Close Menu
Azad SipahiAzad Sipahi
    Facebook X (Twitter) YouTube WhatsApp
    Thursday, May 29
    • Jharkhand Top News
    • Azad Sipahi Digital
    • रांची
    • हाई-टेक्नो
      • विज्ञान
      • गैजेट्स
      • मोबाइल
      • ऑटोमुविट
    • राज्य
      • झारखंड
      • बिहार
      • उत्तर प्रदेश
    • रोचक पोस्ट
    • स्पेशल रिपोर्ट
    • e-Paper
    • Top Story
    • DMCA
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Azad SipahiAzad Sipahi
    • होम
    • झारखंड
      • कोडरमा
      • खलारी
      • खूंटी
      • गढ़वा
      • गिरिडीह
      • गुमला
      • गोड्डा
      • चतरा
      • चाईबासा
      • जमशेदपुर
      • जामताड़ा
      • दुमका
      • देवघर
      • धनबाद
      • पलामू
      • पाकुर
      • बोकारो
      • रांची
      • रामगढ़
      • लातेहार
      • लोहरदगा
      • सरायकेला-खरसावाँ
      • साहिबगंज
      • सिमडेगा
      • हजारीबाग
    • विशेष
    • बिहार
    • उत्तर प्रदेश
    • देश
    • दुनिया
    • राजनीति
    • राज्य
      • मध्य प्रदेश
    • स्पोर्ट्स
      • हॉकी
      • क्रिकेट
      • टेनिस
      • फुटबॉल
      • अन्य खेल
    • YouTube
    • ई-पेपर
    Azad SipahiAzad Sipahi
    Home»देश»गांव में भूखा रहने से बेहतर, परदेस में भरपेट खाकर कोरोना से संघर्ष करना
    देश

    गांव में भूखा रहने से बेहतर, परदेस में भरपेट खाकर कोरोना से संघर्ष करना

    sonu kumarBy sonu kumarJune 12, 2020No Comments3 Mins Read
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram LinkedIn Pinterest Email
    बेगूसराय। वैश्विक महामारी कोरोना के कहर से बचने के लिए लॉकडाउन के बाद उत्पन्न स्थिति ने ना सिर्फ देशभर में भागमभाग की स्थिति उत्पन्न कर दी, बल्कि इससे गांव से लेकर शहर तक की अर्थव्यवस्था भी छिन्न-भिन्न हो गई। कोरोना संक्रमित मरीजों की लगातार बढ़ती संख्या को देखते हुए सरकार ने कई दिशा-निर्देश लागू कर रखे हैं। लोगों को बाहर निकलने से रोका जा रहा है, सोशल डिस्टेंस का पालन करने की सलाह दी जा रही है लेकिन पेट की भूख ने कोरोना को पीछे छोड़ दिया है। दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता समेत 12 शहर को सरकार ने ‘क’ श्रेणी में रखा है तथा यहां मरीजों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है लेकिन इन शहर को छोड़ घर आए लोग अब एक बार फिर इन्हीं शहरों की ओर रुख कर चुके हैं। इनकी मजबूरी है, गांव में काम नहीं है तो परदेस जाने के सिवा कोई विकल्प ही नहीं है। परदेस नहीं जाएंगे, पैसे नहीं आएंगे तो परिवार कैसे चलेगा। कोरोना पेट पर तो रोक लगा नहीं सकता है। 
    दिल्ली-मुंबई आदि के लिए स्पेशल ट्रेन चलाए जाने के बाद उनकी परदेस वापसी सिर्फ श्रमिकों की नहीं हो रही है। श्रमिक से भी अधिक ऐसे लोग परदेेेेस की ओर भाग रहे हैं, जिनका दिल्ली, मुंबई में कोई ना कोई धंधा है। कोई धंधा करते हैं, कोई प्राइवेट कंपनी में काम करते हैं। अगर नहीं जाएंगे तो धंधे में लगी पूंजी बर्बाद हो जाएगी। प्राइवेट कंपनी में काम करने वाले अगर नहीं जाएंगे तो उनके निकाले जाने का खतरा रहेगा। परदेस जा रहे लोगों का कहना है कि गांव में रहकर भूूूखे मरने से बेहतर है कि भरपेट खाकर कोरोना से संघर्ष किया जाए। इम्यूनिटी पावर बढ़ाकर संघर्ष करेंगे तो कोरोना हारेगा, हम और हमारा देश जीतेगा।
    बरौनी जंक्शन से ट्रेन पकड़ कर अपने परिवार के साथ मुम्बई जा रहे मुकेश ने बताया कि लॉकडाउन होने के बाद मुंबई के वर्धा में चल रहा उनका कारोबार ठप हो गया था। किसी तरह पहले से बचे पैसे के सहारे वहां दिन गुुजार रहे थे। सरकार ने जब श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाई तो वह भी 20 अप्रैल को गांव आ गया था लेकिन यहां रहकर क्या करते, वर्धा में अपना छोटा सा जनरल स्टोर है। वहीं दुकान के पीछे सपरिवार रहते हैं, मजे से जिंदगी जी रहे थे। घर के लोगों ने मुम्बई में कोरोना संक्रमण के बढ़ रहे मामले से उत्पन्न संकट को देखते हुए जाने से मना किया लेकिन बगैर गए तो गुजारा नहीं हो सकता है। चार साल से मुम्बई में रह रहे हैं, लॉकडाउन में भले ही सरकार ने मदद नहीं किया, स्थानीय लोगों ने हेय दृष्टि से देखा, बावजूद इसके वहां भी अपना समाज है।
    मुकेश कहते हैं कि हम प्रवासियों को हर स्तर पर परेशानी उठानी पड़ती है। हमारे दर्द को महसूस करना सबके बस की बात नहीं है। लोग अपने राज्य में रोजी-रोटी का जुगाड़ नहीं हो पाने के कारण ही तो दूसरे राज्यों में अपना श्रम सस्ते में बेच रहे हैं ताकि परिवार का भरण-पोषण हो सके। सरकारों के कथनी और करनी में अंतर होता है, मेहनत मजदूरी कर कमाने-खाने वाले ऐसे ही व्यवस्था में विश्वास नहीं रखते। यहां सरकार काम देने की कवायद कर रही है, श्रमिकों को मनरेगा, सात निश्चय समेत अन्य योजना में काम मिल रहा है लेकिन यह काम कितने दिन और कितने मजदूर को मिलेगा। उद्योग धंधा शुरू करने में सरकार को वर्षों लग जाएंगे।

     

    Share. Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous Articleखुद मरा, कइयों को कोरोना दे गया ‘किस’ बाबा
    Next Article बंगाल के स्कूल की किताब में अश्वेत व्यक्ति को बताया कुरूप, शिक्षामंत्री ने की कार्रवाई
    sonu kumar

      Related Posts

      मणिपुर में नई सरकार बनाने की कवायद तेज, 10 विधायकों ने राज्यपाल से की मुलाकात

      May 28, 2025

      कैबिनेट : खरीफ फसलों के एमएसपी में बढ़ोत्तरी

      May 28, 2025

      कैबिनेट : चार लेन के बडवेल-नेल्लोर राजमार्ग को मिली मंजूरी

      May 28, 2025
      Add A Comment

      Comments are closed.

      Recent Posts
      • मणिपुर में नई सरकार बनाने की कवायद तेज, 10 विधायकों ने राज्यपाल से की मुलाकात
      • कैबिनेट : खरीफ फसलों के एमएसपी में बढ़ोत्तरी
      • बांग्लादेश में जमात नेता एटीएम अजहरुल इस्लाम 14 साल बाद जेल से रिहा
      • नेपाल और चीन की सेना के बीच संयुक्त सैन्य अभ्यास की तैयारी
      • न्यूजीलैंड के उपप्रधानमंत्री का दो दिवसीय नेपाल दौरा आज से
      Read ePaper

      City Edition

      Follow up on twitter
      Tweets by azad_sipahi
      Facebook X (Twitter) Instagram Pinterest
      © 2025 AzadSipahi. Designed by Microvalley Infotech Pvt Ltd.

      Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.

      Go to mobile version