कलकत्ता हाई कोर्ट ने कहा कि बंगाल के दो मंत्री, तृणमूल का एक विधायक और सत्ताधारी दल का एक पूर्व सदस्य, जिन्हें नारदा रिश्वत मामले के सिलसिले में इस सप्ताह की शुरुआत में सीबीआई ने गिरफ्तार किया था अब नजरबंद रहेंगे।
अदालत ने राजनीतिक नेताओं की जमानत की सुनवाई को तीन सदस्यीय एक बड़ी पीठ के पास भेज दिया, क्योंकि दो सदस्यीय पीठ की राय में मतभेद किया था। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल ने नेताओं को नजरबंद करने का आदेश दिया, लेकिन न्यायमूर्ति अरिजीत बनर्जी ने अंतरिम जमानत का आदेश दिया।
केंद्रीय जांच ब्यूरो ने नजरबंदी के आदेश का विरोध किया था और इस पर रोक लगाने की मांग की थी।
केंद्रीय एजेंसी की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता अदालत से अपने आदेश पर रोक लगाने और चारों नेताओं को हिरासत में रखने को कहा। उन्होंने कहा कि वे गवाहों और सिस्टम को धमकी दे सकते हैं। एजेंसी चाहती है कि सभी कार्यवाही राज्य से बाहर ट्रांसफर दी जाए।
वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी और सिद्धार्थ लूथरा ने अपने मुवक्किलों के लिए अंतरिम जमानत के लिए दबाव डाला और कहा कि जितनी जल्दी हो सके बड़ी पीठ का गठन किया जाए। उन्होंने हाउस अरेस्ट का तर्क दिया, जिसके बारे में उन्होंने कहा कि सुनवाई के बीच में ही आदेश दिया गया था, इसका मतलब था कि उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी।
सिंघवी ने कहा, ”हाउस अरेस्ट गिरफ्तारी से कम नहीं है। उन्हें रिहा किया जाना चाहिए।’ उन्होंने कहा, “अंतरिम स्थिति में आजादी होनी चाहिए। ये मंत्री हैं, विधायक हैं। उन पर जांच में सहयोग नहीं करने का मामूली आरोप नहीं है।”
चारों के नजरबंदी में रहने की स्थिति में उनके वकीलों ने उन्हें अपना काम जारी रखने की अनुमति देने की व्यवस्था करने की भी मांग की। सिंघवी ने कहा, “उन्हें उनकी फाइलों तक पहुंच दी जानी चाहिए।”