देश के राजनीतिक मानचित्र पर 28वें राज्य के रूप में 15 नवंबर, 2000 को उभरे झारखंड के लिए 2020 का साल नये सपने और नये लक्ष्य के साथ सामने आया। कोरोना संकट के कारण करीब तीन महीने से ठप पड़े राज्य का जनजीवन पुराने ढर्रे पर लौटने लगा है, तो सरकार का ध्यान भी दूसरे मोर्चों की तरफ गया है। पिछले 20 साल में झारखंड में क्या हुआ, कैसे हुआ और कितना हुआ, यह अब किसी से छिपा नहीं है। खनिज संपदा से भरपूर इस राज्य में 14 साल तक राजनीतिक अस्थिरता के कारण केवल खुंटचाल से भरा खेल हुआ, लेकिन 2014 के बाद, जब झारखंड इस दलदल से बाहर निकला, तब भी इसका बहुत हित नहीं सधा। यह बात अब सामने आ रही है। राज्य की वर्तमान सरकार अब सभी गड़बड़ियों का हिसाब-किताब करने में जुट गयी है, तब पता चल रहा है कि पांच साल के दौरान झारखंड ने बहुत कुछ हासिल किया, तो कई नयी बीमारियों ने इसे बुरी तरह जकड़ लिया है। इन बीमारियों के कारण झारखंड की व्यवस्था पूरी तरह पंगु बन गयी और दौड़ने की बजाय घिसट रही थी। हेमंत सोरेन सरकार ने अब इन बीमारियों को ठीक करने की ही नहीं, जड़ से मिटाने का काम शुरू किया है। पहले भ्रष्टाचार पर इसने करारा वार किया और अब राज्य मुख्यालय में गड़बड़ी करनेवालों की फेहरिस्त तैयार करने का काम शुरू हुआ है। हेमंत सरकार का यह फैसला झारखंड के लिए बिल्कुल नया अनुभव है। राज्य सरकार के इस फैसले के संभावित असर पर आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।
पिछले सप्ताह के शुरू में प्रोजेक्ट भवन स्थित झारखंड सरकार के मुख्यालय में एक बैठक हुई थी। यह कोई नयी या असामान्य बात नहीं थी, लेकिन उस बैठक में एक असाधारण चर्चा हुई। चर्चा इस बात की हुई कि पिछले पांच साल में कितने सरकारी अफसरों और कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगे और उन आरोपों की जांच हुई या नहीं। यदि जांच हुई, तो फिर उनका नतीजा क्या रहा। कितने अफसरों पर मुकदमे दर्ज हुए। बैठक में शामिल एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार बात सामान्य ढंग से शुरू हुई थी, लेकिन ऐसा लगता था कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इस विषय पर पूरी जानकारी के साथ तैयार होकर आये थे। बैठक के बाद वह घर लौटे और उसी रात उन्होंने मंत्रिमंडल निगरानी विभाग को ऐसे अफसरों की सूची तैयार करने को कहा, जिनके खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं दी गयी है। हेमंत के इस निर्देश का महत्व और संवेदनशीलता के बारे में उस दिन लोगों को पता नहीं चला, लेकिन सोमवार 22 जून को जब खुद उन्होंने इस सूची के बारे में पूछताछ की, तब पता चला कि इस पर काम चल रहा है। तब इस काम के महत्व के बारे में लोगों को पता चला और साथ ही यह बात भी सामने आयी कि पिछले पांच साल में करीब साढ़े तीन सौ सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ शिकायत सही पायी गयी, लेकिन उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं दी गयी। इनमें दर्जन भर आइएएस और राज्य प्रशासनिक सेवा के करीब 70 अधिकारी शामिल हैं। हेमंत के इस कदम की जानकारी बाहर आते ही राज्य सरकार के महकमों में खलबली मच गयी है। किसी को अंदाजा नहीं था कि इस मुद्दे पर किसी का ध्यान जायेगा। अब ऐसे तमाम मामलों और अधिकारियों-कर्मचारियों की सूची तैयार करने का काम अंतिम चरण में है।
यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि झारखंड में भ्रष्टाचार और गड़बड़ी लगभग संस्थागत रूप ले चुकी थी। आज से पहले किसी भी सरकार ने इस स्थिति को बदलने की कोशिश नहीं की। इसका नतीजा यह हुआ कि नौकरशाही का बड़ा तबका सिस्टम को अपनी जेब में रखने लगा। मनमाने फैसले होते रहे और बिचौलियों की चांदी कटने लगी।
राज्य की जनता नक्सलवाद और बेलगाम नौकरशाही के बीच पिसती रही। सत्ता को उसके दुख-दर्द से कोई मतलब नहीं रहा। वह विकास के सपनों में इतना अधिक खो गयी कि उसे समाज की अंतिम कतार में बैठे लोगों का ध्यान ही नहीं रहा। लोकतंत्र के बारे में बहुत पुरानी कहावत है कि यदि विधायिका आंखें बंद कर लेती है, तो फिर कार्यपालिका का निरंकुश होना तय हो जाता है। यही झारखंड के साथ भी हुआ। विधायिका, यानी राजनीतिक नेतृत्व को हकीकत से दूर रखा जाने लगा और तब गड़बड़ियों का सिलसिला चल निकला। जनता को दिखाने के लिए भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो और पुलिस काम तो कर रही थी, लेकिन उसका कोई असर व्यवस्था पर नहीं हो रहा था, क्योंकि सारी जांच, सारी कानूनी प्रक्रियाओं को मंत्रालय के किसी कोने में डंप कर रखा जा रहा था। हेमंत सरकार ने इन मामलों को नये सिरे से शुरू करने का फैसला किया है।
बहुत से लोग हेमंत सोरेन के इस कदम को प्रशासनिक कम और राजनीतिक अधिक मानते हैं। लेकिन वे शायद यह भूल जाते हैं कि यह कदम पूरी तरह झारखंड के हित में है। राजनीतिक स्थिरता के नाम पर राज्य में जो कुछ हुआ, यह उसे सामने लाने की एक कवायद है।
हेमंत सरकार ने राज्य के सिस्टम में लगे घुन को जड़ से खत्म करने की जो कोशिश शुरू की है, यह उसी का परिणाम है। इस सरकार ने व्यवस्थागत खामियों को ठीक करने का ही नहीं, जड़ से मिटाने का जो काम शुरू किया है, उसका दूरगामी असर पड़ना तय है। इसका पहला सकारात्मक असर यह होगा कि अब सरकारी अधिकारी और कर्मचारियों की जिम्मेदारी तय होगी और वे अपने लिए नहीं, बल्कि जनता के लिए काम करेंगे। इसके अलावा जांच रिपोर्टों और फाइलों को दबा कर रखने की पुरानी आदत भी उन्हें छोड़नी होगी, क्योंकि कभी भी किसी भी पुराने मामले की जानकारी मांगी जा सकती है।
हेमंत सरकार ने इस फैसले से साफ कर दिया है कि गड़बड़ी करनेवालों को अब किसी कीमत पर बख्शा नहीं जायेगा। चाहे खुद को सर्वशक्तिमान समझनेवाले आइएएस अधिकारी हों या सरकारी बाबू, यदि गड़बड़ी की है, तो हिसाब देना ही होगा। गलत किया है, तो सजा भुगतनी ही होगी। झारखंड के लिए यह नया अनुभव है। चूंकि हेमंत सरकार को काम संभाले अब करीब छह महीने हो गये हैं, इसलिए उसका यह फैसला भी परिपक्व और सोच-समझ कर लिया गया माना जा सकता है।