लिया है। इसके बाद से सफाई का ग्राफ धीरे-धीरे नीचे गिरा है। राजधानी के कुल 55 में से 20 वार्डों की सफाई एसेल इंफ्रा कर रही है, जबकि 25 वार्ड नगर निगम के कर्मचारियों के भरोसे हैं। रांची नगर निगम डोर टू डोर कचरा कलेक्शन के मद में अच्छे-खासे रुपये वसूल करता है। बड़े अस्पतालों से 20 हजार रुपये तक लिये जाते हैं। होटल, गेस्ट हाउस, धर्मशाला, कारखाना, सिनेमा हॉल, दुकान, दफ्तर, डिस्पेंसरी, मैरिज हॉल और शैक्षणिक संस्थानों से कचरा उठाने के लिए अलग-अलग राशि वसूलता है।