संदर्भ: चंदवा प्लांट के प्रमोटरों ने सिर्फ लोन लेने के लिए संयंत्र लगाने की योजना बनायी थी

जिले का चंदवा प्रखंड एक दशक पूर्व औद्योगिक मानचित्र पर तेजी से उभरने के बाद पुन:अंधेरे में चला गया है। बेचिरागी बाना ग्राम में पावर प्लांट लगाने की योजना बनानेवाले अभिजीत ग्रुप के कॉरपोरेट पावर लिमिटेड ने बैंक घोटाले के लिए ही इस प्लांट की बुनियाद रखी थी, ऐसा अब प्रतीत होने लगा है। 1740 मेगावाट क्षमता का प्लांट लगाने का काम शुरू कर अभिजीत ग्रुप ने विभिन्न बैंकों और सरकारी वित्तीय संस्थानों से पहले फेज में कुल 2175 करोड़ रुपये का कर्ज लिया, जबकि धरातल पर खर्च दोनों फेजों में करीब पांच सौ करोड़ हुआ है। कोल ब्लॉक आवंटन घोटाले में अभिजीत ग्रुप को आवंटित चितरपुर कोल ब्लॉक रद्द हो जाने से पावर प्लांट के निर्माण में ग्रहण लगने की बात तो कही जा रही है, लेकिन अगर इसकी गहराई में जायें, तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आते हैं।
अभिजीत ग्रुप के प्रमोटर मनोज जयसवाल एवं अभिषेक जयसवाल को जब सीबीआइ ने बैंक फ्रॉड मामले में गिरफ्तार कर जेल भेजा, तो परत-दर-परत इसकी स्थापना की पोल खुलती गयी। अभिजीत ग्रुप ने प्लांट निर्माण के लिए पहले फेज में करीब 2175 करोड़ रुपये का कर्ज बैंकों से लिया। लेकिन फेज वन पूरा भी नहीं हुआ और फेज टू के लिए कर्ज लेने की तैयारी कर ली गयी। कर्ज के इस खेल का दिलचस्प पहलू यह है कि प्रमोटरों ने कारखाना लगाने के नाम पर बैंकों से जो रकम ली, कारखाना नहीं खुलने पर उन्हें घाटा ना होकर फायदा फायदा हुआ। सब जज वन की अदालत में दायर कैविएट याचिका 1/2015 की सुनवाई में कंपनी के भाग नहीं लेने के कारण यह संदेह हुआ है।

यह है पहले फेज के लोन की दास्तान
अभिजीत ग्रुप ने पहले फेज के साथ रूरल इलेक्ट्रिफिकेशन कॉरपोरेशन लिमिटेड से 555 करोड़, भारतीय स्टेट बैंक से चार सौ करोड़, एसबीएच से 125 करोड़, एसबीओपी से एक सौ करोड़, यूनियन बैंक आॅफ इंडिया से 225 करोड़, इलाहाबाद बैंक से दो सौ करोड़, आंध्रा बैंक से 50 करोड़, इंडियन बैंक से 50 करोड़ एवं आइआइएफसीएल से तीन सौ करोड़ का लोन पहले लिया। इसमें से महज दो से तीन सौ करोड़ ही खर्च किये गये। इसके बाद बाना स्थित प्लांट को प्रमोटरों ने यूं ही छोड़ दिया। कंपनी प्लांट शुरू करने के प्रति गंभीर नहीं रही। इसके कारण पिछले 10 वर्षों से प्लांट के कीमती उपकरण चोरी हो गये। अभिजीत ग्रुप के अधिकारियों ने नामजद प्राथमिकी भी दर्ज करायी। लेकिन बाद में वे अदालत में उन्हें पहचानने से इनकार कर दिया। इससे इस संदेह को बल मिलता है कि प्रमोटरों ने केवल कर्ज लेने के लिए ही प्लांट स्थापित करने की योजना बनायी थी।

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