अजय शर्मा
रांची। कोल ब्लॉक आवंटन की प्रक्रिया को रोकने के लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने जो कदम उठाया है, उसने उनका राजनीतिक कद काफी बढ़ गया है। पूरे झारखंड में जहां हेमंत सोरेन की सराहना हो रही है, वहीं विपक्ष इस मुद्दे पर पूरी तरह अलग-थलग पड़ गया है। सरकार ने इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। इसके पीछे मूल मंशा यह है कि पूरी प्रक्रिया को फिलहाल रोका जाये और पहले झारखंड में पूर्व में आवंटित कोल ब्लॉक के अनसुलझे मुद्दों को सुलझाया जाये। सीएम और उनकी पूरी टीम यह चाहती है कि कोल ब्लॉक पूंजीपतियों की बजाय वैसे लोगों के हाथों में जाये, जो जमीन के मालिक हैं। झामुमो इन मुद्दों को लेकर पहले भी आंदोलन कर चुका है।
पहले से जो निजी और सरकारी कोल ब्लॉक झारखंड में कोयला उत्पादन कर रहे हैं, वहां रह रहे लोगों की स्थिति सुधरने की बजाय और बदतर हो गयी है। स्थानीय युवकों को नौकरी देने, कोयला खनन के लिए जमीन देनेवालों को नौकरी-मुआवजा देने, पर्यावरण और अन्य मामले अब भी अनसुलझे हैं।
सीएम का मानना है कि पूर्व में आवंटित कोल ब्लॉकों का लाभ इलाके के लोगों को नहीं मिला। उनकी आर्थिक स्थिति में भी कोई सुधार नहीं हुआ। सीएम ने जब नये आवंटन को लेकर अपना बयान दिया, तो अचानक यहां के लोग उनको झारखंडियों की आवाज के रूप में देखने लगे। सीएम भी इस मामले में पूरी तरह संजीदा हैं। वह कई बार कह चुके हैं कि भारत सरकार ने बगैर राज्य सरकार की सहमति के निर्णय ले लिया। यहां की भौगोलिक स्थिति और आदिवासियों की संस्कृति पर भी उसने विचार नहीं किया। यह बयान देकर सीएम आदिवासियों को एकजुट करने में एक बार फिर सफल रहे।
अब हेमंत इस कदम को पीछे खींचने के लिए तैयार नहीं हैं। यदि इस मामले पर किसी समझौते की गुंजाइश भी बनती है, तो भी सीएम पहले झारखंडी हितों को सामने रखेंगे। इस पूरे मामले की सबसे खास बात यह है कि विपक्ष पूरी तरह अलग-थलग पड़ गया है।