एक आदमी
रोटी बेलता है
एक आदमी रोटी खाता है
एक तीसरा आदमी भी है
जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है
वह सिर्फ रोटी से खेलता है
मैं पूछता हूं
यह तीसरा आदमी कौन है ?
मेरे देश की संसद मौन है
-सुदामा पांडेय ‘धूमिल’

आजाद सिपाही संवाददाता
औरंगाबाद। शुक्रवार की सुबह रेल हादसे के बाद रेलवे ट्रैक पर बिखरी मजदूरों की ये रोटियां ठीक यही सवाल कर रही हैं। जालना की एक सरिया फैक्ट्री में सभी काम करते थे। 45 दिन पहले लॉकडाउन के चलते फैक्ट्री बंद हो गयी। रोज कमाने-खाने वाले मजदूरों को दो वक्त की रोटी के लाले पड़ गये। ज्यादातर यूपी, बिहार और मध्य प्रदेश के थे। नाम की जमा-पूंजी थी। किसी तरह महीना भर काम चलाया। फिर सामाजिक संगठनों और सरकार के भरोसे। पेट भरने की ये मदद दो या तीन दिन में एक बार ही नसीब हो रही थी। इस बीच एक खबर आयी। पता लगा कि सरकार दूसरे राज्यों के मजदूरों को घर भेजने के लिए औरंगाबाद या भुसावल से कोई ट्रेन चलाने वाली है। जालना से औरंगाबाद की दूरी 50 किमी है। मध्य प्रदेश के 20 मजदूर रेलवे ट्रैक से सफर पर निकल पड़े। पास कुछ था तो बस, 150 रोटियां और एक टिफिन चटनी। 16 के लिए यह यात्रा अंतिम यात्रा साबित हुई।

मजदूरों ने सोचा, घर पहुंच जायेंगे। गुरुवार शाम मिलकर 150 रोटियां बनायीं। एक टिफिन में चटनी भी थी, ताकि सूखी रोटी मुंह से पेट तक का सफर आसानी से कर सके। कुछ देर बाद सब भुसावल के लिए निकल पड़े। सभी की उम्र 21 से 45 साल के बीच थी। कुछ शहडोल के थे, तो कुछ कटनी के। औरंगाबाद जिले के करमाड तक पहुंचे, तो रात गहरी हो चली थी। सोचा, खाना खाकर कुछ आराम कर लिया जाये।
सज्जन सिंह इसी जत्थे में शामिल थे। वह बच गये। कहते हैं, भूख लगी थी साहब। ट्रैक पर ही बैठकर खाना खाने लगे। हमें वह साफ और सुरक्षित लगा। खाना खत्म हुआ। कुछ चाहते थे कि सफर फिर शुरू किया जाये। कुछ का दिल कर रहा था कि थोड़ा सुस्ता लिया जाये। सहमति आराम करने पर बनी। भूखे पेट को रोटी मिली थी। इसलिए पटरी का सिरहाना और गिट्टियां भी नहीं अखरीं। सो गये। नींद खुली तो भयानक मंजर था। मेरे करीब इंदरलाल सो रहा था। उसने मुझे खींच लिया। मैं जिंदा हूं।

सज्जन आगे कहते हैं, आंख खुली तो होश आया। देखा मेरा बैग ट्रेन में उलझ कर जा रहा है। हमने सोचा था कि ट्रेनें तो बंद हैं। इसलिए ट्रैक पर कोई गाड़ी नहीं आयेगी। आसपास झाड़ियां थीं। लिहाजा ट्रैक पर ही झपकी का ख्याल आया। ट्रेन जब रुकी, तब तक तो सब खत्म हो चुका था। 16 साथियों के क्षत-विक्षत शव ट्रैक पर पड़े थे। किसी को पहचान पाना मुश्किल था। सज्जन के मुुताबिक, पहले तो लगा कि कोई बुरा सपना देखा है। पल भर में हकीकत पर यकीन हो गया। 20 में से चार जिंदा बचे। डर को थोड़ा दूर किया। ट्रैक से कुछ दूर बने एक घर पहुंचे। मदद मांगी। उन्होंने पानी पिलाया। फिर पुलिस को जानकारी दी।
आधे घंटे बाद पुलिस पहुंची। उसने अपना काम शुरू किया। रुंधे गले को संभाल कर और भीगी आंखों को पोंछकर वीरेंद्र शांत आसमान की तरफ देखते हैं। फिर कहते हैं, जिन लोगों के साथ कुछ घंटे पहले बैठकर रोटी खायी थी, अब उनकी लाशें मेरे सामने हैं। कुछ तो मेरे बहुत करीबी दोस्त थे। अब क्या कहूंगा उनके घरवालों से? कैसे सामना करूंगा उनका? मेरा फोन, बैग सब गायब हैं। पीठ में चोट है। ये जख्म भर जायेगा। लेकिन दिल में जो नासूर पैदा हो गया है, वो तो लाइलाज रहेगा। ताउम्र।

न पैसे मिल रहे थे, न पास बन पा रहा था, इसलिए पैदल ही निकल पड़े
औरंगाबाद। लॉकडाउन के 45 दिन से ज्यादा बीत चुके थे। मजदूरी का काम भी बंद था। पैसा खत्म हो रहा था। ऐसे में महाराष्ट्र के जालना में रहने वाले 20 मजदूर पिछले कुछ दिन से घर जाना चाहते थे। इन्हें पता चला कि भुसावल या औरंगाबाद से मध्यप्रदेश के भोपाल के लिए ट्रेन मिल जायेगी। फिर क्या था। सभी ने निकलने का फैसला लिया। सोचा था कि ट्रेन मिली तो ठीक, नहीं तो पैदल ही घर तक का सफर तय किया जायेगा। सड़क पर पुलिस का पहरा था। इसलिए ट्रेन की पटरियों का रास्ता चुना। यही रास्ता उन्हें मौत तक ले गया। पैदल चलते-चलते औरंगाबाद में करमाड स्टेशन के पास पहुंच गये। इतना थक गये कि पटरियों पर ही लेट गये। सुबह मालगाड़ी की चपेट में आकर इनमें से 16 की मौत हो गयी। इस हादसे में बच गये दो मजदूरों ने बताया कि नींद टूटी, तो उनके सामने उसके 16 साथियों की लाशें बिखरी हुई थीं।
अपने साथी को खोने वाले मजदूर वीरेंद्र सिंह ने बताया, ठेकेदार हमें पैसे दे पाने की स्थिति में नहीं था। वादा किया कि सात मई को पैसे मिलेंगे। लेकिन सात तारीख को भी पगार नहीं मिली। मध्यप्रदेश में हमारे परिवार को भी हमारी जरूरत थी। घर के लोग परेशान हो रहे थे। इसलिए हम एक हफ्ते से पास बनवाने की कोशिश में थे। दो-तीन बार कोशिश कर चुके थे, लेकिन मदद नहीं मिल पा रही थी। वीरेंद्र सिंह ने बताया, जब कोई रास्ता नहीं बचा, तो हमने तय किया कि पटरियों के रास्ते हम सफर तय करते हैं। पहले औरंगाबाद पहुंचेंगे और वहां से आगे का रास्ता तय करेंगे। हम जालना से गुरुवार शाम सात बजे रवाना हुए। कई किलोमीटर का रास्ता तय कर लिया। देर रात जब थक गये, तो कुछ-कुछ दूरी पर हमारे साथी पटरियों पर बैठने लगे। मैंने कई साथियों से कहा कि पटरियों से दूर रहो। लेकिन जो साथी आगे निकल गये थे, वे पटरी पर लेट गये। उनकी नींद लग गयी। हम पटरी से थोड़ा दूर थे, इसलिए बच गये। हमने मालगाड़ी को आते देखा। मालगाड़ी के ड्राइवर ने हॉर्न भी बजाया, लेकिन उसकी रफ्तार तेज थी। हमने आवाज दी, लेकिन तब तक सब कुछ खत्म हो चुका था। हम दौड़कर नजदीक पहुंचे, तब तक मालगाड़ी गुजर चुकी थी। हादसे के बाद मौके पर पहुंची पुलिस टीम ने स्थानीय लोगों की सहायता से शव के टुकड़ों को बटोरा।
इस हादसे में बाल-बाल बचे और हॉस्पिटल में भर्ती सज्जन सिंह ने बताया कि हमारी आंख लग गयी थी। हम इतना थक गये थे कि मालगाड़ी की आवाज ही नहीं आयी। हम लोग पटरी से थोड़ा दूर थे। हमने बैग पीठ पर लाद रखा था। बैग लादे ही हम उसके सहारे टिककर सो गये। जब मालगाड़ी गुजरी, तो बैग खींचते हुए ले गयी। जान तो बच गयी, लेकिन चोटें आयीं। जो साथी बैग सहित पटरी के बीच में थे, वे नहीं बच सके।

उमरिया और शहडोल जिले के थे सारे मजदूर, परिजनों को हादसे का पता नहीं
उमरिया/शहडोल। औरंगाबाद ट्रेन हादसे में जान गंवाने वाले सभी 16 मजदूरों की पहचान हो गयी है। मृतक मजदूर एमपी के दो जिलों, उमरिया और शहडोल के थे। एक मृतक मजदूर संतोष नापित के बारे में अभी विस्तृत जानकारी नहीं मिल पायी है।
मृतकों में शहडोल के धनसिंग गोंड, निरवेश सिंग गोंड, बुद्धराज सिंग गोंड, रविंद्र सिंग गोंड, सुरेश सिंह कौल, राजबोहरम पारस सिंग, धर्मेंद्रसिंग गोंड, ब्रिजेश भेयादीन, श्रीदयाल सिंग, दिपक सिंग और अशोक सिंग, उमरिया के अच्छेलाल सिंग, बिगेंद्र सिंग चैनसिंग, प्रदीप सिंग गोंड, मुनीमसिंग शिवरतन सिंग, नेमशाह सिंग और चमदु सिंग तथा संतोष नापित शामिल हैं।
दुर्घटना के आठ घंटे बाद तक मृतकों के परिवार के लोगों को इस बारे में सरकार की ओर से कोई सूचना नहीं मिली। हालांकि शहडोल के एसपी ने बताया कि मृतकों की लिस्ट स्थानीय पुलिस को मिली है। उन्होंने मृतकों के परिजनों को हरसंभव मदद देने का आश्वासन भी दिया।

उमारिया जिले के पाली जनपद अंतर्गत ग्राम पंचायत ममान के ग्राम नेउसा के तीन युवक और ग्राम ममान के एक युवक की मौत हुई है। सरकारी अधिकारियों ने परिजनों को मौत की खबर दी है। परिजनों को अभी घटना के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। मृतकों की पहचान सुनिश्चित होने के बाद भी अधिकांश के परिजनों को दुर्घटना के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होना आश्चर्यजनक है। कई परिजनों ने बताया कि उन्हें दुर्घटना के बारे में आसपास के लोगों ने बताया है, लेकिन कोई सरकारी अधिकारी उनसे नहीं मिला।

Share.

Comments are closed.

Exit mobile version