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    Home»Breaking News»प्रवासियों का दर्द : खेत में ही करेंगे मजदूरी, गांव में मिलती है छांव
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    प्रवासियों का दर्द : खेत में ही करेंगे मजदूरी, गांव में मिलती है छांव

    azad sipahiBy azad sipahiJune 5, 2020No Comments4 Mins Read
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    बेगूसराय । बिहार के अन्य जिलों की तरह बेगूसराय में भी प्रवासियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। यहां 50 हजार से अधिक प्रवासी अपने घर को लौट चुके हैं। प्रवासियों की लगातार हो रही घर वापसी कई दर्द बयां कर रही है। कुछ दर्द तो ऐसे हैं जिसे सुनकर सामने वालों के कलेजे कांप उठता है। काम की तलाश में परदेस जाने का गम और लॉकडाउन में जलालत झेलकर एक दिन की दूरी सात-आठ दिन में तय करने का दर्द लोगों के चेहरों पर साफ दिखता है। शुक्रवार सुबह कोलकाता से लौटे प्रवासी कामगारों ने सदर अस्पताल जांच कराने जाते समय ट्रैफिक चौक पर पिछले दिनों की पूरी व्यथा को सबके सामने रखा। उसके सच से बिहार सरकार के साथ बंगाल सरकार की भी भाषणबाजी उजागर हुई।
    प्रवासी मजदूर राम शंकर पासवान, विनय पासवान, रामविलास पासवान, रामनाथ पासवान, बैजू पासवान आदि कहते हैं कि परिवार छोटा था, बच्चे छोटे थे, तो गांव में किसी तरह गुजारा हो जाता था। बच्चे के साथ परिवार भी जब बढ़ने लगा तो तीन साल पहले गांव में गुजारा मुश्किल हो गया और इन लोगों ने कोलकाता की राह पकड़ ली। बड़ा बाजार के आसपास सैकड़ों की संख्या में बिहारी रहते हैं, वहां पहुंचे तो दो-तीन दिन में ही काम का जुगाड़ हो गया। किसी ने थोक कपड़ा मंडी में मोटिया का काम शुरू कर दिया तो किसी ने किराये ठेला लेकर चलानी शुरू कर दी। समय गुजरता गया और वहां मिले मजदूरी से गांव में परिवार के दिन सुखपूर्वक बीतने लगे। परिवार से दूर होने का गम तो था लेकिन खुशी भी थी। रोज रात में घरवालों से बात होती तो राहत मिलती थी। मोदी जी ने जब फोर जी मोबाइल की व्यापक पैमाने पर उपलब्धता सुनिश्चित की थी तो विनय ने आठ हजार में एंड्राइड मोबाइल खरीद लिया, उसके बाद वीडियो कॉलिंग से बात हो जाती थी। इसी दौरान लॉकडाउन हो गया तो बाजार पूरी तरह से बंद हो गया। कोलकाता के जिस बड़ा बाजार में दिनभर लोगों का तांता लगा रहता था, वहां मरघटी सन्नाटा पसर गया, मनुष्य के दर्शन दुर्लभ हो गए।
    इसके बाद उन लोगों की जिंदगी जलालत में गुजरने लगी। लॉकडाउन में एक सप्ताह के बाद जब भोजन पर आफत आ गई तो शुरू हो गया रोटी के लिए संघर्ष। सरकार के तरफ से कोई व्यवस्था नहीं थी लेकिन कोलकाता में बिहार के भी बहुत लोग व्यवसाय और राजनीति करते हैं। उन लोगों ने जरूरतमंदों को भोजन कराना शुरू किया लेकिन वह भी कितने दिन खिलाते। रामविलास बताते हैं कि जब सब ओर से निराशा छा गई और लगा कि काम धंधा लंबे समय तक बंद रहेगा तो हम लोगों ने घर जाने का निर्णय लिया, पैदल ही चल पड़े गांव की ओर। आसनसोल तक आने के बाद एक ट्रक ड्राइवर देवघर तक छोड़ने के लिए तैयार हुआ और उसने हम लोगों से एक-एक हजार रुपये वसूल लिए। जसीडीह से सड़क मार्ग से आगे बढ़े तो बिहार के बॉर्डर पर रोक दिया गया। घंटों इंतजार के बाद आगे बढ़ाया गया और जमुई पहुंचकर राहत की सांस ली।
    जमुई में स्थानीय लोगों ने खाना खिलाया। लखीसराय होते हुए पहुंच गए अशोक धाम, जहां बाहर से भोले बाबा को प्रणाम किया और निश्चय किया कि नहीं जाना है अब परदेस। एनएच के रास्ते संदेश के रूप में बड़हिया में खोबिया का लड्डू खरीद लिया और आगे बढ़ते गए। सिमरिया में गंगा किनारे आकर एक झोपड़ी में रात्रि विश्राम किया और अल सुबह गंगा स्नान करने के बाद ऑटो पकड़ कर बेगूसराय आए और सदर अस्पताल जांच कराने जा रहे हैं। अब गांव जाएंगे, यहीं काम धंधा हो जाएगा, नहीं भी मिला तो बटाई पर खेत लेकर खेत में ही मजदूरी करेंगे लेकिन परदेस नहीं जाएंगे। सबसे सुंदर अपना गांव है। हम लोगों को कोरोना ने बता दिया कि हम सब पैसा के लिए कमाने के लिए घर छोड़कर चाहे कितनी भी दूर चले जाएं लेकिन छांव मिलती है गांव में ही।

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