रांची। हाइकोर्ट ने मेसर्स स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड की याचिका की सुनवाई के दौरान कहा है कि चूंकि पोस्ट न्यायिक व्यक्ति नहीं है, इसलिए आपराधिक मामलों में मुकदमा का सामना करने के लिए समन पोस्ट या पोजीशन के खिलाफ जारी नहीं किया जा सकता है। हाइकोर्ट के न्यायमूर्ति अनिल कुमार चौधरी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि सीजेएमए चाइबासा ने डीजीएम सेल, मेसर्स आरएमडी गुआ ओर माइंस के खिलाफ समन जारी करके अनुचित कार्य किया है। खासकर तब जब ऐसा पद निर्विवाद रूप से अस्तित्व में ही नहीं है।

ऐसे में कथित आपराधिक कृत के लिए जिम्मेदार किसी भी व्यक्ति का नाम लिए बिना संज्ञान लेना कानून में टिकाऊ नहीं है। खंडपीठ ने कहा कि डीजीएम सेल, मेसर्स आरएमडी गुआ ओर माइंस के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई जारी रखना उचित नहीं है। खंडपीठ ने प्रार्थी की याचिका को स्वीकृत करते हुए मामले से संबंधित सभी आपराधिक कार्यवाही सहित सीजेएम चाइबासा द्वारा 23 दिसंबर 2020 के आदेश को रद्द कर दिया। दरअसल, मामले में डीजीएम सेल, मेसर्स आरएमडी गुआ ओर माइंस को मुख्य आरोपी बताते हुए कई आपराधिक धाराओं के लिए संज्ञान लिया गया था और समन जारी किया गया गया था।

प्रार्थी का कहना था कि गुआ ओर माइंस में 14 उप महाप्रबंधक है और गुआ ओर माइंस नाम की कोई कानूनी इकाई नहीं है। रॉ मैटेरियल डिवीजन के विघटन के बाद गुआ ओर माइंस अब बोकारो स्टील प्लांट, सेल के प्रशासनिक नियंत्रण में है। संज्ञान किसी व्यक्ति द्वारा किये गये किसी विशेष गलत कार्य को उल्लेखित किये बिना अस्पष्ट आरोप पर आधारित है। संज्ञान किसी व्यक्ति के बजाय एक पद के खिलाफ लिया गया है इसलिए यह कानूनी रूप से सही नहीं है।

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