पश्चिम बंगाल में दीदी के समर्थक जल्लाद की भूमिका में
खुलेआम भाजपाइयों को फांसी पर लटका रहे हैं टीएमसी के गुंडे
बंगाल का जर्रा-जर्रा खून का प्यासा!
गुंडों की हिफाजत में जुटी पुलिस, आम लोग दहशत में
उत्तर 24 परगना में हर दिन मारे जा रहे हैं भाजपाई
खुद सड़क पर उतर कर धमका रहीं दीदी
हाथ में तलवार लेकर भाजपाइयों के खिलाफ उतर गये रोहिंग्या

कभी देश में जल्लादों की कमी, अखबारों की सुर्खियां बनती हैं। कई बार ऐसी खबर आयी कि कोर्ट के आदेश के बाद फांसी देने के लिए जल्लाद नहीं मिल रहे हैं। लेकिन पश्चिम बंगाल में ठीक इसके उलट है। वहां मुखे कानून है और टीएमसी का विरोध कर रहे मानुष का कत्लेआम हो रहा है। दीदी राज के उस मुखे कानून का पालन करने के लिए अब गुंडे ही जल्लाद की भूमिका में आ गये हैं। वे चुन-चुन कर आरएसएस और भाजपाइयों को पहले मारपीट रहे हैं और फिर उन्हें खुलेआम पेड़ पर फांसी के फंदे से लटका दे रहे हैं। इन गुंडों की टोली में खूंखार रोहिंग्या भी शामिल हो गये हैं, जिन्हें देश से निकालने का ऐलान भाजपा करती है। उन्हें टीएमसी के समर्थक खुलेआम संरक्षण दे रहे हैं।
यहां हम दो घटनाओं का जिक्र करना चाहेंगे, इससे साफ हो जायेगा कि आज पश्चिम बंगाल की ममता ने कितना क्रूर रूप अख्तियार कर लिया है। बीते दिनों हावड़ा के आमटा स्थित सरपोटा गांव में बीजेपी कार्यकर्ता समातुल दोलुई का शव पेड़ से लटकते हुए मिला। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि एक झुंड की शक्ल में कुछ गुंडे आये। उन्होंने दोलुई को मारा पीटा और उसे पकड़ कर ले गये। बाद में उसका शव पेड़ पर लटकते मिला। इससे पहले राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता स्वदेश मन्ना का शव अतचटा गांव में पेड़ से लटकते हुए मिला था। मन्ना ने कुछ दिनों पूर्व स्थानीय स्तर पर जय श्रीराम रैली निकाली थी। उसके घरवालों का कहना है कि टीएमसी के गुंडे उसे धमका रहे थे और अंतत: उन लोगों ने उसकी हत्या ही कर दी। भाजपा और आरएसएस समर्थक इन दो लोगों को मारपीट कर फांसी पर लटका देने की तस्दीक दोलुई के परिवार और भाजपा के नेता भी कर रहे हैं। हावड़ा बीजेपी के अध्यक्ष अनुपम मल्लिक ने कहा कि दोलुई बीजेपी का सक्रिय कार्यकर्ता था और उसने अपने बूथ में लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी को बढ़त दिलायी थी। हैवानियत की हद तो तब हो गयी, जब दोलुई के शव को घर वाले ले जाना चाह रहे थे। टीएमसी के गुंडों ने शव को छीनने का प्रयास भी किया। उसके घर में तोड़फोड़ की। और बंगाल की पुलिस मूकदर्शक बनी रही।
ताजा घटना उत्तर 24 परगना जिले के कांकीनाड़ा की है। यहां टीएमसी के गुंडों ने बम मार कर भाजपा के दो कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी। इसमें चार कार्यकर्ता बुरी तरह घायल हैं। इस घटना ने राज्य के माहौल को और बिगाड़ दिया है। बता दें कि इस इलाके से ही अर्जुन सिंह ने ममता बनर्जी को झटका दिया और टीएमसी छोड़ कर भाजपा में शामिल हो गये। उसके बाद भाजपा ने उन्हें बैरकपुर लोकसभा सीट से अपना प्रत्याशी बनाया और उन्होंने टीएमसी उम्मीदवार को बुरी तरह परास्त किया। बता दें कि यहां पर भाटपाड़ा भी है, जहां से उनके पुत्र पवन सिंह ने विधानसभा उपचुनाव में भाजपा के टिकट पर जीत हासिल की है। उनके भतीजे ने भाटपाड़ा नगरपालिका का सीन ही बदल दिया।
इस नगरपालिका के चालीस पार्षदों ने एक साथ टीएमसी छोड़ भाजपा में विलय कर लिया और अब भाटपाड़ा नगरपालिका पर भाजपा का कब्जा है। उसके बाद से ही उस इलाके को टीएमसी के गुंडों ने अपना निशाना बना लिया है और उनका मनोबल बढ़ा रही हैं ममता बनर्जी।
जानिये दादागिरी की और बानगी
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और बीजेपी की लड़ाई तीखी हो गयी है। अब दोनों के बीच एक दूसरे के पार्टी दफ्तरों पर कब्जा करने की मारामारी शुरू हो गयी है। उत्तर 24 परगना जिले के नैहाटी में खुद ममता बीजेपी दफ्तर का ताला तोड़ने पहुंचीं। ममता बनर्जी का कहना था कि यह टीएमसी का दफ्तर था, जिस पर बीजेपी ने कब्जा कर लिया था। दरअसल 30 मई को जब पीएम नरेंद्र मोदी अपनी कैबिनेट के साथ दिल्ली में शपथ ले रहे थे, उसी समय बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले में ममता बनर्जी धरने पर थीं। नैहाटी में रैली को संबोधित करने के बाद ममता बीजेपी के दफ्तर पर पहुंचीं। उन्होंने अपने सामने ताले तुड़वाये। ममता के आदेश पर आॅफिस से भगवा रंग और कमल का निशान हटाया गया। बीजेपी के दफ्तर पर कब्जा करने के बाद ममता ने अपने सामने ही सफेदी पोतवाई और इसके बाद ममता ने खुद दीवार पर अपनी पार्टी का चिह्न पेंट किया और पार्टी का नाम भी लिखा।
यही नहीं, उसी दिन उन्होंने जय श्रीराम का नारा लगानेवालों को सड़क पर उतर कर धमकाया और कहा कि तुम सब बाहर के हो। तुम्हें हम भगा कर सांस लेंगे। यहीं पर ममता बनर्जी ने एक आठ साल के बच्चे को गाड़ी से उतर कर देशद्रोही कहा। उसका कसूर इतना था कि उस अबोध बालक ने ममता के सामने जय श्रीराम का नारा लगा दिया। ममता ने वहीं पर पुलिस को यह मौखिक आदेश दिया कि जय श्रीराम का नारा लगानेवालों की शिनाख्त करो और जेल भेजो। उसके बाद पुलिस ने दस भाजपा कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। उत्तर 24 परगना के जगदल, भाटपाड़ा और कांकीनाड़ा की आज की मौजूदा स्थिति इतनी भयावह हो गयी है कि टीएमसी के गुंडे जिस-तिस को घर से खींच रहे हैं और खुलेआम उन्हें पीट रहे हैं। वहीं पर सोमवार को बम मार कर दो भाजपाइयों की हत्या कर दी गयी, जबकि चार गंभीर रूप से घायल हैं। इस घटना के बाद इलाके के आम लोग अपने घरों में कैद हो गये हैं। उसी तरह बशीरहाट की स्थिति पर भयावह हो गयी है। यहां भाजपाइयों का सड़क पर निकलना मुश्किल हो गया है। उनके घरों में आग लगायी जा रही है। उन्हें सरेआम मारपीटा जा रहा है और पुलिस मूकदर्शक बनी हुई है। आज की मौजूदा स्थिति यह है कि वहां राम का नाम लेने पर खून बहाया जा रहा है।
जय श्रीराम कहने पर जान लेने की खूनी रवायत बंगाल की राजनीति का वो अक्स है, जो रांची, दिल्ली या मुंबई में बैठकर महसूस नहीं किया जा सकता। पिछले दिनों लोकसभा चुनाव के नतीजे आये और केंद्र में बंपर बहुमत से दोबारा मोदी सरकार बन गयी, लेकिन बंगाल में टीएमसी और बीजेपी के बीच सियासी हिंसा खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। सच यह है कि कभी रवींद्र नाथ टैगोर की धरती रही बंगाल में आज खुलेआम बम-बारूद का इस्तेमाल हो रहा है। आज स्थिति इतनी भयावह हो गयी है, जिसे जानकर आपके रोंगटे खड़े हो जायेंगे। चुनाव में टीएमसी के पटकनी खाने के बाद पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा का सबसे पहला मामला वर्धमान के केतुग्राम से सामने आया था, जहां एक बीजेपी कार्यकर्ता की हत्या कर दी गयी थी। वह भी उसी दिन, जब दिल्ली में मोदी सरकार दोबारा शपथ ले रही थी। उस दिन खुद ममता बनर्जी आइ हेट मोदी, हाइ हेट मोदी का खुलेआम नारा लगा रही थीं। बीजेपी कार्यकर्ता सुशील मंडल देश में एक बार फिर मोदी सरकार बनने की खुशी में जगह-जगह पार्टी के झंडे लगा रहे थे, तभी टीएमसी के गुंडे आये और बीजेपी का झंडा लगाने का विरोध करने लगे। बहस हुई, बात बढ़ी और इसी दौरान चाकू से हमला कर दिया गया। लेकिन इसके पीछे का सच बहुत डरावना है। मंडल की पत्नी ने बताया कि जय श्रीराम कहने पर सुशील मंडल की जान ले ली गयी। राजनीतिक मंचों से निकलने वाली रिपोर्ट के मुताबिक कुछ दिनों में बंगाल में भारतीय जनता पार्टी के 80 कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है। ये हत्याएं पंचायत चुनाव से लेकर लोकसभा चुनाव के दरम्यान की गयीं। दरअसल पंचायत चुनाव में पहली बर ममता बनर्जी को यह एहसास हुआ कि बंगाल की धरती पर कमल खिलने लगा है। वह बेचैन हो गयीं। उनके समर्थक हाथों पर हथियार लिये पंचायत चुनाव में जीत दर्ज करनेवाले भाजपाइयों के खून के प्यास हो गये। उन्हें चुन-चुन कर मारा पीटा जाने लगा। उनमें से कुछ लोग इतने भयभीत हो गये कि भाग कर उन्होंने झारखंड में शरण ली थी। हालांकि ममता बनर्जी अकसर कहती रहती हैं कि बंगाल में राजनीतिक हिंसा नहीं होती, लेकिन तस्वीरें और गवाह सामने हैं। बंगाल की सच्चाई सामने है कि किस तरह वहां 1972 के बाद खुलेआम नक्सलवाद के नाम पर कत्ल हुआ और कैसे हिंसा को हथियार बना कर लेफ्ट फ्रंट वहां सत्ता में आया। ममता बनर्जी भले ही इनकार करें, लेकिन दीदी की सियासत भी लेफ्ट की हिंसा में झुलस कर ही निखरी थी। पश्चिम बंगाल की सियासी फिजां जमाने तक खून से रंगी रही। 21वीं सदी का बंगाल पहले लेफ्ट और टीएमसी और अब टीएमसी-बीजेपी के संघर्षों से लाल होता रहा है। लेफ्ट राज में भी राजनीतिक हत्याएं हुईं, लेकिन यह आंकड़ा अचानक 2009 में बढ़ गया, जब राजनीतिक कत्लेआम की गिनती 50 तक पहुंच गयी। ये वही दौर था जब मां, माटी और मानुष के नारे के सहारे ममता बनर्जी बंगाल की सत्ता पर काबिज हो रही थीं। 2010, 2011 और 2013 में राजनीतिक हत्याओं के मामले में बंगाल पूरे देश में अव्वल रहा।
खून का बदला खून की राजनीति का गवाह है बंगाल
सत्तर-अस्सी के दशक की हिंदी फिल्मों की कहानियों की तरह खून का बदला खून की तर्ज पर बंगाल में राजनीति का जो दौर शुरू हुआ था, उसकी जड़ें अब काफी मजबूत हो चुकी हैं। एक अनुमान के मुताबिक पांच दशक के दौरान बंगाल में राजनीतिक हिंसा में पांच हजार से ज्यादा लोग जान गंवा चुके हैं। यानी मातम की कहानियां और भी हैं। सियासी रंजिश में अपनों के गम में रोती आंखें और भी हैं।
पश्चिम बंगाल की धरती पर राजनीति का यह ऐसा भयानक चेहरा है, जिसकी कल्पना भर से रूह कांप उठती है। लेकिन बंगाल का रक्त चरित्र आने वाले दिनों में किसी बड़े तूफान की दस्तक दे रहा है। हद तो तब है, जब देश के एक बड़े तबके को यह दिखाई नहीं पड़ रहा है। वह इस हत्या के खिलाफ कुछ नहीं बोल रहा है। सब कुछ देख कर भी वह अपनी आंखें बंद किये हुए है।
लोकतंत्र को शर्मसार कर रहा दीदी राज
बंगाल में आजकल नफरत की जो राजनीत हो रही है, यह लोकतंत्र के लिए बहुत ही शर्मसार करनेवाला है। ममता बनर्जी और केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी के संबंध हमेशा तल्ख रहे हैं। जिस प्रकार से शारदा चिटफंड घोटाले में पूछताछ करने के लिए वहां के पुलिस कमिश्नर से सीबीआइ के साथ दुर्व्यवहार करवाया, ऐसा उदाहरण आपको और कहीं नहीं मिलेगा। सीबीआइ के अधिकारी पूछताछ करने के लिए उनके घर पहुंचे थे। ममता बनर्जी के दुलरूवा पुलिस अफसरों की हिमाकत देखिये कि उन्होंने सीबीआइ के अधिकारियों को ही हिरासत में ले लिया। उनके साथ जोर-जबरदस्ती की गयी। उन्हें थाने में लाकर बैठा दिया गया। उनके कार्यालय पर पुलिस का पहरा लगा दिया गया। यानी पश्चिम बंगाल की पुलिस ने ममता बनर्जी की शह पर लोकतांत्रिक व्यवस्था के ऊपर संवैधानिक संकट पैदा कर दिया। इतना ही नहीं, अपने चहेते पुलिस अधिकारियों का मनोबल बढ़ाने के लिए ममता बनर्जी सीबीआइ के खिलाफ खुद धरने पर बैठ गयीं। उन्होंने यहां तक कहा कि यहां ममता का शासन है। केंद्रीय जांच एजेंसी की नहीं चलेगी। दरअसल ममता बनर्जी कभी सीबीआइ के खिलाफ आंदोलन करने लगती हैं, तो कभी अर्द्धसैनिक बलों के खिलाफ। कभी उन्हें चुनाव आयोग मोदी का पिट्टू लगने लगता है, तो इवीएम से भाजपा का जिन्न निकलते नजर आता है। कभी वह प्रधानमंत्री को राजनीतिक चांटा मारने की बात कहती हैं, तो कभी यह कह कर प्रधानमंत्री से टेलीफोन पर बात करने से इनकार कर देती हैं कि वह केंद्र की नौकर नहीं हैं। अब तो वह अपने अफसरों को भी केंद्र की बैठक में जाने से मना कर देती हैं।
वे यहां तक कहती हैं कि अब वे प्रधानमंत्री के लिए मिठाई नहीं, बल्कि कंकड़ भेजेंगी, जिसे खाने के बाद मोदी का दांत टूट जायेगा। उनके मुंह से शब्द नहीं, मानों विष वाण निकल रहे हैं।

रोहिंग्या के आतंक से बंगाल लाल
पश्चिम बंगाल आज गैर कानूनी रूप से बांग्लादेशियों का शरण स्थली बना हुआ है। इनकी करतूतों से बंगाल की धरती खून से लाल हो रही है। बांग्लादेशी देश विरोधी गतिविधयों मे संलिप्त रहते हैं। इन सभी को ममता बनर्जी का खुला समर्थन है। बांग्लादेशी घुसपैठियों का बंगाल में वोटर कार्ड और राशन कार्ड तक बन गया है। ये सभी ममता बनर्जी के वोट बैंक माने जाते हैं। मालवा जैसे इलाकों में ये खुले आम अफीम की खेती करते हैं। इनको न ही पुलिस का खौफ है न ही सरकार का। नशे का कारोबार खुलेआम चलता है। अब पूरी तरह बंगाल को खोखला कर दिया गया है। बेरोजगारी बंगाल में भयानक रूप ले चुकी है। आम लोग टीएमसी से त्रस्त हैं। आलम यह है कि बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले के बरुईपुर थाना क्षेत्र में स्थित गांव हरदा में 16 अस्थायी कमरे बनाये गये हैं और वहां म्यांमार के रखाइन प्रांत से आये रोहिंग्याओं को बसाया गया है। अब इन रोहिंग्याओं ने अपने हाथों में तलवार उठा ली है और टीएमसी समर्थकों के संरक्षण में वे खुलेआम रक्तपात कर रहे हैं।
जय श्रीराम सुनते ही बौखला जाती हैं दीदी
जय श्रीराम का नारा पश्चिम बंगाल में राजनीति की नयी विभाजक रेखा है, जिसका आविष्कार 2019 के चुनाव में बीजेपी ने किया। यहां दीदी इस नारे को सुन कर बौखला जाती हैं। अपना आपा खो देती हैं। आठ साल के मासूम बच्चे को भी नहीं बख्शती हैं। नारा लगानेवाली भीड़ पर भी कार्रवाई का आदेश पुलिस को देती हैं। जयश्री राम का नारा मर्यादा पुरुषोत्तम राम के लिए लगाया जाता है। बंगाल सिर्फ ममता बनर्जी का ही राज नहीं है। वहां देश के सभी प्रदेशों के लोग रहते हैं। क्या ममता बनर्जी बंगाल में पैदा होनेवाले को ही बंगाल की नागरिक समझती हैं और वहां रह रहे अन्य प्रदेश के लोग और उनके विरोधी गाजर-मूली हैं। क्या ममता बंगाल को भारत का हिस्सा नहीं मानती हैं। क्या बंगाल को अलग देश बनाना चाहती हैं। आलम यह है कि शवयात्रा में भी राम का नाम लेने पर टीएमसी के गुंडे उन्हें पिटने से बाज नहीं आ रहे हैं।

कहां गये मानवधिकार के रक्षक और असहिष्णुता के पक्षधर
बंगाल में लगातार कत्लेआम हो रहा है। दुर्भाग्य है कि वहां अब तक एक भी मानवाधिकार के रक्षक खुल कर सामने नहीं आये हैं। और तो और असहिष्णुता के नाम पर अपने चेहरे को चमकानेवाले तथाकथित बड़े नाम ने भी बंगाल में हो रही हिंसा पर अपनी जुबां नहीं खोली है। यही वाकया यदि किसी ऐसे प्रदेश में होता, जो हिंदी भाषा भाषी होता, तो देखते कैसे गला फाड़ कर असहिष्णुता की दुहाई देते कई बड़े चेहरे दिख जाते। मुंबई की बालीवुड तक सड़कों पर उतर जाती। लेकिन आज सभी मौन हैं और वहां खुलेआम इंसानियत की हत्या हो रही है।

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