-मिशन 2024 को पूरा करने में लगी पार्टी को बनानी होगी ठोस रणनीति
-झारखंड और बंगाल की राजनीतिक स्थिति पूरी तरह बदल चुकी है
-इन राज्यों में भाजपा का बेड़ा पार नहीं लगा सकता अयोध्या और विंध्याचल का मुद्दा
2024 में होनेवाले संसदीय तैयारियों के क्रम में अब इस सवाल पर गौर किया जाने लगा है कि किस पार्टी की क्या संभावनाएं हो सकती हैं। जाहिर है कि इस सवाल का जवाब तलाशने के क्रम में पिछले दो चुनावों में ऐतिहासिक कामयाबी हासिल करनेवाली भारतीय जनता पार्टी की संभावनाओं का आकलन सबसे पहले किया जा रहा है। अब यदि भाजपा की संभावनाओं पर गौर किया जाये, तो एक बात साफ हो जाती है कि भले ही पीएम मोदी आज दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेता हों और उनके नेतृत्व में भारत का डंका पूरी दुनिया में बज रहा हो, घरेलू राजनीतिक परिस्थितियां भाजपा के लिए बहुत अनुकूल नहीं दिख रही हैं। कर्नाटक में विधानसभा चुनाव हारने के बाद से दक्षिण भारत का दरवाजा पार्टी के लिए लगभग बंद सा हो गया है, तो अब पार्टी उत्तर भारत पर तवज्जो दे रही है। लेकिन बिहार, पश्चिम बंगाल और झारखंड के साथ महाराष्ट्र की तेजी से बदलती राजनीतिक परिस्थितियों में भाजपा 2024 के चुनाव तक कितना सफर तय कर सकेगी, मंथन इसी बात पर चल रहा है। इसके अलावा इस साल के अंत में जिन तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, वहां भी भाजपा की स्थिति बहुत अच्छी नहीं कही जा रही है। ऐसे में पार्टी के लिए 2024 का सफर बेहद मुश्किल भरा होनेवाला है, इसमें किसी को संदेह नहीं होना चाहिए। भाजपा के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने पहले ही चेतावनी की घंटी बजा दी है और अब राज्यों की तेजी से बदल रहीं परिस्थितियां उसकी पेशानी पर बल डाल रही हैं। ऐसे में क्या है देश की सियासी तस्वीर और भाजपा उसमें अपना रंग किस हद तक भर सकती है, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने नौ वर्ष पूरे कर लिये हैं और अब वह लगातार तीसरी बार इस पद को हासिल करने की कोशिशों में जुट गये हैं। इन नौ सालों में देश ने और पीएम के रूप में मोदी ने अनेक उतार-चढ़ाव देखे। दुनिया में एक अलग छाप छोड़ने में वह कामयाब रहे। पार्टी के रूप में जो तरक्की भारतीय जनता पार्टी ने नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व काल में देखी, वह बहुत जबरदस्त रही, लेकिन आंकड़ों की दृष्टि से भाजपा अब उतार की ओर जाती हुई दिखाई दे रही है। यह भी कहा जा सकता है कि साल 2024 के लोकसभा चुनाव में साल 2019 का रिजल्ट दोहराना भाजपा नेतृत्व के लिए किसी बड़ी और तगड़ी चुनौती से कम नहीं होगा।
यह कहा जा सकता है कि नरेंद्र मोदी के सत्ता संभालने के बाद भाजपा का विकास बहुत तेजी से हुआ। फिर अगले पांच साल में गिरावट आयी। हालांकि, तरक्की की रफ्तार तेज थी और गिरने की रफ्तार धीमी है। पर गिरावट आयी है। कोई व्यक्ति या संगठन इससे इनकार कर सकता है, लेकिन आंकड़े और राजनीतिक परिस्थितियां गवाही दे रही हैं कि भाजपा की तरक्की की राह में रोड़े आ गिरे हैं।
क्या नहीं खुलेंगे दक्षिण के दरवाजे!
कर्नाटक में पराजय के बाद संकेत यह भी हैं कि जब तक दक्षिणी राज्यों के दरवाजे भाजपा के लिए नहीं खुलेंगे, यह मुश्किल बनी रहेगी। हालांकि नयी संसद में बैठने की व्यवस्था यह बता रही है कि साल 2029 का चुनाव नये परिसीमन के हिसाब से होगा और तब भारतीय जनता पार्टी के मौजूदा प्रभाव वाले इलाकों में संसदीय सीटें बढ़ चुकी होंगी। तमाम विपरीत हालातों के बावजूद भाजपा के सामने साल 2024 के चुनाव में कोई बड़ा संकट नहीं है। लेकिन मौजूदा हालात में 2019 को दोहराना चुनौती है। तीन राज्यों, बिहार, महाराष्ट्र और बंगाल भाजपा के लिए बड़ी चुनौती हैं। झारखंड की परिस्थितियां भी तेजी से बदली हैं। यहां भी भाजपा के पक्ष में अब 2019 वाली स्थिति नहीं है।
ऐसे बढ़ता रहा भाजपा का कारवां
26 मई, 2014 को नरेंद्र मोदी ने जब पहली बार पीएम के रूप में शपथ ली थी, तब राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और गोवा में भारतीय जनता पार्टी राज कर रही थी। पंजाब और आंध्रप्रदेश की सत्ता में वह साझीदार थी। कहने की जरूरत नहीं कि साल 2014 के आम चुनाव में नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ने वाली भाजपा को सबसे ज्यादा 282 सीटों पर विजय मिली थी।
समय आगे बढ़ा। धीरे-धीरे पीएम के रूप में मोदी का प्रभाव बढ़ता गया। इसका फायदा भाजपा को भी लगातार मिला। साल 2019 लोकसभा चुनाव के ठीक एक साल पहले हालत यह बनी कि भारतीय जनता पार्टी की पूर्ण बहुमत और सत्ता में साझीदार होते हुए भाजपा की 21 राज्यों में सरकार थी। चार साल में सीधे तीन गुना राज्यों में भाजपा का सरकार के रूप में विस्तार हुआ। उस समय देश के नक्शे में दूसरे दलों की सरकार तलाशने की स्थिति बनी हुई थी। साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने फिर मोदी के चेहरे और केंद्र सरकार के काम पर चुनाव लड़ा और रिजल्ट आने पर भाजपा को अब तक की सर्वाधिक 303 सीटें मिल चुकी थीं। मोदी जी ने पीएम के रूप में दूसरे कार्यकाल के लिए फिर शपथ ली।
क्या है 2024 की तस्वीर
अब ठीक एक साल बाद फिर आम चुनाव है, लेकिन राज्यों में भाजपा की तस्वीर उलट गयी है। कई जगह भाजपा सरकार में नहीं है, जहां वह 2018 में थी। हालांकि, समर्थक कहते हैं कि चुनाव में हार-जीत लगी रहती है। कोई जीतता है, तो किसी को हारना होता है। पर आंकड़े एक नयी कहानी कहते हुए दिखाई दे रहे हैं। साल 2018 के बाद राज्यों में भारतीय जनता पार्टी का नुकसान होता हुआ दिखाई दे रहा है। आज सिर्फ 14 राज्य ऐसे हैं, जहां भाजपा पूर्ण बहुमत में या सरकार में साझीदार है। यानी पहले कार्यकाल के शुरूआती चार साल की यात्रा में राज्यों का गणित सात राज्य से जहां 21 तक पहुंच गया था, वहीं दूसरे कार्यकाल के चार साल या यूं भी कहें कि बीते पांच साल में एक तिहाई राज्य भाजपा के हाथ से खिसक गये हैं।
तमिलनाडु, केरल, आंध्रप्रदेश चुनौती
दक्षिण भारत के राज्य तमिलनाडु, केरल, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना अभी भी भाजपा के लिए चुनौती बने हुए हैं, तो कर्नाटक में भाजपा की सरकार हाल ही में चली गयी। इन राज्यों में संख्या के हिसाब से एमएलए बमुश्किल 10 फीसदी बचे हैं। दक्षिण भारत से कुल 130 सांसद चुन कर आते हैं। इसमें 29 भाजपा से हैं और बाकी दूसरे दलों से चुन कर आये हैं। ये 29 भी सिर्फ दो राज्यों, कर्नाटक से 25 और तेलंगाना से चार हैं। केरल, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु से भाजपा का कोई सांसद नहीं है। ऐसे में आज दक्षिण भारत भाजपा की सबसे बड़ी चिंता है। इसके बाद पश्चिम बंगाल, ओड़िशा, झारखंड, बिहार, राजस्थान, पंजाब, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक में अब भाजपा की सरकार नहीं है। पूर्वोत्तर में असम, मणिपुर, त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश में भाजपा की सरकार है। मध्यप्रदेश और गुजरात में भाजपा की सरकार है। महाराष्ट्र में शिंदे गुट को भाजपा ने समर्थन दिया है। उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड और हरियाणा में भी भाजपा की सरकार है।
2024 का चुनाव बड़ी चुनौती
अब भाजपा के सामने साल 2024 के चुनाव में तगड़ी चुनौती यह है कि जिन 303 लोकसभा सीटों के साथ अपने सर्वोच्च प्रदर्शन पर पिछले चुनाव में पहुंची थी, उसमें उसने दिल्ली, राजस्थान, गुजरात, त्रिपुरा, उत्तराखंड, हरियाणा की सभी सीटें जीत ली थीं। मध्यप्रदेश में 28, कर्नाटक में 25, यूपी में 64, छत्तीसगढ़ में नौ, बिहार-महाराष्ट्र में बने गठबंधन की वजह से 80 सीटें मिली थीं। पार्टी की चिंता यह है कि नये इलाकों में विस्तार हुआ नहीं और पुराने में जहां सर्वोच्च संख्या मिल चुकी है, वह सब फिर से जीत लेंगे, यह भरोसा पार्टी को भी नहीं है। ऐसे में 2019 दोहराने के लिए जरूरी है कि भाजपा को नये क्षेत्र में स्थान मिले। बिहार में जो सीटें मिली थीं, वे जदयू के साथ मिल कर लड़ने के बाद मिली थीं। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा की स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसके पास अब अपना नेता तक नहीं है। टीएमसी या कांग्रेस से आयातित नेता ही उसकी गाड़ी खींच रहे हैं।
महाराष्ट्र में क्या गुल खिलायेगा गठबंधन
महाराष्ट्र में भी पुराना गठबंधन है नहीं और जो नया गठबंधन बना हुआ है, क्या गुल खिलायेगा, किसी को पता नहीं है। वैसे भी सत्ता में नहीं रहने के बावजूद उद्धव ठाकरे का जो व्यक्तित्व है, वह शिंदे का नहीं है। ऐसे में पीएम नरेंद्र मोदी के सामने चैलेंज तगड़ा है। यद्यपि वे लड़ाका हैं। अंतिम क्षण तक कोशिश करेंगे, पर चिंता की बात है। अब देखना यह होगा कि इस साल राजस्थान, मध्यप्रदेश और छतीसगढ़ के विधानसभा चुनाव परिणाम किस करवट बैठते हैं। अगर मध्यप्रदेश में भाजपा फिर आती है, राजस्थान-छत्तीसगढ़ में उसकी सरकार बनती है, तो उसे नये सिरे से ऊर्जा तो मिलेगी, लेकिन सवाल फिर भी शेष रहेगा, क्योंकि इन सभी चुनावी राज्यों में भाजपा के पास लोकसभा में ज्यादातर सीटें हैं।