बेगूसराय। लॉकडाउन से उत्पन्न स्थिति के बाद स्पेशल ट्रेन चलाई जाने पर दिल्ली, महाराष्ट्र और पूर्वोत्तर भारत के राज्यों से प्रवासी कामगारों के आने का सिलसिला जारी है। इन राज्यों से रहने वाले बिहार के विभिन्न जिलों के लोग बेगूसराय स्टेशन और बरौनी जंक्शन पर उतर कर बस से अपने-अपने घरों को जा रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार बेगूसराय में अब तक 60 हजार से अधिक प्रवासी विभिन्न राज्यों से आ चुके हैं। इसमें से हजारों लोग अपने गांव में ही रह कर बिहार और देश को आत्मनिर्भर बनाने की सोच रखे हुए हैं। ऐसा ही सोच रखने वाले एक युवक विनोद से मुलाकात हुई बेगूसराय स्टेशन पर। गुवाहाटी से आया विनोद अपने पत्नी और चार बच्चों के साथ गांव जाने के लिए बस का इंतजार कर रहा था। बेगूसराय से बस से रोसड़ा और फिर रोसड़ा से माहे सिंघिया जाना था। विनोद ने बताया कि मां-पिताजी का स्वर्गवास 2008 में ही हो चुका था, यहां 12-13 कट्ठा जमीन थी, उसी पर मेहनत मजदूरी कर जी रहे थे। लेकिन उस जमीन पर भी रिश्तेदारों की नजर पड़ गई तो पत्नी और एक बच्चे को लेकर गुवाहाटी चला गया। वहां मामा जी का दुकान था, विनोद भी जब अपने बच्चों के पास मामा जी के यहां अगस्त 2010 में पहुंचा था तो मामा जी काफी खुश हुए और 15-20 दिनों तक अपने डेरा पर ही रखा, कहीं नौकरी नहीं करने दिया। उसके बाद कुछ पूंजी देकर जनरल स्टोर की दुकान खुलवा दिया। स्वभाव अच्छा रहने तथा आसपास बड़ी संख्या में बिहारियों के रहने के कारण जनरल स्टोर चल पड़ा। अच्छी आमदनी होने लगी, खुद दुकान पर बैठता था, बाजार से जब सामान लाना होता था तो उस समय पत्नी दुकान संभालने लगी। दो बच्चे और हो गए तो वह पैसा जमा कर गुवाहाटी में ही जमीन खरीदने का प्लान बनाने लगा, दो-ढ़ाई लाख जमा भी हो गए थे। लेकिन इसी बीच अचानक कोरोना ने दुनिया में कहर ढाना शुरू किया तो लॉकडाउन हो गया। लॉकडाउन में विनोद ने अपने परिश्रम के बल पर दुकान में सामान की कमी नहीं होने दी। पुलिस ने निकलने पर भले ही रोक लगा दिया था लेकिन वह किसी तरह छुप-छुपकर भी सामान लाकर लोगों का भोजन चलाता रहा। जब लॉकडाउन में ढ़ील हुई और सरकार ने स्पेशल ट्रेन चलाई तो विनोद के मोहल्ले की तमाम बाहरी लोग अपने-अपने घरों को लौट गए, दुकान और मंदा हो गया। इसी बीच उसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा शुरू किए गए आत्मनिर्भर भारत अभियान की जानकारी मिली तो उसने अपने गांव में आत्मनिर्भर बनने का प्लान बनाया। गांव के जनप्रतिनिधियों से बात हुई तो उन लोगों ने व्यवसाय ऋण दिलाने का भरोसा दिलाया। इसके बाद विनोद ने किसी तरह टिकट का जुगाड़ लगाया और 17 जून को ट्रेन से चल पड़ा गांव की ओर। अब वह गांव आ गया है 10-15 दिन के अंदर घर ठीक कराएगा, फिर गांव में ही दुकान शुरू करेगा। अभी उसके पास गुुवाहाटी से दुकान बेेेेचकर लाया गया पूूंजी है। एमएसएमई के तहत अगर दस लाख लोन मिल हो गया तो गांव में ही स्वरोजगार करेगा। खुद आत्मनिर्भर बनेगा और अपने पड़ोसियों को भी स्वरोजगार से जोड़कर आत्मनिर्भर बनाएगा। सभी लोग एक साथ काम करेंगे तो विकास अच्छा होगा, बच्चे भी गांव के आसपास के निजी स्कूलों में पढ़ेंगे। गांव की आबोहवा में रहेंगे तो कोई वायरस कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा और आत्मनिर्भरता भी बढ़ेगी। विनोद कहते हैं कि प्रधानमंत्री का आत्मनिर्भर भारत पैकेज देश को एक नई सामाजिक और आर्थिक दशा एवं दिशा देगा। सभी लोगों को सरकार की ऐसी योजनाओं का लाभ लेना चाहिए, प्रत्येक गांव में अगर दो-चार लोग स्वरोजगार शुरू कर आत्मनिर्भर बनने की दिशा में कदम उठा देंगे तो कम से कम गांव के दो सौ लोग आत्मनिर्भर हो जाएंगे, उन्हें गांव में काम मिलेगा। हम क्यों रहें सरकारी मदद के भरोसे, क्यों ना सरकार की योजना का लाभ उठाकर आत्मनिर्भर बनें।

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