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    Home»विशेष»हेमंत की हिम्मत के आगे, जेल का ताला टुटा
    विशेष

    हेमंत की हिम्मत के आगे, जेल का ताला टुटा

    shivam kumarBy shivam kumarJune 29, 2024No Comments9 Mins Read
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    -गर्व और न्याय की अनुभूति से आत्मविभोर दिखे हेमंत
    -कल्पना का जुनून और कार्यकर्ताओं के हौसलों ने पार्टी को संभाला
    -अब एक नहीं दो-दो हिम्मत है झामुमो के पास
    झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को हाइकोर्ट से जमानत मिल गयी है। जमानत से बाहर आते ही हेमंत सोरेन ने कहा कि पूरा देश जानता है कि हमें क्यों जेल भेजा गया था। जमानत मिलते ही कल्पना सोरेन और झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेताओं और कार्यकर्ताओं में खुशी की लहर छा गयी है। उनकी खुशी दोगुनी इसलिए हो गयी है क्योंकि हाइकोर्ट ने भी कह दिया है कि इस बात का कोई सबूत नहीं है, जो यह साबित कर सके कि हेमंत सोरेन का जमीन घोटाले से सीधा कनेक्शन है। हेमंत सोरेन तो चीख-चीख कर पहले से ही कहते आ रहे हैं कि उन्हें फंसाया गया है। जिस जमीन के आरोप में उन्हें जेल भेजा गया है, वह जमीन उनके नाम से है ही नहीं। परिवार, पार्टी के अलावा झारखंड के करोड़ों लोगों में भी एक तरह का रोमांच और उत्सुकता है कि हेमंत सोरेन जेल से बाहर आ गये हैं। अब लोग यह भी कह रहे हैं कि अब भाजपा या यूं कहें एनडीए का क्या होगा। चूंकि झारखंड में इस साल चुनाव होना है। जब हेमंत सोरेन जेल में बंद थे, तब तो लोकसभा चुनाव में उन्होंने एनडीए की झोली से तीन सीटें छीन लीं। अब जब बाहर आ चुके हैं, तब क्या होगा। यह सवाल अब लोगों के बीच उत्सुकता पैदा कर रहा है। हालांकि राजनीति का गणित कुछ अलग तरीके से ही काम करता है। वैसे लोकसभा चुनाव का परिणाम बता गया कि हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी को लेकर झारखंड के लोगों और खासकर आदिवासी समाज में जबरदस्त गुस्सा था। झामुमो और हेमंत समर्थकों में गुस्सा इस सवाल को लेकर था कि आखिर जांच की सूई झामुमो पर ही आकर क्यों अटक जा रही है। क्या मनरेगा घोटाला का कनेक्शन पूर्व सरकार के समय से नहीं है? क्या इडी को भाजपा शासनकाल में कुछ भी गड़बड़ नहीं दिखा। यह सवाल लोगों को कचोट रहा था। झारखंड काआम जनमानस भाजपा की वाशिंग मशीन वाले फॉर्मूले को लेकर धीरे-धीरे ही सही, लेकिन मुखर हो रहा है। अब जब हेमंत सोरेन जेल से बहार आ चुके हैं और मात्र दो-तीन महीने में विधानसभा चुनाव होनेवाला है। ऐसे में कोर्ट की टिप्पणी के बाद जेएमएम को फ्रंट फुट पर खेलने के लिए पूरा प्लेटफार्म मिल गया है। अब झामुमो के पास एक हिम्मत नहीं दो-दो है यानी अब झामुमो के पास कल्पना सोरेन भी हैं। उन्होंने हेमंत की अनुपस्थिति में खुद को साबित भी कर दिया है। हेमंत की अनुपस्थिति में कल्पना सोरेन ने पार्टी को जिस तरीके से संभाला है, उसकी कल्पना ही की जा सकती है। जी तोड़ मेहनत और आंसू को ऊर्जा बना डाला था कल्पना सोरेन ने। पार्टी के एक-एक नेता-कार्यकर्ता को संजो कर रखा। कल्पना सोरेन ने साबित कर दिया कि एक गृहिणी घर के अलावा जरूरत पड़ने पर पार्टी को भी चला सकती है। हेमंत सोरेन आज खुश तो बहुत होंगे, लेकिन उन्हें अपनी पत्नी पर गर्व कितना हो रहा होगा, सच में उस कल्पना की अनुभूति की जा सकती है। हेमंत सोरेन के जेल से बाहर आते ही विधानसभा चुनाव का चुनावी शंखनाद भी हो गया है। जेएमएम एक नहीं, दो नहीं 10 कदम आगे का रास्ता अखितयार कर चुका है। एक तो चंपाई सोरेन ने योजनाओं की झड़ी लगा रखी है, वहीं कल्पना सोरेन जनता के बीच में जा बैठी हैं। अब हेमंत सोरेन भी गरजने को बेचैन होंगे। वह अपनी हर पीड़ा को जनता को बतायेंगे और भाजपा को विलेन बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे। क्या है हेमंत सोरेन की जमानत के राजनीतिक मायने और कैसे विधानसभा चुनाव पर इसका असर देखने को मिलेगा, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    जैसे ही हेमंत सोरेन जेल से बाहर आये, झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकर्ताओं में जोश भर गया। उनकी हिम्मत दोगुनी बढ़ गयी। होटवार जेल से निकल कर हेमंत सोरेन सीधे अपने पिता दिशोम गुरु शिबू सोरेन के आवास पर पहुंचे। वहां उन्होंने गुरुजी का आशीर्वाद प्राप्त किया। उनकी माता रूपी सोरेन ने उन्हें गले लगाया, फिर तिलक लगा कर दही खिलायी। खुशी के मारे उनकी आंखें नम थीं। पत्नी कल्पना सोरेन की आंखों में एक सुकून था। भाई बसंत सोरेन भी साये की तरह भाई के साथ रहे। पूरे परिवार में खुशी की लहर दिखी। उसके बाद हेमंत सोरेन ने बड़े ही भावुक तरीके से मीडिया को संबोधित भी किया। उन्होंने कहा कि कैसे समाज की आवाज को दबाया जा रहा है। हेमंत सोरेन शांत थे, लेकिन उनका चेहरा बहुत कुछ बोल रहा था। न्याय के प्रति सम्मान था और आने वाले समय को लेकर खामोशी, लेकिन इस खामोशी में तूफान छिपा है यह तय है।

    जब पार्टी के लिए कल्पना ने लांघ दी दहलीज
    वह 31 जनवरी की रात थी, जब झारखंड की राजनीति ने अचानक करवट ली। राज्य के सीटिंग मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को इडी ने गिरफ्तार कर लिया था। देश भर की मीडिया की निगाहें झारखंड पर थीं। जेएमएम के नेता और कार्यकर्ता हताश थे। हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन बेचैन थीं। पार्टी का क्या होगा, चर्चाओं ने जोर पकड़ा। लोगों को लगने लगा कि जेएमएम अब दो फाड़ हो जायेगा। लोकसभा चुनाव भी नजदीक था। राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं होने लगीं कि पार्टी को कौन संभालेगा। लोकसभा चुनाव में बिना हेमंत के पार्टी कैसे परफॉर्म करेगी। चुनावी जरूरतों और अड़चनों का कौन हल निकालेगा। वहीं विरोधी खेमा उत्साहित था। उसे लगने लगा था कि उसने आधी जंग जीत ली है। अति आत्मविश्वास के साथ एनडीए चुनावी मैदान में उतरा। वहीं हताश पड़ा झारखंड मुक्ति मोर्चा को नयी ताकत देने के लिए हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन ने घर की दहलीज को लांघ डाला और कूद पड़ीं मैदान में। बता दिया कि अगर एक आदिवासी महिला ने ठान लिया तो वह क्या कर सकती है। कल्पना सोरेन ने बेजान पड़ी पार्टी में नयी जान फूंकने का ही काम नहीं किया, बल्कि लोगों को जाकर बताया भी कि कैसे उनके साथ अन्याय हुआ है। कल्पना ने न दिन देखा न रात, बस एक लक्ष्य साध निकल पड़ीं जनता के बीच। सोशल मीडिया पर पति हेमंत सोरेन की आवाज बनीं। उन्होंने हेमंत सोरेन का फेसबुक पेज उठाया और बता डाला कि जेल का ताला टूटेगा, हेमंत सोरेन छूटेगा। कल्पना सोरेन न सिर्फ हेमंत की आवाज बनीं, वह हेमंत ही हिम्मत बन कर मैदान में उतरीं।

    अब एक नहीं दो-दो ‘हिम्मत’ होंगे मैदान में
    अब जब विधानसभा का चुनाव पास है, तो जेएमएम अब डबल मजबूती के साथ मैदान में उतरेगा। हेमंत-कल्पना की जोड़ी एनडीए को बड़ा भारी पड़ने वाली है। अब जब हेमंत सोरेन फिर से हाथों में माइक लेकर जनता के समक्ष बोलेंगे, तब वह बोलेंगे नहीं दहाड़ेंगे। इस बार का विधानसभा चुनाव बहुत दिलचस्प होने वाला है। जेएमएम मानसिक रूप से पहले ही लीड लेकर बैठेगा। आदिवासी सीटों पर जेएमएम का झंडा पहले से ही बुलंद है। इक्का-दुक्का जो छूट भी गयी है, उसे भी जेएमएम मजबूती के साथ साधने का प्रयास करेगा। वैसे सीएम चंपाई सोरेन ने भी अपनी भूमिका बुलंदी के साथ निभायी है। जेएमएम कार्यकर्ताओं और नेताओं का समर्थन उन्हें संपूर्ण रूप से प्राप्त हुआ है। उन्होंने भी लोकसभा चुनाव में अपनी काबिलियत और तजुर्बा का बखूबी परिचय दिया है। पार्टी को उन्होंने पटरी से उतरने नहीं दिया। हेमंत सोरेन का विश्वास उन्होंने अडिग रखा। चंपाई सोरेन बहुत ही मजबूती के साथ सरकार चला रहे हैं। जिन लोकलुभावन योजनाओं की उन्होंने आधारशिला रखी है, वह भी विधानसभा चुनाव में रंग लायेगी। जनता में इन योजनाओं का बहुत ही सकारात्मक मैसेज गया है। वहीं हेमंत को जमानत मिलते ही कांग्रेसी भी उत्साहित हैं। उन्हें भी अब दो-दो मजबूत कंधे मिलेंगे अपनी चुनावी नैया पार लगाने के लिए। क्योंकि संगठन के नाम पर कांग्रेस का झारखंड में बहुत कुछ है नहीं। जो है वह खुद नेताओं के बल पर है या फिर जेएमएम का कंधा।

    भाजपा बैकफुट पर
    हेमंत सोरेन को जमानत मिलते ही भाजपा बैकफुट पर है। भाजपा को यह अच्छी तरह से पता है कि जब हेमंत सोरेन जेल के अंदर रह कर उसके अति आत्मविश्वास को तोड़ सकते हैं, तो बाहर निकलने पर वह क्या कमाल कर सकते हैं। इस बार तो हेमंत सोरेन के साथ कल्पना सोरेन भी मैदान में होंगी और साथ में होगी सहानुभूति। यह सहानुभूति राजनीति में बड़ा ही मजबूत प्रत्याशी का रोल अदा करती है। इस प्रत्याशी को जीतने के लिए बहुत मेहनत नहीं करनी पड़ती, बस अपनी पीड़ा को जनता के समक्ष रख देना है। अगर थोड़े बहुत आंसू गिर जायें, तो सोने पे सुहागा। फिर बहुत कुछ बोलने की जरूरत नहीं। लेकिन सहानुभूति को बीच-बीच में सिसकियां जरूर लेनी चाहिए। अंत में एक्स फैक्टर के लिए मोटिवेशनल वन लाइनर मारना भूलना नहीं चाहिए, वह भी गरज कर। खैर यह विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए कड़ी चुनौती है। उसे अब फूंक-फूंक कर रणनीति पर विचार करना पड़ेगा। ऐसा नहीं है कि भाजपा कहीं से कमजोर है, लेकिन जो वोटर्स 2024 के लोकसभा चुनाव और 2019 के विधानसभा चुनाव में छिटक गये थे, उसे फिर से अपने पाले में कैसे लाया जाये, यह उसके लिए चिंता का सबब है। भाजपा के पास करीब पच्चास सीटें ऐसी होंगी, जिस पर वह अपने पत्ते सजा सकती है। यह भाजपा को भी अच्छी तरह से पता है। कैसे रूठों को भाजपा मनायेगी यह भी चैलेंज उसके सामने होगा। उसके बाद गुटबाजी और भितरघात से भी भाजपा को दो-दो हाथ करना पड़ेगा। भाजपा को सहयोगी के साथ-साथ तीसरे फ्रंट की भी जरूरत पड़ेगी। वह तीसरा फ्रंट कौन होगा, समय रहते उसे पहचानना पड़ेगा। फिलहाल भाजपा के गढ़ में जेएमएम या यूं कहें इंडी गठबंधन पूरी तरीके से सेंधमारी करने में जुटा है। सत्ता का लाभ उसे मिल रहा है। कैबिनेट विस्तार और योजनाओं के माध्यम से इंडी गठबंधन अपने इस मिशन को अंजाम देना चाहेगा। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा कौन सी रणनीति अख्तियार करती है।

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