Close Menu
Azad SipahiAzad Sipahi
    Facebook X (Twitter) YouTube WhatsApp
    Friday, May 16
    • Jharkhand Top News
    • Azad Sipahi Digital
    • रांची
    • हाई-टेक्नो
      • विज्ञान
      • गैजेट्स
      • मोबाइल
      • ऑटोमुविट
    • राज्य
      • झारखंड
      • बिहार
      • उत्तर प्रदेश
    • रोचक पोस्ट
    • स्पेशल रिपोर्ट
    • e-Paper
    • Top Story
    • DMCA
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Azad SipahiAzad Sipahi
    • होम
    • झारखंड
      • कोडरमा
      • खलारी
      • खूंटी
      • गढ़वा
      • गिरिडीह
      • गुमला
      • गोड्डा
      • चतरा
      • चाईबासा
      • जमशेदपुर
      • जामताड़ा
      • दुमका
      • देवघर
      • धनबाद
      • पलामू
      • पाकुर
      • बोकारो
      • रांची
      • रामगढ़
      • लातेहार
      • लोहरदगा
      • सरायकेला-खरसावाँ
      • साहिबगंज
      • सिमडेगा
      • हजारीबाग
    • विशेष
    • बिहार
    • उत्तर प्रदेश
    • देश
    • दुनिया
    • राजनीति
    • राज्य
      • मध्य प्रदेश
    • स्पोर्ट्स
      • हॉकी
      • क्रिकेट
      • टेनिस
      • फुटबॉल
      • अन्य खेल
    • YouTube
    • ई-पेपर
    Azad SipahiAzad Sipahi
    Home»विशेष»कर्नाटक में हार का मतलब भाजपा के लिए ‘खतरे की घंटी’
    विशेष

    कर्नाटक में हार का मतलब भाजपा के लिए ‘खतरे की घंटी’

    adminBy adminMay 13, 2023Updated:May 13, 2023No Comments9 Mins Read
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram LinkedIn Pinterest Email

    विशेष
    -सत्ता में रहने के बावजूद जनता से पूरी तरह कटी रही प्रदेश पार्टी
    -किसी मजबूत चहेरे का अभाव भी महंगा पड़ गया भगवा पार्टी के लिए
    -राहुल गांधी की यात्रा का असर, सरकार के खिलाफ गया कमिशन वाला आरोप

    कर्नाटक के चुनाव परिणाम ने भाजपा के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। राज्य में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी को सत्ता से बाहर ही नहीं होना पड़ा है, बल्कि इस परिणाम ने जता दिया है कि भाजपा को राज्य में चुनाव जीतने के लिए राज्य स्तर पर साफ-सुथरा चेहरा भी चाहिए। वह चेहरा, जो जनता के बीच लोकप्रिय हो। जिसकी बातों में गंभीरता और सबसे अलग जो जनता की समस्याओं के प्रति संवेदनशील हो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश का चेहरा हैं, सिर्फ उनके चेहरे की बदौलत राज्यों में चुनाव जीतना संभव नहीं है। कर्नाटक में भाजपा की हार इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि अगले छह महीने में राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में विधानसभा का चुनाव होगा। वहां भी चुनाव जीतने के लिए उसे राज्य स्तर पर विश्वसनीय नेता की जरूरत होगी। इसके बाद अगले साल आम चुनाव होगा और कर्नाटक ने विपक्ष को यह दिखा दिया है कि भाजपा को हराना नामुमकिन नहीं है। इसलिए कर्नाटक की हार भाजपा के लिए चिंताजनक है। इस हार के कारणों पर बाद में समीक्षा होती रहेगी, लेकिन एक बात तय है कि इस चुनाव ने भाजपा की पूरी चुनावी रणनीति की कमजोरी को उजागर कर दिया है। कर्नाटक में भाजपा की हार की सबसे बड़ी वजह प्रदेश स्तरीय मजबूत चेहरे का न होना रहा। येदियुरप्पा की जगह बसवराज बोम्मई को बीजेपी ने भले ही मुख्यमंत्री बनाया हो, लेकिन सीएम की कुर्सी पर रहते हुए भी उनका कोई प्रभाव नहीं नजर आया, उनके फैसले जनता से कटे रहे। उलटे उनकी सरकार के बारे में यह प्रचारित हो गया कि बिना कमिशन लिये वहां कोई काम नहीं होता। जाहिर है, बिना आग के धुआं नहीं उठता। ठीक इसी तरह भाजपा बंगाल में भी स्थानीय मजबूत चेहरा नहीं होने के कारण चुनाव हार गयी थी, जबकि उसके पहले उसे लोकसभा में शानदार सफलता मिली थी। लोकसभा चुनाव में देश के सामने नरेंद्र मोदी का चेहरा था। बंगाल विधानसभा चुनाव में भाजपा के पास ऐसा कोई नेता ही नहीं था कि वह ममता बनर्जी को टक्कर दे सके। उसी तरह कर्नाटक में बसवराज बोम्मई का चेहरा भी कांग्रेस के डीके शिवकुमार के आगे टिक नहीं सका। इसके अलावा कर्नाटक प्रदेश भाजपा की कमजोरी और केंद्रीय नेतृत्व पर उसकी अत्यधिक निर्भरता भी हार का कारण बनी। स्थानीय मुद्दों की बजाय चुनाव को केंद्रीय मुद्दों की तरफ ले जाने का भाजपा का प्रयास भी बुरी तरह विफल हो गया। कांग्रेस की जीत में राहुल गांधी की यात्रा का भी असर दिखा। इस यात्रा ने वहां के मुसलिम मतदाताओं को पूरी तरह कांग्रेस के साथ कर दिया, जबकि पिछले चुनाव में मुसलिम मतदाता जेडीएस और कांग्रेस में बंट गये थे। कुल मिला कर कर्नाटक विधानसभा का चुनाव भाजपा के लिए एक चेतावनी है कि यदि उसने राज्य स्तर पर अपनी मशीनरी में बदलाव नहीं किया, राज्य की पार्टी मशीनरी को सक्रिय नहीं किया, जिन राज्यों में उसकी सरकार है, अगर उन सरकारों के क्रियाकलापों पर नजर नहीं रखी, तो फिर वहीं रिजल्ट होगा, जो झारखंड में हुआ था। अगर भाजपा नहीं चेती, तो आनेवाले चुनाव भी अलग परिणाम दे सकते हैं। कर्नाटक में भाजपा की हार के कारणों का विश्लेषण कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    गांवों में एक कहावत अकसर सुनी जाती है, मरने का डर नहीं है, डर तो यमराज के घर देख लेने का है। कर्नाटक का चुनाव परिणाम भाजपा के लिए यही डर लेकर आया है। पिछले पांच साल में यह पहला बड़ा राज्य है, जहां भाजपा को सत्ता से बेदखल होना पड़ा है, ठीक उसी तरह, जिस तरह झारखंड में हुआ था। इससे पहले पिछले साल पार्टी को हिमाचल प्रदेश में भी हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन वह बहुत छोटा राज्य है, इसलिए संदेश बहुत नहीं फैला। पिछली बार 2018 में राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में पार्टी चुनाव हारी थी। कर्नाटक में हुई हार भाजपा के लिए खतरे की घंटी है, क्योंकि इसने भाजपा को एक साथ कई संदेश दिये हैं। भाजपा ने कर्नाटक जीतने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था, यहां तक कि उसने अपने सबसे बड़े हथियार ब्रांड मोदी को भी मैदान में उतार दिया था, अमित शाह ने भी कमर कस ली थी, लेकिन कर्नाटक भाजपा के स्थानीय लोगों से जुड़ाव और सरकार के कामकाज ने उसके हर हथियार को विफल कर दिया।
    इस साल कर्नाटक के बाद अब पांच अन्य राज्यों में चुनाव होने हैं। इनमें राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, मिजोरम और तेलंगाना शामिल हैं। राजस्थान में अभी तक राज्य स्तर पर उसके पास कोई निर्विवाद नेता सामने नहीं आया है। मध्यप्रदेश में भी शिवराज सिंह चौहान सरकार के खिलाफ माहौल बना है। शिवराज के चेहरे पर भाजपा वहां चुनाव जीत पायेगी, इसमें संदेह है। छत्तीसगढ़ में भी उसे नये विश्वसनीय चेहरे के साथ मैदान में उतरना होगा, तभी वह टक्कर दे सकती है। इसके अलावा अगले साल यानी 2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं। इसके बाद सात राज्यों में चुनाव होने हैं। कुल मिला कर अगले दो सालों में लोकसभा के साथ-साथ 13 बड़े राज्यों के चुनाव होने हैं। इनमें कई दक्षिण के राज्य भी हैं। इसलिए भाजपा के लिए कर्नाटक की हार को बड़ा झटका माना जा रहा है।

    क्यों हार गयी भाजपा
    तो फिर सवाल उठता है कि भाजपा को कर्नाटक में हार का सामना क्यों करना पड़ा। दरअसल कर्नाटक में भाजपा की प्रदेश इकाई नहीं, केंद्रीय नेतृत्व चुनाव लड़ रहा था। किसी राज्य के विधानसभा चुनाव में प्रदेश इकाई की उदासीनता का यह सबसे बड़ा उदाहरण था। उम्मीदवार चयन से लेकर बूथ कमेटियों की बैठक तक में केंद्रीय नेतृत्व सक्रिय रूप से शामिल हुआ। पार्टी के पास न कोई स्थानीय नेता था और न ही कोई मुद्दा। येदियुरप्पा के स्थान पर बासवराज बोम्मई को सीएम बना कर भाजपा ने चेहरा चमकाने की कोशिश जरूर की, लेकिन नये सीएम की कोई भूमिका पूरे चुनाव में नहीं दिखी। सरकार चलाने के दौरान भी वह अपनी छवि को जनता के सामने विश्वसनीय नहीं बना सके। इसके अलावा भ्रष्टाचार का मुद्दा भी भाजपा की हार की वजह रहा। कांग्रेस ने भाजपा के खिलाफ शुरू से ही ‘40 फीसदी पे-सीएम करप्शन’ का एजेंडा सेट किया और यह धीरे-धीरे बड़ा मुद्दा बन गया। इतना ही नहीं, कर्नाटक के राजनीतिक समीकरण को भी भाजपा साध कर नहीं रख सकी। भाजपा न ही अपने कोर वोट बैंक लिंगायत समुदाय को अपने साथ जोड़े रख पायी और ना ही दलित, आदिवासी, ओबीसी और वोक्कालिंगा समुदाय का ही दिल जीत सकी। कर्नाटक में एक साल से भाजपा के नेता हलाला, हिजाब से लेकर अजान तक के मुद्दे उठाते रहे। इसका असर यह हुआ कि वहां मुसलिम मतदाता पूरी तरह से कांग्रेस के साथ आ गया, जबकि पिछले चुनाव में वह जेडीएस और कांग्रेस में बंटा था। एन चुनाव के समय बजरंग बली की भी एंट्री हो गयी, लेकिन धार्मिक ध्रुवीकरण की ये कोशिशें भाजपा के काम नहीं आयीं। कांग्रेस ने बजरंग दल को बैन करने का वादा किया, तो भाजपा ने बजरंग दल को सीधे बजरंग बली से जोड़ दिया और पूरा मुद्दा भगवान के अपमान का बना दिया। दरअसल, कर्नाटक में इस बार शुरू से ही भाजपा बैकफुट पर नजर आ रही थी और कांग्रेस काफी आक्रामक थी। ऐसे में भाजपा की इस हार का मतलब साफ है। यदि इसके कारणों की तलाश की जाये, तो सबसे बड़ा कारण स्थानीय स्तर पर आंतरिक कलह रहा।

    सत्ता विरोधी लहर
    कर्नाटक में भाजपा की हार की बड़ी वजह सत्ता विरोधी लहर की काट नहीं तलाश पाना भी रहा है। भाजपा के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर हावी रही, जिससे निपटने में वह पूरी तरह से असफल रही। इसलिए कहा जा रहा है कि राज्य विधानसभा चुनाव के नतीजे अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के लिए खतरे की घंटी हैं। इन नतीजों से पता चला है कि प्रदेश स्तर पर अगर उसके नेता मजबूत नहीं हैं, चेहरा साफ-सुथरा नहीं है, तो भाजपा के खिलाफ मतदान कर सकते हैं। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि कर्नाटक के लोग बासवराज बोम्मई की भाजपा सरकार से तंग आ चुके थे। वहां सत्ता विरोधी लहर थी। हालांकि यह अभी तय नहीं है कि कर्नाटक के नतीजों का लोकसभा चुनाव पर कोई प्रभाव पड़ेगा ही। 2019 से पहले भाजपा ने राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में हार का सामना किया था, लेकिन आम चुनाव में उसे शानदार कामयाबी मिली थी। हालांकि लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए सुकून वाली बात यह है कि विपक्ष के पास अभी मोदी की टक्करवाला कोई चेहरा नहीं है। देश स्तर पर मोदी का कद काफी मजबूत है और उन पर जनता विश्वास भी कर रही है। करप्शन के खिलाफ उनका आक्रामक रुख जनता को पसंद है।

    हट नहीं पा रहा उत्तर भारत की पार्टी का टैग
    इन कारणों के अलावा भाजपा को अभी भी दक्षिणी राज्यों में उत्तर भारत की पार्टी के रूप में माना जाता है और पिछले चार वर्षों की घटनाओं ने इस धारणा को पुख्ता किया है। गोमांस पर विवाद हो या हिंदी भाषा की प्रधानता, केंद्र सरकार को आरएसएस के एजेंडे को बढ़ावा देनेवाली ताकत के रूप में देखा जाता है। आरएसएस के हिंदुत्व द्वारा परिभाषित जीवन का तरीका अभी भी कर्नाटक के लोगों के लिए कुछ अलग है। बेंगलुरु और राज्य के अन्य हिस्सों में रहनेवाले उत्तर भारतीय बड़े पैमाने पर युवा हैं, जो हिंदुत्व संगठनों द्वारा की जानेवाली नैतिक पुलिसिंग से असहज हैं। यह वर्ग प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी के पक्ष में तो है, लेकिन जरूरी नहीं कि कर्नाटक में भाजपा शासन को लेकर उत्साहित हो। इसलिए पार्टी को शहरी इलाकों में हार का सामना करना पड़ा।
    कुल मिला कर कर्नाटक में भाजपा के लिए कुछ भी सही नहीं रहा। राज्य स्तर पर उसकी चुनावी रणनीति बिखरी हुई नजर आयी। यह परिणाम उसके लिए यही संदेश लेकर आया है कि पार्टी को ब्रांड मोदी के साथ स्थानीय नेतृत्व को भी सामने लाना चाहिए। उसे अब ब्रांड मोदी को किसी ब्रह्मास्त्र की तरह यदा-कदा ही इस्तेमाल करना होगा, वरना इस हथियार की चमक फीकी पड़ती जायेगी। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा इस परिणाम के पीछे छिपे संदेश को कितनी जल्दी पढ़ कर लागू करने में सफल होती है।

    Share. Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous Articleनेपाल में दो इंटरनेशनल एयरपोर्टों के निर्माण पर अत्यधिक खर्च
    Next Article जन संघर्ष यात्रा : हजारों समर्थकों के साथ जयपुर की तरफ पैदल बढ़ रहे पायलट
    admin

      Related Posts

      पाकिस्तान का डर्टी बम खोल रहा किराना हिल्स के डर्टी सीक्रेट्स!

      May 15, 2025

      ‘ऑपरेशन सिंदूर’ से भारत ने बदल दी है विश्व व्यवस्था

      May 13, 2025

      सिर्फ पाकिस्तान को ठोकना ही न्यू नार्मल होना चाहिए

      May 12, 2025
      Add A Comment

      Comments are closed.

      Recent Posts
      • बाबूलाल मरांडी ने मोरहाबादी से अतिक्रमण हटाने ने पर जताई आपत्ति, कहा- डीसी मुआवजा दें
      • हम सभी देशवासियों को अपनी बहादुर सेना पर गर्व : सुप्रियो
      • गुरुजी के विचारों से भटक गया झामुमो : सुदेश
      • भुज एयरबेस पर रक्षामंत्री राजनाथसिंह ने भरी हुंकार, बोले- जितनी देर में लोग नाश्ता करते हैं, उतने में आपने दुश्मनों को निपटा दिया
      • भारत-बांग्लादेश सीमा पर बीएसएफ ने नाकाम की तस्करी की कोशिश
      Read ePaper

      City Edition

      Follow up on twitter
      Tweets by azad_sipahi
      Facebook X (Twitter) Instagram Pinterest
      © 2025 AzadSipahi. Designed by Microvalley Infotech Pvt Ltd.

      Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.

      Go to mobile version