दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली हिंसा के मामले में यूएपीए कानून के तहत गिरफ्तार जामिया यूनिवर्सिटी की छात्रा सफूरा जरगर को मंगलवार को जमानत दे दी। जस्टिस राजीव शकधर की बेंच ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुई सुनवाई के बाद सफूरा जरगर को दस हजार रुपये के मुचलके पर जमानत दी। कोर्ट ने सफूरा जरगर को निर्देश दिया कि वह साक्ष्यों को प्रभावित नहीं करेंगी और ट्रायल कोर्ट की अनुमति के बिना दिल्ली के बाहर नहीं जाएंगी। कोर्ट ने सफूरा को निर्देश दिया कि वह 15 दिन में एक बार जांच अधिकारी से फोन पर बात करेगी।
कोर्ट ने कहा कि उसे इस मामले में कुछ सीलबंद लिफाफे मिले थे, जिसे उसने खोला नहीं है। कोर्ट ने सीलबंद लिफाफे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को लौटाने का आदेश दिया। आज सुनवाई के दौरान तुषार मेहता ने कोर्ट से कहा कि सरकार मानवीय आधार पर सफूरा जरगर को रिहा करना चाहती है। तुषार मेहता ने कहा कि अगर सफूरा जरगर अपने ऊपर लगाए गए आरोपों में दोबारा लिप्त नहीं होती है तो उन्हें रिहा किया जा सकता है। इस पर कोर्ट ने कहा कि दिल्ली पुलिस का प्रतिनिधित्व कौन करे, इस पर वाक युद्ध आरोपी के अधिकारों को प्रभावित नहीं करना चाहिए। तब तुषार मेहता ने कहा कि उन्हें उप राज्यपाल ने इन मामलों के लिए दिल्ली पुलिस की ओर से पेश होने का निर्देश दिया है। हर सुनवाई में इस तरह की स्थिति कोर्ट के अंदर पैदा नहीं होनी चाहिए।
दिल्ली पुलिस ने अपने हलफनामे में सफूरा जरगर की ज़मानत अर्जी का विरोध किया था। दिल्ली पुलिस ने दिल्ली हाई कोर्ट में दाखिल जवाब में कहा था कि गर्भवती होने की वजह से सफूरा ज़मानत की हक़दार नहीं हो सकती। उसके खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं। कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को इस मामले पर निर्देश लेकर आने का निर्देश दिया। दिल्ली पुलिस ने सफूरा की ज़मानत अर्जी का विरोध करते हुए कहा था कि प्रेग्नेंसी के मद्देनजर जेल में नियमों के मुताबिक उसे ज़रूरी मेडिकल सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं। पिछले 10 सालों में जेल में 30 डिलीवरी हो चुकी है। नियमों के मुताबिक गर्भवती कैदियों का जेल में पर्याप्त ध्यान रखा जाता है।
कोर्ट ने पिछली 26 मई को सफूरा जरगर की न्यायिक हिरासत 25 जून तक बढ़ा दी थी। सफूरा जरगर को दिल्ली पुलिस ने 11 अप्रैल को गिरफ्तार किया था। पुलिस के मुताबिक 22 फरवरी की रात नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ महिलाएं जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के नीचे बैठ गई थीं। सफूरा जरगर पर आरोप है कि उसी दौरान सफूरा भीड़ को लेकर वहां पहुंची और हिंसा की साजिश रची। इसके बाद उत्तर-पूर्वी जिले में कई दिनों तक हिंसा होती रही जिसमें कम से कम 53 लोगों की मौत हो गई और 200 ज्यादा लोग घायल हो गए थे। सफूरा जरगर जामिया कोआर्डिनेशन कमेटी की मीडिया प्रभारी थी।