रांची। क्या आपको पता है झारखंड में एक शिक्षक पर कितने विद्यार्थियों का बोझ है। उच्च शिक्षा की दिशा में इस राज्य में अब तक कितनी नियुक्तियां हुई है। आश्चर्य की बात तो यह है कि राष्ट्रीय स्तर पर 29 छात्रों पर एक शिक्षक की उपलब्धता है जबकि झारखंड में 83 विद्यार्थियों पर एक शिक्षक वह भी मुश्किल से उपलब्ध है और यह आंकड़े चौंकाने वाले हैं। राज्य के एक भी सरकारी विश्वविद्यालय में इतिहास का शिक्षक नहीं है।
झारखंड के 7 सरकारी विश्वविद्यालय लगातार शिक्षकों की कमी की मार झेल रहे हैं। शिक्षकों की कमी जिस तेजी से बढ़ रही है, उससे शिक्षक- छात्र अनुपात पूरी तरह असंतुलित हो गया है। एक आंकड़े के मुताबिक झारखंड की 7 यूनिवर्सिटी में हर साल औसतन 50 से अधिक शिक्षक सेवानिवृत हो रहे हैं लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि 2008 के बाद अब तक नियमित शिक्षकों की नियुक्ति पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
आलम यह है कि राज्य के विश्वविद्यालय में सहायक शिक्षकों के रेगुलर पदों से ज्यादा बैकलॉग के पद रिक्त हो गए हैं लेकिन इन पदों को भी भरा नहीं जा रहा है। अब तक इस राज्य में विश्वविद्यालय सेवा आयोग का गठन नहीं हुआ है, जिससे प्रोफेसरों और वीसी की नियुक्ति का रास्ता साफ हो सके। राज्य गठन के बाद हुई रिक्तियों के अनुसार राज्य के इन विश्वविद्यालयों में सहायक अध्यापकों के ही 1,118 पद से अधिक पद रिक्त है।
रांची विश्वविद्यालय में 268 से अधिक पद खाली है जबकि विनोबा भावे विश्वविद्यालय में इसकी संख्या 158 है। सिदो-कान्हू विश्वविद्यालय 200 का आंकड़ा पूरा करने वाला है जबकि नीलांबर पीतांबर विश्वविद्यालय में 161 से अधिक और कोल्हन विश्वविद्यालय में 374 सहायक अध्यापकों के पद खाली है। इनमें 552 पद पर सीधी और 556 पर बैकलॉग की नियुक्ति होनी है लेकिन इस ओर जिम्मेदार संस्थाओं का कोई ध्यान नहीं है।
शिक्षक संघ के अध्यक्ष राजकुमार का कहना है कि विश्वविद्यालय में भी कुलपति और प्रति कुलपति की नियुक्ति नहीं हो रही है। किसी विश्वविद्यालय में कुलपति नही है, तो किसी विश्वविद्यालय में प्रतिकुलपति नहीं है और जिस विश्वविद्यालय का अभिभावक ही ना हो वह विश्वविद्यालय कैसे चलेगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
राज्य के विश्वविद्यालयों की स्थिति
विश्वविद्यालयों के आंकड़ों पर गौर करें तो झारखंड के सबसे पुराने विश्वविद्यालय रांची विश्वविद्यालय में शिक्षकों के 1,108 पद सृजित है। इनमें 458 शिक्षक कार्यरत है जबकि सेवानिवृत्ति के कारण बाकी पद खाली हैं और उनके जगह कॉन्ट्रैक्ट प्रशिक्षक पठन-पाठन करवा रहे हैं। अनुबंध पर रखे गए शिक्षक भी विद्यार्थियों के अनुपात में ना काफी है। इसके अलावा भी थर्ड ग्रेड के 764 में से 436 और फोर्थ ग्रेड के 731 में से 339 पद खाली है। आरयू में एक महीने में 48 शिक्षक एक साथ सेनानिवृत होने का रिकॉर्ड है। इसके बावजूद इस ओर किसी का भी ध्यान नही है और इसी वजह से इस विद्यालय में ना तो शोध का काम सही तरीके से हो रहा है और ना ही परीक्षाफल प्रकाशन के लिए उत्तर पुस्तिकाओं की जांच ही समय पर हो रही है।
नीलांबर पीतांबर विश्वविद्यालय में भी शिक्षकों की कमी
इसी कड़ी में झारखंड के नीलांबर पीतांबर विश्वविद्यालय में 19 पीजी विभाग में 132 सृजित पद खाली है। 2009 में रांची विश्वविद्यालय से अलग कर नीलांबर पीतांबर विश्वविद्यालय का गठन हुआ था। विश्वविद्यालय के पीजी विभाग और कॉलेजों को मिलाकर कुल 161 पद खाली है। विश्वविद्यालय के गठन के समय ही 19 पीजी विभागों में शिक्षकों के लिए 132 पद जिसमें 22 प्रोफेसर और 44 एसोसिएट प्रोफेसर और 66 असिस्टेंट प्रोफेसर के पद रिक्त हैं। इन पर नियुक्ति भी नहीं हुई है। पीजी विभागों में लगभग 5000 से अधिक विद्यार्थी पठन-पाठन करते हैं। उनकी पढ़ाई का जिम्मा भी शोधार्थियों और 17 से 20 अनुबंधित शिक्षकों के भरोसे है, ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि विश्वविद्यालय में किस गुणवत्ता के पठन-पाठन हो रही है।
डीएसपीएमयू के चौकाने वाले आंकड़े
रांची विश्वविद्यालय से ही अलग किए गए डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय में कॉलेज के समय के ही शिक्षकों के 148 पद स्वीकृत रखा है। इनमें 61 शिक्षक कार्यरत है। 87 पद अभी भी खाली पड़ा है। वहीं विश्वविद्यालय बनने के बाद प्रोफेसर के 29, एसोसिएट प्रोफेसर के 58, असिस्टेंट प्रोफेसर के 116 पद सृजित करने का प्रस्ताव जेपीएससी को भेजा गया है लेकिन यह प्रस्ताव अब तक लंबित है।
दूसरी विश्वविद्यालयों की दयनीय स्थिति
राज्य के अन्य विश्वविद्यालयों की हालत भी कमोबेश इसी स्थिति में है। शिक्षकों की कमी के कारण कई परेशानियों का सामना विद्यार्थियों और कार्यरत शिक्षकों को भी उठाना पड़ रहा है। आरयू, सिदो-कान्हू विश्वविद्यालय, नीलांबर पीतांबर विश्वविद्यालय, विनोबा भावे विश्वविद्यालय, डॉ। श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के अलावा विनोद बिहारी महतो विश्वविद्यालय और कोल्हान विश्वविद्यालय जैसे नए विश्वविद्यालय भी शिक्षकों की कमी का मार झेल रहा है।
अनुबंध शिक्षकों के भरोसे स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी
अनुबंध शिक्षकों के भरोसे कुछ हद तक पठन-पाठन को सुचारु करने की कोशिश जारी है लेकिन झारखंड में विद्यार्थियों के अनुपात में शिक्षकों की भारी गिरावट के कारण राज्य के विश्वविद्यालय और कॉलेज में गुणवत्ता पूर्वक शिक्षण नहीं हो पा रहा है। 8 साल में विद्यार्थियों की संख्या दो गुनी हो गई है क्योंकि विश्वविद्यालय में विद्यार्थी बढ़ते गए और शिक्षक सेवानिवृत्ति होते गए वर्ष 2012-13 के रिपोर्ट के आधार पर 48 विद्यार्थियों पर एक शिक्षक उपलब्ध है। लगभग 6 साल बाद यानी की हालिया आंकड़ा 2018-19 में यह अनुपात 73 हो गया।
2022 से 25 तक के सत्र में यह अनुपात 83 हो गया है। अभी कॉलेज में 83 छात्र-छात्राओं पर एक शिक्षक वो भी मुश्किल से उपलब्ध है। जबकि राष्ट्रीय स्तर पर 29 छात्रों पर एक शिक्षक की उपलब्धता जरूरी है। ऐसे में झारखंड के कॉलेज और विश्वविद्यालय की स्थिति क्या है इसका अंदाजा इन आंकड़ों के आधार पर ही लगाया जा सकता है।