परिवार एक, पीढ़ी तीन, राजनीतिक विचारधारा भी तीन
बाबा जोरा घास फूल के साथ, पिता कमल और पुत्र कांग्रेस के साथी
राजीव
रांची। परिवार एक। चूल्हा एक। पीढ़ी तीन। अब विचारधारा भी तीन। बाबा जोरा घास फूल के साथ, तो पिता कमल खिलाने की तैयारी में अब बेटा कांग्रेस का साथ हो गया। जी हां, हम बात कर रहे हैं झारखंड की राजनीति में एक ऐसे परिवार की, जो हजारीबाग से संबंधित है। यह परिवार है यशवंत सिन्हा का। आमतौर पर कहते हैं कि पिता जो रास्ता दिखाता है उसके बच्चे अपने जीवन में भी उसी मार्ग का पालन करते हैं, लेकिन बात अगर राजनीति की होती है, तो कई बार इसका उलट भी होता है। इस बार के लोकसभा चुनाव में इस परिवार के तीन लोग अपने घर में ही अजीबोगरीब स्थिति का अब सामना करेंगे।

इसका वजह यशवंत सिन्हा के पोता आशिर सिन्हा हैं। आशिर सिन्हा ने सोमवार को कांग्रेस का दामन थाम लिया। आप समझ सकते हैं कि घर में जब एक टेबल पर तीन पीढ़ी के लोग एक साथ राजनीति चर्चा करेंगे, तो क्या स्थिति होगी। कारण बाबा यशवंत सिन्हा अभी टीएमसी में हैं। राष्टÑपति का चुनाव भी लड़ चुके हैं। वहीं पिता जयंत सिन्हा भाजपा से सांसद हैं। अब स्थिति यह है कि जयंत सिन्हा के पुत्र आशिर सिन्हा ने हाथ का साथ देने का फैसला लिया है। यानी पूर्व बीजेपी सांसद यशवंत सिन्हा के पोते और बीजेपी सांसद जयंत सिन्हा के बेटे आशिर सिन्हा ने कांग्रेस की सदस्यता ले ली है। उन्होंने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के कार्यक्रम में कांग्रेस का दामन थामा। कहा जा रह है कि भाजपा द्वारा जयंत सिन्हा का टिकट काटे जाने के बाद बेटे आशिर सिन्हा ने कांग्रेस की सदस्यता ली। मीडिया से बातचीत करते हुए आशिर ने कहा कि बहुत खुशी हो रही है कि कांग्रेस में शामिल हुआ हूं। अब जेपी पटेल के पक्ष में वोट करने की अपील करेंगे। कहा कि जेपी पटेल ही हजारीबाग और युवाओं को बचा सकते हैं। कहा कि मुझे फिलहाल पॉलिटिक्स में कोई दिलचस्पी नहीं है। कांग्रेस से मुझे एक प्लेटफॉर्म मिला है। इस प्लेटफॉर्म के माध्यम से हजारीबाग का नाम रोशन करना चाहता हूं।

राजनीति में यशवंत-जयंत की राह भी अलग
झारखंड की सियासत के दिग्गज नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा और उनके बेटे जयंत सिन्हा अलग-अलग पार्टी में रहे। यशवंत सिन्हा बीजेपी छोड़कर ममता बनर्जी की टीएमसी का दामन थाम लिया था और राष्ट्रपति के चुनाव में विपक्षी दल की तरफ से उम्मीदवार थे, जबकि जयंत सिन्हा बीजेपी से सांसद। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में केंद्रीय मंत्री भी रह चुके हैं। इन दोनों पिता-पुत्र का राजनीतिक पार्टी भले अलग-अलग रही, लेकिन इन दोनों ने कभी एक-दूसरे के खिलाफ किसी तरह का व्यक्तव्य नहीं दिया। अब हजारीबाग का चुनाव दिलचस्प होगा कि तीन पीढ़ी आखिर अलग-अलग उम्मीदवार के पक्ष में वोटिंग की अपील करेगी।

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