- जिला प्रशासन के प्रयास से थम गया कोरोना का संक्रमण
- अब बाद के दिनों की चुनौती के लिए प्रशासन है तैयार
कोरोना के खिलाफ जारी लड़ाई ने भारत को, इसके 130 करोड़ लोगों को और पूरी व्यवस्था को कई नयी चीजें सिखायी हैं। इस लड़ाई ने यह भी दिखाया है कि इस तरह की जंग में समाज के हर वर्ग की अहम भूमिका होती है। चाहे वह अमीर हो या गरीब, उच्च शिक्षित हो या अनपढ़ और अधिकारी हो या कर्मचारी। इस लड़ाई ने समाज के सामने कई ऐसे चेहरों को लाकर खड़ा कर दिया है, जिनकी क्षमता और संकल्प को अब तक दुनिया ने नहीं देखा था। ये चेहरे स्वास्थ्य कर्मियों के हैं, राजनीतिज्ञों के भी हैं, प्रशासनिक अधिकारियों के भी हैं, विद्यार्थियों के भी हैं और आम लोगों के भी। इन चेहरों ने कोरोना के खिलाफ लड़ाई में अपनी अहम भूमिका निभायी है। आजाद सिपाही ब्यूरो की इस खास रिपोर्ट में आज हम आपको एक ऐसे ही अफसर के बारे में बता रहे हैं, जिनका नाम है मुकेश कुमार। झारखंड में रांची के बाद कोरोना से सर्वाधिक प्रभावित बोकारो जिले के उपायुक्त मुकेश कुमार ने अपने जिले में कोरोना की रफ्तार को रोकने के लिए जो कुछ किया, वह तो प्रशंसनीय है ही, उन्होंने बोकारो को कोरोना संकट के बाद पैदा होनेवाली चुनौतियों के लिए भी पूरी तरह तैयार कर लिया है। भारतीय प्रशासनिक सेवा के इस अधिकारी ने कोरोना के खिलाफ लड़ाई में अपने पास उपलब्ध संसाधनों का भरपूर इस्तेमाल किया है और उनके द्वारा विकसित ‘बोकारो मॉडल’ को न केवल राज्य के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक मिसाल बना दिया है।
खतरनाक महामारी कोरोना के खिलाफ जारी जंग में हर किसी का ध्यान स्वाभाविक तौर पर इस संक्रमण को फैलने से रोकने या बचने पर केंद्रित है। लेकिन क्या आप सोच सकते हैं कि एक अधिकारी की दूरदृष्टि और दृढ़संकल्प ने न केवल इस संक्रमण को फैलने से रोका है, बल्कि कोरोना संकट के बाद के दौर में पैदा होनेवाली चुनौतियों के लिए भी खुद को अभी से तैयार कर लिया है। झारखंड में एक ऐसे ही अधिकारी हैं, जिनका नाम है मुकेश कुमार। भारतीय प्रशासनिक सेवा के 2009 बैच के अधिकारी मुकेश कुमार ने देश भर में चर्चित ‘भीलवाड़ा मॉडल’ से एक कदम आगे बढ़ा लिया है।
झारखंड में हिंदपीढ़ी के बाद कोरोना संक्रमण का दूसरा मामला बोकारो से आया, जब तेलो गांव की एक महिला पॉजिटिव पायी गयी। इसके बाद एक-एक कर 10 मरीज कोरोना संक्रमित मिले। लेकिन उसके बाद मानो कोरोना की रफ्तार जिले में थम गयी। पिछले दो सप्ताह से जिले में कोई भी नया मामला सामने नहीं आया है। यह संभव हुआ उपायुक्त मुकेश कुमार के संकल्प और काम करने की उनकी अनोखी शैली के कारण। कोरोना का मामला सामने आने के बाद उपायुक्त ने उस इलाके को पूरी तरह सील कर दिया और वहां के लोगों की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए 88 सीसीटीवी कैमरे की मदद लेनी शुरू कर दी। पूरे इलाके को सेनिटाइज किया गया और इलाके के लोगों की परेशानियों को दूर किया। राशन, खाना, सब्जी, दवा और रोजमर्रा की जरूरतों के लिए लोगों को बाहर नहीं निकलना पड़ा। जिस समय मुकेश यह सब कर रहे थे, तभी बाहर फंसे प्रवासी मजदूरों और विद्यार्थियों की वापसी की जमीन तैयार होने लगी थी।
सामने आनेवाली इस बड़ी चुनौती का सामना करने के लिए मुकेश ने तकनीक का सहारा लेना उचित समझा। उन्होंने जिला प्रशासन के कुछ अधिकारियों के साथ मिल कर एक प्रोजेक्ट तैयार किया और फिर स्थानीय युवाओं को जोड़ा। हर दिन यह टीम प्रोजेक्ट को कार्यरूप देने में जुटती और देर रात तक काम करती। इसका परिणाम तब सामने आया, जब ‘बोकारो सरल’ के रूप में एक डाटाबेस तैयार हुआ। मुकेश कुमार बताते हैं, हमने कोरोना संकट के बाद पैदा होनेवाली चुनौतियों पर ध्यान लगाया। बोकारो सरल में जिले के तमाम प्रवासियों का पूरा विवरण दर्ज किया जा रहा है। वह बताते हैं, कोटा से जब जिले के विद्यार्थियों को लाने की बात हुई, तब हमने अपने जिले के विद्यार्थियों के मोबाइल पर इसका लिंक भेज दिया। सभी बच्चों ने उस लिंक पर अपना विवरण दर्ज कर दिया और इन बच्चों के बोकारो पहुंचने के पहले ही हमारे पास न केवल उनके बारे में, बल्कि उनके अभिभावकों के बारे में भी सारी जानकारी तैयार थी। प्रवासी मजदूरों के मामले में भी ऐसा ही हुआ। जिले के करीब 12 सौ मजदूरों ने पहले दो दिन में राज्य कंट्रोल रूम में फोन किया। हमें वह फोन नंबर दिया गया। हमने एक-एक मजदूर से संपर्क किया और हमारे पास 19 हजार के आसपास फोन नंबर एकत्र हो गये। इसके बाद हमने उन सभी नंबरों पर बोकारो सरल का लिंक भेजा और जवाब मंगवा लिया। मजदूरों का पूरा विवरण हमारे पास तैयार हो गया। यहां तक कि वे क्या काम कर सकते हैं और क्या करते हैं, इसकी जानकारी हमारे पास तैयार है। मुकेश बताते हैं, कोरोना का संकट खत्म होने के बाद हमें इस आंकड़े की जरूरत पड़ेगी। हमारे पास वैसे हर मजदूर के बारे में पक्की जानकारी रहेगी, तो उसकी दक्षता के अनुरूप उसे काम दिलाने में हम सफल हो सकेंगे।
मुकेश कुमार के साथ अभी करीब 50 लोगों की टीम काम कर रही है, जो लगातार इस डाटाबेस को अपडेट करने में जुटी हुई है। इस टीम में स्थानीय युवाओं को जोड़ा गया है। जिले के हर चेकपोस्ट पर पूरा विवरण उपलब्ध है।
इसके साथ ही आज जिले का कोई मजदूर बाहर से यहां आता है, तो उसके बारे में पूरी जानकारी पहले से प्रशासन के पास रहती है। रेड जोन से आनेवाले प्रत्येक मजदूर का सैंपल लिया जा रहा है, जबकि ऑरेंज जोन से आनेवाले मजदूरों में से 20 प्रतिशत का सैंपल लिया जा रहा है। ग्रीन जोन से आनेवाले मजदूरों में रैंडम सैंपलिंग की जाती है। वैसे बाहर से आनेवाले प्रत्येक मजदूर की स्क्रीनिंग तो होती ही है। इसलिए संक्रमण को फैलने से रोकने का काम भी होता है और यदि किसी मजदूर की जानकारी पहले से नहीं है, तो वहां दर्ज कर ली जाती है।
तकनीक के इस बेहतरीन इस्तेमाल से कोरोना के खिलाफ लड़ाई लड़नेवाले मुकेश कुमार पटना विश्वविद्यालय से गणित में स्नातक हैं और बाद में उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में पीजी किया।
उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में एम.फिल की डिग्री भी ली। मुकेश कुमार की पहली पोस्टिंग पाकुड़ में एसडीओ और एसडीएम के रूप में हुई। हजारीबाग के उपायुक्त के रूप में स्वच्छ भारत अभियान में अग्रणी भूमिका निभानेवाले मुकेश कुमार को ‘पेंट माय सिटी अभियान’ से पहचान मिली। उनके कार्यकाल में हजारीबाग पहला आइएसओ प्रमाणित कलेक्ट्रेट बना।
अब पूरे झारखंड को ही नहीं, पूरे देश में मुकेश कुमार द्वारा विकसित मॉडल को अपनाने की जरूरत है, ताकि कोरोना के खिलाफ लड़ाई ही नहीं, बाद में इसका इस्तेमाल किया जा सके।