झारखंड में राज्यसभा की दो सीटों का परिणाम आ चुका है। झामुमो के शिबू सोरेन और भाजपा के दीपक प्रकाश अब संसद के ऊपरी सदन में झारखंड का प्रतिनिधित्व करेंगे। बहुत दिनों के बाद यह अवसर आया है कि राज्यसभा चुनाव में केवल झारखंडियों ने ही जीत हासिल की है। इस चुनाव ने झारखंड की राजनीति में नये अध्याय की शुरूआत की है। दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव के बाद यह चुनाव राज्य का सबसे बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम था। राज्यसभा चुनाव ने भाजपा को नयी ऊर्जा प्रदान कर दी है। विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद से पार्टी का आत्मविश्वास डगमगा सा गया था, लेकिन राज्यसभा चुनाव में पार्टी ने न केवल अपने विधायकों को एकजुट रखने में कामयाबी हासिल की, बल्कि अपनी पुरानी सहयोगी आजसू पार्टी के साथ अपने पुराने संबंधों को जोड़ने में भी सफल रही। इतना ही नहीं, भाजपा ने अपने दो बागियों को भी अपने पक्ष में किया और इसके साथ ही यूपीए के खेमे से एक वोट भी झटक लिया। विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा खेमे में जो मायूसी छा गयी थी, वह राज्यसभा चुनाव में मिली जीत से पूरी तरह खत्म हो गयी है। इसलिए अब उम्मीद की जा रही है कि भाजपा एक सशक्त विपक्ष की भूमिका में उतरेगी और राजनीतिक रूप से और अधिक आक्रामक रुख अख्तियार करेगी। राज्यसभा चुनाव में भाजपा की जीत के मायने और झारखंड की राजनीति पर इसके संभावित असर का विश्लेषण करती आजाद सिपाही ब्यूरो की विशेष रिपोर्ट।
झारखंड में राज्यसभा का बहुप्रचारित चुनाव संपन्न हो गया है और इसके साथ ही झारखंड की राजनीति का नया अध्याय शुरू हो गया है। यह पहली बार था, जब भाजपा विपक्ष में रहते हुए राज्यसभा चुनाव में उतरी थी, जबकि झामुमो और कांग्रेस के लिए सत्ता में रहते हुए राज्यसभा चुनाव लड़ने का यह पहला अनुभव था। इस चुनाव में आकलनों के अनुरूप एक सीट पर सत्ताधारी झामुमो ने और दूसरी सीट पर विपक्षी भाजपा ने कब्जा जमाया, जबकि सत्ता में साझीदार कांग्रेस तमाम कोशिशों के बाद भी जीत का स्वाद नहीं चख सकी। राज्यसभा के इस चुनाव ने कई चीजें साफ की हैं।
आज से करीब छह महीने पहले जब झारखंड की पांचवीं विधानसभा के लिए चुनाव हुए थे, तब भाजपा को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी थी। वह पहला ऐसा अवसर है, जब झामुमो को उसकी सहयोगी कांग्रेस और राजद के साथ शासन करने का जनादेश मिला। भाजपा के लिए वह चुनाव कारार झटका रहा। लेकिन राज्यसभा चुनाव की जीत ने भाजपा को नयी ऊर्जा दी है, एक टॉनिक दिया है, जिससे पार्टी का मनोबल निश्चित रूप से मजबूत होगा। इस जीत ने भाजपा को नया अवसर दिया है, तो नयी चुनौतियां और सबक भी दिया है।
राज्यसभा चुनाव में भाजपा ने अपने प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश को उतारा था। उसके पास महज 26 विधायक थे, लेकिन शुरू से वह जीत के प्रति आश्वस्त थी। भाजपा को अपनी पुरानी सहयोगी आजसू पार्टी से मदद की उम्मीद थी और सुदेश महतो ने इसे पूरी तरह निभाया। विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा और आजसू के बीच पैदा हुई खाई को राज्यसभा चुनाव ने पूरी तरह पाट दिया है। यह भाजपा के लिए एक उपलब्धि भी है और सबक भी। उपलब्धि यह है कि उसने अपने पुराने सहयोगी को एक बार फिर अपने करीब लाने में कामयाबी हासिल की, जबकि उसके लिए सबक यह है कि राजनीति में अवसरवादिता और दूसरों को छोटा समझना लाभदायक नहीं होता। विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने जिस तरह आजसू पार्टी से किनारा किया, उसका खामियाजा उसे सत्ता गंवा कर भुगतना पड़ा, ऐसा खुद भाजपा के नेता मानते हैं।
भाजपा के लिए राज्यसभा चुनाव की जीत का इसलिए भी अधिक महत्व है, क्योंकि वह अपने कुनबे को एकजुट रखने में सफल रही। इतना ही नहीं, पार्टी ने अपने दो बागियों, अमित यादव और सरयू राय का भी वोट लिया। इससे यह बात साफ हो गयी है कि पूर्वी सिंहभूम के विधायक सरयू राय जो कहते हैं वह करते हैं। वहीं भाजपा के लिए अमित यादव का वोट हासिल करना उपलब्धि है। इससे यह भी साफ हुआ कि भाजपा के खिलाफ चुनाव जीत कर भी अमित यादव पार्टी से दूर नहीं हुए हैं। भाजपा के लिए अपने कुनबे को एकजुट रखना इसलिए भी मुश्किल लग रहा था, क्योंकि वह पहली बार विपक्ष में रह कर चुनाव लड़ रही थी। उसे अपनी उस रणनीति से ही डर लग रहा था, जो उसने अपने शासन वाले राज्यों में अपनायी थी। इसके साथ ही भाजपा ने यूपीए खेमे में दरार भी पैदा कर दी, जो उसकी राजनीतिक प्रबंध कौशल का परिणाम है। उसने सत्ताधारी गठबंधन का एक वोट भी अपने पक्ष में कर लिया। उस वोट की हालांकि पार्टी उम्मीदवार की जीत में कोई भूमिका नहीं रही, लेकिन उसने यह जरूर साफ कर दिया कि सत्तारूढ़ गठबंधन में अब भी क्रैसिस मैनेजमेंट पर काम करना बाकी है। राज्यसभा चुनाव में जीत भाजपा के लिए कितनी जरूरी थी, यह इसी बात से साफ हो जाता है कि दीपक प्रकाश और पार्टी के तमाम नेता-कार्यकर्ता कहने लगे हैं कि पार्टी अब दोगुने जोश के साथ झारखंड के लोगों की सेवा करेगी। विधानसभा चुनाव हारने के बाद पार्टी में मायूसी का जो आलम था, वह अब खत्म हो गया है। इसलिए पार्टी अब अधिक ताकत और उत्साह के साथ मजबूत विपक्ष की भूमिका निभायेगी।
भाजपा के लिए जीत के इस टॉनिक की व्यवस्था कहीं न कहीं कांग्रेस ने की है। कांग्रेस ने ही अपना उम्मीदवार उतार कर राज्यसभा चुनाव को त्रिकोणीय बना दिया था, हालांकि उसे पता था कि उसके पास संख्याबल नहीं है। यदि कांग्रेस उम्मीदवार नहीं देती, तो चुनाव सर्वसम्मति से होता और तब भाजपा के लिए जश्न का मौका नहीं रहता। इसलिए यह कहा जा सकता है कि भाजपा के लिए कांग्रेस उम्मीदवार का राज्यसभा चुनाव के मैदान में उतरना राजनीतिक दृष्टि से लाभदायक रहा। इसने जहां भाजपा खेमे की एकजुटता को और मजबूत किया, वहीं खुद कांग्रेस के लिए आत्मघाती साबित हुआ। कुल मिला कर राज्यसभा के इस चुनाव ने झारखंड की राजनीति को नया मोड़ दिया है। इस परिणाम ने जहां आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो का भाव भाजपा की नजर में ऊंचा किया है, वहीं कांग्रेस को यह सबक कि वह सोच-समझ कर कोई फैसला करे।