बेगूसराय। देश के तमाम बड़े शहर से प्रवासी श्रमिकों के लौटने का सिलसिला जारी है। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, गुवाहाटी, अगरतला जैसे शहरों से लौटने का सिलसिला जारी रहने के बीच राजस्थान, हरियाणा और पंजाब की ओर श्रमिकों के जाने का क्रम भी धीरे-धीरे तेज हो रहा है। मिल मालिक और बड़े-बड़े जमींदार रिजर्व एसी बस भेज कर श्रमिकों को मंगवा रहे हैं। उन्हें डर है कि यदि बिहार से श्रमिकों के लाने की विशेष व्यवस्था नहीं की जाएगी तो यह लौट कर नहीं आएंगे और उनका विकास कार्य रुक जाएगा। इधर, गांव में रह रहे श्रमिकों में से कुछ सरकारी स्तर से मिले काम की बदौलत गांव के विकास और पर्यावरण संरक्षण का इतिहास रच रहे हैं। गांवों में जिस पोखर के जीर्णोद्धार में साल- दो साल लगते थे, वह प्रवासी श्रमिकों के श्रम शक्ति की बदौलत 10 से 15 दिनों में हो रहा है। लॉकडाउन के दौरान काम उपलब्ध कराए जाने के बाद जिले के 23 से अधिक पोखर का जीर्णोद्धार हो चुका है।
पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य से जल जीवन और हरियाली के लिए मनरेगा एवं लघु सिंचाई विभाग की योजनाओं से कराए गए जिर्णोद्धार के कारण मानसून की पहली बारिश में ही पोखरों में पानी जमा हो गया है। पोखर के चारों ओर हरियाली के लिए पेड़ लगाए जा रहे हैं। सरकार की सोच है कि जल और हरियाली रहेगा, तभी तो जीवन सुरक्षित रह सकेगा। लघु जल संसाधन विभाग द्वारा बेगूसराय जिला में 42 सार्वजनिक तालाब, पोखर के जीर्णोद्धार का लक्ष्य दिया गया था, जिसमें से लॉकडाउन के दौरान 23 का कार्य पूरा कर लिया गया है, जबकि 11 योजनाओं का प्रगति पर है। इसके अलावा भी प्रशासन देश के विभिन्न शहरों से आए श्रमिकों को कौशल के अनुसार रोजगार उपलब्ध कराने के लिए रोजगार के विभिन्न अवसर सृजित किए जा रहे हैं। श्रमिकों का रजिस्ट्रेशन किया जा रहा है, बेगूसराय में अब तक 26,484 प्रवासियों का डाटा फिड किया जा चुका है। जबकि काम करने के इच्छुक 1964 श्रमिकों को मनरेगा, लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग, हर घर नल का जल, बरौनी रिफाइनरी, ग्रामीण कार्य विभाग एवं पथ निर्माण विभाग में रोजगार उपलब्ध कराया गया है लेकिन इससे श्रमिकों का कुछ होने वाला नहीं है।
बेगूसराय में देश के विभिन्न हिस्सों से 60 हजार से भी अधिक श्रमिक वापस आए हैं। इन्हें काम उपलब्ध कराना नामुमकिन तो नहीं लेकिन मुश्किल जरूर है। जल, जीवन और हरियाली अभियान में लगे दोरिक सहनी, इंदल सहनी, विनोद पासवान आदि ने बताया कि हम लोग दिल्ली में काम करते थे। लॉकडाउन हो जाने के बाद जब काम बंद हो गया तो वहां रोटी पर भी आफत हो गई। उत्तम नगर में रहते थे, झुग्गी से निकलना मुश्किल था। चार दिन तक चूरा-दालमोट खाकर रहे, जिसके बाद करीब 20 दिनों की लंबी पैदल यात्रा कर हम लोग गांव आए। यहां एकांतवास केंद्र (क्वारेन्टाइन सेंटर) में 14 दिन रहने के बाद घर जाने की इजाजत मिली। सेंटर पर ही फॉर्म भरा था, जिसके बाद काम मिल गया है लेकिन इसके बाद काम मिलेगा यह कहना मुश्किल है। अगर काम नहीं मिला तो भी दिल्ली नहीं जाएंगे, एक- दो महीने के बाद पंजाब या हरियाणा मजदूरी करने चले जाएंगे, यहां रहेंगे तो फिर पेट कैसे भरेगा। सुनने में आया है कि प्रधानमंत्री द्वारा हम गरीबों के लिए योजना चलाई गई है अगर उस योजना में काम मिला तो ठीक, नहीं मिला तो परदेस का ही आशा है।