रांची। झारखंड के तीसरे चरण में कोल्हान की दोनों लोकसभा सीट चाईबासा और जमशेदपुर में मतदान होना है। दोनों ही लोकसभा क्षेत्र में मुख्य मुकाबला भाजपा और महागठबंधन के बीच होता दिख रहा है। इसी बीच सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा चाईबासा में होने जा रही है तो मंगलवार को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की सभा होनी है। इन दोनों नेताओं की सभा के बाद ही कोल्हान का असली दृश्य सामने आयेगा। चाईबासा में पिछले चुनाव में गीता कोड़ा ने भाजपा प्रत्याशी लक्ष्मण गिलुआ को जबरदस्त टक्कर दी थी। जय भारत समानता पार्टी, जो चाईबासा तक ही सीमित थी, उसकी प्रत्याशी और पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा मोदी लहर में भी भाजपा के खिलाफ चट्टान की तरह खड़ी थीं। छह में से तीन लोकसभा क्षेत्र में तो गीता कोड़ा ने भाजपा की एक नहीं चलने दी थी।
चाईबासा, सरायकेला और चक्रधरपुर विधानसभा क्षेत्र में लक्ष्मण गिलुआ आगे थे। खासकर सरायकेला विधानसभा क्षेत्र में लक्ष्मण गिलुआ की बढ़त का अंतर निर्णायक साबित हुआ था। इसके बाद भी गीता कोड़ा अपने दम पर दो लाख 15 हजार वोट ले आयी थीं। कोल्हान में कांग्रेस के कभी दिग्गज नेता रहे बागुन सुंब्रुई के निधन के बाद पार्टी में बड़े नेताओं का अभाव रहा है। ऐसे में गीता कोड़ा का पार्टी में आना और मधु कोड़ा का समर्थन कांग्रेस के लिए मजबूती का कारण बन सकता है। मधु कोड़ा वर्ष 2009 में चाईबासा से लोकसभा चुनाव जीते थे, लेकिन फिर भ्रष्टाचार के मामले में जेल जाने के कारण वह वर्ष 2014 का चुनाव लड़ने से अयोग्य हो गये थे। उन्होंने अपनी पत्नी को मैदान में उतारा, लेकिन वह चुनाव हार गयीं, मगर यह संकेत जरूर दे गयीं कि उनके लिए अभी आसमां और भी हैं। मधु कोड़ा पर भ्रष्टाचार के कई गंभीर आरोप लगे और तब कांग्रेस ने उनसे किनारा कर लिया। लेकिन एक बार फिर सियासत की जरूरत और चुनावी समीकरण को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने मधु कोड़ा की पार्टी को अपने में विलय करा कर एक नयी राजनीतिक चाल चलने की कोशिश की है। गीता कोड़ा सफल राजनेता की तरह काम कर रही हैं।
उन्होंने अपने को झारखंड की राजनीति में स्थापित कर लिया है। पिछले चुनाव में भले ही वह 87 हजार वोट से हार गयी थीं, लेकिन विपक्ष के अन्य दलों कांग्रेस, झाविमो के वोट को मिला दिया जाये, तो वह भाजपा से लगभग 80 हजार वोट ज्यादा होता है। लक्ष्मण गिलुआ दो बार चाईबासा से चुनाव जीते हैं। एक बार तब, जब देश में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की लहर थी और एक बार तब, जब मोदी लहर में पूरा देश सराबोर था। लेकिन इस बार सीन कुछ अलग है।
पिछले चुनाव में विपक्षी खेमा बंटा हुआ था, लेकिन इस बार महागठबंधन कर चुनाव लड़ रहे हैं। यहां यह उल्लेख करना जरूरी है कि चाईबासा की छह विधानसभा सीट पर भाजपा का पिछले विधानसभा चुनाव में खाता तक नहीं खुला था। लोगों के टेंपरामेंट में पिछले चुनाव की तुलना में इस बार परिवर्तन दिख रहा है। पिछले चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ और मोदी की लहर में जनता बह गयी थी। इस बार सीन कुछ अलग है। जानकार मानते हैं कि चाईबासा में अभी भाजपा और कांग्रेस एक-दूसरे को कड़ी टक्कर दे रहे हैं, लेकिन मोदी की सभा के बाद फिजां बदल सकती है। इस क्षेत्र में धर्मांतरित आदिवासियों की संख्या काफी है, लेकिन वह निर्णायक नहीं है। हो जनजाति का प्रभाव इस क्षेत्र में व्यापक है। कांग्रेस का प्रभुत्व इस क्षेत्र में लंबे समय तक रहा है। राहुल की सभा के बाद ही यह बात खुल कर सामने आयेगी कि जनता का मिजाज किस तरफ है।
वहीं जमशेदपुर सीट भाजपा का गढ़ रहा है। मुख्यमंत्री रघुवर दास का भी यह कर्मक्षेत्र है। अभी भाजपा का इस सीट पर कब्जा है। भाजपा के निवर्तमान सांसद विद्युत वरण महतो ने राजनीति की शुरुआत झामुमो से की थी और वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के समय भाजपा में चले गये। महागठबंधन में संयुक्त प्रत्याशी झामुमो विधायक चंपई सोरेन बनाये गये हैं। उन्हें शिबू सोरेन का करीबी माना जाता है। चंपई सोरेन एक बार 1999 में सिंहभूम लोस सीट से झामुमो के टिकट पर दांव आजमा चुके हैं। तब इन्हें हार मिली थी। इस बार इनका मुकाबला पुराने साथी विद्युत वरण महतो से है। दोनों नेता लंबे समय तक झामुमो में एक साथ थे। चंपई सोरेन और विद्युत वरण महतो झामुमो में करीब 25 साल एक साथ रहे।
झारखंड अलग राज्य आंदोलन को लेकर वह कई बार चंपई सोरेन एवं अन्य झामुमो नेताओं के साथ रेल रोको, नाकेबंदी एवं झारखंड बंद में शामिल रहे। विद्युत की महतो तो चंपई की आदिवासी बहुल इलाके में अच्छी पैठ है। पिछले तीन दशक से इस सीट पर झामुमो और भाजपा के बीच टक्कर होती रही है और पांच बार भाजपा और पांच बार झामुमो को जनता ने चुना।
एक बार 2011 के उपचुनाव में झाविमो से डॉ अजय कुमार जीते थे। जातीय आधार पर देखा जाये, तो इस लोकसभा क्षेत्र में महतो, आदिवासी और शहरी मतदाता निर्णायक हैं। इनमें से दो भी किसी एक प्रत्याशी के साथ चला गया, तो दूसरे प्रत्याशी का बाजा बजना तय है। झामुमो ने चंपई को मैदान में उतारा है। इसके पीछे यहां की साढ़े चार लाख आदिवासी मतदाता ही हैं। जातिगत आधार पर देखें तो इस क्षेत्र में कुड़मी वर्ग के करीब 2.50 लाख वोट हैं। भाजपा प्रत्याशी विद्युतवरण महतो इसी समुदाय से आते हैं। करीब 4.50 लाख मतदाता आदिवासी समुदाय के हैं। इसमें संथाल की आबादी करीब 2.75 लाख है। पोटका और घाटशिला विधायक आदिवासी समुदाय के हैं। भाजपा इन वोटरों को गोलबंद करने के लिए पूरा जोर लगा चुकी है। भाजपा की सबसे बड़ी ताकत शहरी वोटर हैं। शहरी वोटरों का झुकाव इस बार भी भाजपा प्रत्याशी की ओर हुआ, तो झामुमो का रास्ता कठिन साबित होगा। जमशेदपुर में शहरी वोटर लगभग पांच लाख हैं और इनका झुकाव भाजपा की तरफ रहता है। झामुमो की नजर जमशेदपुर संसदीय सीट के आदिवासी समुदाय के वोटरों पर भी है। सोरेन के उम्मीदवार बनने से आदिवासी मतों का बिखराव कम होगा। संथाल वोट चंपई के पक्ष में आ सकते हैं। मुख्यमंत्री रघुवर दास का विधानसभा क्षेत्र इसी लोकसभा में आता है और वह लगातार पांच बार से इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को सबसे ज्यादा मत जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा में ही मिला था। मुख्यमंत्री के प्रभाव का फायदा भी भाजपा प्रत्याशी को मिलेगा। मुस्लिम मतदाता भी दो लाख के करीब है, जो भाजपा के लिए चुनौती खड़ी कर सकते हैं। बहरहाल इन दोनों सीटों को अपने कब्जे में करने के लिए भाजपा और महागठबंधन के सबसे बड़े स्टार प्रचारक एक दिन के अंतराल पर आ रहे हैं। देखना दिलचस्प होगा कि इस बार जनता फिर से मोदी के साथ जाती है या राहुल को चुनती है।