अपना घर बार छोड़कर यह श्रमिक जिस शहर को बसाने गए थे, उस शहर को महानगर बना दिया। वहां किसी तरह जिंदगी गुजार रहे थे लेकिन अब उस शहर के नाम से भी इन्हें डर लगता है। दिल्ली, कोलकाता, मुंबई जैसे महानगरों में रहकर इन श्रमिकों ने काफी सपने संजोए थे, उन्हें लग रहा था कि यह शहर अपना है लेकिन जब लॉकडाउन हुआ तो सभी अपने बेगाने हो गए। जिस मालिक के परिवार को खून-पसीना एक कर खुश रखने में लगे हुए थे, उनकी आर्थिक समृद्धि के स्रोत बने हुए थे, उन्होंने भी मुंह फेर लिया।

कोरोना संकट से बचने के लिए भारत सरकार ने जब देशव्यापी लॉकडाउन कर दिया तो इन पर आफत आ गई। जिसके यहां काम कर रहे थे, उन्होंने अपने गेट पर आने से मना कर दिया, भगा दिया। इसी तरह खाना का जुगाड़ लगा रहे थे तो मकान मालिक ने रूम खाली करने को कह दिया। 

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के उत्तम नगर में रहने वाले प्रवासी बिहारी सोच रहे थे कि यहां के जंगल को साफ उत्तम नगर तो उन्होंने ही बसाया है, यह अपना है। झुग्गी झोपड़ी बनाकर रहते थे, स्थानीय दबंगों को पैसा भी देते थे। लेकिन प्रकृति का कहर शुरू होते ही दबंगों ने भी कहर बरपाना शुरू कर दिया। पास में जो पैसा था वह खत्म हो गय, जिसके बाद शुरू हुई असली आफत। डंडारी के रहने वाले सोहन, भोला, विनय पासवान आदि बताते हैं कि 25 मार्च को लॉकडाउन लगने के बाद काम बंद हो गया, रहने और खाने पर आफत आ गई। दिल्ली की सरकार सिर्फ कहती रही, ना मदद मिली और ना ही राहत सामग्री। 20 अप्रैल तक किसी तरह दिन गुजारते रहे लेकिन उसके बाद हालात बदतर हो गए तो पैसा के लिए घर फोन किया। घरवालों ने कर्ज लेकर पैसा भेजा तो साइकिल खरीदकर हमलोगों ने गांव जाने का प्लान बनाया लेकिन साइकिल का भी दाम दो हजार बढ़ गया।

कोई जुगाड़ नहीं होता देख 24 अप्रैल को समान लेकर घर पहुंचने की आस लिए हजारों किलोमीटर की पैदल यात्रा पर चल दिए तो गाजियाबाद में सड़क पर पुलिस का कड़ा पहरा था। दिन में किसी तरह छुपकर रहे और रात का अंधेरा होते ही रेलवे लाइन के रास्ते चल पड़े। कहीं रेलवे लाइन तो कहीं सड़क के रास्ते छह दिन में लखनऊ पहुंचे, रास्ते में कहीं किसी ने खाना दिया तो दिया, अन्यथा चूरा-मुरही खाते हुए अपनी ऐतिहासिक पैदल यात्रा जारी रखी। पन्द्रह दिन से अधिक लग गए बेगूसराय आने में, यहां आए तो घरवालों से मिलने के बदले एकांतवास में भेज दिए गए। अब हाकिम लोग काम देने के लिए पूछताछ कर रहे हैं, सरकारी काम मिला तो मिला नहीं भी मिलेगा तो अब परदेश नहीं जाएंगे।

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