रांची: बाबू, हमें किसी से शिकवा-शिकायत नहीं। हमारे पास जांगर है। हम पत्थर पर भी फसल उगाने का जज्बा रखते हैं। बशर्ते हमें खेत के लिए पानी मिल जाये और पानी डीप बोरिंग से ही मिलेगा। हम जमाने से लड़ लेंगे। समाज की मुख्यधारा में जुड़ जायेंगे। हम किसान परिवार के हैं और श्रम की रोटी खाना जानते हैं। हम जांगर खटा कर बच्चों को पढ़ा-लिखा लेंगे। हमें जीवन भर के लिए नहीं, बल्कि अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए थोड़ी सी मदद चाहिए। घर के नाम पर मिट्टी से बनी जर्जर दीवार, ऊपर लकड़ी के सहारे लगी खपड़ैल से किसी तरह पानी और धूप रोकने की असफल कोशिश। फिलहाल दाता के ऊपर आश्रित है पूरा परिवार।
असमय परिवार के मुखिया के नहीं रहने के कारण एक बड़ा पहाड़ इस परिवार पर गिर पड़ा है और वह पहाड़ है दशकर्म और बारहवीं का श्राद्ध, जिसकी चिंता विधवा को खाये जा रही है। कहती है: जब तक समाज का जूठन दरवाजे पर नहीं गिरवायेंगे, तब तक यह घर शुद्ध भी तो नहीं होगा। और जब दूसरों का खाये हैं, तो उन्हें खिलाना भी तो पड़ेगा, तभी तो समाज में मान-सम्मान रहेगा, नहीं तो हमारे दरवाजे पर कौन खड़ा होगा। लेकिन मुश्किल यह है कि घर में खाने को दाना और पानी नहीं है। सब कुछ दाता के ऊपर आश्रित है। फिर दशकर्म और श्राद्ध कैसे होगा, अभी यही बड़ी चिंता है इस परिवार के लिए।
यह संवाददाता शुक्रवार को पिठोरिया के सुतियांबे गया था। बलदेव महतो के घर, जिसकी मौत बुधवार की आधी रात के बाद और गुरुवार को अहले सुबह कुएं में गिरने से हो गयी थी। खबर फैली कि बैंक और कुछ और जगहों से ऋण के बोझ में दबे बलदेव ने कुएं में छलांग लगा कर आत्महत्या कर ली। पूरे झारखंड में यह खबर फैली। गांव में लोगों का तांता लगा। सब उसके घर पहुंचे। परिवार के प्रति सहानुभूति जतायी। कुछ-कुछ मदद भी मिली। कुछ मदद का इंतजार है। सचमुच में बलदेव के परिवार को सहानुभूति की जरूरत है। उसे आर्थिक मदद की भी जरूरत है। परिवार को अपने पैर पर खड़ा होने और बच्चों को शिक्षा दिलवाने के लिए मदद चाहिए और वह हर हाल में मिलनी चाहिए। लेकिन हम आपको बलदेव महतो के सच से वाकिफ कराना चाहते हैं।
बलदेव महतो ने 20 हजार रुपये का कर्ज महिला समिति से लिया था, बहुत पहले, जिसमें से कुछ रकम उसने वापस कर दी थी और कुछ आज भी बकाया है। उसने अपने भाई से भी बीस हजार रुपये कर्ज लिये थे, वह पैसा भी वह नहीं चुका पाया था। बैंक से अभी हाल में इसी महीने आठ जून को उसने कर्ज लिया था। कुछ पैसे उसने बैंक से निकाले थे। बुधवार को वह घर से पांच हजार रुपये लेकर पिठोरिया चौक की तरफ गया था। पांच बजे के आसपास वह घर लौटा। फिर उसने चाय पी।
उसके बाद वह फिर घर से निकल गया और रात नौ बजे वह लड़खड़ाते पैरों से घर पहुंचा। पत्नी अनिता और दोनों बच्चे सोनू कुमार और मनीष कुमार काफी नाराज हुए। उनकी नाराजगी का कारण था कि पांच हजार रुपये में से सिर्फ चार सौ तीस रुपये उसके पॉकिट में थे। लगभग 1399 रुपये की उसने मोबाइल खरीदी थी। बाकी के पैसे उसने शराब पीने में खर्च कर दिये। उस दिन तीन-चार लोगों के साथ बलदेव ने शराब पी।