- हकीकत राय से कमलेश तिवारी होते हुए कन्हैया लाल तक पहुंच गयी नरपिशाचों की खूनी साजिश
- इन पर काबू पाना केवल केंद्र के बूते की ही बात, गहलोत सरकार तो चूड़ी पहन कर बैठी है
राजस्थान के उदयपुर में दिल दहलानेवाली जो वारदात हुई, वह महज एक घटना नहीं, बल्कि भारत में तेजी से पैर फैला रहे इस्लामी आतंक के खूनी पंजे का निशान है। बिरयानी में बोटियां ढूंढ़ने वाला हर वह शख्स, जो कल ईद की सेवइयों पर अश-अश कर रहा था, इस कत्ल का जिम्मेदार है। यह खूनी पंजा इतने खतरनाक तरीके से आगे बढ़ रहा है कि इसे अभी ही सख्ती से जड़ से मिटाना होगा, वरना एक पूरे देश को अपने आगोश में ले लेगा। ऐसा नहीं है कि हिंदुओं का सिर कलम करने का सिलसिला अभी शुरू हुआ है। यह सिलसिला तो 18वीं शताब्दी में हकीकत राय से शुरू हुआ था और कमलेश तिवारी से होते हुए कन्हैया लाल तक पहुंच गया है। भारत का इतिहास गवाह है कि यहां मुगल आक्रांताओं ने हर मौके पर हिंदुओं पर अत्याचार किये, उन्हें अकारण प्रताड़ित किया और उनके धर्म को नेस्तनाबूद करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। दिल्ली सल्तनत और मुगलों के समय जैसे भालों के ऊपर हिंदुओं-सिखों के कटे हुए सिर सजा कर रैलियां निकाली जाती थीं और हिंदुओं के कटे हुए सिरों का पहाड़ खड़ा किया जाता था, और जनेऊ से कुएं भर जाया करते थे, आज कुछ उसी तरह के हालात फिर से पैदा करने की कोशिशें हो रही हैं। इन जुल्मों को 21वीं शताब्दी में उन आक्रांताओं की संतानें जारी रखने की कोशिश कर रही हैं, जिन्हें उन सियासतदानों का प्रत्यक्ष समर्थन हासिल है, जो येन-केन-प्रकारेण भारत की सत्ता पर काबिज होना चाहते हैं। यही सियासतदान गिरफ्तारी होते ही मुहम्मद जुबैर को पत्रकार घोषित करने की जल्दी पर उतर जाते हैं, जबकि कन्हैया लाल की हत्या पर ऐसे हर लिबरल की जुबान बंद हो जाती है। इसलिए यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि ऐसे तमाम लिबरलों के खूनी पंजों पर कन्हैया लाल का खून लगा है। इन तत्वों पर नियंत्रण और इनका समूल नाश ही अब एकमात्र उपाय बच गया है। उदयपुर की घटना की पृष्ठभूमि में आतंक के इस खूनी पंजों पर रोशनी डालती आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह की खास रिपोर्ट।
तो दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में एक और निरपराध हुनरमंद व्यक्ति को सेक्यूलरिज्म पर कुर्बान कर दिया गया। राजस्थान के उदयपुर में कन्हैया लाल का सिर धारदार हथियारों से धड़ से अलग कर दिया गया। वह बेचारे अपने काम में व्यस्त थे। ‘ग्राहक देवो भव’ के मंत्र का जाप करते हुए वह कपड़े का नाप ले रहे थे, जो उनका व्यवसाय था। उसी दौरान पहुंचे इस्लामी आतंकवादियों ने न सिर्फ उनका गला रेत डाला, बल्कि इसका वीडियो भी शूट किया। वीडियो शूट करने के बाद उन दो नरपिशाचों ने खुद का वीडियो बना कर एलान भी किया कि नूपुर शर्मा का समर्थन करने की सजा इसको दी गयी है और इंशा अल्लाह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ भी ऐसा ही करेंगे। करीब आठ घंटे बाद जब इन दोनों नरपिशाचों को दबोचा गया, तब ये अपने किसी आका के सुरक्षित स्थान पर छिपने के लिए जा रहे थे। इन दोनों का यह घिनौना कृत्य भारत में तेजी से पांव पसारते इस्लामी आतंक के उस खूनी पंजों का जीता-जागता सबूत है, जो भारत की पवित्र धरती और सनातन धर्म को नेस्तनाबूद करना चाहता है, जो यहां की गंगा-जमुनी तहजीब को ध्वस्त कर देना चाहता है।
यह कितनी विडंबना है कि वीर हकीकत राय से जो सिलसिला शुरू हुआ था, वह कमलेश तिवारी पर आकर रुका नहीं, बल्कि आजाद भारत में आगे बढ़ कर अब कन्हैया लाल तक पहुंच गया है। दो इस्लामी नराधमों ने एक निहत्थे-बेगुनाह दर्जी की बेरहमी से हत्या केवल इसलिए कर दी, क्योंकि उसने नूपुर शर्मा को समर्थन देने का स्टेटस लगाया था।
उदयपुर की घटना ने देश को एकबारगी यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि कैसे भारत के अंदर भी मुट्ठी भर कट्टरपंथी देश को बदनाम करने की साजिश रचने में कामयाब हो रहे हैं। जिस तरह कन्हैया की गर्दन रेत कर मोहम्मद गौस और रियाज अंसारी ने उसका वीडियो बनाया और उसे वायरल किया, इसका तो यही संदेश है कि उनके अंदर गहलोत सरकार के कानून और उसकी पुलिस का लेसमात्र भी भय नहीं था। हो भी कैसे, वोट की राजनीति के कारण आज तक राजस्थान सरकार की पुलिस के हाथ करोली हिंसा के मास्टर माइंड मतबूल अहमद तक नहीं पहुंचे। वह कांग्रेस का पार्षद है। ऐसा नहीं है कि राजस्थान पुलिस में कूबत नहीं है, बल्कि गहलोत सरकार ने पुलिस के हाथ बांध रखे हैं। उसकी गिरफ्तारी की मांग तथाकथित सेक्यूलर लोगों की जुबान से एक बार भी नहीं उठती। दूसरी तरफ मोहम्मद जुबैर, जो दशकों से हिंदू देवी-देवताओं का मजाक उड़ाते आ रहा है, जब दिल्ली पुलिस ने उसे दबोचा, तो राहुल गांधी सरीखे तमाम विपक्षी नेता उसके समर्थन में खड़े हो गये। कहने लगे, यह तो अभिव्यक्ति की आजादी की हत्या है। फैक्ट चेक के नाम पर नफरत फैलानेवाले जुबैर के कारण ही आज कन्हैया की गर्दन दिनदहाड़े तन से जुदा कर दी गयी। मुट्ठी भर कट्टरपंथियों ने देश की जो स्थिति बना दी है, यह बर्दाश्त करने लायक नहीं है। ऐसे कट्टरपंथियों को भी भारत को अब बर्दाश्त करने की जरूरत नहीं है, जो भारतीय अस्मिता के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। उदयपुर की घटना सिर्फ एक दुकानदार की हत्या मात्र नहीं है। यह बरसों बरस से दुकानदार और ग्राहक के बीच कायम विश्वास के रिश्ते को तोड़ दिया है। कपड़ा का नाप देने के बहाने दरजी कन्हैया की दुकान में घुसना और उसकी गला रेत देना समाज में क्या संदेश दे रहा है। आज सिर्फ कन्हैया का गला ही नहीं रेता गया, गंगा-जमुनी तहजीब को भी लहूलुहान कर दिया गया है। जब नूपुर शर्मा के विवादित बयान पर खाड़ी देशों ने एकजुट होकर भारत के बहिस्कार की धमकी दी, तो मुट्ठी भर ये कट्टरपंथी खुश हो रहे थे। लेकिन कन्हैया की हत्या के बाद आज न तो कतर आगे आयेगा न ही मुट्ठी भर कट्टरपंथी आंसू बहायेंगे। देश को ऐसे नापाक आंसुओं की जरूरत भी नहीं है। भारत इन शक्तियों से निपटने में सक्षम है। अब समय आ गया है, ऐसे तालिबानी सोच वाले आतंकियों का प्रतिकार करने का, नहीं तो ये आतंकी आपकी और हमारी गर्दन यों ही गाजर मूली की तरह काटते रहेंगे। आतंकियों का दुस्साहस देखिये कि वे अब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी जान से मारने की धमकी दे रहे हैं। आखिर इनके अंदर यह साहस पनपा कैसे। निश्चित रूप से दुश्मन देश के कुछ आतंकी हमारे देश में पनाह लिये हुए हैं और वे भारत को अस्थिर करने की कोश्ािश कर रहे हैं। उदयपुर की घटना में भी आतंकियों के तार पाकिस्तान के दावत-ए-इस्लामी से जुड़ रहा है। दरअसल, ऐसे संगठनों को तब सह मिल जाती है, जब करोली जैसी घटना के मास्टरमाइंड को राज्य सरकार विचरण करने के लिए छोड़ देती है।
कन्हैया के हत्यारों का पाकिस्तान कनेक्शन
उदयपुर में कन्हैया का गला रेतनेवालों का पाकिस्तान कनेक्शन सामने आया है। दोनों हत्यारे मोहम्मद गौस और मोहम्मद रियाज अंसारी पाकिस्तान के दावत-ए-इस्लामी संगठन से जुड़े हुए हैं। यह संगठन 100 से भी अधिक देशों में सक्रिय है। यह संगठन इस्लाम के प्रचार-प्रसार के लिए कई तरह के आॅनलाइन कोर्स भी चला रहा है। इससे पहले भारत में इस इस्लामी संगठन पर धर्मांतरण के भी आरोप लग चुके हैं। धन संग्रह करने के लिए यह संगठन जगह-जगह धार्मिक स्थलों पर दानपेटियां रखता है और इनके माध्यम से आनेवाली राशि को गलत गतिविधियों में इस्तेमाल करता है। दावत-ए-इस्लामी खुद को गैर राजनीतिक इस्लामी संगठन कहता है। इसकी स्थापना 1981 में पाकिस्तान के कराची में हुई थी। मौलाना अबू बिलाल मुहम्मद इलियास ने इस इस्लामिक संगठन की स्थापना की थी। भारत में यह संगठन पिछले चार दशकों से सक्रिय है। दावत-ए-इस्लामी की अपनी खुद की वेबसाइट है। उसके माध्यम से वह कट्टर बनने के लिए शरिया कानून के तहत इस्लामी शिक्षाओं का आॅनलाइन प्रचार-प्रसार कर रहा है। करीब 32 तरह के इस्लामी कोर्स इसकी वेबसाइट पर उपलब्ध हैं। दरअसल, यह संगठन दुनिया भर में सुन्नी कट्टरपंथ को बढ़ावा देता है।
पुलिस भी कम दोषी नहीं
कन्हैया की इस नृशंश हत्या के पीछे राजस्थान पुलिस भी कम दोषी नहीं है। जब कन्हैया ने नूपुर शर्मा के समर्थनवाला पोस्ट शेयर किया गया था, तब राजस्थान पुलिस ने उसे एक दिन सलाखों के पीछे भी रखा था। राजस्थान के एडीजी लॉ एंड आॅर्डर हवा सिंह घुमारिया के मुताबिक, 11 जून को कन्हैयालाल के खिलाफ एक रिपोर्ट दर्ज की गयी थी। आरोप था कि कन्हैयालाल ने नूपुर शर्मा के समर्थन वाला पोस्ट शेयर किया था। फिर उसे थाने से ही जमानत पर रिहा कर दिया गया। बाहर आने के बाद भी उसे लगातार जान से मारने की धमकियां मिल रही थीं। 15 जून को कन्हैयालाल ने लिखित शिकायत भी की थी। उसने आवेदन में लिखा था: मुझे सुरक्षा दी जाये। धमकी देनेवालों पर कार्रवाई करने के बजाय थाना प्रभारी ने कन्हैया के साथ उन्हें बैठाया और कहा कि समझौता कर लो। शिकायत पत्र में कन्हैया ने साफ-साफ लिखा था कि उसको मोबाइल चलाने नहीं आता। उसके बच्चे द्वारा गेम खेलने के क्रम में वह पोस्ट गलती से व्हाट्सएप पर शेयर हो गया था। पत्र में कन्हैया ने पुलिस को आगाह भी किया था कि उसकी दुकान की रेकी की जा रही है। पड़ोसी नाजिम और उसके साथी उसे दुकान खोलने नहीं दे रहे हैं। सुबह-शाम वे लोग उसकी दुकान के चक्कर काट रहे हैं। वे लोग कह रहे हैं कि जैसे ही कन्हैया दुकान खोलेगा, उसे मार दिया जायेगा। कन्हैया ने पुलिस से निवेदन किया था कि उसकी जानमाल की सुरक्षा की जाये और नाजिम और उसके साथियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाये। लेकिन पुलिस ने कन्हैया के इस आवेदन को सीरियसली नहीं लिया। उल्टा कह दिया कि कुछ दिन संभल कर रहो। गौर करनेवाली बात है कि स्टेटस शेयर होने के बाद कन्हैया को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन जान से मारने की धमकी देनेवालों को समझा बुझा कर छोड़ दिया गया। उलटे कन्हैया को सुरक्षा के नाम पर संभल कर रहने को कह कर खूनी भेड़ियों के बीच में उसे छोड़ दिया गया। और उसके बाद हत्यारों ने ‘गुस्ताख-ए-नबी की एक सजा, सर तन से जुदा-तन सर से जुदा’ कह कर उसकी गर्दन रेत दी। यह नारा नया नहीं है। इस्लामी जिहादियों द्वारा इशनिंदा का आरोप लगा कर सिर कलम करने की घटना भी नयी नहीं है। घटना के बाद गर्व से बेखौफ इसकी घोषणा करना भी नया नहीं है। फिर ‘आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता’ का रट्टा लगाते हुए इनके बचाव में सामने आनेवाले तथाकथित बुद्धिजीवियों की करतूतें भी पहली बार नहीं हो रहीं। और हां, इनका केस लड़ने का काम जमीयत जैसा कोई संगठन भी पहली बार नहीं करेगा। इनके पक्ष में दिल्ली के नामी-गिरामी वकीलों की फौज भी कोई पहली बार खड़ी नहीं होगी। तभी तो ऐसे वकीलों को इनाम के रूप में राज्यसभा में भेजा जायेगा।
कन्हैया लाल को कितनी बेदर्दी से मारा गया था, उसका प्रमाण है पोस्टमार्टम रिपोर्ट। उसमें कन्हैया के शरीर पर 26 बार वार किया गया था। दस बार गर्दन पर। आतंकियों की दहशत देखिये कि उदयपुर में कन्हैया लाल का शव काफी देर तक दुकान के बाहर पड़ा था, खून से लथपथ। उधर हत्यारे हंसते हुए वीडियो बनाते रहे, देश के प्रधानमंत्री के साथ ऐसा ही करने की धमकी देते रहे।
प्रशासन ने रट्टा लगाया: आतंकियों का धर्म नहीं होता
उदयपुर के प्रशासन की बेचारगी देखिये। पहले तो कन्हैया के लिखित आवेदन पर उसने आतंकियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की, उलटे उन्हें थाने में बैठाया और जब उन हत्यारों ने उसकी गर्दन रेत दी तो बयान दे दिया है कि अपराधी की कोई जाति नहीं होती। भले ही हत्या अपने नबी के नाम पर की गयी हो, मुस्लिमों ने की हो, वीडियो में नबी का नाम लिया हो और इस्लामी जिहाद के लिए किया हो, लेकिन हत्यारों के मजहब के बारे में बताना गहलोत सरकार की पुलिस के लिए गुनाह है, क्योंकि हत्यारे मुस्लिम हैं। अगर किसी हिंदू पर चांटा मारने भर का आरोप भी लगा होता, तो अलग बात गंभीर हो जाती। ‘भगवा आतंकवाद’ का नाम देकर उस पर अंतरराष्ट्रीय डिबेट की जाने लगती, लेकिन ऐसे लोगों की नजर में इस्लामी आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता।
लौटते हैं उदयपुर। यह भारत की विडंबना है कि हर कुछ दिन पर एक हिंदू की हत्या कर दी जाती है, लेकिन जिहादियों का कोई नाम तक लेने की हिम्मत नहीं करता। इससे उनकी हिम्मत और बढ़ती चली जाती है। गुजरात में किशन भरवाड़ की हत्या आपको याद होगी। एक हट्टे-कट्टे युवक को मौत की नींद सुला दिया गया था, किसी ने मुंह नहीं खोला था, लेकिन हिंदुओं को याद दिलाया जाता रहता है कि तुम पर फलां साल के फलां महीने में फलां की दाढ़ी नोचने के आरोप लगे थे, इसीलिए दोषी तुम ही हो।
हम उस दौर में रह रहे हैं जब पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों को खत्म कर दिया गया, बांग्लादेश में उनके पर्व-त्योहारों में उत्पात मचाया जाता है, अफगानिस्तान से उन्हें अपने पवित्र ग्रंथ वापस लेकर आने होते हैं और अरब मुल्कों में उन्हें शरिया का पालन करना पड़ता है। हम उस दौर में रह रहे हैं, जहां दुनिया के लगभग सारे आतंकी संगठन खुद के इस्लामी जिहादी होने का दावा करते हैं, लेकिन फिर भी हमें रोज सुनाया जाता है कि उनका कोई मजहब नहीं होता। यह सब हिंदुओं को भयभीत रखने के लिए किया जा रहा है। दिल्ली सल्तनत और मुगलों के समय जैसे भालों के ऊपर हिंदुओं-सिखों के कटे हुए सिर सजा कर रैलियां निकाली जाती थीं और हिंदुओं के कटे हुए सिरों का पहाड़ खड़ा किया जाता था, आज कुछ वैसा ही किया जा रहा है। इरादा वही है। संदेश वही है कि तुम डर कर रहो। सबसे बड़ी बात कि मानवाधिकार संगठनों की नजर में पीड़ित यहां वह नहीं होता, जिसका गला काटा जाता है, बल्कि वह होता है, जो गला काटता है, क्योंकि वह मुस्लिम है, क्योंकि उसके पास विक्टिम कार्ड भी है।
यह प्रक्रिया पूरी दुनिया में समान ही है। आइएसआइएस जैसा खूंखार आतंकी संगठन लोगों को लाइन में बिठा कर उनका गला रेत देता है। फ्रांस में शिक्षक सैमुअल पैटी का गला रेत दिया जाता है। कारण, वह पैगंबर मुहम्मद का कार्टून दिखाने का गुनहगार माना जाता है। इसी आरोप में शार्ली हेब्दो मैगजीन के दफ्तर में घुस कर नरसंहार किया गया था। लेकिन तब न तो 56 देशों ने इसके खिलाफ कुछ बोला और न भारत में ही छाती पीटी गयी। कन्हैया के मामले में भी यही होगा। भले ही राजस्थान के मंत्री यह कहते हों कि हत्यारों को ठोक दिया जायेगा, लेकिन यकीन मानिये, गहलोत सरकार सालों साल तक हत्यारों को सजा नहीं दिला पायेगी।
कन्हैया लाल की हत्या इसलिए हुई है, क्योंकि उन्हें पता है कि सोशल मीडिया के जरिये अफवाहें फैलाने वाली कोई किराये की कलम उनके पक्ष में लंबे लेख लिखने उतर आयेगी। उन्हें मालूम है कि कोई न कोई इन कातिलों को मासूम भटका हुआ नौजवान बता देगा, तो कोई हत्यारों को शांतिदूत बता देगा। उन्हें मालूम है कि गहलोत जैसा कोई मुख्यमंत्री कहने लगेगा कि वीडियो न निकालें, क्योंकि इससे समाज में नफरत फैलाने का ‘उनका’ मकसद सफल हो जायेगा। उसे मालूम है कि सरयू में अश्लील बर्ताव करने पर सख्ती से मना कर दिये जाने पर जो लोग नाराज होकर 30 प्रतिशत संतुष्टों से निकल कर 70 प्रतिशत असंतुष्टों में जा बैठे थे, वे इस मुद्दे पर चुप्पी साध लेंगे। कुछ गिरे हुए मानवाधिकार के प्रवक्ता ऐसे भी होंगे, जिन्हें इसी मौके पर सामाजिक सरोकार भूल कर कला-साहित्य-संगीत की चर्चा करनी जरूरी लगने लगेगी। देश में महंगाई की चिंता होने लगेगी। आलू, प्याज, टमाटर, नींबू के दाम बढ़ते दिखने लगेंगे। लोग विदेशों में जाकर भारत केरोसिन तेल पर बैठा है का बयान देकर चले आयेंगे। अलग से अगर उनसे कोई सवाल पूछ ले, तो वह गहरी चिंता में डूब जायेंगे। उनका मुंह तक नहीं खुल पायेगा और यहां हिंदुओं के आराध्यों का मजाक बनानेवालों का ट्वीटर पर समर्थन करने लगेंगे। हिंदू देवी-देवताओं के अश्लील चित्र बनाने के बावजूद तथाकथित सेक्यूलर लोग उसे महान चित्रकार बताने लगेंगे।
उदयपुर की यह घटना राज्य की कोई पहली घटना भी नहीं है। रामनवमी के शांतिपूर्ण जुलूसों पर इस राज्य में पथराव किये गये थे। इसी राज्य में जब धरोहर की तरह सहेजे जाने योग्य एक शिव मंदिर को शासन-प्रशासन के जोर पर तुड़वा दिया गया था। प्राचीन शिव मंदिर को तोड़े जाने की निंदनीय घटना के बाद कई कथित लिबरल फौरन इस सरकारी हुक्म के समर्थन में भी उतर आये थे। इससे साफ होता है कि हिंदुओं की पीढ़ी दर पीढ़ी को जब कुछ लोग ये बतायेंगे कि आप सभ्यताओं के युद्ध के बीच में फंसे हैं, तो आपको सफलता कम मिलेगी। ऐसे लोग ही वो लोग हैं, जो बच्चे को कहते हैं, वो देखो कौवा, और उसी वक्त नीचे से कन-कौव्वा काट लिया जाता है। काटने वाले से बचाना, कटने से बचाना तो जरूरी है ही, साथ ही ‘वो देखो कौवा’ कह कर जिसने ध्यान भटकाया था, उसकी पहचान भी जरूरी है। इनके चेहरे से शराफत का नकाब नोच कर जब तक इनकी भेड़िये जैसी लपलपाती जीभ और पैने दांतों के बीच फंसे इंसानी गोश्त को बेनकाब न कर दिया जाये, सुरक्षा तो अधूरी ही रहेगी। एक कट्टरपंथी जमात है, जो आपका सिर काटती है, दूसरी लिबरल जमात है, जो कहती है नहीं-नहीं ये तो भटके हुए युवा हैं! दोनों से लड़ाई बराबर ही लड़नी होगी।