– दिल्ली पुलिस और महिला आयोग के साथ मिलकर काम करने वाले एनजीओ का खुलासा
– काउंसिलिंग और दीगर तरह से मदद करके ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगाने का प्रयास
नई दिल्ली। कोविड-19 महामारी और उसके बचाव के लिए लगाए गए लॉकडाउन से हमारे समाज में बहुत सारे परिवर्तन आए हैं। घरों में बंद लोगों के अंदर कई तरह के शारीरिक और मानसिक रोग भी उत्पन्न हुए हैं। मानसिक तनाव के कारण घरों में अशांति का माहौल पैदा हुआ है। यहां तक कि घरेलू हिंसा की घटनाओं में बेतहाशा वृद्धि देखने को मिल रही है। आर्थिक तौर से परेशान लोगों की तरफ से अपना सारा गुस्सा परिवार पर उतारने की कई कहानियां सामने आ रही हैं। दिल्ली पुलिस, महिला आयोग और अल्पसंख्यक आयोग आदि संगठनों के साथ मिलकर काम करने वाले एक संगठन ने लॉकडाउन के दौरान घरों में होने वाली हिंसा को लेकर अपने अनुभव को साझा किया है। संगठन के अनुसार इस समय सबसे ज्यादा महिलाओं और बच्चों के साथ अत्याचार की घटनाएं पेश आ रही हैं। इन घटनाओं के बढ़ने का मुख्य कारण आर्थिक तंगी बताई जा रही है।
लॉकडाउन की वजह से लोगों का कारोबार बंद है। छोटे-मोटे काम करने वाले लोग घरों में बंद हैं। नौकरी पेशा लोगों को दुकान और व्यापारिक प्रतिष्ठान बंद होने की वजह से नौकरी पर बुलाया नहीं जा रहा है बल्कि ज्यादातर लोगों की नौकरियां छूट गई हैं। बड़ी संख्या में बेरोजगार होकर लोग घरों पर बैठे हुए हुए हैं। ऐसी स्थिति में छोटी-मोटी बातों पर परिवार में झगड़ा होने की घटनाएं बढ़ गई हैं। इसका शिकार ज्यादातर महिलाएं और बच्चे हो रहे हैं। इंस्टीट्यूट ऑफ़ लर्निंग मेनिया सोसायटी की अध्यक्ष शमा खान ने बताया कि उनके पास लॉकडाउन के दौरान बहुत सारी शिकायतें घरेलू हिंसा से संबंधित आई हैं। उनका कहना है कि महिला आयोग, पुलिस और अल्पसंख्यक आयोग के साथ काम करने की वजह से उनके मोबाइल नंबर सोशल मीडिया पर आसानी से उपलब्ध हैं, जिसकी वजह से उन्हें इस तरह के लोगों के जरिए कॉल की जाती है।
शमा खान का कहना है कि उन्हें आश्चर्य इस बात का है कि मुस्लिम बहुल इलाकों में जहां पर घरेलू हिंसा की बहुत कम वारदात सामने आती हैं। लॉकडाउन के दौरान वहां से भी इस तरह की बेशुमार कॉल आई हैं। उन्होंने एक-दो घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि यह हिंसा छोटी-मोटी बातों पर की जा रही है। उन्होंने बताया कि ज्यादातर घरेलू हिंसा की वारदात खाने की कमी या घर में राशन नहीं होने की वजह से आ रही है। उनका कहना है कि लॉकडाउन की वजह से काम धंधा बिलकुल बंद है। रोजाना मेहनत करके कमाने खाने वाले लोग इस से ज्यादा परेशान हुए हैं। नौकरी पेशा लोगों का अलग मसला है। खासतौर से प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाले लोग वेतन नहीं मिलने की वजह से परेशान हैं। उनका कहना है कि बहुत सारे ऐसे मामलों को उन्होंने काउंसलिंग करके और उनकी राशन और दूसरी तरह से मदद करके सुलझाने का प्रयास किया है। घरेलू हिंसा और उससे जुड़ी वारदातों को बहुत हद तक अपने वालंटियर के साथ मिलकर हल करने का प्रयास किया गया है। पुलिस तक इस तरह के मामलों को भेजने की नौबत नहीं आने दी है।
संगठन का मानना है कि लाकडाउन के बजाय कोरोना वायरस से बचाव के दूसरे रास्ते सरकार को अपनाने चाहिए। लाकडॉउन की वजह से बहुत सारे परिवारों में तनाव पैदा हुआ है, जिसका मुख्य कारण आर्थिक संकट रहा है। ऐसे तमाम परिवारों की सूची बनाकर एक अन्य एनजीओ के साथ मिलकर राशन किट उपलब्ध कराई गई है ताकि उनके यहां व्याप्त मन-मुटाव को कुछ हद तक कम किया जा सके। केरल बेस्ड एक एनजीओ सिहवार ने राशन उपलब्ध करने में उनकी काफी मदद की है। लॉकडाउन के इस एक-डेढ़ महीने के अंतराल में लगभग ऐसे ग्यारह सौ परिवारों तक राशन किट पहुंचाई गई है, जिनके बारे में पता चलता है कि उनके यहां राशन और दूसरी वजह से घरेलू हिंसा की घटनाएं हुई हैं। संस्था ने इसके अलावा मास्क, सैनेटाइजर और महामारी से बचाने के लिए दवाएं और ऑक्सीजन आदि भी मांगे जाने पर मुफ्त उपलब्ध कराने का प्रयास किया है।