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    Home»Jharkhand Top News»झारखंड में अब राजनीतिक गतिविधियों के अनलॉक होने की बारी
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    झारखंड में अब राजनीतिक गतिविधियों के अनलॉक होने की बारी

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskJune 3, 2020Updated:June 3, 2020No Comments6 Mins Read
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    कोरोना संक्रमण के कारण सवा दो महीने से जारी लॉकडाउन अब चरणबद्ध ढंग से अनलॉक किया जा रहा है। इसके साथ ही झारखंड का जनजीवन पटरी पर लौटने लगा है। लॉकडाउन के दौरान राजनीतिक गतिविधियों पर भी विराम लग गया था, हालांकि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए राजनीतिक दल अपनी सक्रियता बनाये हुए थे। अब स्थिति सामान्य होने के बाद इसमें तेजी आयेगी। सबसे पहले 19 जून को राज्यसभा चुनाव है, जिसमें सत्ताधारी झामुमो-कांग्रेस और विपक्षी भाजपा के बीच जबरदस्त रस्साकशी देखने को मिलेगी। चुनाव की घोषणा के साथ ही सत्ता और विपक्ष की राजनीतिक गतिविधियां बढ़ गयी हैं। इसके बाद दुमका और बेरमो में विधानसभा का उपचुनाव होगा, जहां इन तीनों दलों की प्रतिष्ठा दांव पर होगी। राज्यसभा चुनावों के बीच भाजपा की प्रदेश कार्यसमित के पुनर्गठन की कवायद भी तेज हो गयी है, लामबंदी लगातार चल रही है। उधर कांग्रेस के भीतर भी एक व्यक्ति-एक पद के सिद्धांत की चर्चा होने लगी है, जिसका सीधा मतलब प्रदेश संगठन में बदलाव है। इन तमाम राजनीतिक गतिविधियों के साथ राज्य का सियासी माहौल गरमायेगा। मानसून की झमाझम बारिश के बीच इस गरमाहट का झारखंड की सेहत पर क्या असर होगा और इससे किसका फायदा या नुकसान होगा, इसका आकलन दिलचस्प है। प्रस्तुत है इसी आकलन पर आधारित आजाद सिपाही ब्यूरो का विशेष विश्लेषण।

    23 मार्च को जब झारखंड की पांचवीं विधानसभा का पहला बजट सत्र निर्धारित कार्यक्रम से पांच दिन पहले कोरोना संकट के कारण स्थगित किया गया था, तब किसी ने सोचा नहीं था कि वैश्विक महामारी के खिलाफ जंग इतनी लंबी चलेगी। करीब सवा दो महीने बाद जब देशव्यापी अनलॉक-1 के बाद जनजीवन पटरी पर लौटने लगा है, यह उम्मीद की जाने लगी है कि झारखंड का सियासी तापमान भी बढ़ेगा। हालांकि देश में बारिश लानेवाले दक्षिण पश्चिम मानसून समय से ही आ गया है। मौसम विज्ञानियों ने सामान्य से अधिक बारिश की भविष्यवाणी की है, इसलिए राजनीतिक गतिविधियां अगले दो सप्ताह में काफी तेज रहेंगी, इसकी पूरी संभावना है। राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील और सक्रिय प्रदेश के रूप में नाम अर्जित कर चुके झारखंड के राजनीतिक दलों की सियासी गतिविधियों पर लॉकडाउन ने ब्रेक लगा दिया था, इसलिए कई काम रुक गये थे। अब ये काम शुरू होंगे और राज्य का माहौल एक बार फिर पुराने रंग-रूप में लौटेगा।
    झारखंड में सवा दो महीने के इस ब्रेक के बाद जो सबसे पहला बड़ा राजनीतिक शो होनेवाला है, वह है राज्यसभा की दो सीटों के लिए चुनाव। यह चुनाव पहले 26 मार्च को होनेवाला था, लेकिन लॉकडाउन के कारण इसे स्थगित कर दिया गया था। अब चुनाव आयोग ने 19 जून को चुनाव कराने की घोषणा की है। इन दो सीटों के लिए तीन उम्मीदवार मैदान में हैं। सत्ताधारी झामुमो ने शिबू सोरेन को उतारा है, तो कांग्रेस ने शाहजादा अनवर पर दांव लगाया है। विपक्षी भाजपा की ओर से दीपक प्रकाश मैदान में हैं। तीनों दल अपने प्रत्याशियों की जीत का दावा कर चुके हैं, लेकिन चुनाव की घोषणा होने के साथ ही सियासी दांव-पेंच बढ़ेगा, इसकी पूरी संभावना है।
    विधानसभा में सत्ताधारी झामुमो और कांग्रेस की एक-एक सीट, दुमका और बेरमो कम हो चुकी है। इसलिए उसके सामने दूसरे उम्मीदवार को जिताने के लिए विपक्षी खेमे में सेंधमारी की चुनौती है। उधर भाजपा अपने प्रत्याशी प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश की जीत के प्रति पूरी तरह आश्वस्त।
    राज्यसभा चुनाव के बाद विधानसभा की दो सीटों के लिए उपचुनाव की तैयारी भी शुरू होगी। दुमका सीट के साथ झामुमो की प्रतिष्ठा जुड़ी हुई है, क्योंकि दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन ने यह सीट जीती थी और बाद में इसे छोड़ दिया, क्योंकि वह बरहेट से भी चुने गये थे। इस सीट पर होनेवाले उपचुनाव में भाजपा अपनी पूरी ताकत झोंकेगी, क्योंकि यहां से ही झारखंड में उसका राजनीतिक भविष्य लिखा जाना है। विधानसभा चुनाव में करारी पराजय झेलने के बाद भाजपा के पास दुमका के रास्ते वापसी का अवसर होगा, जिसे वह हर कीमत पर भुनाना चाहेगी। बेरमो सीट पर लंबे अंतराल के बाद कांग्रेस ने वापसी की थी और इसके दिग्गज राजेंद्र प्रसाद सिंह ने भाजपा प्रत्याशी को करारी शिकस्त दी थी। उनके निधन से यह सीट खाली हो गयी है और यहां कांग्रेस को पूरी ताकत झोंकनी होगी। हालांकि राजेंद्र बाबू ने अपने जीवन काल में ही अपने पुत्र कुमार जयमंगल सिंह को ही नयी भूमिका के लिए तैयार करना शुरू कर दिया था, लेकिन उपचुनाव के दौरान उनकी कमी कांग्रेस को जरूर खलेगी और भाजपा इसका भरपूर लाभ उठाने की फिराक में होगी।
    चुनावी राजनीति से अलग दो राष्ट्रीय दलों की सांगठनिक गतिविधियां भी तेज होनेवाली हैं। एक दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है, तो दूसरी देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी। आनेवाले दिनों में इन दोनों को अपने भीतर की चुनौतियों का सामना करना है। भाजपा की नयी प्रदेश कार्यसमिति का गठन होना है। इसके लिए लामबंदी शुरू हो गयी है। नयी कार्यसमिति के गठन में बाबूलाल मरांडी के समर्थकों को जगह देना भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश के लिए बड़ी चुनौती होगी। संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह इस चुनौती का सामना करने के लिए क्या रणनीति अपनाते हैं, यह देखना बेहद दिलचस्प होगा। उनके सामने भाजपा के पुराने कार्यकर्ताओं की आकांक्षाओं का पहाड़ भी है, जिसे पार करना आसान नहीं होगा। विधानसभा चुनाव में हार के झटके से पार्टी उबर तो गयी लगती है, लेकिन यदि संगठन का पुराना तेवर नहीं लौट सका, तो फिर भाजपा के लिए राह कठिन होनेवाली है। दीपक प्रकाश और धर्मपाल सिंह इस उलझन को कैसे सुलझाते हैं, यह देखनेवाली बात होगी।
    उधर कांग्रेस में एक बार फिर एक व्यक्ति-एक पद के सिद्धांत की चर्चा शुरू हो गयी है और प्रदेश कमिटी का पुनर्गठन भी लंबित है। इसलिए आनेवाले दिनों में कांग्रेस के भीतर का यह पेंच भी कोई नया गुल खिला दे, तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। डॉ रामेश्वर उरांव अभी प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष हैं और उनकी मदद के लिए पांच कार्यकारी अध्यक्ष भी हैं। डॉ उरांव के नेतृत्व में कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया। डॉ उरांव राज्य कैबिनेट में मंत्री भी हैं, इसलिए पार्टी के सामने नया प्रदेश अध्यक्ष बनाये जाने की चुनौती है। पार्टी के प्रदेश प्रभारी आरपीएन सिंह इस चुनौती से कैसे पार पाते हैं, यह भी देखना दिलचस्प होगा।
    कुल मिला कर आनेवाले दिनों में झारखंड की सियासत में कई रंग देखने को मिलेंगे। इस खेल में किसकी गोटी लाल होगी और कौन हाशिये पर जायेगा, इस सवाल का जवाब भविष्य के गर्भ में है। फिलहाल इंतजार करिये, क्योंकि लॉकडाउन राजनीतिक तूफान से पहले की शांति थी और अब सन्नाटे का दौर खत्म हो गया है।

    Now the turn to unlock political activities in Jharkhand
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