देहरादून। देश पर 1975 में जिस तरह से आपातकाल थोपा गया, उससे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की पार्टी के कद्दावर नेता हेमवती नंदन बहुगुणा कतई खुश नहीं थे। उस वक्त वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। कांग्रेस के साथ बंधे होने की वजह से उन्होंने इस फैसले का खुलकर विरोध तो नहीं किया, लेकिन सभी जानते थे कि बहुगुणा इस फैसले पर इंदिरा गांधी के साथ नहीं है। आपातकाल खत्म होने के बाद 1977 में लोकसभा चुनाव के दौरान बहुगुणा ने कांग्रेस का दामन छोड़ दिया। कारण पार्टी में उपेक्षा और आपातकाल जैसे निर्णय को ही माना गया।
बहुगुणा के करीबी लोग बताते हैं कि एक लोकतांत्रिक देश में आपातकाल को हेमवती नंदन बहुगुणा अच्छा नहीं मानते थे, हालांकि संविधान में तकनीकी रूप से इसकी व्यवस्था की गई है। 1975 में जिस वक्त आपातकाल लागू हुआ, उस वक्त तक कांग्रेस के भीतर इंदिरा और बहुगुणा का टकराव काफी आगे बढ़ चुका था। इस बात को उस वक्त के बडे़ नेता भी जानते थे और इसका लाभ लेने की उन्होंने कोशिश भी की। आपातकाल लागू होने से पहले लखनऊ में हुई जयप्रकाश नारायण की रैली का जिक्र करते हुए इसे समझा जा सकता है। इस रैली में जेपी ने इंदिरा गांधी पर जबरदस्त हमले किए थे, लेकिन उन्हीं की पार्टी के नेता उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा की खूब तारीफ की थी।
हेमवती नंदन बहुगुणा के राजनीतिक शिष्य सूर्यकांत धस्माना के अनुसार बहुुगुणा आपातकाल के निर्णय से असहज थे लेकिन कांग्रेस पार्टी के अनुशासित सिपाही होने के कारण उन्होंने कुछ भी ऐसा नहीं किया, जिससे पार्टी को नुकसान पहुंचता। वह दिल्ली में आयोजित मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में शामिल ही नहीं हुए, बल्कि वहां उनकी भूमिका बहुत प्रभावी भी दिखी। रेडियो मास्को ने इसके बाद बहुगुणा जी को भावी प्रधानमंत्री बताया था।
आपातकाल लागू होने के कुछ समय बाद बहुगुणा ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद उनका इंदिरा गांधी से टकराव काफी बढ़ गया था। इसकी परिणिति यह हुई कि 1977 के लोकसभा चुनाव आते-आते जगजीवन राम, भजन लाल जैसे नेताओं को साथ लेकर बहुगुणा ने कांग्रेस फाॅर डेमोक्रेसी बना ली थी। उनकी पार्टी का बाद में जनता पार्टी में विलय हो गया था लेकिन पार्टी के नाम से ही स्पष्ट था कि आपातकाल को लेकर कांग्रेस के बहुुगुणा समेत अन्य तत्कालीन नेताओं में किस तरह की असहमति थी।