नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग को लेकर अहम टिप्पणी करते हुए कहा है कि यह मेरिट आधारित व्यवस्था के खिलाफ नहीं है। शीर्ष अदालत ने अहम टिप्पणी करते हुए कहा है कि मेरिट को सिर्फ परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन के संकुचित दायरे में ही नहीं देखा जाना चाहिए। इसका बड़ा सामाजिक उद्देश्य समाज के पिछड़े हिस्से के लिए समानता सुनिश्चित करना भी है। कर्नाटक सरकार की ओर से अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग को प्रोन्नति में आरक्षण दिए जाने के आदेश को बरकरार रखने का फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को यह अहम टिप्पणी की।
यह पहला मौका है, जब सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में इस प्रावधान को मंजूरी देने के बाद प्रमोशन में आरक्षण के आदेश को बरकरार रखा है। कर्नाटक से पहले कई अन्य राज्यों ने भी एससी-एसटी वर्ग को प्रोन्नति में आरक्षण का नियम बनाया था, लेकिन अदालत से मंजूरी नहीं मिल सकी थी। अदालत ने यह कहकर उनके फैसलों को खारिज कर दिया था कि उनका आदेश 2006 में तय की गई शर्तों पर खरा नहीं उतरता है, जैसे- विभागवार अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के लोगों के प्रतिनिधि का सर्वे किया जाना चाहिए।
जजमेंट लिखने वाले जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘अनुसूचित जाति एवं जनजाति को आरक्षण दिया जाना मेरिटोक्रेसी यानी मेरिट को प्राथमिकता वाली व्यवस्था के सिद्धांत के खिलाफ नहीं है। मेरिट को संकुचित दायरे में नहीं रखा जा सकता और इसे महज परीक्षा में रैंक के तौर पर ही नहीं देख सकते। इसे समाज में समानता को बढ़ाने के तौर पर भी देखना चाहिए। इसके अलावा लोक प्रशासन में विविधता का ख्याल भी रखा जाना चाहिए।’