बेगूसराय। प्रवासी कामगारों के बड़ी संख्या में घर वापसी के बाद उनके श्रम का उपयोग करने के लिए विभिन्न तरह की कवायद हो रही है। केंद्र सरकार ने प्रवासियों को अपने गांव में ही रोजगार उपलब्ध कराने के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण रोजगार अभियान शुरू किया है। बिहार सरकार भी मनरेगा, जल जीवन हरियाली एवं सात निश्चय समेत अन्य योजनाओं के माध्यम से उन्हें काम दिलाने की कोशिशों में लगी है। बिहार के कुशल और अर्धकुशल कामगारों एवं सस्ते श्रम का साथ छूटता देख अब देश के बड़े बड़े राज्य परेशान हैं। बिहार के लिए यह एक बड़ा अवसर है कि इन श्रम-शक्ति का सफल प्रयोग कर अपने ही क्षेत्र में रोजगार के अवसर सृजित किए जाएं।
लॉकडाउन के दिन से ही जरूरतमंदों की मदद में लगातार लगे समाजिक कार्यकर्ता रजनीकांत पाठक कहते हैं कि अपना मिथिलांचल रोजगार के बेहतर सम्भावनाओं का बल रखता है। प्राचीन काल से ही मिथिला संस्कृति ने स्वरोजगार का नजीर पेश किया है लेकिन वर्तमान में इस क्षेत्र में सरकार का विशेष ध्यान नहीं होने पर यहां की कुशलता के सापेक्ष में रोजगार को बढ़ावा नहीं मिल पाया है। मधुबनी और दरभंगा जिलों में कुटीर उद्योगों के रूप में सिक्की आर्ट, मिथिला पेंटिंग, मधुबनी पेंटिंग (वर्तमान में जिसकी मांग देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों तक है) को बढ़ावा देकर लघु उद्योग के रूप में उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है और लाखों लोगों को इस माध्यम से रोजगार मिल सकता है।
दूसरी ओर खाद्य आधारित उद्योगों की बात की जाए तो भारत के कुल मखाना उत्पादन में 80 प्रतिशत उत्पादन क्षमता रखने वाला मधुबनी जिला रोजगार के माध्यम प्रदान कर सकता है। तो बेगूसराय में मंझौल के एशिया प्रसिद्ध कावर झील मत्स्य उद्योग का केन्द्र बन सकता है। बाजार में आंध्र प्रदेश की आयातित मछलियों की संख्या ज्यादा है। जिसका मुख्य कारण है कि सरकार द्वारा अभी तक मंझौल में ही मत्स्य आधारित उद्योग पर ध्यान नहीं दिया गया। अब कई युवाओं की भी रुचि प्रोफेशनल तौर पर इस क्षेत्र में बढ़ी है। मिथिला को फूड प्रोडक्शन का हब बनाकर यहां के लोगों को सम्मान जनक रोजगार उपलब्ध कराया जा सकता है। टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं। आज तक दूसरे राज्यों में सेवा देते आ रहे डॉक्टरों, इंजीनीयर, वकील, शिक्षक, लेखक के लिए यहां पर विभिन्न क्षेत्रों में इन्फ्रास्ट्रक्चर को सुदृढ कर यहां ही रोजगार की गारंटी दी जाए। जिससे रोजगार और शिक्षा के लिए बाहर जाने वाले छात्रों और बेरोजगारों को यहीं शिक्षा और रोजगार मिल सके और राजस्व में भी वृद्धि हो।
उन्होंने कहा कि मैथिली गीत-संगीत और भाषा के उत्थान से कई लोगों को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से रोजगार मिल सकेगा। मैथिली एवं भोजपुरी में फिल्म बनती आ रही है। बिहार की भाषा में बनने वाली फिल्म का प्रोडक्शन से लेकर सेंसर तक मुम्बई में होता है, आखिर क्यों? जबकि फिल्म का बड़ा बाजार बिहार है।बिहार सरकार भारत सरकार से सेंसर बोर्ड के क्षेत्रीय कार्यालय की मांग करे, बिहार में सेंसर बोर्ड के कार्यालय से मैथिली एवं भोजपुरी भाषा पर बनने वाली फिल्म मेकर को सहूलियत होगा और पोस्ट प्रोडक्शन में लगे सैकड़ों लोग पटना की ओर रुख करेंगे।