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    Home»Jharkhand Top News»केंद्र बकाया दे दे, तो कुछ बात बने
    Jharkhand Top News

    केंद्र बकाया दे दे, तो कुछ बात बने

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskMay 27, 2020No Comments6 Mins Read
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    कोरोना संकट ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया है। अर्थव्यवस्थाएं बर्बादी की कगार पर पहुंच गयी हैं। भारत भी भयानक मंदी की कगार पर खड़ा है और स्वाभाविक तौर पर झारखंड पर भी इसका असर पड़ रहा है। दो महीने से आर्थिक गतिविधियां पूरी तरह ठप हैं, तो आमदनी भी शून्य हो गयी है। ऐसे में झारखंड जैसे राज्य के लिए एक विशेष आर्थिक खुराक की जरूरत है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पहले ही कह चुके हैं कि राज्य की माली हालत पूरी तरह खस्ता है और खजाना खाली है। इस संकट से उबरने के लिए राज्य को केंद्र की मदद की जरूरत है। यह मदद कोई विशेष पैकेज या कर्ज के रूप में नहीं, बल्कि बकाये का भुगतान कर हो सकती है। झारखंड को आगे बढ़ने के लिए हर हाल में इसका बकाया चाहिए, वरना हालत और गंभीर हो जायेगी। मुख्यमंत्री बार-बार यह मुद्दा उठा चुके हैं और तमाम राजनीतिक दलों से इसमें मदद का आग्रह कर चुके हैं। अब समय आ गया है, जब राज्य के तमाम राजनीतिक-सामाजिक संगठनों को राजनीति भूल कर झारखंड के हितों के लिए आगे आना चाहिए और मिल कर केंद्र से अपने बकाये का भुगतान करने की मांग करनी चाहिए। यदि झारखंड को उसका बकाये का भुगतान कर दिया जाता है, तो फिर खनिज संपदा से भरपूर इस राज्य को तमाम अवरोधों को बावजूद आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता है। झारखंड की माली हालत और इस संकट के निवारण के उपायों को रेखांकित करती आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।

    कोरोना संकट ने पूरी दुनिया की कमर तोड़ कर रख दी है और भारत इससे अछूता नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए 20 लाख करोड़ रुपये के विशेष आर्थिक पैकेज का एलान किया है, लेकिन जहां तक झारखंड का सवाल है, इसके सामने संकट दूसरी तरह का है। झारखंड की आर्थिक हालत कोरोना संकट से पहले से ही बेहद खराब है। राज्य सरकार के पास पैसा ही नहीं है। खाली खजाने के सहारे बहुत दिनों तक काम नहीं किया जा सकता है और जून महीने से यह संकट गहराने की आशंका है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सत्ता संभालने के बाद ही कहा था कि उन्हें विरासत में खाली खजाना मिला है और उनका पहला प्रयास इस खजाने को भरने के साथ फिजूलखर्ची पर रोक लगाने का होगा। उन्होंने नये साल के बजट में अपने सरकार के इस संकल्प को परिभाषित भी किया और इसी रास्ते पर आगे भी बढ़े। फिजूलखर्ची रोकने के लिए कुछ योजनाओं पर उन्होंने ब्रेक भी लगाया और कुछ दूसरे कदम भी उठाये, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। कोरोना के इस संकट ने राज्य की अर्थव्यवस्था को बर्बादी की कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। वैसे इस संकट के शुरू होने से पहले भी हेमंत सोरेन कह चुके हैं कि झारखंड को किसी की कृपा नहीं चाहिए। उसे अपना बकाया मिल जाये, तो राज्य का काम चल निकलेगा।
    पिछले दो महीने में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने लगभग हर फोरम पर अपनी बात रखी है। चाहे प्रधानमंत्री के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग हो या केंद्रीय वित्त मंत्री-गृह मंत्री के साथ बातचीत, हेमंत ने हमेशा राज्य के बकाये का भुगतान करने की मांग दोहरायी है। उन्होंने विपक्षी नेताओं की बैठक में भी झारखंड के इस मुद्दे को उठाया है। बकाये के तत्काल भुगतान की उनकी मांग इसलिए भी पूरी तरह उचित है, क्योंकि दूसरे स्रोतों से होनेवाली आय झारखंड का खर्च चलाने के लिए पर्याप्त नहीं है। ताजा आंकड़ों के अनुसार, झारखंड को केंद्र से करीब 74 हजार करोड़ रुपये पाने हैं। इसमें अकेले केंद्र सरकार की कंपनियों पर ही 50 हजार करोड़ रुपये बकाया हैं। जीएसटी और केंद्रीय करों में राज्य की हिस्सेदारी के करीब 24 हजार करोड़ रुपये बकाया हैं। केंद्रीय योजनाओं में सहायता मद की रकम इससे अलग है। यदि 74 हजार करोड़ रुपये झारखंड को मिल जाते हैं, तो राज्य की गाड़ी पटरी पर आ जायेगी।
    कोरोना संकट ने झारखंड के भविष्य को अंधकार में धकेल दिया है। यहां के करीब साढ़े छह लाख लोग देश के दूसरे हिस्सों में काम कर रहे थे और कोरोना के कारण इनमें से ढाई लाख लोग वापस आ चुके हैं। बाकी चार लाख लोग भी लौटने की प्रक्रिया में हैं। ये सभी लोग काम करनेवाले हैं और इन्हें लंबे समय तक बिना काम के नहीं रखा जा सकता है। इतनी बड़ी संख्या में काम के अवसर पैदा करना एक बड़ी चुनौती है। हेमंत सोरेन हालांकि बार-बार कह रहे हैं कि राज्य सरकार इनके रोजगार की व्यवस्था करेगी, लेकिन यदि पैसा ही नहीं होगा, तो फिर योजनाएं धरातल पर कैसे उतरेंगी। इसलिए झारखंड को हर हाल में उसका बकाया चाहिए। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक राज्य में अभी करीब 10 हजार करोड़ की योजनाएं लंबित हैं। यदि इन्हें दोबारा शुरू कर दिया जाता है, तो इसमें पांच से छह हजार लोगों को तत्काल काम मिल सकता है। लेकिन बड़ा सवाल यही है कि यह 10 हजार करोड़ आयेगा कहां से। झारखंड सरकार का खजाना इस बोझ को सहन करने की हालत में नहीं है। ऐसे में उसकी निगाह स्वाभाविक तौर पर अपने बकाये पर ही टिकी हुई है।
    कोरोना संकट में जिस तरह राजनीति भूल कर झारखंड के सभी राजनीतिक संगठनों ने एकजुट होकर काम किया है और कर रहे हैं, अब उन्हें इस मुद्दे पर भी एकजुटता दिखानी होगी। अब समय आ गया है, जब तमाम राजनीतिक दल और नेता मिल कर ऐसा वातावरण बनायें और केंद्र पर दबाव बढ़ायें कि झारखंड को उसका बकाया पैसा मिल जाये। झारखंड को अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए किसी वैशाखी की जरूरत नहीं है और मुख्यमंत्री कह भी चुके हैं कि हमारे पास संसाधन हैं। हम इन साढ़े छह लाख प्रवासियों को घर में ही काम दे सकते हैं और पलायन के अभिशाप से इन्हें मुक्त कर सकते हैं। इसलिए यह सभी राजनीतिक दलों के लिए झारखंड के हित में सक्रिय होकर आगे आने का समय है। सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेताओं का आज यह पहला कर्तव्य होना चाहिए कि वे झारखंड के हितों के लिए एकजुट हो जायें और एक आवाज में केंद्र से अपना बकाया मांगें। यदि झारखंड को उसका बकाया मिल जाता है, तो फिर यह राज्य किसी का मोहताज नहीं रह जायेगा और इसके विकास की गाड़ी को कोई आगे बढ़ने से नहीं रोक सकेगा।

    If Center gives arrears some thing should be done
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