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    Home»Jharkhand Top News»जागो सरकार, नहीं तो सारा पैकेज हो जायेगा बेकार
    Jharkhand Top News

    जागो सरकार, नहीं तो सारा पैकेज हो जायेगा बेकार

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskMay 15, 2020No Comments6 Mins Read
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    भूखे पेट और नंगे पैर महाराष्ट्र से पैदल निकला 25 लाख मजदूरों का जत्था
    दो सूखी रोटी के लिए जहां-तहां खानी पड़ रही है पुलिस की लाठियां

    कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रहे 130 करोड़ लोगों के इस देश के करीब 25 लाख लोग भूखे पेट और नंगे पैर इस चिलचिलाती धूप में सड़कों पर हैं और घर वापस जाने के लिए जद्दोजहद में जुटे हैं। ये वे लोग हैं, जिनकी बदौलत देश की अर्थव्यवस्था के पहिये को ताकत मिलती है, यानी मजदूर। ये लोग कोरोना महामारी के साथ-साथ भूख और बेकारी से बचने के लिए अपने देस लौटने के लिए अपनी जान की परवाह किये बगैर निकल पड़े हैं और अंजाने में मौत के मुंह में समा रहे हैं। कभी ये मालगाड़ी के नीचे कट रहे हैं, तो कभी रोडवेज की बस इन्हें कुचल देती है। कहीं चलते-चलते ये अपने प्राण गंवा रहे हैं, तो कहीं शरीर जवाब देने के बाद मूर्च्छित होकर सड़क पर गिर रहे हैं और इन सबसे बच गये, तो पुलिस का डंडा इनका इंतजार कर रहा होता है। आज भारत को आत्मनिर्भर बनाने और विश्व गुरु बनाने के लिए तमाम तरह के पैकेज की घोषणा हो रही है, लेकिन इन मजबूर और बेबस प्रवासियों पर किसी का ध्यान नहीं है। देश के बाहर से लोगों को लाने के लिए विमान उड़ रहे हैं, युद्धपोत तक भेजे जा रहे हैं, लेकिन इन प्रवासी मजदूरों को घर पहुंचाने के लिए ट्रेन चलाने के खर्च पर भी विवाद हो रहा है। देश को और इसके नीति निर्धारकों को यह समझ लेना होगा कि भले ही हर सेक्टर को पैकेज के सहारे नया जीवन दे दिया जाये, लेकिन यदि ये मजदूर ही नहीं होंगे, तो फिर उस सेक्टर का काम कैसे होगा। सारी की सारी कवायद बेकार हो जायेगी। इसलिए सबसे जरूरी इन प्रवासी मजदूरों को सुरक्षित उनके घर तक पहुंचाने की व्यवस्था सबसे जरूरी है। आजाद सिपाही ब्यूरो की विशेष रिपोर्ट।

    यदि कोई आपसे यह पूछे कि महाराष्ट्र के औरंगाबाद, मध्यप्रदेश के गुना, उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर और बिहार के समस्तीपुर में क्या समानता है, तो यकीनन बहुत सारे लोगों को जवाब देते नहीं बनेगा, क्योंकि वैश्विक महामारी कोरोना ने हमें घरों में बंद कर रखा है और देश-दुनिया के बारे में हमें वही जानकारी मिलती है, जो मुख्य धारा की मीडिया देती है। यदि आपको जवाब नहीं पता है, तो हम बता देते हैं। इन चार शहरों में करीब तीन दर्जन प्रवासी मजदूरों के खून बहे हैं, जो कोरोना और भूख-बेकारी से बचने के लिए अपने घर लौट रहे थे।
    औरंगाबाद में 16 मजदूरों को मालगाड़ी ने रौंद दिया, तो गुना, मुजफ्फरनगर और समस्तीपुर में सड़क हादसों में 16 अन्य मजदूरों की जान चली गयी। इन मजदूरों के लिए अब सारा आर्थिक पैकेज, कोरोना का संकट, बेकारी, भुखमरी और दुनिया की तमाम तकलीफें बेकार हो गयी हैं। ये तीन दर्जन अभागे विश्व गुरु और आत्मनिर्भरता की राह पर तेजी से आगे बढ़ रही दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के उन 25 लाख प्रवासी मजदूरों में शामिल थे, जो आज सड़कों पर हैं और घर लौटने की जद्दोजहद कर रहे हैं। यह हमारे देश का वह वर्ग है, जो अपनी ताकत से, अपने खून-पसीने से भारत की अर्थव्यवस्था के पहिये को चलाता है, उसे गति देता है। लेकिन इस वर्ग का दुर्भाग्य यह है कि आज इस पर किसी का ध्यान नहीं है। न सरकार का, न सिस्टम का और न समाज का।
    आज पूरा देश वैश्विक महामारी कोरोना के खिलाफ एकजुट होकर लड़ाई लड़ रहा है। देश की थम गयी अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने की रणनीति बन रही है। लाखों करोड़ों के पैकेजों का एलान किया जा रहा है, लेकिन जैसे ही प्रवासी मजदूरों के लिए ट्रेन-बस चलाने की बात होती है, सभी को काठ मार जाता है। कोई ट्रेन का किराया गिनाने लगता है, तो कोई मजबूरी बताने लगता है। कोई यह नहीं सोचता कि यदि मजदूर ही नहीं होंगे, तो कौन सा उद्योग चल सकेगा। बड़े शहरों में अभी से ही दवाइयों और दूसरी जरूरी चीजों का संकट होने लगा है, क्योंकि इनकी ढुलाई करनेवाले मजदूर ही नहीं हैं। देश भर में चल रहे बड़े-बड़े निर्माण कार्यों पर रोक लग गयी है, क्योंकि मजदूर नहीं मिल रहे हैं। पंजाब और हरियाणा में खेतों में काम करनेवाले मजदूर नहीं हैं। इसलिए वहां की खेती भी खराब हो रही है। दुर्भाग्य से संकट के इन पहलुओं की तरफ किसी का ध्यान नहीं गया। प्रवासी मजदूरों की घर वापसी के मुद्दे पर राजनीति हो सकती है, लेकिन इन प्रवासी मजदूरों की तकलीफ को दूर करने के लिए कदम नहीं उठाये जा सकते। यह तल्ख सच्चाई है कि इन अभागे प्रवासी मजदूरों के नाम पर हमारे देश में सिर्फ और सिर्फ बयानबाजी हो रही है। फेंकाफेंकी हो रही है।
    यकीन मानिये, यदि प्रवासी मजदूरों के प्रति हमारा यही रवैया रहा, तो हम विश्व गुरु तो दूर की बात, अपने पैरों पर खड़े होने के लायक भी नहीं बचेंगे। सरकार की, सिस्टम की और समाज की सारी की सारी तैयारियां धरी की धरी रह जायेंगी। जब तक एक भी प्रवासी सड़क पर है, कोरोना के खिलाफ जंग में हमारी जीत अधूरी है। सरकारों को, सिस्टम को और समाज को यह समझना होगा कि आज जिन प्रवासी मजदूरों को दुत्कारा जा रहा है, कल उनके लिए ही तरसना होगा। स्थिति सामान्य होने पर जब मजदूरों की दरकार होगी, तो पैसा तो होगा, लेकिन मजदूर नहीं होंगे।
    यह भारत की उजली तस्वीर का काला पहलू है, जिस पर किसी का ध्यान नहीं है। दुनिया का कोई भी देश या कोई भी समाज तब तक आगे नहीं बढ़ सकता है, जब तक कि उसका एक भी व्यक्ति बेसहारा हो।
    130 करोड़ की आबादी के देश में 25 लाख की संख्या भले ही बहुत कम दिखती हो, लेकिन यह समझना जरूरी है कि देश का पहिया इनकी बदौलत ही घूमता है। इसलिए आज जरूरत इस बात की है कि इन प्रवासी मजदूरों को सुरक्षित घर पहुंचाने के लिए पुख्ता व्यवस्था की जाये। बाकी पैकेज बाद में भी जारी किये जा सकते हैं। क्या होगा, यदि प्रवासी मजदूरों के लिए ट्रेन की सेवा मुफ्त कर दी जायेगी। बिना किराये के ये बसों में सवार हो सकेंगे। यदि इस काम में कुछ लाख करोड़ रुपये खर्च भी हो जाते हैं, तो किसी को आपत्ति नहीं होगी, क्योंकि स्थिति सामान्य होने पर ये मजदूर दोबारा काम पर लौटने की सोच सकेंगे। लेकिन यदि ये पैदल या साइकिल-ठेला से घर लौटते हैं, तो फिर ये दोबारा परदेस जाने से पहले सौ बार सोचेंगे। इसलिए इन्हें घर पहुंचाने के लिए किया जानेवाला कुछ लाख करोड़ का निवेश ही सबसे उचित खर्च होगा। यदि आज सरकारें इस बात को समझ लें, तो फिर भारत निश्चित रूप से विश्व गुरु और आत्मनिर्भर बनेगा।

    otherwise the whole package will be useless Wake up government
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