कानून-व्यवस्था की हालत बेहद खराब, एक माह में बिगड़ी है स्थिति

आज से 15 साल पहले सूर्यास्त के बाद झारखंड की राजधानी रांची से बाहर जाना सुरक्षित नहीं माना जाता था। रांची-पटना हाइवे के अलावा किसी भी सड़क पर शाम के बाद यातायात थम-सा जाता था। पिछले पांच साल के दौरान पुलिस-प्रशासन की सख्ती के कारण यह स्थिति पूरी तरह बदल गयी है, लेकिन अब भी एक रास्ता ऐसा है, जहां से शाम के बाद कोई वाहन गुजरना नहीं चाहता। यह रास्ता है रांची-खूंटी-बंदगांव-चक्रधरपुर का रास्ता। पुलिस प्रशासन तमाम प्रयासों के बावजूद इस रास्ते को अब तक निरापद नहीं बना सका है। यह उदाहरण इस बात को प्रमाणित करने के लिए काफी है कि कोल्हान बेलगाम हो चला है।
पिछले महीने की 23 तारीख को चुनाव परिणाम की घोषणा होने के बाद से कोल्हान के तीन जिलों, चाईबासा, जमशेदपुर और सरायकेला-खरसावां जिले में कानून-व्यवस्था की स्थिति तेजी से खराब हुई है। इन तीन जिलों में हुईं बड़ी आपराधिक वारदातों ने पूरे झारखंड को बदनाम तो किया ही है, पुलिस-प्रशासन की नींद भी उड़ा दी है। सबसे खास बात यह है कि ये ऐसी वारदातें हैं, जो पहले झारखंड में नहीं हुईं।
नक्सली वारदात
शुरुआत करते हैं नक्सली वारदात से। तीन राज्यों, पश्चिम बंगाल, ओड़िशा और छत्तीसगढ़ की सीमा से लगनेवाले कोल्हान प्रमंडल के सारंडा और गुड़ाबांधा इलाके में नक्सली हमेशा से सक्रिय रहे हैं। झारखंड में नक्सलियों के बड़े हमले में से एक बिटिकलसोय का हमला है, जिसमें 16 जवान शहीद हो गये थे। इसके अलावा सांसद सुनील महतो की हत्या भी इसी इलाके में हुई थी। इतना ही नहीं, गुड़ाबांधा के लांगों में ग्रामीणों ने नौ नक्सलियों को मार गिराया था। पिछले पांच वर्ष के दौरान कोल्हान और खास कर सारंडा से नक्सलियों के सफाये का दावा किया गया था। लेकिन 28 मई को नक्सलियों ने सरायकेला में जवानों पर हमला कर साबित कर दिया कि उनकी सक्रियता खत्म नहीं हुई है। इतना ही नहीं, महज एक पखवाड़े बाद 14 जून को बेखौफ नक्सलियों ने पांच जवानों की हत्या कर दी और उनके हथियार लूट ले गये। खुफिया सूत्र बताते हैं कि इलाके में नक्सली पूरी तरह संगठित हैं और बरसात के बाद पुराने रास्ते पर लौट सकते हैं। यह स्थिति चिंताजनक है, क्योंकि झारखंड के दूसरे हिस्से से नक्सली लगभग खत्म हो चुके हैं। इक्का-दुक्का घटनाएं होती हैं, लेकिन वे नक्सलियों के कमजोर होने की ओर ही संकेत करती हैं।
गैर-कानूनी पत्थलगड़ी
दो साल पहले खूंटी के गांवों में देशतोड़क पत्थलगड़ी आंदोलन शुरू हुआ था, जो करीब एक साल तक जारी रहा। इस दौरान खूंटी का इलाका राज्य सरकार के लिए सिरदर्द बना रहा।
लेकिन पिछले एक साल से इलाके में न तो पत्थलगड़ी की चर्चा है और न ही इस असंवैधानिक गतिविधि का कहीं कोई नामो-निशान है। ऐसी जानकारी है कि पत्थलगड़ी अभियान के कर्ता-धर्ता कोल्हान में डेरा जमा चुके हैं और वहां से अपनी गतिविधि चलाने की साजिश में लगे हैं। चाईबासा के रामो बिरुवा को कौन भूल सकता है, जिसने खुद को कभी कोल्हान का राजा घोषित कर दिया था। हालांकि बाद में उसे गिरफ्तार कर राजद्रोह के आरोप में सजा हो गयी। कोल्हान में ऐसी देशतोड़क गतिविधि होती रहती है, लेकिन पत्थलगड़ी समर्थकों का वहां एकत्र होना इस बात का संकेत है कि यह इलाका तेजी से ऐसे तत्वों का पनाहगाह बनता जा रहा है।
डायन-बिसाही, अफवाह और अंधविश्वास
कोल्हान में डायन-बिसाही, अफवाह और अंधविश्वास में हिंसा और हत्याएं बहुत होती थीं, लेकिन पिछले दो साल में इस स्थिति में सुधार हुआ था। पिछले एक महीने में हालात फिर से बिगड़ने लगे हैं। सरायकेला के धातकीडीह में 17 जून को हुई तबरेज की हत्या इसका सबसे ताजा उदाहरण है। दो साल पहले बच्चा चोर गिरोह की अफवाह भी कोल्हान से ही शुरू हुई थी। इस अफवाह के कारण कम से कम 10 लोगों की हत्या हो गयी, जमशेदपुर में सांप्रदायिक तनाव पैदा हो गया और कई इलाकों में आपसी सद्भाव खत्म होने लगा। लेकिन पुलिस प्रशासन की सूझबूझ से मामला नियंत्रित हो गया। अब भीड़ की पिटाई से तबरेज की मौत और उस मामले के आरोपियों के गांव में बाहरी लोगों द्वारा उत्पात मचाने और धमकी दिये जाने से हालात बेकाबू होने लगे हैं। इसी तरह पिछले एक महीने में कोल्हान में डायन-बिसाही और अंधविश्वास में कम से कम 10 लोगों की हत्या हो चुकी है। ये घटनाएं साबित करती हैं कि कोल्हान का पुलिस प्रशासन या तो पूरी तरह सतर्क नहीं है या फिर उसका खुफिया तंत्र पूरी तरह ध्वस्त हो चुका है।
अंडरवर्ल्ड की बढ़ती गतिविधियां
देश के महानगरों को मात देनेवाला जमशेदपुर अपनी खूबसूरती और उद्योगों के लिए जहां पूरी दुनिया में चर्चित रहा, वहीं यहां के आपराधिक गिरोह भी कुख्यात रहे। हाल के दिनों में जमशेदपुर का अंडरवर्ल्ड भी काफी सक्रिय हो गया है। 25 जून को जमशेदपुर के धातकीडीह जेल के भीतर अंडरवर्ल्ड के दो सरगनाओं और उनके समर्थकों की भिड़ंत में एक कैदी की मौत हो गयी और कई अन्य घायल हो गये। यह एक अप्रत्याशित घटना थी। इससे पहले झारखंड की जेल के भीतर इतनी हिंसा कभी नहीं हुई थी। अविभाजित बिहार में जरूर रांची जेल में एक कैदी की गला रेत कर हत्या की गयी थी। जमशेदपुर जेल के भीतर की यह वारदात उस समय हुई, जब महज 24 घंटे पहले अधिकारियों ने वहां तलाशी अभियान चलाया था। इसके अलावा जेल के बाहर भी कानून-व्यवस्था की स्थिति बहुत अधिक सुकून देनेवाली नहीं है। दिन-दहाड़े अपराधी अपने शिकार को गोली मारते हैं, ट्रेनों में लूट होती है और डकैती-बलात्कार तो आम बात हो गयी है।
कहीं यह साजिश तो नहीं
कोल्हान के अशांत होने के पीछे कहीं कोई साजिश तो नहीं, यह सवाल झारखंड के लोगों में उमड़ रहा है। चर्चा है कि तेजी से विकास के रास्ते पर बढ़ रहे झारखंड को रोकने के लिए कुछ तत्व सक्रिय हो गये हैं। कोल्हान वैसे भी खनिज संपदाओं के साथ-साथ उद्योग-धंधों के लिए भी प्रसिद्ध है। यदि कोल्हान में आर्थिक गतिविधियां धीमी होंगी, तो इसका असर पूरे झारखंड पर पड़ेगा। यह बात सभी को मालूम है।
ऐसी हालत में पुलिस-प्रशासन के लिए यह दोहरी चुनौती है। उसे कोल्हान को दोबारा शांति के रास्ते पर लौटाना है और साथ ही इसे अशांत करनेवाली साजिश, यदि है तो, को बेनकाब करना है। जितनी जल्दी ऐसा हो जाये, झारखंड के लिए उतना ही श्रेयस्कर होगा।

Share.

Comments are closed.

Exit mobile version