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    Home»झारखंड»आम मतदाताओं के सहयोग से चुनाव लड़ रहे माले नेता विनोद सिंह, प्रवासी भी दे रहे चंदा
    झारखंड

    आम मतदाताओं के सहयोग से चुनाव लड़ रहे माले नेता विनोद सिंह, प्रवासी भी दे रहे चंदा

    adminBy adminMay 4, 2024Updated:May 4, 2024No Comments4 Mins Read
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    रांची। लोकसभा चुनाव में अत्यधिक धन का बे-रोकटोक प्रवाह, हमारी राजनीतिक प्रक्रिया का कड़वा सच बनता जा रहा है। चुनाव में उम्मीदवार और राजनीतिक दलों में एक-दूसरे से बढ़-चढ़ कर धन बल का प्रदर्शन करने की होड़ मची है। राजनीतिक प्रक्रिया में धनबल का दुरुपयोग, जवाबदेही और पारदर्शिता को प्रभावित करता है। चुनावों में धन का बेरोक टोक प्रवाह रोकने के लिए चुनाव आयोग के प्रयास के बाद भी पानी की तरह पैसे बहाये जाने का एक कड़वा सच भी सामने आ ही जाता है। प्रतिद्वंद्वी और पार्टियां धनबल का खुलेआम प्रदर्शन करते देखे जाते हैं। चुनाव प्रचार से लेकर बूथ मैनेजमेंट में लाखों रुपये पानी की तरह बहाये जाते हैं। ऐसे में ठीक इसके उलट झारखंड के कोडरमा लोकसभा सीट से माले विधायक बिनोद सिंह लोकसभा चुनाव आम मतदाताओं के सहयोग से लड़ रहे हैं।

    ऐसा प्रत्याशी चुनें, जिनकी आवाज विधानसभा में गूंजती है: विनोद सिंह
    विनोद सिंह जिस पार्टी से चुनाव लड़े रहे हैं, वह कैडर बेस्ड पार्टी है। भले उनके नेता चुनाव में हारें या जीतें, हर एक कैडर नेता बन कर चुनाव लड़ता है। वर्तमान चुनावी प्रवृत्तियों से अलग उसके पास न तो पार्टी की ओर से खजाना मिला है, न खुद इतने सक्षम हैं कि पानी की तरह पैसा बहा सकें। पूरी तरह से जनता के सहयोग से चुनाव लड़ रहे विनोद सिंह कहते हैं- मैं राजनीति खुद के लिए नहीं कर रहा हूं। लोगों के लिए काम करता हूं, लोगों के लिए लड़ता हूं, लोगों के लिए ही सड़क से लेकर विधानसभा तक आवाज उठाता हूं। जनसहयोग से कोडरमा लोकसभा का चुनाव लड़ रहा हूं। मेरी जनता ही चुनाव लड़ती है। तन-मन और धन से सहयोग करती है। सिंह कहते हैं कि अगर मैं किसी पूंजीपति-कॉरपोरेट से पैसे लूंगा, तो हमें उनकी ताकत बननी होगी। उनके लिए सवाल पूछना होगा। आम लोगों के लिए सदन से सड़क तक संघर्ष से ही देश की जनता हमें मजबूत बनायेगी।

    प्रवासी मजदूर भी कर रहे सहयोग
    माले प्रत्याशी विनोद सिंह कहते हैं कि लोग सहयोग कर रहे हैं। छोटे-छोटे सहयोग आ रहे हैं। वहीं झारखंड से बाहर रह रहे प्रवासी मजदूर भी सहयोग के लिए आगे आये हैं। दिल्ली, मुंबई, सूरत, कोलकाता और दक्षिण के राज्यों में काम करनेवाले इलाके के प्रवासी मजदूरों ने मदद के लिए हाथ बढ़ाया है। शुक्रवार को आॅनलाइन माध्यम से मिली चंदे की रकम चार लाख से पार कर गयी है। चुनाव के लिए चंदा देनेवाले से अपील भी की जा रही है कि वे अपना पैन कार्ड नंबर भी दें, ताकि आगे चल कर किसी तरह की परेशानी न हो।

    मिलता रहा सहयोग, गाड़ी चोरी हुई तो लोगों ने चंदा कर खरीदी
    बात 2008 की है, जब भाकपा माले के कोलकाता में हो रहे राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान विनोद सिंह की कार चोरी हो गयी। विनोद सिंह और उनकी पार्टी के पास पैसे नहीं थे कि दूसरी कार खरीदी जा सके। विनोद ट्रेन, बस, मोटरसाइकिल, आॅटो रिक्शा में सफर कर अपने विधानसभा क्षेत्र का भ्रमण करने के साथ-साथ रांची भी आना-जाना करते रहे। जब विधानसभा क्षेत्र के लोगों तक यह बात पहुंची, तो आम लोगों ने पांच-पांच, दस-दस रुपये चंदा कर उनके लिए सबसे अच्छी गाड़ी महिंद्रा स्कॉर्पियो खरीद दी।

    आखिर विनोद सिंह कैसे आये राजनीति में
    कॉमरेड महेंद्र सिंह विधायक थे। 16 जनवरी 2005 को उनकी हत्या की गयी थी। ठीक एक दिन पहले यानि 15 जनवरी को उन्होंने उस वक्त झारखंड विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए नामांकन दाखिल किया था। महेंद्र सिंह की हत्या के वक्त, विनोद महज 25-26 साल के नौजवान रहे होंगे, जो मुंबई में रह कर सिनेमा के विभिन्न माध्यमों से समाज में परिवर्तन वाली राजनीतिक फिल्में बनाने के सपने देख रहे थे। आइसा की छात्र राजनीति करने वाले विनोद सिंह को कभी चुनावी राजनीति में नहीं आना था। एक तरफ अभूतपूर्व परिस्थितियों का दबाव एवं किसी दूसरे व्यक्ति को विकल्प बनाने का विचार करने के लिए वक्त की कमी थी। नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख 17 जनवरी 2005 थी। वहीं दूसरी तरफ पूरे समाज का दबाव था, सभी जाति धर्म संप्रदाय के लोग विनोद सिंह को ही देखना चाहते थे।

    सरकार की कमजोरियों पर कभी परदा नहीं डाला
    विनोद काफी दबाव के बाद मुंबई से लौटे और पिता की हत्या के अगले दिन 17 जनवरी को बगोदर विधानसभा से चुनाव लड़ने के लिए नामांकन किया। महेंद्र बाबू का दाह संस्कार विनोद सिंह के नामांकन करने के बाद कराया गया। झारखंड में विनोद सिंह झामुमो-कांग्रेस की सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे हैं, लेकिन उन्होंने कभी भी सरकार की कमजोरियों पर परदा डालने का प्रयास नहीं किया। हमेशा सरकार की कमजोरियों को उजागर किया। आदिवासियों के सवाल पर हेमंत सरकार को घेरा भी, वहीं दूसरी तरफ जब भी हेमंत सोरेन की सरकार को गिराने की कोशिश हुई, तब-तब विनोद सिंह आदिवासी-मूलवासी आकांक्षाओं के अनुरूप चुनी हुई हेमंत सोरेन सरकार की ढाल बन कर खड़े रहे।

     

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