रांची। झारखंड में राजभवन भारतीय जनता पार्टी और केंद्र सरकार के इशारे पर काम कर रहा है। यह गंभीर आरोप लगाया है झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष रवींद्रनाथ महतो ने। एक ट्वीट कर उन्होंने साफ लिखा है कि राजभवन भाजपा के इशारे पर काम कर रहा है। यह पहली बार नहीं है। इससे पहले भी झारखंड मुक्ति मोरचा के केंद्रीय महासचिव राजभवन पर यह गंभीर आरोप लगा चुके हैं।
कार्यकर्ता सम्मेलन में बोले रवींद्रनाथ महतो
झारखंड मुक्ति मोरचा के कार्यकर्ता सम्मेलन में रवींद्रनाथ महतो ने कहा, जनसंख्या के वक्त यह पता चल सके कि देश में आदिवासी भाई बहनों की संख्या कितनी, इसके लिए सरना धर्म कोड की मांग थी। विधानसभा का विशेष सत्र बुला कर आदिवासियों की पहचान सरना धर्म कोड को विधानसभा से पारित करने के बाद राजभवन भेजा गया। राजभवन ने बिल को लौटा दिया। यदि यह धर्म कोड पारित हो जाता, तो पता चल सकता था कि देश में आदिवासी भाई-बहनों की संख्या कितनी है। आज तक यह बिल पास नहीं हुआ।
पहचानिए कौन दोस्त है, कौन दुश्मन
विधानसभा अध्यक्ष ने कहा, झारखंड मुक्ति मोरचा के आंदोलन में घोषणापत्र में यह बात है। हम लंबे समय से यह मांग कर रहे हैं। हम नारा लगा चुके हैं झारखंडी की हो पहचान। मुख्यमंत्री ने 1932 के खतियान विशेष सत्र बुला कर राजभवन को भेजा। राजभवन ने उस बिल को वापस कर दिया। राजभवन किसके इशारे पर चलता है, यह पता करना होगा। पिछड़ा वर्ग के आक्षण को 27 प्रतिशत कर दिया। यह किसका संकेत है। कौन दुश्मन है, कौन दोस्त है समझना चाहिए।
60- 40 क्या है रवींद्रनाथ महतो ने समझाया
इस दौरान रवींद्रनाथ महतो ने 60-40 को लेकर भी स्थिति स्पष्ट कर दी। अगर लिखा होगा कि संताली भाषा, झारखंड के इतिहास के संबंध में जानकारी मांगी जायेगी, तो क्या बाहरी सकेंगे। समारोह में रवींद्रनाथ महतो ने कहा, हर दिन कोई ना कोई मुख्यमंत्री का आभार व्यक्त करने आ रहा है। युवाओं को नौकरियां दी जा रही है। अभी पंचायत सचिव के अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र बाटा गया है।
राजभवन पर आरोप लगाता रहा है झामुमो
राजभवन पर लगे आरोप पहली बार नहीं हैं। झामुमो के केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने भी इससे पहले राजभवन पर आरोप लगाये थे। एक बार फिर राज्य सरकार और राजभवन के बीच टकराव की स्थिति बन रही है। आरक्षण बिल के नाम से लाये गये हेमंत सोरेन सरकार के आरक्षण विधेयक को लौटाने पर एक अंग्रेजी अखबार से बातचीत में सीपी राधाकृष्णन ने कहा कि मैंने जो भी फैसला लिया, वह अटॉर्नी जनरल की राय के आधार पर लिया है। मैं किसी कानून के खिलाफ नहीं हूं, लेकिन उसे संविधान के दायरे में होना चाहिए।