क्या झारखंड की चुनावी जंग मोदी बनाम नीतीश की होने वाली है?

बिहार से बाहर जेडीयू, एनडीए से अलग होकर अपने दम पर चुनाव लड़ेगी। झारखंड में बीजेपी की रघुवर दास सरकार के विरोध में झंडा बुलंद करते हुए जेडीयू सभी 81 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। इस बात की घोषणा जदयू के प्रदेश अध्यक्ष सालखन मुर्मू पहले ही कर चुके हैं। पार्टी जम्मू-कश्मीर, दिल्ली और हरियाणा के चुनाव में भी अपने कैंडिडेट खड़ा करने जा रही है। इसका खुलासा पार्टी स्तर पर हो चुका है। अगले चार महीने में झारखंड में चुनाव होनेवाले हैं और जदयू पूरी मजबूती से इन चुनावों में उतरने की तैयारी कर रही है। पार्टी का कहना है कि वह नीतीश के ब्रांड और उनके विकास के लोकप्रिय मॉडल के सहारे झारखंड में चुनाव लड़ेगी। अभी तक ऐसा लग रहा है कि बीजेपी अपने सीएम रघुवर दास को आगे रख कर ही चुनाव लड़ने जा रही है, लेकिन राज्यों के चुनाव में भी प्रधानमंत्री मोदी जिस सक्रियता से हिस्सा लेते हैं और जिस हिसाब से उनकी चुनावी रैलियां होती हैं, ऐसे में सवाल उठता है कि क्या झारखंड का चुनाव मोदी बनाम नीतीश का होने जा रहा है?

रिश्तों में खटास से नयी राजनीतिक संभावनाएं

मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में मंत्रिमंडल के गठन के वक्त से शुरू हुई बीजेपी-जेडीयू के रिश्तों में खटास की वजह से नयी-नयी राजनीतिक संभावनाएं बनने लगी हैं। जेडीयू अपनी पार्टी के विस्तार का हवाला देकर आनेवाले चार राज्यों के विधानसभा चुनाव में अपना उम्मीदवार उतारने जा रही है। हर राज्य में इसका मुकाबला बीजेपी उम्मीदवारों से होगा। सवाल है कि क्या जेडीयू की झारखंड समेत अन्य राज्यों में ऐसी स्थिति भी है कि वह मजबूत फाइट दे सके या वह किसी खास रणनीति के तहत चुनावों में उतर रही है? क्या वह केंद्र की मोदी सरकार को दबाव में लेना चाहती है या फिर इन राज्यों में सीट बंटवारा करा कर खुद मजबूत होना चाहती है। बिहार से उसको स्वाद मिल चुका है। 2014 के चुनाव में 2 सीटों पर सिमटनेवाली जदयू 2019 के चुनाव में 16 सीटों पर काबिज हो गयी, जबकि रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा ने इतिहास बनाते हुए सभी छह सीटों पर जीत कर ली। भले ही जदयू और लोजपा को यह गुमान हो, लेकिन यह तल्ख सच्चाई है कि बगैर मोदी की सुनामी के यह परिणाम नहीं हो सकता था।

जेडीयू की नजर देश की राजनीति पर 

विश्लेषकों का मानना है कि जदयू की नजर देश की राजनीति पर है। पार्टी को राष्टÑीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए उसे अन्य राज्यों में चुनावों में उतरना ही पड़ेगा। अरुणाचल प्रदेश में जदयू सात सीट जीत कर मुख्य विपक्षी पार्टी बनी है।

वहीं नागालैंड में एक विधायक मंत्री बना है। 1996 में जब बिहार में बीजेपी के साथ जदयू आया, उसके बाद से बिहार के बाहर सिर्फ झारखंड में ही गठबंधन रहा है। झारखंड में 2014 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू, एनडीए से अलग होकर लड़ी थी। जेडीयू ने आरजेडी और कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाकर चुनाव लड़ा, लेकिन एक भी सीट हासिल नहीं कर पाया। 2013 में जेडीयू ने एनडीए का साथ छोड़ दिया था। जेडीयू का आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर महागठबंधन बनाने का प्रयोग झारखंड में नाकाम रहा था। इसके पहले 2009 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और जेडीयू मिलकर लड़ी थी। जेडीयू ने दो सीटों पर जीत हासिल की थी।

झारखंड में नीतीश को ब्रांड बना चुनाव लड़ेगी जेडीयू

झारखंड जेडीयू के अध्यक्ष सालखन मुर्मू कहते हैं कि हम नीतीश कुमार के ब्रांड या मॉडल को उतारेंगे। नीतीश कुमार ने पूरे बिहार को पिछले 15 साल में चमका दिया है। उनके राज्य का जीडीपी रेट पूरे देश में नंबर वन है। गांव-गांव तक पानी-बिजली, सड़क पहुंचा कर वह विकास पुरुष बन चुके हैं। हालांकि सालखन मुर्मू इस बात से इनकार करते हैं कि ऐसा करने पर झारखंड की चुनावी जंग मोदी बनाम नीतीश की हो जायेगी। लोकसभा चुनाव में झारखंड में भाजपा की प्रचंड बहुमत दिखी। अब सवाल है कि इस प्रचंड जीत के सामने जेडीयू खुद को कहां देखती है?

नीतीश के सुशासन के दावे पर ‘दाग’ है सृजन घोटाला

सृजन घोटाला मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सुशासन के दावे पर एक ‘दाग’ है। इसमें करोड़ों के सरकारी फंड का गबन किया गया और अधिकारियों, बैंककर्मियों और नेताओं की संलिप्तता उजागर हुई है। सृजन घोटाला मामले का खुलासा हुए दो साल होने को हैं, लेकिन जांच एजेंसी किसी विशेष नतीजे पर नहीं पहुंच पायी है। यह कम रहस्य की बात नहीं है कि केंद्रीय जांच एजेंसी जहां सृजन घोटाले के मुख्य आरोपी अमित कुमार और प्रिया कुमार को गिरफ्तार करने में नाकाम रही, वहीं महंगे गहनों के साथ सेल्फी लेने की शौकीन आरोपी इंदू गुप्ता को भी ट्रेस करने में अब तक विफल साबित हुई है। हमारे देश की जांच एजेंसियां इतनी कमजोर भी नहीं है कि वह सार्वजनिक जीवन में रहनेवाले लोगों को ट्रेस नहीं कर सकें। ऐसे में जाहिर है जांच की दिशा, कार्यशैली और मंशा सही दिशा में नहीं जा रही है। शुरुआती दौर में छोटा लगनेवाला यह स्कैम करीब 1900 करोड़ तक पहुंच गया है। सीबीआइ ने सृजन घोटाले में 25 अगस्त 2017 को एफआइआर दर्ज करते हुए इसकी जांच शुरू की। सीबीआइ इस मामले में अब तक 12 प्राथमिकी दर्ज कर चुकी है। साथ में आरोप पत्र भी दायर कर चुकी है।

मौका भुनाने में माहिर हैं नीतीश

राजनीति के रंग हजार हैं। यह बिहार की राजनीति में देखने को खूब मिलता है। इसमें भी खासकर नीतीश कुमार की बात ही निराली है। पार्टी की तरक्की, सीएम की कुर्सी और वोटरों को खुश रखने की कला में उन्हें माहिर माना जाता है। इस तिकड़ी के लिए वह मौका को भुनाने और पलटी मारने में जरा भी नहीं हिचकते हैं। बिहार की राजनीति इस बात की गवाह रही है। पहले बिहार में मोदी के खिलाफ कांग्रेस और राजद के साथ मिल कर महागठबंधन बनाया। सीएम की कुर्सी हासिल की, लेकिन जैसे ही लगा कि राजद कुछ खेल कर सकता है, तो मौका देख कर भाजपा से हाथ मिलाने में थोड़ी भी हिचकिचाहट नहीं दिखाई। लोकसभा में भी भाजपा के साथ चुनाव लड़े। भाजपा के हर काम की खुले दिल से प्रशंसा की और बिहार की राजनीति में दो सीट से बढ़कर 16 तक पहुंच गये। अब धारा 370 पर नीतीश अपने वोटरों को नाराज नहीं करना चाहते हैं, इस कारण इसके विरोध में इनकी पार्टी खड़ी होने लगी है। पार्टी कह रही है कि वह लोकसभा और राज्यसभा में बिल का विरोध करेगी। वहीं तीन तलाक बिल में भी साथ नहीं देने की बात खुलकर जदयू के नेताओं ने की है।

इन कारणों से अब स्पष्ट होने लगा है कि नीतीश कुमार आनेवाले दिनों में पलटी मारेंगे, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। कारण उनकी नजर 2020 के विधानसभा चुनाव पर है और उन्होंने किसी भी हाल में किसी के साथ गठबंधन से परहेज किये बिना सत्ता तक पहुंचने का मन बना लिया है। इस बार ईद के मौके पर जीतन राम मांझी की पार्टी में टोपी पहन कर नीतीश कुमार ने साफ संदेश दे दिया है कि अब उनके लिए राजद और हम कंटक नहीं हैं। राजनीति के जानकार कहते हैं कि आनेवाले दिनोें में अगर जदयू फिर राजद और कांग्रेस के साथ हाथ मिला कर बिहार के राजनीतिक दंगल में उतर जाये, तो यह अचंभित करनेवाली बात नहीं होगी। झारखंड में भी उसे महागठबंधन का हिस्सा बनने में कोई परहेज नहीं होगा। ऐसे में अब भाजपा को तय करना है कि उसका रुख क्या होगा!

Share.

Comments are closed.

Exit mobile version