जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे जगमोहन मल्होत्रा का मंगलवार को अंतिम संस्कार कर दिया गया। उनका 3 मई यानि सोमवार रात को 94 साल की उम्र में निधन हो गया था। जम्मू-कश्मीर केन्द्र शासित प्रदेश में तीन दिन का राजकीय शोक घोषित किया है। इस दौरान सचिवालय सहित सभी सरकारी कार्यालयों में राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा। शोक के दौरान जम्मू-कश्मीर में किसी प्रकार के कार्यक्रम नहीं होंगे।
पूर्व राज्यपाल का जन्म 1927 में भारत के हाफिजाबाद फिलहाल पाकिस्तान में हुआ था। जगमोहन ने भारत की बेहतरी के साथ ही जम्मू-कश्मीर के लिए कई उत्कृष्ट कार्य किए हैं। जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के रूप में उनके उल्लेखनीय कार्यकाल के लिए उन्हें देश व जम्मू-कश्मीर की जनता हमेशा याद करेगी। एक सक्षम प्रशासक और एक समर्पित राजनेता की छवि रखने वाले जगमोहन ने राष्ट्र की शांति और प्रगति के लिए हमेशा महत्वपूर्ण निर्णय लिए।
जगमोहन अपने जीवन काल में दो बार जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के पद पर रहे। कांग्रेस सरकार ने 1984 में पहली बार उन्हें जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल बनाकर भेजा था और जून 1989 तक वह इस पद पर रहे। उसके बाद वीपी सिंह सरकार ने उन्हें दोबारा जनवरी 1990 में राज्यपाल बनाकर भेजा और वह इस पद पर मई 1990 तक रहे। यह काल जम्मू-कश्मीर के लिए अत्यंत कठिन, भयानक और चुनौती भरा था। पाकिस्तान की साजिशों के चलते इस समय अलगाववाद व आतंकवाद अपनी चरम सीमा पर पहुंच चुका था। उनके कई सख्त निर्णयों ने अलगाववादियों व आतंकवादियों के मंसूबों पर पानी फेर दिया। हालांकि उनका कार्यकाल विवादों में भी रहा। तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने विपक्ष की आलोचनाओं के कारण उन्हें हटा दिया था।
उन्होंने आतंकवादियों के खिलाफ ऑपरेशन की रणनीति बनाकर कश्मीरी पंडितों के खिलाफ होने वाले अत्याचार को रोकने की कोशिश की जिसे जम्मू-कश्मीर की जनता कभी भुला नहीं सकती। कश्मीर में मुख्यधारा की राजनीति करने का दावा करने वाली पार्टियों के कई नेताओं ने भी उनकी नीतियों का पुरजोर विरोध किया था। उस समय वह श्राइन बोर्ड का गठन कर माता वैष्णो देवी और श्री अमरनाथ यात्रा को उसके अधीन लाए और आज विश्व प्रसिद्ध यह दोनों यात्राएं उसी श्राईन बोर्ड के द्वारा संचालित होती है।
आतंक के उस भयानक दौर में कश्मीरी पंडितों के आग्रह पर उन्हें कश्मीर से सुरक्षित पलायन करवाकर जम्मू में बसाना उनका एक बड़ा कदम रहा। कश्मीरी पंडितों की लगातार हो रही हत्याओं व प्रताड़ना को उन्होंने भलीभांति समझा और उनके अनुग्रह पर उन्हें कश्मीर से सुरक्षित निकाल जम्मू में बसाया। उसके बाद कश्मीर घाटी में आतंकवाद की कमर तोड़ने में उनकी भूमिका मील का पत्थर साबित हुई। उनके सख्त कदमों ने ही जेकेएलएफ की जड़ों को कश्मीर घाटी में कमजोर किया। उनके प्रयासों से ही मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी को आतंकवादियों से रिहा करवाया गया।
उस समय अलगाववाद केवल कश्मीर घाटी में ही नहीं बल्कि जम्मू संभाग के डोडा, किश्तवाड़, पुंछ राजौरी सहित कई हिस्सों में अपने पैर पसार चुका था। यह कहना गलत नहीं होगा कि जितना जानमाल का नुकसान कश्मीर घाटी में नहीं हुआ उससे ज्यादा जम्मू संभाग के इन जिलों व क्षेत्रों में हुआ। कश्मीरी पंडितों के साथ ही जम्मू संभाग के कई जिलों व क्षेत्रों से भी कुछ मात्रा में पलायन हुआ परन्तु इन जिलों व क्षेत्रों में रहने वाले हिन्दुओं की बहादुरी व वीरता के चलते आतंकवाद ज्यादा देर नहीं टिक सका जिसके चलते इन क्षेत्रों में आज भी हिन्दू सीना तान कर रह रहा है।
जगमोहन ने जम्मू संभाग में विकास के बड़े प्रोजेक्ट में फ्लाइओवर, अस्पताल बनाने की शुरुआत की। कश्मीर केंद्रित सरकारों की अनदेखी के कारण जम्मू संभाग में विकास की शुरुआत करवाने वाले जगमोहन क्षेत्र के लोगों के दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगे। केवल जगमोहन ही ऐसे राज्यपाल रहे हैं जिन्हें दूसरी बार जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल बनाने पर प्रदेश वासियों ने उस दिन को दिवाली के रूप में मनाया था। प्रदेश के हर हिस्से का विकास होने का अहसास उनके राज्यपाल शासन के दौरान हुआ था। इसी दौरान जम्मू शहर में फ्लाईओवर बनाने के साथ विकास को तेजी देने के मकसद से कई प्रोजेक्ट बने।
सूचना विभाग के जेपी गंडोत्रा ने उनकी अंग्रेजी पुस्तक फायर का उर्दू में अनुवाद किया है जिसका नाम आतिश है। जम्मू-कश्मीर के प्रति उनकी सोच व यहां के लोगों के लिए उनके दिल का प्रेम उन्हें हमेशा यहां के लोगों के बीच जिंदा रखेगा। जम्मू-कश्मीर के लिए उनके योगदान को सदियों तक भुलाया नहीं जा सकता।