विशेष
लोकसभा चुनाव का ही नहीं, 2019 का प्रदर्शन दोहराने की है बड़ी चुनौती
अपनी सीटें बचा ले गयी कांग्रेस, तो यही उसकी बड़ी कामयाबी मानी जायेगी
13.88 प्रतिशत वोट शेयर प्राप्त करना भी कांग्रेस के लिए नहीं होगा आसान
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
लोकसभा चुनाव खत्म होने के बाद अब झारखंड में विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू हो गयी हैं। राजनीतिक दलों के भीतर इसको लेकर रणनीति बनायी जाने लगी है। झारखंड में विधानसभा का चुनाव लोकसभा के चुनाव से पूरी तरह अलग होगा, क्योंकि लोकसभा चुनाव में जहां भाजपा के नेतृत्व में एनडीए लगातार तीसरी बार सत्ता में आने की कोशिश में जुटी थी, वहीं विधानसभा चुनाव में झामुमो के नेतृत्व में कांग्रेस, राजद और वाम दलों का इंडिया गठबंधन लगातार दूसरी बार सत्ता पाने की कोशिश में जुटेगा। इस तरह लोकसभा चुनाव में जहां एनडीए रक्षात्मक मुद्रा में था, वहीं इस बार इंडिया गठबंधन रक्षात्मक मुद्रा में होगा। जहां तक इंडिया गठबंधन की रणनीति की बात है, तो सीट शेयरिंग और दूसरे मुद्दों पर इसके घटक दलों के बीच किसी मतभेद की संभावना फिलहाल नजर नहीं आ रही है, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस के सामने है। कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में सात सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे और दो सीटों पर जीत हासिल की थी। विधानसभा क्षेत्रों की बात करें, तो पार्टी ने 13 क्षेत्रों में बढ़त हासिल की थी। कांग्रेस ने पिछले विधानसभा चुनाव में कुल 13.88 प्रतिशत वोट हासिल किये थे और इस बार के विधानसभा चुनाव में उसके सामने इस प्रदर्शन को दोहराने की चुनौती है। कांग्रेस के भीतर के वर्तमान माहौल और उसकी संगठनात्मक स्थिति के अलावा पार्टी की रणनीति को देख कर तो यही लगता है कि कांग्रेस को इसके लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। टिकट बंटवारे से लेकर चुनाव प्रबंधन तक में उसे अपना सब कुछ झोंकना होगा। झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए क्या है कांग्रेस की तैयारी और चुनौती, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

लोकसभा चुनाव खत्म होने के बाद झारखंड विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू हो गयी है। तमाम दलों ने अपनी-अपनी रणनीतियों को अंतिम रूप देने के साथ सीट शेयरिंग जैसे मुद्दों पर विचार शुरू कर दिया है। 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को बेदखल कर सत्तारूढ़ हुए झामुमो के नेतृत्व वाले महागठबंधन के भीतर भी विधानसभा चुनाव को लेकर बैठकों का दौर शुरू हो गया है। लेकिन सबसे अधिक सक्रिय कांग्रेस है। कांग्रेस के सामने एक तरफ जहां 2019 के विधानसभा चुनाव का प्रदर्शन दोहराने की चुनौती है, वहीं लोकसभा चुनाव में उसे मिली कामयाबी को बरकरार रखने का भी चैलेंज है।

क्या हुआ लोकसभा चुनाव में
इसी महीने संपन्न लोकसभा चुनाव में झारखंड की 14 में से पांच सीटों पर इंडिया गठबंधन ने जीत हासिल की। इनमें तीन सीटें झामुमो ने और दो सीटें कांग्रेस ने जीतीं। जहां तक प्रत्याशी उतारने की बात है, तो कांग्रेस ने सात, झामुमो ने पांच और राजद और भाकपा माले ने एक-एक सीट पर प्रत्याशी उतारा था। 4 जून को जब परिणाम आया, तब यह बात सामने आयी कि झामुमो को 13 और कांग्रेस को 15 विधानसभा सीटों पर बढ़त हासिल हुई। जहां तक सामान्य सीटों पर बढ़त की बात है, तो कांग्रेस को दो और झामुमो को तीन सामान्य सीटों पर बढ़त हासिल हुई। झारखंड कांग्रेस ने यह कह कर लोकसभा चुनाव परिणाम को ऐतिहासिक बताया कि 20 साल बाद कांग्रेस को राज्य में दो सीटें मिली हैं। यह उसके लिए बड़ी कामयाबी है।

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को जिन विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त मिली, उनमें गुमला (एसटी), बिशुनपुर (एसटी), लोहरदगा (एसटी), खरसावां (एसटी), तमाड़ (एसटी), मांडर (एसची), तोरपा (एसटी), खूंटी (एसटी), सिसई (एसटी), सिमडेगा (एसटी), कोलेबिरा (एसटी), खिजरी (एसटी), मनिका (एससी), मधुपुर और महागामा जेनरल सीटें शामिल हैं।

क्या हुआ था 2019 के विधानसभा चुनाव में
2019 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 16 सीटों पर जीत हासिल की थी। बाद में दो विधायक, प्रदीप यादव (पोड़ैयाहाट) और बंधु तिर्की (मांडर) कांग्रेस में शामिल हो गये, तो उसके विधायकों की संख्या 18 हो गयी। लेकिन रामगढ़ की सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस यह सीट गंवा बैठी और इस तरह झारखंड की पांचवीं विधानसभा में उसके विधायकों की संख्या 17 रह गयी। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मांडू के जयप्रकाश भाई पटेल जरूर उसमें शामिल हो गये, लेकिन फिलहाल यह साफ नहीं है कि विधानसभा में उनकी स्थिति क्या है। जहां तक वोट प्रतिशत का सवाल है, तो 2019 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 13.88 प्रतिशत वोट मिले थे।

कांग्रेस के सामने क्या है चुनौती
कांग्रेस ने झारखंड विधानसभा चुनाव में 33 सीटों पर प्रत्याशी उतारने का मन बनाया है। सीट शेयरिंग के लिहाज से यह बहुत मुश्किल नहीं है, क्योंकि झामुमो भी करीब 35 सीटों पर उम्मीदवार दे सकता है। बाकी सीटें राजद और वाम दलों के लिए छोड़ी जा सकती हैं। कांग्रेस ने इस पर विचार के लिए दिल्ली में बैठक भी बुलायी है। कांग्रेस को पिछले विधानसभा चुनाव में 31 सीटें मिली थी, जबकि झामुमो के हिस्से में 43 सीटें आयी थीं। कांग्रेस का दो अधिक सीटों पर दावा पिछले विधानसभा चुनाव के बाद बदली परिस्थितियों के कारण है। मांडू के भाजपा विधायक जेपी पटेल कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं, जबकि पोड़ैयाहाट से पिछले विधानसभा चुनाव में झाविमो के टिकट पर लड़ने वाले प्रदीप यादव भी कांग्रेस का दामन थाम चुके हैं। वह विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के उपनेता भी हैं। इसलिए इन दोनों सीटों पर कांग्रेस दावा कर रही है।

कांग्रेस को इन सीटों पर करनी होगी मेहनत
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जिन सीटों पर मेहनत करनी होगी, उनमें से अधिकांश सामान्य सीटें हैं। इनमें जमशेदपुर पश्चिम, बरही, बड़कागांव, बेरमो, झरिया और पोड़ैयाहाट शामिल हैं। इनके अलावा लातेहार (एससी) में भी कांग्रेस लोकसभा चुनाव में पिछड़ गयी थी।

झारखंड कांग्रेस में अंतरकलह
झारखंड में लोकसभा की दो सीटों पर जीत हासिल करने के बावजूद प्रदेश कांग्रेस में अंतरकलह कम नहीं हुआ है। प्रदेश नेतृत्व से असंतुष्ट खेमे का कहना है कि सात में से पांच सीटों पर कांग्रेस की हार हुई है। यह बहुत अच्छी स्थिति नहीं है। इसलिए प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन की मांग एक बार फिर तेज होने लगी है। पिछले दिनों पार्टी की ओर से बुलायी गयी विस्तारित कार्यसमिति की बैठक से लेकर कांग्रेस विधायक दल की बैठक तक में प्रदेश प्रभारी की उपस्थिति में यह मुद्दा जोरशोर से उठाया गया। बैठक में प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की के साथ-साथ कई आदिवासी विधायकों और मंत्रियों ने विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश कमेटी में बदलाव की बात कही। बंधु तिर्की ने तो सात में से पांच सीट गंवाने की नैतिक जिम्मेवारी लेते हुए प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर से इस्तीफे तक की मांग कर दी।इन तमाम परिस्थितियों के बीच अब यह साफ हो गया है कि विधानसभा चुनाव की तैयारियों में कांग्रेस की स्थिति ठीक नहीं है। वैसे अभी चार-पांच महीने का समय है, लेकिन यदि इस दौरान पार्टी नेतृत्व ने इन मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया, तो उसके लिए 2019 का प्रदर्शन तो दूर की बात, लोकसभा चुनाव का प्रदर्शन दोहराना भी मुश्किल हो जायेगा।

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