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    Home»विशेष»चारा घोटाले से बहुत बड़ा है झारखंड में टेंडर कमीशन घोटाला
    विशेष

    चारा घोटाले से बहुत बड़ा है झारखंड में टेंडर कमीशन घोटाला

    adminBy adminMay 24, 2024No Comments16 Mins Read
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    विशेष
    झारखंड को खोेखला कर चुका है भ्रष्टाचार का दीमक
    इडी के खुलासे के बाद सामने आ गयी है प्रदेश के सिस्टम की सड़ांध
    अब तो सवाल यह पूछा जा रहा है कि किस पर यकीन करे झारखंडी

    नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
    बहुत पुरानी कहावत है कि जब मेड़ ही खेत को खाने लगे, तो फिर उस खेत को कौन बचायेगा। यही हाल झारखंड का है। यहां सब कुछ पूरी तरह खत्म होने की कगार पर है। सिस्टम से सड़ांध आ रही है। प्रवर्तन निदेशालय ने यह दावा किया है कि ग्रामीण विकास विभाग में तीन हजार करोड़ रुपये का टेंडर कमीशन घोटाला हुआ है। उसके बाद से तो यही सवाल हर तरफ तैर रहा है कि आखिर एक आम झारखंडी किस पर यकीन करे। राजनीतिक नेतृत्व से लेकर नौकरशाही तक और न्याय व्यवस्था के झंडाबरदार से लेकर समाजकर्मी का चोला पहने सत्ता के दलालों ने पूरे झारखंड को खोखला बना दिया है। झारखंड को राजनीति के चतुर खिलाड़ियों, सत्ता प्रतिष्ठान के चाटुकार नौकरशाहों और पैसा कमाने की अंधाधुंध होड़ में लगे लोगों ने जम कर लूटा और हर दिन यहां भ्रष्टाचार के नये किस्से सामने आने लगे। इडी के खुलासे ने कमीशनखोरों के संगठित नेटवर्क को जिस तरह उजागर किया है, उससे तो यही लगता है कि यहां हर तरफ भ्रष्टाचार का बेशर्म खेल खेला जा रहा है। हालत यह है कि झारखंड को लूटनेवालों की पहचान अब जरा भी मुश्किल नहीं है। उनकी विलासिता, बेहिसाब दौलत और संपत्ति का अश्लील प्रदर्शन झारखंड के सवा तीन करोड़ लोगों के सीने पर सांप बन कर लोटने लगा है। भ्रष्टाचार ने झारखंड को आर्थिक चोट ही नहीं पहुंचायी है, बल्कि पूरी दुनिया में इसकी इज्जत को मिट्टी में मिला दिया है। अब इन कहानियों के ‘अदृश्य नायकों’ का पता लगाना बहुत जरूरी हो गया है। झारखंड में भ्रष्टाचार की इन कहानियों की पृष्ठभूममि में राज्य के भविष्य का आकलन करती आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह की विशेष रिपोर्ट।

    प्रवर्तन निदेशालय ने झारखंड में जिस टेंडर कमीशन घोटाले का खुलासा किया है और इसमें जितने लोगों के शामिल होने का दावा किया गया है, उससे झारखंड एक बार फिर शर्मसार हो गया है। निदेशालय ने तीन हजार करोड़ के इस घोटाले के जो सबूत अब तक जुटाये हैं, उससे तो यही लगता है कि भ्रष्टाचार ने झारखंड को पूरी तरह खोखला कर दिया है। राजनीतिक नेतृत्व से लेकर नौकरशाही और निचले तबके की मशीनरी तक पर भ्रष्टाचार के छींटे पड़ने लगे हैं। इस घोटाले में किस स्तर के कितने लोग किस हद तक लिप्त हैं, इसकी बानगी इडी द्वारा अदालतों में पेश रिमांड आवेदन में मिल जाती है।

    क्या है रिमांड आवेदन में
    इडी ने झारखंड के पूर्व ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम को रिमांड की अवधि बढ़ाने के लिए जो आवेदन दिया, उसमें इस घोटाले में शामिल लोगों के नेटवर्क का पता चलता है। इडी ने अदालत में कई नये सबूत पेश किये हैं। इनमें इडी ने चौंकाने वाली जानकारी दी है। इडी ने दावा किया है कि यह घोटाला तीन हजार करोड़ रुपये से अधिक का है यानी बिहार के चर्चित चारा घोटाले से बहुत बड़ा। अदालत में पेश सबूतों में पैसों के लेन-देन में कोड वर्ड का जिक्र है। किस रंग के बैग में कौन सा पैसा है, किसे कितना कमीशन मिलना है, इसका भी जिक्र है। इडी ने एक डायरी का पन्ना कोर्ट को सौंपा है। इस डायरी के पन्ने में कमीशनशखोरी का सारा हिसाब-किताब है। इस डायरी में लिखा हुआ है कि विकास नाम का व्यक्ति लाल रंग की थैली में पैसे लेकर आया। इसी तरह बैंगनी (पर्पल), भूरा (ग्रे) और काले (ब्लैक) रंग के बैग में पैसे लेकर आने वालों का भी जिक्र किया गया है। डायरी के इसी पन्ने में कुल 2868.45 में 16.98 साहब को देने का जिक्र है। इसी तरह पन्ने में कई और तरह के कोड का जिक्र है। इसके अतिरिक्त डायरी के पन्ने में कई और बातें लिखी हुई हैं। डायरी के पन्ने में ‘साहब’ शब्द का इस्तेमाल है। इस साहब शब्द को लेकर शक की सूई मंत्री के साथ-साथ किसी और पर भी उठ रही है। इसी में साहब को 2.50 देने का जिक्र किया गया है। इसी तरह 30 लिखने के बाद गुप्ता, 100 लिखने के बाद मुन्ना, 35 लिखने के बाद रेड और विकास जैसे शब्दों का जिक्र है। इसमें मंत्री आलमगीर आलम और मनीष को दिये गये रुपयों के अलावा आलमगीर के घर तक रुपये पहुंचानेवाले के नाम भी शामिल हैं।

    इडी ने इस आवेदन में कमीशन और उसमें मंत्री की हिस्सेदारी को लेकर एक नया एक्सेल शीट कोर्ट में पेश किया। इसमें रांची, सिमडेगा, पाकुड़, जामताड़ा, गोड्डा, गिरिडीह, देवघर सहित अन्य जिलों की योजनाओं का ब्योरा दर्ज है। इसी एक्सेल शीट के एक कॉलम में टेंडर की राशि, कुल कमीशन और मंत्री के कमीशन का ब्योरा लिखा है। एक्सेल शीट में दूसरे नंबर पर बोकारो के मानपुर से भोजुडीह गवईं पुल तक सड़क निर्माण योजना का उल्लेख है। योजना की लागत 8.91 करोड़ रुपये है। इसमें कुल कमीशन की राशि 20.50 लाख रुपये है। इसमें मंत्री का हिस्सा 9.22 लाख रुपये होने का उल्लेख किया गया है। इसी तरह पूरी एक्सेल शीट में योजना और कमीशन का ब्योरा दर्ज है। इस पेज में मंत्री को कुल 1.30 करोड़ रुपये बतौर कमीशन देने का उल्लेख है।

    महाधिवक्ता तक संदेह के घेरे में
    इस रिमांड आवेदन के अलावा इडी ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दिया है। इसके अनुसार इस घोटाले में शामिल संदिग्धों के नेटवर्क की मजबूती का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राज्य के महाधिवक्ता अभियुक्त के पक्ष में न्यायालय में दलील देते हैं। इडी ने कोर्ट को बताया है कि निदेशालय के पास महाधिवक्ता की देखरेख में इडी के अफसरों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराने के सबूत हैं। अवैध खनन की जांच के दौरान याचिकाकर्ता (हेमंत सोरेन) का नाम भी सामने आया था। कमीशनखोरी के मामले में आइएएस अधिकारी राजीव अरुण एक्का शामिल पाये गये। इडी की ओर से इन सभी मामलों में सरकार के साथ सूचनाएं साझा की गयीं, लेकिन सरकार के स्तर से किसी के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गयी। इडी की ओर से हेमंत सोरेन की याचिका में उठाये गये बिंदुओं का जवाब देते हुए इन तथ्यों की जानकारी सुप्रीम कोर्ट को दी गयी है।

    हलफनामे के मुताबिक ग्रामीण विकास विभाग की जांच के दौरान मुख्य अभियंता बीरेंद्र राम को गिरफ्तार किया गया था। इसके बाद विभाग में जारी कमीशनखोरी की पूरी प्रक्रिया की जानकारी मिली। जांच में पाया गया कि कमीशन में ग्रामीण विकास में टेंडर के दौरान कुल लागत का एक निश्चित प्रतिशत कमीशन के रूप में वसूला जाता है। इसमें अधिकारियों, मंत्री और अन्य बड़े राजनीतिज्ञों को कमीशन मिलता है। सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में भूमि घोटाला और कमीशनखोरी में मुख्यमंत्री के तत्कालीन प्रधान सचिव राजीव अरुण एक्का के नाम का भी उल्लेख किया गया है। इस प्रकरण में यह कहा गया है कि विशाल चौधरी द्वारा बाजार मूल्य से पांच से दस गुना अधिक मूल्य पर सामग्री की आपूर्ति की जाती थी। इसमें से राजीव अरुण एक्का कमीशन लेते थे। कमीशन की राशि उनके पारिवारिक सदस्यों के खाते में जमा की जाती थी। हलफनामे में फर्जी दस्तावेज के आधार पर जमीन की खरीद-बिक्री की चर्चा भी की गयी है। झारखंड मुक्ति मोर्चा के पूर्व कोषाध्यक्ष रवि केजरीवाल ने जांच के दौरान अपना बयान दर्ज कराया है। जांच में पाया गया कि एक सौ करोड़ रुपये से अधिक की राशि का 40 शेल कंपनियों में निवेश किया गया है। इन सभी कंपनियों पर अमित अग्रवाल का नियंत्रण है। सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल कर इडी के एक गवाह के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करायी गयी। इसके बाद धारा-164 के तहत उसका बयान भी दर्ज करवाया। राज्य के महाधिवक्ता ने इस मामले में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। यह पूरी प्रक्रिया उन्हीं की देखरेख में पूरी की गयी। इडी के पास इससे संबंधित सबूत हैं। महाधिवक्ता राज्य के शीर्ष विधि पदाधिकारी हैं, लेकिन वह अभियुक्त के पक्ष में न्यायालय में उपस्थित होकर दलील पेश करते हैं।

    इडी के इस खुलासे ने राजनीति यानी विधायिका के अलावा नौकरशाही, यानी कार्यपालिका के भीतर के सड़ चुके माहौल को ही बेपर्दा कर दिया है। झारखंड में भ्रष्टाचार की कहानियां झारखंड की वो स्याह तस्वीर हैं, जिनके कारण दुनिया भर में इसकी पहचान एक भ्रष्ट राज्य और समाज के रूप में बन गयी है। आखिर ये राजनीतिज्ञ और नौकरशाह इतने बेशर्म और निडर कैसे हो जाते हैं कि गलत करने में जरा भी नहीं हिचकते। भारतीय आयकर विभाग का सूत्र वाक्य है ‘कोष मूलो दंड’, अर्थात राज्य चलाने के लिए राजस्व सबसे जरूरी चीज है। भारतीय संविधान ने अपने नागरिकों को जो मौलिक अधिकार दिया है, उसमें संपत्ति का अधिकार भी शामिल है।

    लौटते हैं झारखंड में भ्रष्टाचार की ताजा कहानियों की ओर। राज्य के ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम के निजी सचिव संजीव लाल के घरेलू नौकर के यहां प्रवर्तन निदेशालय की टीम द्वारा 32 करोड़ रुपये बरामद किये जाने से ठीक दो साल पहले इसी 6 मई को राज्य की एक वरिष्ठ आइएएस अधिकारी पूजा सिंघल और उनके सहयोगियों के यहां छापामारी हुई। उनके चार्टर्ड अकाउंटेंट के यहां से 17 करोड़ रुपये नगद बरामद किये गये। इन दो घटनाओं के बीच में एक अन्य आइएएस अफसर छवि रंजन के घर पर छापामारी के दौरान पता चला कि उनके बेडरूम में ‘लेजर लॉक’ लगाया गया था, जिसकी कीमत लाखों में होती है। एक चीफ इंजीनियर बीरेंद्र राम के घर पर छापे के दौरान इडी टीम को एक कमरे में केवल शर्ट का पहाड़ मिला, जो उसके बेटे का था और इन शर्ट में किसी को भी दोबारा नहीं पहना गया था। इडी की टीम को पता चला कि इस चीफ इंजीनियर के घर में हर दिन 10 हजार रुपये का मिनरल वाटर और वह भी विदेशी खर्च होता था और इसकी पत्नी जब खरीदारी के लिए निकलती थी, तो वह दाम नहीं पूछती थी।

    इडी के इन खुलासों ने झारखंड समेत पूरे देश को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिर इन लोगों को इतनी संपत्ति जमा करने की ताकत कहां से मिलती है। भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान पर नजर रखनेवाली एजेंसियों का कहना है कि देश की कार्यपालिका ही नहीं, लगभग सभी अंग कमोबेश इस अभिशाप से ग्रस्त हो चुके हैं। यह बात अलग है कि कार्यपालिका में यह बीमारी अधिक गंभीर है।

    झारखंड के संदर्भ में देश के एक चर्चित आइएएस अधिकारी रहे अनिल स्वरूप ने कहा था: झारखंड की कुव्यवस्था के लिए नौकरशाही ढांचा और लोकसेवक आंशिक रूप से जिम्मेवार हैं। जब झारखंड अलग राज्य बना, बिहार की नौकरशाही चारा घोटाले के दबाव से गुजर रही थी। ऐसे में आरएस शर्मा और राजीव गौबा जैसे उत्कृष्ट लोक सेवक थोड़े दिनों के लिए नये राज्य में मुख्य सचिव बनने के बाद केंद्र में चले गये। बकौल अनिल स्वरूप, झारखंड में अनेक ऐसे नौकरशाह हैं, जो बेहद काबिल हैं, लेकिन कुछ अधिकारियों की अक्षमता, अनिर्णय और बेइमानी की वजह से यह स्थिति पैदा हुई है।

    वैसे तो भारत में भ्रष्टाचार की कहानी नयी नहीं है, लेकिन इसके बेलगाम होने का सिलसिला उदारीकरण के बाद शुरू हुआ। वर्ष 1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था को उदारीकरण एवं वैश्वीकरण की विश्वव्यापी राजनीति-अर्थशास्त्र से जोड़ा गया। तब तक सोवियत संघ का साम्यवादी महासंघ के रूप में बिखराव हो चुका था। पूर्वी यूरोप के अधिकांश देश पूंजीवादी विश्व व्यवस्था के अंग बनने की प्रक्रिया में प्रसव-पीड़ा से गुजर रहे थे। साम्यवादी चीन बाजारोन्मुखी पूंजीवादी औद्योगिकीकरण के रास्ते औद्योगिक विकास का नया मॉडल बन चुका था। पहले भ्रष्टाचार के लिए परमिट-लाइसेंस राज को दोष दिया जाता था, पर जब से देश में वैश्वीकरण, निजीकरण, उदारीकरण, विदेशीकरण, बाजारीकरण एवं विनियमन की नीतियां आयी हैं, तब से घोटालों की बाढ़ आ गयी है। इन्हीं के साथ बाजारवाद, भोगवाद, विलासिता तथा उपभोक्ता संस्कृति का भी जबरदस्त हमला शुरू हुआ है।

    लेकिन झारखंड के आइएएस अफसरों के कारनामों की फेहरिस्त तो इतनी लंबी है कि इस पर पूरी किताब लिखी जा सकती है। एक घटना याद दिलाते हैं। यह घटना 2004 की है। झारखंड बने चार साल ही हुए थे। राज्य में तैनात एक आइएएस अधिकारी राजधानी रांची के सबसे पॉश इलाके अशोक नगर के इलाके में अपने लिए एक मकान खोज रहे थे। तभी उन्हें अरगोड़ा में बन रहे एक अपार्टमेंट के बारे में जानकारी मिली। वह उसे देखने पहुंचे और फ्लैट की बुकिंग कराने की जगह उन्होंने पूरा अपार्टमेंट ही खरीद लिया। उस अपार्टमेंट में आठ फ्लैट थे। सौदा ढाई करोड़ में तय हुआ था। उन दिनों इस सौदे की खूब चर्चा हुई थी। बाद में उस अपार्टमेंट को ध्वस्त कर आलीशान बंगला बनाया गया। हाल के दिनों में आइएएस पूजा सिंघल और छवि रंजन के कारनामों से पूरा प्रदेश शर्मसार हुआ है। और अब तो इसमें एक और नाम मनीष रंजन का जुड़ने जा रहा है। तब सवाल उठता है कि इस स्थिति का कारण क्या है।

    इसका जवाब बहुत मुश्किल भी नहीं है। इस विकराल होती समस्या के पीछे राज्य के राजनीतिक नेतृत्व में भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करन की इच्छा शक्ति का अभाव है। पिछले 22 वर्षों में झारखंड में एकाध मामलों में ही आइएएस-आइपीएस अफसरों के खिलाफ कार्रवाई इसका प्रमाण है। पूजा सिंघल और छवि रंजन के खिलाफ इडी की कार्रवाई को छोड़ दें, तो झारखंड के कई आइएएस-आइपीएस अफसरों ने अकूत संपत्ति अर्जित की है और उनका कुछ नहीं बिगड़ा है। उदाहरण के लिए राज्य के एक पूर्व मुख्य सचिव के पास हाउसिंग कॉलोनी की जमीन पर विशाल बहुमंजिली इमारत है। हर कोई जानता है कि पूर्व डीजीपी डीके पांडेय ने कांके के चामा में बड़े पैमाने पर जमीन खरीद ली और फिर उस पर आलीशान मकान बना लिया। उनकी पत्नी के नाम से हुए इस पूरे सौदे के खिलाफ कार्रवाई पर हाइकोर्ट ने रोक लगा दी है। राज्य के एक पूर्व मुख्य सचिव एके बसु को चारा घोटाले में 2017 में सजा भी सुनायी गयी थी। यह सूची यहीं खत्म नहीं होती। झारखंड के एक आइएएस अफसर के पास रांची में एक सात मंजिली व्यावसायिक इमारत है, तो एक पूर्व मुख्य सचिव ने मुंबई में फिल्म स्टूडियो में निवेश कर रखा है।

    झारखंड के अफसरों के भ्रष्टाचार की कहानी का सबसे दुखद पहलू यह है कि पहले ये लोग अपनी संपत्ति दूसरे राज्यों में निवेश करते थे, लेकिन अब ये खुलेआम झारखंड में निवेश करने लगे हैं। इतना ही नहीं, इनके घरेलू नौकर भी इस खेल में शामिल हो गये हैं। इसके पीछे का कारण यह है कि अब इन अफसरों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती। इसलिए इनकी हिम्मत बढ़ गयी है। एक आइएएस अफसर ने कहा कि यदि पूजा सिंघल के खिलाफ 2010 में ही मनरेगा घोटाले में कार्रवाई हो गयी होती, तो आज झारखंड को शर्मसार नहीं होना पड़ता। भ्रष्टाचार की यह नदी ऊपर से शुरू होती है और नीचे तक आती है। अपने सीनियर अफसरों के कारनामों को देख कर जूनियर अफसर भी सोचते हैं कि यहां कार्रवाई नहीं होती, तो फिर संपत्ति अर्जित करने में बुराई क्या है।

    प्रख्यात हास्य कवि काका हाथरसी की एक मशहूर कविता है, ‘क्यों डरता है बेटा रिश्वत लेकर-छूट जायेगा तू भी रिश्वत देकर’। अच्छी और कमाऊ पोस्टिंग की लालच में अफसर अपने राजनीतिक आकाओं के आगे दुम हिलाते हैं और बदले में भ्रष्टाचार का लाइसेंस पाते हैं। झारखंड को लूटनेवाले इन अफसरों के खिलाफ अब कार्रवाई का समय आ गया है। इनकी महंगी पार्टियों का शोर, जिनमें विदेशी शराब पानी की तरह बहायी जाती है और संपन्नता का अश्लील प्रदर्शन किया जाता है, अब झारखंड के जंगलों-बस्तियों में सुनी जानेवाली मांदर की थाप की गूज में दबाने के लिए यह मुफीद वक्त है।

    भ्रष्टाचार का नया चेहरा आलमगीर आलम
    इडी के खुलासे के बाद क्या कांग्रेस अब भी इडी की इस कार्रवाई को इडी के गलत इस्तेमाल की बात कह कर आम लोगों की आंख में धूल झोंक पायेगी। बिल्कुल नहीं। आलमगीर आलम कांग्रेस से विधायक हैं और झारखंड सरकार में मंत्री हैं। जेल जाने के बाद भी उन्होंने आज तक इस्तीफा नहीं दिया, न ही कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें इस्तीफा देने को कहा है। ग्रामीण विकास विभाग जैसा भारी-भरकम बजट वाला विभाग उनके पास है। भ्रष्टाचार के तमाम अवसर उपलब्ध हैं। उनके ओएसडी के सहायक के घर से इतनी बड़ी राशि की बरामदगी यह बताने के लिए काफी है कि मंत्री आलमगीर आलम के विभाग में क्या कुछ चल रहा है। भ्रष्टाचार किस उंचाई तक पहुंच चुका है। दरअसल आलमगीर आलम झारखंड में भ्रष्टाचार का नया चेहरा बन कर उभरे हैं। आज की तारीख में उनमें लोकलाज भी नहीं बचा है, वरना अब तक वह इस्तीफा दे चुके होते।

    पहले भी विवादों में रहे हैं आइएएस मनीष रंजन
    टेंडर कमीशन घोटाले में पूछताछ के लिए इडी द्वारा बुलाये गये झारखंड कैडर के आइएएस अफसर मनीष रंजन का विवादों से पुराना नाता रहा है। 2002 बैच के मनीष रंजन उस समय सुखियों में आये, जब वह हजारीबाग डीसी थे। उस समय मनीष रंजन अपने सीनियर अफसर डॉ नितिन मदन कुलकर्णी से भिड़ गये थे। डॉ कुलकर्णी उस समय उत्तरी छोटानागपुर के प्रमंडलीय आयुक्त थे। विवाद इतना बढ़ गया कि मामला राजभवन तक पहुंच गया। फिलहाल मनीष रंजन भू-राजस्व विभाग के सचिव हैं। साथ ही उनके पास भवन निर्माण विभाग के सचिव और भवन निर्माण कॉरपोरेशन के एमडी का भी अतिरिक्त प्रभार है।

    इसके बाद देवघर के बहुचर्चित भूमि घोटाले में पूर्व विकास आयुक्त अरुण कुमार सिंह, मस्तराम मीणा और मनीष रंजन को शोकॉज जारी किया गया था। इन अफसरों से भूमि घोटाले में अंतर्लिप्तता को लेकर सवाल पूछा गया है कि क्यों नहीं उनके विरुद्ध विभागीय कार्यवाही शुरू की जाये। दरअसल देवघर भूमि घोटाले (मुकदमा संख्या आरसी 16/2012) की जांच कर रही सीबीआइ ने इन अधिकारियों की संदेहास्पद भूमिका को रेखांकित करते हुए राज्य सरकार से इनके विरुद्ध विभागीय कार्यवाही शुरू कर दंडित करने का निर्देश दिया था। तीनों ही अफसर देवघर के डीसी रहे चुके हैं। सीबीआइ द्वारा दायर चार्जशीट में कहा गया था कि भूमि माफियाओं से मिल कर अधिकारियों ने जिले की लगभग 824 एकड़ सरकारी और निजी भूमि बेच दी। उस समय इसकी अनुमानित कीमत एक हजार करोड़ रुपये से अधिक बतायी गयी थी।

    झारखंड के दो और मंत्री इडी के रडार पर
    टेंडर कमीशन घोटाले की जांच में इडी को जो सबूत मिले हैं, उससे झारखंड सरकार के दो और मंत्री बादल और हफीजुल हसन इडी के रडार पर आ गये हैं। कहा जा रहा है कि इन्होंने भी कंबल ओढ़ कर घी पीया है। जल्द ही उनके बारे में इडी कुछ चौंकानेवाली जानकारी दे सकती है। इसमें भविष्य में कुछ और मंत्रियों और नौकरशाहों के नाम जुड़ जायें, तो आश्चर्य नहीं।

     

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