-राम मंदिर आस्था-विश्वास-धैर्य-निश्चय-मान और अभिमान का प्रतीक है
-उद्घाटन होते ही बदल जायेगी चुनावी हवा, 500 वषों की तपस्या का प्रतिफल होगा भव्य राम मंदिर
-यहां मुकाबला सॉफ्ट या हार्ड हिंदुत्व का नहीं, करोड़ों भारतीयों के विश्वास का है
देश में लोकसभा चुनाव को लेकर हर राजनीतिक दल अपना-अपना एजेंडा सेट करने में जुटा हुआ है। लगभग सभी दलों के एजेंडों में एक एजेंडा कॉमन है। वह है धार्मिक एजेंडा। यह एक ऐसा मुद्दा है, जो लोगों के मूलभूत मुद्दों को भी पछाड़ देता है। भारत जैसे देश में लोग रोटी, कपड़ा और मकान के बिना गुजारा कर लेंगे, लेकिन धर्म के बिना उनकी गाड़ी खिसक ही नहीं सकती। धर्म एक ऐसी चीज है, जो एक इंसान को एक पूरे समूह से जोड़ती है। किसी भी राज्य के चुनाव में अक्सर यह देखा गया है कि बिना जातीय समीकरण फिट किये कोई भी पार्टी चुनाव नहीं जीतती। चुनाव से पहले विकास मुद्दा होता है, लेकिन वोट का बटन दबाते वक्त जाति बीच में आ ही जाती है और ठीक वहीं विकास या अन्य मुद्दे धराशायी हो जाते हैं। यहां पर फ्री वाली स्कीम भी काम करती है। कौन सी पार्टी क्या फ्री में दे रही है, वह भी बड़ा मायने रखती है। कुछ पार्टियों की दुकान तो इसी से दौड़ रही है। लेकिन भारतीय राजनीति में बात जब धर्म की आती है, तो दो धर्मों के इर्द-गिर्द देश की राजनीति घूमने लगती है। हिंदू और मुस्लिम, क्योंकि क्रिश्चियन का वोट फिक्स है। उन्हें पता है किसे वोट करना है। उनका अपना एजेंडा है। अपने मुद्दे हैं। उनके एजेंडे में शायद भाजपा फिट नहीं बैठती। बैठती तो मुसलमानों के एजेंडे में भी नहीं है। वैसे देखा गया है कि मुस्लिम वोट बैंक कई पार्टियों के लिए वरदान साबित हुए हंै, जिसमें कांग्रेस प्रमुख रूप से शामिल है। शुरूआती दौर से कांग्रेस पार्टी को मुसलमानों का भरपूर साथ मिला। इनकी बदौलत कांग्रेस सबसे ज्यादा वर्षों तक सत्ता में भी रही, लेकिन आज भी मुस्लिम समाज विकास की बाट जोह रहा है। इससे तो यही साबित होता है कि भारतीय राजनीति में उनका सिर्फ इतेमाल होता रहा है। नंबर बढ़ाने में आसानी होती है। रही बात भाजपा की, तो उसका एजेंडा क्लीयर कट है। बात जब हिंदुत्व की होती है, तो भाजपा उसमें कोई इफ-बट नहीं करती। कांग्रेस भले सॉफ्ट हिंदुत्व का चोला ओढ़ लेती है, लेकिन उसका रंग भगवा नहीं होता। मिलावट दिखाई पड़ ही जाती है। भाजपा के पास दो ऐसे नेता हैं, जब बात हिंदुत्व की आती है, तब उनसे बड़ा हिंदुत्व का चेहरा और कोई नहीं दिखाई पड़ता। एक देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दूसरे हिंदुत्व के ब्रांड एंबेसडर और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ। भाजपा की केंद्र सरकार ने देश की जनता के लिए रोटी, कपड़ा और मकान का बंदोबस्त तो कर दिया है, साथ ही अब देश के करोड़ों हिंदुओं की आस्था के प्रतीक राम मंदिर का भी भव्य निर्माण तेज कर दिया है। भाजपा के बड़े नेताओं ने यह संकेत भी दे दिया है कि 2024 के जनवरी महीने में भव्य राम मंदिर का उद्घाटन हो जायेगा। यह महज राम मंदिर का उद्घाटन नहीं होगा, यह भाजपा के लिए लोकसभा चुनाव में सबसे बड़ा हथियार होगा, क्योंकि राम हिंदुओं की आत्मा में बसते हैं। अगर किसी पार्टी को जरा भी लग रहा है कि राम मंदिर और हिंदुत्व का मुद्दा 2024 के लोकसभा चुनाव में कोई असर नहीं डालेगा, तो यह उनकी भूल है। आखिर क्यों राम मंदिर का महत्व लोकसभा चुनाव में हावी रहेगा, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
शुरूआत बाबर से करते हैं
बाबर के विषय में यह प्रामाणिक तथ्य है कि वह खानवा के युद्घ में मिली सफलता से उत्साहित होकर 1527 ई. के मार्च महीने के अंत में अवध की ओर बढ़ा था। उसने अवध के निकट जाकर पड़ाव डाल दिया था। बाबर को राम मंदिर के बारे में जानकारी तो थी, लेकिन यहां पर उसे कुछ ऐसे धर्मांध मुसलमान मिले, जो राम जन्मभूमि पर खड़े मंदिर को तुड़वा कर वहां मस्जिद बनवाना चाहते थे। इसका कारण यह था कि राम को भारत में राष्ट्र का पर्यायवाची माना जाता था। राम भारत के रोम-रोम में बसते थे। राम इस देश की आत्मा थे और मुस्लिम फकीर यह जानते थे कि यदि राम को भारत से निकाल दिया जाये, तो भारत को गुलाम बनाने में देर नही लगेगी। उनका धर्म परिवर्तन का मिशन भी तेज हो जायेगा। भारत मुस्लिम राष्ट्र हो जायेगा। इसलिए उन लोगों ने बाबर को इस बात के लिए प्रेरित किया कि राम जन्मभूमि पर खड़े मंदिर को यथाशीघ्र नष्ट कर दे। हुआ भी ऐसा ही। करोड़ों हिंदुओं की आस्था के साथ खिलवाड़ किया गया। हिंदुओं के राम मंदिर को तोड़ दिया गया। बाबर ने अपने फरमान में लिखा: शहंशाहे हिंद मालिकूल जहां बादशाह बाबर के हुकुम से हजरत जलालशाह के हुकुम के बमुजिब अयोध्या में राम की जन्मभूमि को मिसमार करके उसी जगह उसी के मसाले से मस्जिद तामीर कर दी जाये। बजरिये इस हुकुमनामे के तुमको बतौर इत्तिला के आगाह किया जाता है कि हिंदुस्तान के किसी भी गैर सूबे से कोई हिंदू अयोध्या न जाने पाये। जिस शख्स पर यह शुबहा हो कि वह अयोध्या जाना चाहता है, तो उसे फौरन गिरफ्तार करके दाखिले जिंदा कर दिया जाये। हुक्म सख्ती से तामील हो फर्ज समझ कर। शाही मुहर।
1528 से ही राम मंदिर के लिए आंदोलन शुरू हो गया था
बाबर ने मंदिर तो तोड़ दिया, लेकिन हिंदुओं की आत्मा से राम को नहीं निकाल पाया। कहते हैं कि जब राम मंदिर की जगह मस्जिद का निर्माण हो रहा था, तब जितना भी निर्माण कार्य दिन में होता, रात में उसे राम को माननेवाले ढाह देते थे। लेकिन फिर भी वहां मस्जिद का निर्माण हुआ। 1528 में बाबर द्वारा अयोध्या में श्री राम मंदिर तोड़ कर निर्माण की गयी मस्जिद के विरोध में हिंदुओं का आंदोलन आरंभ हो गया था। इन पांच सौ वर्षों में अब तक हिंदुओं ने मंदिर की मुक्ति के लिए कोई 76 युद्ध लड़े और कई आंदोलन भी हुए। लाखों राम भक्त बलिदान हो गये। 1990 में कार सेवकों की मौत को भला कौन भूल सकता है। उस वक्त मुलायम सिंह यादव की सरकार थी, यह भी कौन भूल सकता है। अनगिनत राम भक्तों के बलिदान के कारण ही आज अयोध्या में भगवान श्री राम का भव्य मंदिर बन रहा है। राम मंदिर राम लला के सर पर सिर्फ छत मात्र नहीं होगी, करोड़ों हिंदुओं की आस्था को एक साथ संजो कर रखेगा राम मंदिर। पांच सौ वर्षों की पीड़ा को शांत करेगा राम मंदिर। जब जनवरी में राम मंदिर का उद्घाटन हो जायेगा, तब देश का माहौल अलग ही रहेगा। देश राममय हो जायेगा। और इसका सीधा फायदा भाजपा को ही मिलेगा, क्योंकि लड़ाई तो लड़ी है भाजपा ने ही।
जब राम मंदिर का भूमि पूजन हो रहा था, तब योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि भाव-विभोर कर देनेवाली इस बेला की प्रतीक्षा में पांच शताब्दियां व्यतीत हो गयीं। दर्जनों पीढ़ियां अपने आराध्य का मंदिर बनाने की अधूरी कामना लिये भावपूर्ण सजल नेत्रों के साथ ही इस धराधाम से परमधाम में लीन हो गयीं, किंतु प्रतीक्षा और संघर्ष का क्रम सतत जारी रहा। राम जन्मभूमि मुक्ति के लिए पिछले पांच सौ वर्षों में लाखों हिंदू धर्मावलंबियों का बलिदान और इस आंदोलन में अपना जीवन होम कर देनेवालों का योगदान व्यर्थ नहीं गया।
जनवरी में बदल जायेगी देश की फिजां
एक तरफ राम नगरी अयोध्या में जहां भव्य राम मंदिर का निर्माण कार्य तेजी से चल रहा है, तो वहीं दूसरी ओर रामनगरी को सजाने-संवारने और आध्यात्मिक पर्यटन नगरी के रूप में विकसित करने का काम भी दिन-रात किया जा रहा है। जैसे ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने यह एलान किया था कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण जनवरी 2024 तक पूरा हो जायेगा और लोगों के दर्शनों के लिए खुल जायेगा, देश का विपक्ष हिल गया। विपक्ष एकता की दुहाई देने लगा। विपक्ष के पास वैसे भी कोई मुद्दा नहीं था, तो उसने राम मंदिर को ही मुद्दा बनाना शुरू कर दिया। राम मंदिर निर्माण को लेकर ही बयानबाजी शुरू कर दी। भाजपा का राम मंदिर मुद्दे से डायरेक्ट जुड़ाव विपक्ष को खल रहा है। विपक्ष को सिर्फ और सिर्फ मोदी को हटाना है और चार-पांच लोगों को प्रधानमंत्री बनाना है। जैसे ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, नीतीश कुमार, केसीआर और युवा नेता राहुल गांधी। अमित शाह की इस घोषणा ने देश की सियासत में उबाल इसलिए भी ला दिया है, क्योंकि मंदिर के उद्घाटन की टाइमिंग महत्वपूर्ण है, क्योंकि उसी साल अप्रैल-मई में लोकसभा के चुनाव होने हैं। जाहिर है कि अमित शाह के एलान के बाद विपक्षी दलों की यह आशंका और ज्यादा मजबूत हो गयी है कि 2024 का लोकसभा चुनाव भाजपा हिंदुत्व का कार्ड खेल कर लड़ना चाहती है। भाजपा हिंदुत्व के मुद्दे पर पीछे भी नहीं हटती। उसका एजेंडा स्पष्ट रहता है। कन्फ्यूजन में विपक्ष रहता है, क्योंकि उसे अन्य धर्म के लोगों को भी खुश रखना होता है। देखा जाये तो विपक्ष के पास धार्मिक और मोदी को छोड़ कोई मुद्दा ही नहीं है। विकास का मुद्दा तो केवल बहलाने के लिए है। वैसे उनकी भी सरकार में विकास ही मुद्दा होता था। सबको पता है कि भारतीय राजनीति में विकास का मुद्दा उस हाथी के दांत के समान है, जो केवल दिखाने के काम में आता है, असलियत से उसका कोई वास्ता नहीं होता। वैसे मोदी सरकार ने अपने नौ सालों में विकास कार्य तो तेज किया है और लापता हुआ विकास अब दिखता भी है। देखा जाये तो राम मंदिर का उद्घाटन पीएम मोदी का मास्टर स्ट्रोक है। सब जानते हैं कि अयोध्या में बन रहा भव्य राम मंदिर करोड़ों हिंदुओं की आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है और उसके बनते ही लाखों लोग उसकी झलक पाने और दर्शन के लिए अयोध्या की तरफ कूच करेंगे। जाहिर है कि मोदी सरकार इसका सियासी फायदा लेने का कोई भी मौका नहीं छोड़ने वाली है, और छोड़े भी क्यों। भाजपा का राम मंदिर का मुद्दा शुरूआती दौर से रहा है। उसका संघर्ष भी राम मंदिर के लिए हमेशा दिखाई पड़ा। राम मंदिर को हलके में लेना विपक्ष के लिए आत्मघाती होगा। राम मंदिर मुद्दे पर विपक्षी नेताओं के बयानों से उनकी बौखलाहट साफ झलकती है, लेकिन शायद उन्हें यह अहसास नहीं कि उनकी ऐसी बातों से आखिरकार भाजपा को ही फायदा होनेवाला है। वैसे अंदर से सबको पता है कि राम मंदिर के मुद्दे पर भाजपा से वे पार नहीं पा सकते, लेकिन राजनीति करनी है, तो बयानबाजी तो करनी ही पड़ेगी।
इसलिए 2024 के आम चुनाव में राम मंदिर भाजपा का ब्रह्मास्त्र बनेगा और इससे बचने के लिए विपक्ष अभी से जुगत में लगा हुआ है। लेकिन पीएम मोदी और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के संकल्प के आगे यह जुगत कोई काम नहीं आयेगी, यह सभी जानते हैं। देश के सामने अन्य तमाम मुद्दे राम मंदिर के सामने इसलिए गौण हो जायेंगे, क्योंकि भारतीय जन मानस एक पल के लिए रोटी-कपड़ा-मकान से ध्यान हटा सकता है, लेकिन धर्म उसके लिए प्राणवायु है। यही प्राणवायु भाजपा के लिए संजीवनी का काम भी करेगी।